छिंदवाड़ा। कोरोना काल में छिंदवाड़ा ने खूब नाम कमाया. यहां मनरेगा के तहत काफी काम हुआ. कोरोना संकट के दौरान राज्य में छिंदवाड़ा में सबसे ज्यादा मनरेगा के तहत काम हुआ था. लेकिन परेशानी ये हुई, कि मजदूरों को 4 हफ्तों से मजदूरी नहीं मिली. 17 दिसंबर से मजदूरों को पेमेंट का इंतजार है. जिले में 25 करोड़ 52 लाख रुपए अब तक मनरेगा के मजदूरों का बकाया है.
काम में अव्वल, दाम में फिसड्डी
एक तो कोरोना का संकट ऊपर से काम की कमी. मजदूरों पर जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था. एक ओर जान बचाने की जद्दोजहद, दूसरी तरफ घर चलाने की चुनौती. ऐसे में सरकार ने मजदूरों की आह सुनी. मजदूरों को मनरेगा के तहत काम दिया. सैकड़ों मजदूरों को अब प्रशासन का ही सहारा था. छिंदवाड़ा जिले को मनरेगा के लिए 1 करोड़ 30 लाख का बजट मिला था. मजदूरों ने रिकॉर्ड काम किया. 98 लाख का लक्ष्य भी पूरा हुआ. लेकिन जब भुगतान करने की बारी आई, तो प्रशासन पिछड़ गया. मजदूरों को 4 हफ्तों की मजदूरी नहीं मिल पाई.
कोरोना काल का 'कर्ज' बकाया
क्षेत्रफल की दृष्टि से छिंदवाड़ा राज्य का सबसे बड़ा जिला है. जिले में अब तक 97 लाख 37 हजार 515 मानव दिवस का रोजगार दिया जा चुका है. जिसमें से 183 हजार 55 परिवारों के 31 लाख 9971 लोगों को रोजगार दिया गया है. छिंदवाड़ा जिले में 17 हजार 588 काम अब तक पूरे किए जा चुके हैं.
1 महीने से मजदूरी का इंतजार
सरकारी योजना पर भरोसा होता है. ये यकीन होता है कि काम की मजदूरी तो मिलेगी ही. वो भी समय पर. ताकि मजदूर का परिवार कम से कम रोटी के लिए तो मोहताज ना हो. कोरोना संकट में मनेरगा का महत्व और भी बढ़ गया था. लेकिन पिछले 1 महीने से मजदूरों को पैसा नहीं मिला. ऐस में घर में चूल्हा जलना भी मुश्किल हो गया है. इसका असर ये हुआ कि अब मजदूर मनरेगा में काम करने में कम दिलचस्पी दिखा रहे हैं .हालात ये हैं कि जहां पहले 100 मजदूर काम करते थे. वहां अब महज 10 मजदूर ही दिखाई दे रहे हैं.
ना टूटे ये विश्वास
ये सही है कि शासन ने कोरोना काल में मजदूरों की चिंता की. केन्द्र से लेकर राज्य सरकार मजदूरों के लिए संवेदनशील रही. मनरेगा में काम दिया. भूखों मरने से बचाया. लेकिन उन्हें मजदूरी भी समय पर मिल जाती तो क्या बात थी. उम्मीद है कि मजदूरों को उनकी मेहनत की कमाई जल्द मिलेगी. ताकि सरकारी योजनाओं पर भरोसा कायम रहे.