छिंदवाड़ा। कोरोना वायरस के बढ़ते खतरे ने भले ही लोगों के बीच दूरियां बढ़ा दी हैं, लेकिन एक ऐसा दोस्त है जो हर किसी के बहुत नजदीक आ गया है जी हां अब मोबाइल हर किसी के लिए सबसे ज्यादा जरूरी उपकरण बन गया है. चाहे वे बच्चे हो या व्यापारी या फिर अधिकारी और कर्मचारी. कोरोना संकट काल के दौर में एक मोबाइल ही है जो हर तरह की जरूरत में काम आया लेकिन इसके काफी नुकसान भी हो रहे हैं.
व्यापार हो या नौकरी मोबाइल ही बना ऑफिस
कोरोना से पहले बिजनेसमैन को खरीदारी और बिक्री के लिए बाजार के चक्कर लगाने पड़ते थे. तो वही दफ्तरों में काम करने वाले कर्मचारी और अधिकारियों को दफ्तर में ही बैठकर काम करना पड़ता था. लेकिन कोरोना संक्रमण के दौर में रिवाज बदले और व्यापार तो ऑनलाइन हुआ ही सरकारी से लेकर प्राइवेट सभी ऑफिस भी मोबाइल पर सिमट गए. जहां ऑफिस की सारी मिटिंग सोशल मीडिया पर होने लगी वहीं सभी तरह की ट्रेंडिंग भी मोबाइल पर ही सिमट गई.
जरूरत से ज्यादा गैजेट्स का उपयोग होगा खतरनाक
बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाने वाले शिक्षक का कहना है कि कुछ काम तो रुक भी सकते हैं लेकिन पढ़ाई का रुकना बच्चों के भविष्य के लिए खतरनाक है. इसलिए ऑनलाइन पढ़ाई कराई जा रही है, हालांकि किसी भी चीज का जरूरत से ज्यादा उपयोग खतरनाक हो सकता है. इसलिए सरकारी गाइडलाइन के हिसाब से ही इनका उपयोग करना चाहिए. वहीं बच्चों के परिजनों को चाहिए की वह इस बात का ध्यान रखें की बच्चे मोबाइल का जरूरत से ज्यादा उपयोग न करें.
बच्चों के स्वास्थ्य को नुकसान
ऑनलाइन पढ़ाई करने वाले बच्चों का भी कहना है कि स्कूलों में जो पढ़ाई होती है वह बिल्कुल अलग होती थी, स्कूल में पढ़ाई के दौरान टीचर्स से वे सीधा सवाल कर पाते थे पर अब ऑनलाइन स्टडी में यह कमतर ही संभव हो पाता है. बच्चों का मानना है कि मोबाइल में एकाग्र चित्त होना कठिन होता है, वहीं लगातार मोबाइल से पढ़ाई के कारण आंखों पर भी जोर पड़ने लगा है.
पेरेंट्स भी हो रहे परेशान
अभी तक बच्चों को किसी भी तरह मोबाइल से दूर रखने वाले पेरेंट्स अब खुद ही बच्चों के भविष्य के लिए उन्हें मोबाइल दे रहे हैं. लेकिन वो भी इससे खुश नहीं हैं, क्योंकि बच्चे होमवर्क पूरा कर गेम खेलने में लग जाते हैं, जिस कारण वह पहले से भी ज्यादा समय मोबाइल पर बिताने लगे हैं, जो काफी नुकसानदायक है. इसीलिए कई परिजन ऑनलाइन स्टडी को गैर जरूरी मानने लग गए हैं.
ऑनलाइन स्टडी के लिए बढ़ा परिवार का खर्च
बदली जिंदगी में ऑनलाइन माध्यम जरूरी हो गया है, लेकिन इससे परिवार पर आर्थिक बोझ भी पड़ा है. जिस परिवार में अब तक एक मोबाइल के सहारे काम चल जाता था, अब वहां दो या तीन मोबाइलों की जरूरत पड़ रही है. वहीं कमजोर आर्थिक स्थिति वाले परिवारों के लिए यह मुसीबत बन गया है, क्योंकि अभी तक परिवार की मुलभूत सुविधाएं जुटाने में उनके पसीने छूट रहे थे अब मोबाइल और उसके रिचार्ज पर क्या करें बच्चो को पढ़ाना है तो और कोई रास्ता ही नहीं है.
सहूलियत बनीं मजबूरी
कोरोना वायरस के भारत में दस्तक देने से पहले अक्सर कहा जाता था कि मोबाइल और गैजेट से बच्चों और बुजुर्गों को दूर रखें ताकि उनकी आंखों पर प्रभाव ना पड़े. लेकिन समय ने ऐसी करवट ली कि हर कोई मोबाइल पर आश्रित हो गया. बच्चों के स्कूल की पढ़ाई हो या फिर बुजुर्गों की दवाई का ऑर्डर, किसी भी तरह का कारोबार हो या कंपनियों की मीटिंग सब मोबाइल पर ही सिमट गया है, इसीलिए भले ही इससे नुकसान हो रहा है पर लोगों के लिए यह सहूलियत अब मजबूरी बन गई है.