छिंदवाड़ा। आमतौर पर सास-बहू की नोक-झोंक के किस्से ज्यादातर सुने जाते हैं, लेकिन छिंदवाड़ा जिले में एक ऐसा शिव मंदिर है जिसे लोग सास-बहू के मंदिर के नाम से जानते हैं. बताया जाता है कि राष्ट्रकूट राजा कृष्ण तृतीय ने पत्नी और मां को पूजा करने के लिए इस मंदिर का निर्माण कराया था. इस मंदिर में सास-बहू एक साथ पूजा करती थीं. इसलिए इसे सास-बहू का मंदिर कहते हैं. मकर संक्रांति के दिन से यहां पर 15 दिन मेला लगता है. इस मेले में लोग दूर-दूर से दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं.
मूर्तियां की कला दर्शनीय: यह मंदिर अत्यंत प्राचीन है. मंदिर द्वार पर उत्कीर्ण मूर्तियां की स्थापत्य कला दर्शनीय है. पर्यटकों के लिए सर्वाधिक आकर्षण का केंद्र है. मध्यप्रदेश शासन के पुरातत्व अभिलेखाकार एवं संग्रहालय के सूचना फलक अनुसार विदर्भ के देवगिरी (वर्तमान दैयताबाद) के यादव राजा महादेव एवं रामचंद्र के मंत्री हिमाद्रि ने विदर्भ राज्य में अनेक मंदिरों का निर्माण कराया. जिन्हें हिमाड़ पंथी के मंदिर कहते हैं. भूमित्र शैली का यह मंदिर कलचुरी स्थापत्य से मिलता है.परंतु मंदिर परिक्षेत्र स्थित एक शिलालेख जो अब अस्पष्ट है. मान्यखेह (मालखेड़) के राष्ट्रकूट राजा कृष्ण तृतीय का उल्लेख है. जिसका शासनकाल सन् 939 ई. से सन् 967 ई. तक था.
सास-बहू का मंदिर इसी परिसर में: गोदड़देव मंदिर के समीप लगभग 300 मीटर की दूरी पर रोड किनारे तिफना नदी के पास सास-बहू शिव मंदिर के खंडहर बिखरे पड़े हैं. यहां पर मिले एक और शिलालेख जो अब अस्पष्ट है. राष्ट्रकूट राजा कृष्ण तृतीय का उल्लेख किया गया है. अतः निश्चित ही इन मंदिरों का निर्माण राष्ट्रकूट राजा कृष्ण तृतीय के शासनकाल सन् 939 से सन् 967 के बीच का होगा. यह राष्ट्रकूट वंश का सबसे प्रतापी शासक था.
नीलकंठी गांव में है मंदिर: नीलकंठी छिंदवाड़ा तहसील का एक गांव है. जो छिंदवाड़ा के दक्षिण-पूर्व में 18 किमी दूरी पर है. गांव के पास तिफाना नदी के तट पर कुछ मंदिरों के खंडहर हैं. मुख्य मंदिर का प्रवेश द्वार अभी भी खड़ा है. पूर्व में लगभग 264 फीट लंबी 132 चौड़ी एक रिटेनिंग दीवार के भीतर बंद था. मंदिर के निर्माण में सीमेंट का उपयोग नही किया गया है. मंदिर मध्यकालीन ब्राह्मनिक शैली का है. पत्थरों को लोहे के क्लैंप द्वारा सुरक्षित किया जाता है. परकोटा नामक एक छोटे से किले और एक भोंवाड़ा व छत के अवशेष भी एक स्तंभ पर हैं जो पहले मंदिर से संबंधित प्रतीत होता है. एक शिलालेख है. राष्ट्रकूट वंश के राजा कृष्ण तृतीय का उल्लेख है जो 10वीं शताब्दी में रहते थे. एक और खंडित शिलालेख हाल ही में खोजा गया है, जिसमें उसी राजा का नाम दिया गया है और उसे चंद्र जाति से संबंधित बताया गया है.
गांव का नाम ऐसे हुआ नीलकंठ: स्थानीय किवदंती है कि, मंदिरों का निर्माण नीलकंठ नामक एक राजा द्वारा किया गया था. जिनका शरीर उनके सामने पत्थर के एक खंड के आकार में है. जबकि उसका सिर चादनी कुबडी नामक गांव में करीब 40 किमी दूर है. उसके बाद के स्थान पर एक शत्रु ने उसकी पत्नी को बहकाया था. उसे हिरण में बदल दिया और उसका सिर काट दिया. जिस पर उसकी सूंड उड़कर वापस नीलकंठी चली गई और महादेव के मंदिर के सामने लेट गई. जिसे उसने बनाया था. खंडहर हो चुके मंदिर के मुख्य द्वार का डिजाइन ब्राह्मनिक शैली में है.
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गोदड़ देव प्रांगण में लेख: ऐतिहासिक विवरण के अनुसार विदर्भ देवगिरी (वर्तमान दौलताबाद) के राजाओं ने इस क्षेत्र में राज्य किया है. जो त्रिपुरी कलचुरी राजाओं के समकालीन थे. यादव राजा महादेव (मृत्यु सन् 1241 ई.) एवं रामचन्द्र के मंत्री हिमाद्री ने विदर्भ राज्य में कई स्थानों पर अनेक मंदिरों का निर्माण कराया जो हिमाद पंथी (हमाडपंथी शैली के नाम से जाना जाता है. कलचुरियों के समकालीन एवं राज्य सीमा से लगे होने के कारण इस मंदिर का वास्तुशिल्प लगभग कलचुरि स्थापत्य से मिलता है. इसका निर्माण लगभग 13 वीं सदी में हुआ था. भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर भूमित्र शैली का है. भूविन्यास में गर्भ गृह, अंतराल एवं मंडप है. मंदिर का जंघा तक का पृष्ठ भाग अपने मूल स्वरूप में है. गर्भ गृह भूतलिय है. इसमें शिवलिंग स्थापित है. जिस तक जाने के लिए सौपान है. अंतराल की रथिकाओं में गोरी भैरव की प्रतिमाएं स्थापित हैं. द्वार शाखा में सप्त मात्राएं उत्कीर्ण हैं.
स्थानीय स्तर पर कराया गया जीर्णोद्धार: गर्भ ग्रह एवं मंडप के ध्वस्त होने पर स्थानिय लोगों के द्वारा जीर्णोदार कराया गया है. मंदिर परिसर में मंडप के स्तंभ दृष्टव्य है. एक स्तम्भ पर देवनागरी में संस्कृत भाषा के अस्पष्ट लेख है. इस मंदिर से कुछ दूरी पर दो और मंदिरों के भग्नावशेष है. नीलकंठी गोदड़देव में ऊपर चित्र दाई तरफ की मूर्ति को ग्रामीणों द्वारा इसे सास-बहु का मंदिर कहते हैं.