छिंदवाड़ा। भारत के बड़े संतों को जब याद किया जाता है तो दादाजी धूनीवाले का नाम जरूर आता है. वहीं दादाजी धूनीवाले का नाम लेते ही खंडवा की याद जाती है, जहां हर साल गुरु पूर्णिमा के अवसर पर लाखों भक्तों का तांता लग जाता है, लेकिन कोरोना महामारी के कारण इस साल खंडवा के दादाजी धूनीवाले धाम में भक्तों के आने-जाने पर रोक लगा दी गई है. ऐसे में कहीं न कहीं भक्तों को निराशा जरूर हुई है. लेकिन खंडवा के छोटे दादाजी की यादें आज भी छिंदवाड़ा के पांढुर्णा में बसी हुई हैं. बता दें दादाजी तीन बार पांढुर्णा आए थे जिनमें से एक बार अमोल धर्माधिकारी नामक भक्त के मकान में छोटे दादाजी रात भर रुके थे और हवन किया था.
छोटे दादाजी ने स्वयं अपनी चरण पादुका और छड़ी उनके परम भक्त स्वर्गीय ढूंढीराज धर्माधिकारी को 1937 में सौंपी थी. साथ ही उनके पुत्र दिगंबर धर्माधिकारी के साथ बैठकर हवन भी किया था. उसके बाद वे 13 नंबर की गाड़ी से खंडवा के लिए रवाना हुए थे. ये गाड़ी आज भी खंडवा में मौजद हैं.
अमोल धर्माधिकारी बताते हैं कि जब से छोटे दादाजी ने उनके घर मे हवन किया था तब से उस घर मे किसी की भी मौत नहीं हुई हैं. हालांकि, घर के सदस्य जैसे ही पांढुर्णा की सीमा लांघ के बाहर चले जाते हैं वहां कहीं ही उनकी मौत हुई हैं. ऐसी ही धर्माधिकारी परिवार में भी हुआ हैं.
दादाजी के भक्तों ने बताया कि साल 1967 में हाथी पर निशान लिए सैकड़ों भक्त पांढुर्णा से खंडवा के लिए पैदल रवाना हुए थे. हालांकि खंडवा पैदल निशान लेकर जाने की परंपरा 1955 से शुरू हुई थी, जहां पहली बार स्वर्गीय घनश्याम चौउतरे ने हाथ में निशान लेकर पांढुर्णा से पैदल रथ लेकर खंडवा रवाना हुए थे. तब से आज भी यह परंपरा मनोहर अरमरकर समेत दादा जी के कई भक्त निभा रहे हैं. बता दें कि हर साल रथ से निशान लेकर भक्त वट पुर्णिमा के दिन रवाना होते हैं.