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स्मार्टफोन की दुनिया में गुम होते रिश्ते-नाते, 'ऑनलाइन जिंदगी' में ये गैजेट्स खतरा भी साबित होते !

कोरोना काल में समय ने ऐसी करवट ली कि हर कोई मोबाइल पर आश्रित हो गया. बच्चों के स्कूल की पढ़ाई हो या फिर बुजुर्गों की दवाई का ऑर्डर, किसी भी तरह का कारोबार हो या कंपनियों की मीटिंग सब मोबाइल पर ही सिमट गया है, इसीलिए भले ही नुकसान हो पर लोगों के लिए यह सहूलियत अब मजबूरी बन गई है.

Increased digital inconvenience in Corona era
डिजिटल असुविधा
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Published : Jul 20, 2020, 11:01 PM IST

छिंदवाड़ा। कोरोना वायरस के बढ़ते खतरे ने भले ही लोगों के बीच दूरियां बढ़ा दी हैं, लेकिन एक ऐसा दोस्त है जो हर किसी के बहुत नजदीक आ गया है जी हां अब मोबाइल हर किसी के लिए सबसे ज्यादा जरूरी उपकरण बन गया है. चाहे वे बच्चे हो या व्यापारी या फिर अधिकारी और कर्मचारी. कोरोना संकट काल के दौर में एक मोबाइल ही है जो हर तरह की जरूरत में काम आया लेकिन इसके काफी नुकसान भी हो रहे हैं.

कोरोना काल में बढ़ी डिजिटल असुविधा

व्यापार हो या नौकरी मोबाइल ही बना ऑफिस
कोरोना से पहले बिजनेसमैन को खरीदारी और बिक्री के लिए बाजार के चक्कर लगाने पड़ते थे. तो वही दफ्तरों में काम करने वाले कर्मचारी और अधिकारियों को दफ्तर में ही बैठकर काम करना पड़ता था. लेकिन कोरोना संक्रमण के दौर में रिवाज बदले और व्यापार तो ऑनलाइन हुआ ही सरकारी से लेकर प्राइवेट सभी ऑफिस भी मोबाइल पर सिमट गए. जहां ऑफिस की सारी मिटिंग सोशल मीडिया पर होने लगी वहीं सभी तरह की ट्रेंडिंग भी मोबाइल पर ही सिमट गई.

Digital facility became compulsion in Corona era
पेरेंट्स भी हो रहे परेशान

जरूरत से ज्यादा गैजेट्स का उपयोग होगा खतरनाक
बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाने वाले शिक्षक का कहना है कि कुछ काम तो रुक भी सकते हैं लेकिन पढ़ाई का रुकना बच्चों के भविष्य के लिए खतरनाक है. इसलिए ऑनलाइन पढ़ाई कराई जा रही है, हालांकि किसी भी चीज का जरूरत से ज्यादा उपयोग खतरनाक हो सकता है. इसलिए सरकारी गाइडलाइन के हिसाब से ही इनका उपयोग करना चाहिए. वहीं बच्चों के परिजनों को चाहिए की वह इस बात का ध्यान रखें की बच्चे मोबाइल का जरूरत से ज्यादा उपयोग न करें.

Digital facility became compulsion in Corona era
बच्चों के स्वास्थ्य को नुकसान

बच्चों के स्वास्थ्य को नुकसान
ऑनलाइन पढ़ाई करने वाले बच्चों का भी कहना है कि स्कूलों में जो पढ़ाई होती है वह बिल्कुल अलग होती थी, स्कूल में पढ़ाई के दौरान टीचर्स से वे सीधा सवाल कर पाते थे पर अब ऑनलाइन स्टडी में यह कमतर ही संभव हो पाता है. बच्चों का मानना है कि मोबाइल में एकाग्र चित्त होना कठिन होता है, वहीं लगातार मोबाइल से पढ़ाई के कारण आंखों पर भी जोर पड़ने लगा है.

