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मोती की खेती से चमकेगी अन्नदाता की किस्मत

कॉर्न सिटी की पहचान बन चुके छिंदवाड़ा के किसान अब मोती की खेती करेंगे. मोती की खेती के लिए मध्यप्रदेश के इकलौते जिला छिंदवाड़ा को चुना गया है. जिसके तहत कृषि विज्ञान केंद्र में पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया है. अधिकतर मोती की खेती के बारे में हमने सिर्फ सुना था. लेकिन अब छिंदवाड़ा के किसान मोती की खेती करके सिर्फ देश में ही नहीं विदेशों में भी इसे पहुंचाएंगे.

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चमकेगी अन्नदाता की किस्मत
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Published : Mar 22, 2021, 9:40 PM IST

छिन्दवाड़ा। कॉर्न सिटी की पहचान बन चुके छिंदवाड़ा के किसान अब मोती की खेती करेंगे. मोती की खेती के लिए मध्यप्रदेश के इकलौते जिला छिंदवाड़ा को चुना गया है. जिसके तहत कृषि विज्ञान केंद्र में पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया है. अधिकतर मोती की खेती के बारे में हमने सिर्फ सुना था. लेकिन अब छिंदवाड़ा के किसान मोती की खेती करके सिर्फ देश में ही नहीं विदेशों में भी इसे पहुंचाएंगे.

छिन्दवाड़ा से शुरू होगी मोती की खेती
  • कृषि विज्ञान केंद्र में हुआ है पॉयलट प्रोजेक्ट शुरू

मध्य प्रदेश के इकलौते जिले छिंदवाड़ा को मोती की खेती के लिए चुना गया है. जिसके लिए कृषि विज्ञान केंद्र चंदनगांव में पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया है. कृषि विज्ञान केंद्र के प्रोग्राम असिस्टेंट ने बताया कि उन्होंने मोती की खेती करने के लिए केंद्र की प्रोग्राम असिस्टेंट चंचल भार्गव ने जयपुर से इसकी ट्रेनिंग ली है कि किस तरीके से मोती की खेती की जाएगी. जिसके लिए वे कृषि विज्ञान केंद्र में पहले खुद इसका उत्पादन कर रही हैं और फिर किसानों को इसके लिए तैयार किया जाएगा.

  • मोती की खेती के लिए तालाब की होगी जरूरत

मोती की खेती करने के लिए किसानों को खेतों में तालाब की सबसे अहम जरूरत होगी. तालाब का 50 फीट चौड़ा 80 फीट लंबा और 12 फीट गहराई जरूरी है. जिसमें मोतियों के बीज डाले जा सके. सरकार ने कई किसानों ने पहले से ही बलराम ताल बनाए हुए हैं. उन्हें भी गहराई करके मोती की खेती की जा सकेगी.

  • 15 से 18 महीने में तैयार हो जाते हैं मोती

कृषि विज्ञान केंद्र की प्रोग्राम असिस्टेंट चंचल भार्गव ने बताया कि मोती की खेती के लिए सीप को नदियों से इक्कठा करना पड़ेगा या फिर इसे बाजार से खरीद सकते हैं. इसके बाद हर सीप में एक छोटी सी शल्य क्रिया के बाद उसके भीतर चार से 6 मिलीमीटर डायमीटर वाले साधारण गोल या डिजाइनर वीड जैसे गणेश बुद्ध पुष्प आकृति डाली जाती है और फिर सीप को बंद किया जाता है. इन सीपों को नायलॉन बैग में रखकर बांस के सहारे लटका दिया जाता है. तालाब में 1 मीटर की गहराई पर फिर से छोड़ा जाता है प्रति हेक्टेयर 20 हजार से 30 हजार सीपों में मोती का पालन किया जाता है और 15 से 18 महीने में मोती बनकर तैयार हो जाता है.

छिंदवाड़ाः मोती की खेती से मालामाल होगा अन्नदाता, पायलट प्रोजेक्ट शुरू

  • 40 रुपए में किसानों को मिलेगा बीज

मोती की खेती करने के लिए 40 तरह के सीप किसानों को उपलब्ध कराए जाएगें. फिर यही मोती क्वॉलिटी के हिसाब से 100 रुपए से लेकर 15 सौ रुपए तक सिर्फ भारत ही नहीं विदेशों में भी सप्लाई होगा. इसके लिए भारत में अलग-अलग एजेंसी पहले किसानों से एग्रीमेंट करती है और किसानों से सारी प्रक्रिया के तहत मोतियों का उत्पादन कराती हैं.

