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छिंदवाड़ाः मोती की खेती से मालामाल होगा अन्नदाता, पायलट प्रोजेक्ट शुरू

खेती में नुकसान झेल रहे किसान के लिए एक अच्छी खबर है. छिंदवाड़ा में किसान मोती की खेती करके लाभ कमा सकते है. मोती की खेती के लिए छिंदवाड़ा जिले का चयन किया गया है. जिसके तहत कृषि विज्ञान केंद्र में पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया है.

Pearl farming
मोती की खेती
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Published : Jul 11, 2020, 1:18 PM IST

Updated : Jul 11, 2020, 2:38 PM IST

छिंदवाड़ा। किसानों के लिए खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए सरकार हर तरह के प्रयोग करने में पीछे नहीं है. कॉर्न सिटी के नाम से पहचान बना चुके छिंदवाड़ा के किसान अब मोती की खेती करेंगे, जो किसानों के किए मुनाफे का सौदा हो सकता है. मोती की खेती के लिए छिंदवाड़ा जिला को चयन किया गया है. जिसके तहत कृषि विज्ञान केंद्र में पायलट प्रोजेक्ट शुरू कर दिया गया है.

मोती की खेती से दोगुनी होगी किसानों की आय

किसान मोती की खेती करके सिर्फ देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी इसे पहुंचाएंगे. जिसके लिए कृषि विज्ञान केंद्र चंदनगांव में पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया है. कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक और प्रमुख डॉ. सुरेंद्र पन्नासे ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि, मोती की खेती करने के लिए केंद्र के प्रोग्राम असिस्टेंट चंचल भार्गव ने जयपुर से इसकी ट्रेनिंग ली है, कि किस तरीके से मोती की खेती की जाएगी. जिसके लिए वे कृषि विज्ञान केंद्र में पहले खुद इसका उत्पादन किया जा रहा है. फिर किसानों को इसके लिए तैयार किया जाएगा.

मोती की खेती के लिए तालाब की होगी जरूरत

मोती की खेती करने के लिए सबसे अहम जरूरत तालाब की होगी. किसान के खेतों में तालाब होना चाहिए और तालाब 50 फीट चौड़ा 70 फीट लंबा और 12 फीट गहराई होना जरूरी है. जिसमें मोतियों के बीज डाले जा सकें. सरकार के द्वारा कई किसानों ने पहले से ही बलराम ताल बनाए हुए हैं. उन्हें भी गहरा करके मोती की खेती की जा सकेगी.

पायलट प्रोजेक्ट शुरू

8 से 10 महीने में तैयार हो जाते हैं मोती

कृषि विज्ञान केंद्र की प्रोग्राम असिस्टेंट चंचल भार्गव ने बताया की, मोती की खेती के लिए सीप को नदियों से इकट्ठा करना पड़ेगा या फिर से बाजार से खरीद सकते हैं. इसके बाद प्रत्येक सीप में एक छोटी सी शल्य क्रिया के बाद उसके भीतर चार से 6 मिलीमीटर व्यास वाले साधारण गोल या डिजाइनर वीड जैसे गणेश, बुद्ध और पुष्प आकृति डाली जाती है, फिर सीप को बंद किया जाता है. इन सीपों को नायलॉन बैग में रखकर बांस के सहारे तालाब में लटका कर 1 मीटर की गहराई पर छोड़ा जाता है. चंचल भार्गव ने बताया कि, प्रति हेक्टेयर 20 से 30 हजार सीपों में मोती का पालन किया जाता है और 8 से 10 महीने में मोती बनकर तैयार हो जाता है.

विदेशों में भी है मोतियों की मांग

मोतियों की मांग सिर्फ देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी बहुत है. इसलिए भारत के प्रमुख शहर हैदराबाद और दक्षिण भारत के शहरों के अलावा विदेशों में भी मोतियों की खासी डिमांड है. किसानों द्वारा उपजाई गई मूर्ति की ग्रेड के अनुसार बाजार में कीमत मिलती है. बाजार में तीन सौ रुपए से लेकर 15 सौ तक का एक मोती बिकता है.