Digital facility became compulsion in Corona era
ऑनलाइन स्टडी के लिए बढ़ा परिवार का खर्च

पेरेंट्स भी हो रहे परेशान
अभी तक बच्चों को किसी भी तरह मोबाइल से दूर रखने वाले पेरेंट्स अब खुद ही बच्चों के भविष्य के लिए उन्हें मोबाइल दे रहे हैं. लेकिन वो भी इससे खुश नहीं हैं, क्योंकि बच्चे होमवर्क पूरा कर गेम खेलने में लग जाते हैं, जिस कारण वह पहले से भी ज्यादा समय मोबाइल पर बिताने लगे हैं, जो काफी नुकसानदायक है. इसीलिए कई परिजन ऑनलाइन स्टडी को गैर जरूरी मानने लग गए हैं.

ऑनलाइन स्टडी के लिए बढ़ा परिवार का खर्च
बदली जिंदगी में ऑनलाइन माध्यम जरूरी हो गया है, लेकिन इससे परिवार पर आर्थिक बोझ भी पड़ा है. जिस परिवार में अब तक एक मोबाइल के सहारे काम चल जाता था, अब वहां दो या तीन मोबाइलों की जरूरत पड़ रही है. वहीं कमजोर आर्थिक स्थिति वाले परिवारों के लिए यह मुसीबत बन गया है, क्योंकि अभी तक परिवार की मुलभूत सुविधाएं जुटाने में उनके पसीने छूट रहे थे अब मोबाइल और उसके रिचार्ज पर क्या करें बच्चो को पढ़ाना है तो और कोई रास्ता ही नहीं है.

सहूलियत बनीं मजबूरी
कोरोना वायरस के भारत में दस्तक देने से पहले अक्सर कहा जाता था कि मोबाइल और गैजेट से बच्चों और बुजुर्गों को दूर रखें ताकि उनकी आंखों पर प्रभाव ना पड़े. लेकिन समय ने ऐसी करवट ली कि हर कोई मोबाइल पर आश्रित हो गया. बच्चों के स्कूल की पढ़ाई हो या फिर बुजुर्गों की दवाई का ऑर्डर, किसी भी तरह का कारोबार हो या कंपनियों की मीटिंग सब मोबाइल पर ही सिमट गया है, इसीलिए भले ही इससे नुकसान हो रहा है पर लोगों के लिए यह सहूलियत अब मजबूरी बन गई है.

छिंदवाड़ा। कोरोना वायरस के बढ़ते खतरे ने भले ही लोगों के बीच दूरियां बढ़ा दी हैं, लेकिन एक ऐसा दोस्त है जो हर किसी के बहुत नजदीक आ गया है जी हां अब मोबाइल हर किसी के लिए सबसे ज्यादा जरूरी उपकरण बन गया है. चाहे वे बच्चे हो या व्यापारी या फिर अधिकारी और कर्मचारी. कोरोना संकट काल के दौर में एक मोबाइल ही है जो हर तरह की जरूरत में काम आया लेकिन इसके काफी नुकसान भी हो रहे हैं.

कोरोना काल में बढ़ी डिजिटल असुविधा

व्यापार हो या नौकरी मोबाइल ही बना ऑफिस
कोरोना से पहले बिजनेसमैन को खरीदारी और बिक्री के लिए बाजार के चक्कर लगाने पड़ते थे. तो वही दफ्तरों में काम करने वाले कर्मचारी और अधिकारियों को दफ्तर में ही बैठकर काम करना पड़ता था. लेकिन कोरोना संक्रमण के दौर में रिवाज बदले और व्यापार तो ऑनलाइन हुआ ही सरकारी से लेकर प्राइवेट सभी ऑफिस भी मोबाइल पर सिमट गए. जहां ऑफिस की सारी मिटिंग सोशल मीडिया पर होने लगी वहीं सभी तरह की ट्रेंडिंग भी मोबाइल पर ही सिमट गई.

