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छिंदवाड़ा: एक हॉस्पिटल के भरोसे हैं 40 गांव के लोग, फिर भी नहीं है कोई डॉक्टर, शोपीस बनकर रह गई बिल्डिंग - इलाज

जिले के पातालकोट आदिवासी इलाके में करीब 40 गांवों के लिए एक ही अस्पताल है, लेकिन डॉक्टर नहीं होने की वजह से वहां के लोग अपना इलाज नहीं करा पा रहे हैं.

एक हॉस्पिटल के भरोसे हैं 40 गांव के लोग
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Published : Apr 19, 2019, 5:41 PM IST

छिंदवाड़ा। सरकार भले ही बुनियादी सुविधाओं को लेकर लाख दावे करें लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां करती है. जिले के पातालकोट आदिवासी इलाके में करीब 40 गांवों के लिए एक ही अस्पताल है, लेकिन डॉक्टर नहीं होने की वजह से वहां के लोग अपना इलाज नहीं करा पा रहे हैं.

एक हॉस्पिटल के भरोसे हैं 40 गांव के लोग


जिले के आदिवासी अंचल में छिन्दी एक गांव है जो करीब 40 गांवों के बीच में पड़ता है. यहां पर इकलौता सरकारी अस्पताल है, लेकिन पूरा अस्पताल सिर्फ एक स्वीपर के भरोसे है. करीब 5 साल पहले बनी चमकदार बिल्डिंग में अस्पताल का नाम भी लिखा है लेकिन डॉक्टर नहीं होने की वजह से सिर्फ शोपीस बनकर रह गया है. बीमार आदिवासी इलाज के लिए आते तो हैं, लेकिन अस्पताल बन्द होने की वजह से बिना इलाज के ही वापस लौटना पड़ता है.

छिंदवाड़ा। सरकार भले ही बुनियादी सुविधाओं को लेकर लाख दावे करें लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां करती है. जिले के पातालकोट आदिवासी इलाके में करीब 40 गांवों के लिए एक ही अस्पताल है, लेकिन डॉक्टर नहीं होने की वजह से वहां के लोग अपना इलाज नहीं करा पा रहे हैं.

एक हॉस्पिटल के भरोसे हैं 40 गांव के लोग


जिले के आदिवासी अंचल में छिन्दी एक गांव है जो करीब 40 गांवों के बीच में पड़ता है. यहां पर इकलौता सरकारी अस्पताल है, लेकिन पूरा अस्पताल सिर्फ एक स्वीपर के भरोसे है. करीब 5 साल पहले बनी चमकदार बिल्डिंग में अस्पताल का नाम भी लिखा है लेकिन डॉक्टर नहीं होने की वजह से सिर्फ शोपीस बनकर रह गया है. बीमार आदिवासी इलाज के लिए आते तो हैं, लेकिन अस्पताल बन्द होने की वजह से बिना इलाज के ही वापस लौटना पड़ता है.

Intro:सरकारें भले ही बुनियादी सुविधाओं के लाख दावे करें लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयाँ करती है,छिन्दवाड़ा के पातालकोट आदिवासी इलाके में करीब 40 गाँवों के लिए एक अस्पताल है लेकिन डॉक्टर नहीं होने की वजह से लोग ईलाज को तरस रहे हैं।


Body:छिन्दवाड़ा के आदिवासी अंचल में छिंदी एक गांव है जो करीब 40 गाँवो का सेंटर पॉइंट है जहाँ पर इकलौता सरकारी अस्पताल है अगर कोई बीमार हो जाए तो ईलाज के लिए इसके अलावा और कोई साधन नहीं है लेकिन पूरा अस्पताल सिर्फ एक स्वीपर के भरोसे है। करीब 5 साल पहले बनी चमकदार बिल्डिंग में अस्पताल का नाम भी लिखा है लेकिन डॉक्टर नहीं होने की वजह से सिर्फ शोपीस बनकर रह गया है।


Conclusion:बीमार आदिवासी ईलाज के लिए आते तो हैं लेकिन अस्पताल बन्द होने की वजह से बिना ईलाज के ही वापस लौटना पड़ता है।
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