छिंदवाड़ा। महाकौशल अंचल की छिंदवाड़ा संसदीय सीट प्रदेश ही नहीं देश की हाई प्रोफाइल सीटों में शामिल है. यहां 1997 में हुए उपचुनाव को छोड़कर कांग्रेस किसी भी आम चुनाव में नहीं हारी. मुख्यमंत्री कमलनाथ का गढ़ मानी जाने वाली छिंदवाड़ा सीट पर इस बार उनकी विरासत दांव पर है क्योंकि मुख्यमंत्री बनने के बाद कांग्रेस ने उनके बेटे नकुलनाथ को मैदान में उतारा है तो बीजेपी ने आदिवासी प्रत्याशी नत्थनशाह को कमलनाथ का गढ़ भेदने की जिम्मेदारी दी है.
छिंदवाड़ा में 1951 से 2014 तक 16 बार आम चुनाव हुए और हर बार कांग्रेस ने जीत का परचम लहराया, जबकि हवाला कांड में कमलनाथ का नाम आने के बाद यहां से चुनाव लड़ी उनकी पत्नी अलकानाथ ने भी जीत दर्ज की थी. 1997 में बीजेपी के सुंदर लाल पटवा के बाद यहां कोई भी बीजेपी प्रत्याशी जीत दर्ज नहीं कर सका. क्योंकि इसके बाद कभी यहां कमल के खिलने के लिए मुफीद हवा-पानी मिला ही नहीं. 1980 में छिंदवाड़ा से संसदीय पारी शुरू करने वाले कमलनाथ ने इस क्षेत्र को कांग्रेस के अभेद्य किले में तब्दील कर दिया. 1998 से छिंदवाड़ा में कमलनाथ लगातार चुनाव जीत रहे हैं. बीजेपी ने यहां प्रहलाद पटेल, प्रतुलचंद द्विवेदी और चौधरी चंद्रभान सिंह जैसे दिग्गजों पर भी दांव लगाया, लेकिन हर बार हार का सामना करना पड़ा.
छिंदवाड़ा में 29 अप्रैल को होने वाले लोकतंत्र के हवन में 15 लाख 5 हजार 267 मतदाता आहुति डालने को तैयार हैं. जिनमें 7 लाख 68 हजार 463 पुरुष और 7 लाख 36 हजार 781 महिला मतदाता हैं, जबकि अन्य श्रेणी के 23 मतदाता हैं. इस बार यहां कुल 1943 मतदान केंद्र बनाए गए हैं, जिन्हें 233 सेंक्टरों में बांटा गया है. जिनमें से 339 संवेदनशील बूथ हैं, जहां प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने की बात कही है.
छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत छिंदवाड़ा, जुन्नारदेव, अमरवाड़ा, सौंसर, पांढुर्णा, चौरई, परसिया विधानसभा सीटें आती हैं. विधानसभा चुनाव में इन सातों सीटों पर कांग्रेस ने बीजेपी का सफाया कर दिया था. जिससे लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस का पलड़ा भारी दिख रहा है. 2014 के आम चुनाव में कमलनाथ ने बीजेपी के चौधरी चंद्रभान सिंह को हराया था, जबकि इस बार बीजेपी ने आदिवासी वोट बैंक को ध्यान में रखकर जुन्नारदेव के पूर्व विधायक नत्थनशाह कवरेती को कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ के खिलाफ मैदान में उतारा है.
खास बात ये है कि छिंदवाड़ा सीट कांग्रेस ने 1977 की इंदिरा विरोधी लहर में भी जीती थी. और 2014 की मोदी लहर में भी जीतकर कांग्रेस ने बीजेपी का सूपड़ा साफ कर दिया था. लिहाजा, इस बार भी कमलनाथ के गढ़ को भेदना बीजेपी के लिए आसान नहीं है.