Digital facility became compulsion in Corona era
पेरेंट्स भी हो रहे परेशान

जरूरत से ज्यादा गैजेट्स का उपयोग होगा खतरनाक
बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाने वाले शिक्षक का कहना है कि कुछ काम तो रुक भी सकते हैं लेकिन पढ़ाई का रुकना बच्चों के भविष्य के लिए खतरनाक है. इसलिए ऑनलाइन पढ़ाई कराई जा रही है, हालांकि किसी भी चीज का जरूरत से ज्यादा उपयोग खतरनाक हो सकता है. इसलिए सरकारी गाइडलाइन के हिसाब से ही इनका उपयोग करना चाहिए. वहीं बच्चों के परिजनों को चाहिए की वह इस बात का ध्यान रखें की बच्चे मोबाइल का जरूरत से ज्यादा उपयोग न करें.

Digital facility became compulsion in Corona era
बच्चों के स्वास्थ्य को नुकसान

बच्चों के स्वास्थ्य को नुकसान
ऑनलाइन पढ़ाई करने वाले बच्चों का भी कहना है कि स्कूलों में जो पढ़ाई होती है वह बिल्कुल अलग होती थी, स्कूल में पढ़ाई के दौरान टीचर्स से वे सीधा सवाल कर पाते थे पर अब ऑनलाइन स्टडी में यह कमतर ही संभव हो पाता है. बच्चों का मानना है कि मोबाइल में एकाग्र चित्त होना कठिन होता है, वहीं लगातार मोबाइल से पढ़ाई के कारण आंखों पर भी जोर पड़ने लगा है.

Digital facility became compulsion in Corona era
ऑनलाइन स्टडी के लिए बढ़ा परिवार का खर्च

पेरेंट्स भी हो रहे परेशान
अभी तक बच्चों को किसी भी तरह मोबाइल से दूर रखने वाले पेरेंट्स अब खुद ही बच्चों के भविष्य के लिए उन्हें मोबाइल दे रहे हैं. लेकिन वो भी इससे खुश नहीं हैं, क्योंकि बच्चे होमवर्क पूरा कर गेम खेलने में लग जाते हैं, जिस कारण वह पहले से भी ज्यादा समय मोबाइल पर बिताने लगे हैं, जो काफी नुकसानदायक है. इसीलिए कई परिजन ऑनलाइन स्टडी को गैर जरूरी मानने लग गए हैं.

ऑनलाइन स्टडी के लिए बढ़ा परिवार का खर्च
बदली जिंदगी में ऑनलाइन माध्यम जरूरी हो गया है, लेकिन इससे परिवार पर आर्थिक बोझ भी पड़ा है. जिस परिवार में अब तक एक मोबाइल के सहारे काम चल जाता था, अब वहां दो या तीन मोबाइलों की जरूरत पड़ रही है. वहीं कमजोर आर्थिक स्थिति वाले परिवारों के लिए यह मुसीबत बन गया है, क्योंकि अभी तक परिवार की मुलभूत सुविधाएं जुटाने में उनके पसीने छूट रहे थे अब मोबाइल और उसके रिचार्ज पर क्या करें बच्चो को पढ़ाना है तो और कोई रास्ता ही नहीं है.

सहूलियत बनीं मजबूरी
कोरोना वायरस के भारत में दस्तक देने से पहले अक्सर कहा जाता था कि मोबाइल और गैजेट से बच्चों और बुजुर्गों को दूर रखें ताकि उनकी आंखों पर प्रभाव ना पड़े. लेकिन समय ने ऐसी करवट ली कि हर कोई मोबाइल पर आश्रित हो गया. बच्चों के स्कूल की पढ़ाई हो या फिर बुजुर्गों की दवाई का ऑर्डर, किसी भी तरह का कारोबार हो या कंपनियों की मीटिंग सब मोबाइल पर ही सिमट गया है, इसीलिए भले ही इससे नुकसान हो रहा है पर लोगों के लिए यह सहूलियत अब मजबूरी बन गई है.

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