  • मोती की खेती के लिए सबसे अनुकूल होती है शरद ऋतु

मोती की खेती के लिए सबसे अनुकूल मौसम शरद ऋतु यानी अक्टूबर से दिसंबर तक का समय माना जाता है. कृषि विज्ञान केंद्र में पायलट प्रोजेक्ट के तहत मोतियों का बीज तैयार किया जा रहा है और फिर यहीं से किसानों को भी एक निश्चित राशि में दिया जाएगा. जिसके लिए सरकारी अनुदान भी मिलेगा.

छिन्दवाड़ा। कॉर्न सिटी की पहचान बन चुके छिंदवाड़ा के किसान अब मोती की खेती करेंगे. मोती की खेती के लिए मध्यप्रदेश के इकलौते जिला छिंदवाड़ा को चुना गया है. जिसके तहत कृषि विज्ञान केंद्र में पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया है. अधिकतर मोती की खेती के बारे में हमने सिर्फ सुना था. लेकिन अब छिंदवाड़ा के किसान मोती की खेती करके सिर्फ देश में ही नहीं विदेशों में भी इसे पहुंचाएंगे.

छिन्दवाड़ा से शुरू होगी मोती की खेती
  • कृषि विज्ञान केंद्र में हुआ है पॉयलट प्रोजेक्ट शुरू

मध्य प्रदेश के इकलौते जिले छिंदवाड़ा को मोती की खेती के लिए चुना गया है. जिसके लिए कृषि विज्ञान केंद्र चंदनगांव में पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया है. कृषि विज्ञान केंद्र के प्रोग्राम असिस्टेंट ने बताया कि उन्होंने मोती की खेती करने के लिए केंद्र की प्रोग्राम असिस्टेंट चंचल भार्गव ने जयपुर से इसकी ट्रेनिंग ली है कि किस तरीके से मोती की खेती की जाएगी. जिसके लिए वे कृषि विज्ञान केंद्र में पहले खुद इसका उत्पादन कर रही हैं और फिर किसानों को इसके लिए तैयार किया जाएगा.

  • मोती की खेती के लिए तालाब की होगी जरूरत

मोती की खेती करने के लिए किसानों को खेतों में तालाब की सबसे अहम जरूरत होगी. तालाब का 50 फीट चौड़ा 80 फीट लंबा और 12 फीट गहराई जरूरी है. जिसमें मोतियों के बीज डाले जा सके. सरकार ने कई किसानों ने पहले से ही बलराम ताल बनाए हुए हैं. उन्हें भी गहराई करके मोती की खेती की जा सकेगी.

  • 15 से 18 महीने में तैयार हो जाते हैं मोती

कृषि विज्ञान केंद्र की प्रोग्राम असिस्टेंट चंचल भार्गव ने बताया कि मोती की खेती के लिए सीप को नदियों से इक्कठा करना पड़ेगा या फिर इसे बाजार से खरीद सकते हैं. इसके बाद हर सीप में एक छोटी सी शल्य क्रिया के बाद उसके भीतर चार से 6 मिलीमीटर डायमीटर वाले साधारण गोल या डिजाइनर वीड जैसे गणेश बुद्ध पुष्प आकृति डाली जाती है और फिर सीप को बंद किया जाता है. इन सीपों को नायलॉन बैग में रखकर बांस के सहारे लटका दिया जाता है. तालाब में 1 मीटर की गहराई पर फिर से छोड़ा जाता है प्रति हेक्टेयर 20 हजार से 30 हजार सीपों में मोती का पालन किया जाता है और 15 से 18 महीने में मोती बनकर तैयार हो जाता है.

छिंदवाड़ाः मोती की खेती से मालामाल होगा अन्नदाता, पायलट प्रोजेक्ट शुरू

  • 40 रुपए में किसानों को मिलेगा बीज

मोती की खेती करने के लिए 40 तरह के सीप किसानों को उपलब्ध कराए जाएगें. फिर यही मोती क्वॉलिटी के हिसाब से 100 रुपए से लेकर 15 सौ रुपए तक सिर्फ भारत ही नहीं विदेशों में भी सप्लाई होगा. इसके लिए भारत में अलग-अलग एजेंसी पहले किसानों से एग्रीमेंट करती है और किसानों से सारी प्रक्रिया के तहत मोतियों का उत्पादन कराती हैं.

  • मोती की खेती के लिए सबसे अनुकूल होती है शरद ऋतु

मोती की खेती के लिए सबसे अनुकूल मौसम शरद ऋतु यानी अक्टूबर से दिसंबर तक का समय माना जाता है. कृषि विज्ञान केंद्र में पायलट प्रोजेक्ट के तहत मोतियों का बीज तैयार किया जा रहा है और फिर यहीं से किसानों को भी एक निश्चित राशि में दिया जाएगा. जिसके लिए सरकारी अनुदान भी मिलेगा.

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