छिंदवाड़ा। मध्यप्रदेश में सत्ता की चाबी तक पहुंचने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका आदिवासी वोटर निभाते हैं. आदिवासियों को धर्म के जरिए कांग्रेस के पक्ष में करने के लिए पूर्व सीएम कमलनाथ ने नया दांव चला है. जिसके चलते छिंदवाड़ा में आदिवासी गौरव सम्मान दिवस के उपलक्ष्य में बागेश्वर धाम सरकार के पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की कथा कराई जा रही है. जिससे प्रदेशभर की करीब 84 विधानसभा सीटें, जहां पर आदिवासियों का दबदबा है, उन पर इसका प्रभाव पा सकें.
धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री बोले देश की अनोखी कथा: पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने बताया कि आदिवासी गौरव सम्मान दिवस के अवसर पर इस कथा का आयोजन पूर्व सीएम कमलनाथ के द्वारा कराया जा रहा है. आदिवासी वो समाज है, जो प्रकृति का पुजारी है और प्रकृति से ही भगवान की प्राप्ति होती है. आदिवासियों की कुलदेवी शबरी ने अपनी धार्मिक शक्ति से भगवान राम को अपनी कुटिया में बुला लिया था और अपने जूठे बेर भी खिलाए थे. यह कथा पूरे भारत में अनूठी है, जोकि आदिवासी गौरव सम्मान दिवस के अवसर पर कराई जा रही है.
आदिवासी वोट बैंक पर दोनों दलों की टिकी नजरें: 2023 का विधानसभा चुनाव आदिवासियों के सहारे ही भाजपा और कांग्रेस जीतने की जुगत लगा रही है. आदिवासी वोट बैंक पर दोनों पार्टियों की नजर है. छिंदवाड़ा से जब मध्य प्रदेश चुनाव के विजय अभियान की शुरुआत भाजपा के दिग्गज नेता व केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने की थी. उस दौरान भी केंद्र बिंदु आदिवासियों पर ही था. इसके बाद आदिवासियों का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल आंचलकुंड अमित शाह दर्शन करने पहुंचे थे. अब पूर्व सीएम कमलनाथ आदिवासी गौरव सम्मान दिवस के मौके पर बागेश्वर धाम सरकार के पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की कथा करवा कर आदिवासियों को अपने पक्ष में करना चाह रहे हैं. इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शहडोल में 1 जुलाई को आदिवासियों को साधने के लिए जनसभा के दौरान कई कार्यक्रमों में हिस्सा लिया था.
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47 विधानसभा आदिवासियों के लिए आरक्षित 84 सीटों पर निर्णायक भूमिका: मध्य प्रदेश में कुल 47 विधानसभा सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित है. इसके अलावा इन्हें मिलाकर कुल 84 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं. जहां पर आदिवासियों का दबदबा है. मध्यप्रदेश में 230 विधानसभा सीटें हैं. जिनमें से 84 सीटें विधानसभा चुनाव जिताने में निर्णायक भूमिका निभाती है. इसलिए कोई भी पार्टी आदिवासियों को अपने पक्ष में करना चाहती है. 2003 और 2018 के विधानसभा चुनावों में देखने को मिला है कि जब-जब आदिवासी वोट बैंक ने अपना रुख बदला है, तब तक सरकार को सत्ता से बाहर होना पड़ा है. 2003 में दिग्विजय सिंह को सत्ता से बाहर होना पड़ा था, तो वहीं 2018 में शिवराज सिंह चौहान को उनकी नाराजगी के चलते कुर्सी गंवानी पड़ी थी.