मोती की खेती के लिए सबसे अनुकूल होती है शरद ऋतु

मोती की खेती के लिए सबसे अनुकूल शरद ऋतु यानी अक्टूबर से दिसंबर तक का समय माना जाता है. कृषि विज्ञान केंद्र में पायलट प्रोजेक्ट के तहत मोतियों का बीज तैयार किया जा रहा है और फिर यहीं से किसानों को भी एक निश्चित राशि दी जाएगी. जिसके लिए सरकारी अनुदान भी मिलेगा.

छिंदवाड़ा। किसानों के लिए खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए सरकार हर तरह के प्रयोग करने में पीछे नहीं है. कॉर्न सिटी के नाम से पहचान बना चुके छिंदवाड़ा के किसान अब मोती की खेती करेंगे, जो किसानों के किए मुनाफे का सौदा हो सकता है. मोती की खेती के लिए छिंदवाड़ा जिला को चयन किया गया है. जिसके तहत कृषि विज्ञान केंद्र में पायलट प्रोजेक्ट शुरू कर दिया गया है.

मोती की खेती से दोगुनी होगी किसानों की आय

किसान मोती की खेती करके सिर्फ देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी इसे पहुंचाएंगे. जिसके लिए कृषि विज्ञान केंद्र चंदनगांव में पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया है. कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक और प्रमुख डॉ. सुरेंद्र पन्नासे ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि, मोती की खेती करने के लिए केंद्र के प्रोग्राम असिस्टेंट चंचल भार्गव ने जयपुर से इसकी ट्रेनिंग ली है, कि किस तरीके से मोती की खेती की जाएगी. जिसके लिए वे कृषि विज्ञान केंद्र में पहले खुद इसका उत्पादन किया जा रहा है. फिर किसानों को इसके लिए तैयार किया जाएगा.

मोती की खेती के लिए तालाब की होगी जरूरत

मोती की खेती करने के लिए सबसे अहम जरूरत तालाब की होगी. किसान के खेतों में तालाब होना चाहिए और तालाब 50 फीट चौड़ा 70 फीट लंबा और 12 फीट गहराई होना जरूरी है. जिसमें मोतियों के बीज डाले जा सकें. सरकार के द्वारा कई किसानों ने पहले से ही बलराम ताल बनाए हुए हैं. उन्हें भी गहरा करके मोती की खेती की जा सकेगी.

पायलट प्रोजेक्ट शुरू

8 से 10 महीने में तैयार हो जाते हैं मोती

कृषि विज्ञान केंद्र की प्रोग्राम असिस्टेंट चंचल भार्गव ने बताया की, मोती की खेती के लिए सीप को नदियों से इकट्ठा करना पड़ेगा या फिर से बाजार से खरीद सकते हैं. इसके बाद प्रत्येक सीप में एक छोटी सी शल्य क्रिया के बाद उसके भीतर चार से 6 मिलीमीटर व्यास वाले साधारण गोल या डिजाइनर वीड जैसे गणेश, बुद्ध और पुष्प आकृति डाली जाती है, फिर सीप को बंद किया जाता है. इन सीपों को नायलॉन बैग में रखकर बांस के सहारे तालाब में लटका कर 1 मीटर की गहराई पर छोड़ा जाता है. चंचल भार्गव ने बताया कि, प्रति हेक्टेयर 20 से 30 हजार सीपों में मोती का पालन किया जाता है और 8 से 10 महीने में मोती बनकर तैयार हो जाता है.

विदेशों में भी है मोतियों की मांग

मोतियों की मांग सिर्फ देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी बहुत है. इसलिए भारत के प्रमुख शहर हैदराबाद और दक्षिण भारत के शहरों के अलावा विदेशों में भी मोतियों की खासी डिमांड है. किसानों द्वारा उपजाई गई मूर्ति की ग्रेड के अनुसार बाजार में कीमत मिलती है. बाजार में तीन सौ रुपए से लेकर 15 सौ तक का एक मोती बिकता है.

मोती की खेती के लिए सबसे अनुकूल होती है शरद ऋतु

मोती की खेती के लिए सबसे अनुकूल शरद ऋतु यानी अक्टूबर से दिसंबर तक का समय माना जाता है. कृषि विज्ञान केंद्र में पायलट प्रोजेक्ट के तहत मोतियों का बीज तैयार किया जा रहा है और फिर यहीं से किसानों को भी एक निश्चित राशि दी जाएगी. जिसके लिए सरकारी अनुदान भी मिलेगा.

Last Updated : Jul 11, 2020, 2:38 PM IST
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