छिंदवाड़ा। जिले में किसानों का त्योहार पोला बड़ी धूमधाम से मनाया जाएगा, जिसके लिए बाजार मिट्टी की बैलों और पोला त्यौहार की सामाग्रियों से लबालब भरे हुए है, पोला त्योहार मूल रूप से खेती-किसानी से जुड़ा हुआ है, भादो मास की कृष्ण अमावस्या के समय इस त्यौहार को मनाया जाता है. इसे विशेष तौर पर महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में मनाया जाता है, महाराष्ट्र की सीमा से लगे होने के चलते छिंदवाड़ा के गांव-गांव में भी इस त्योहार को लोग बड़े धूमधाम से मनाते हैं.
धूमधाम से मनाया जाएगा पोला त्योहार, हल और बैलों की होगी पूजा - कृष्ण अमावस्या
भादो मास के कृष्ण अमावस्या के समय पोला त्योहार धूमधाम से मनाया जाएगा,इस त्योहार में मूल रूप से हल और बैलों की पूजा करते है.
छिंदवाड़ा। जिले में किसानों का त्योहार पोला बड़ी धूमधाम से मनाया जाएगा, जिसके लिए बाजार मिट्टी की बैलों और पोला त्यौहार की सामाग्रियों से लबालब भरे हुए है, पोला त्योहार मूल रूप से खेती-किसानी से जुड़ा हुआ है, भादो मास की कृष्ण अमावस्या के समय इस त्यौहार को मनाया जाता है. इसे विशेष तौर पर महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में मनाया जाता है, महाराष्ट्र की सीमा से लगे होने के चलते छिंदवाड़ा के गांव-गांव में भी इस त्योहार को लोग बड़े धूमधाम से मनाते हैं.
Body:पोला त्यौहार मूलतः खेती किसानी से जुड़ा त्यौहार है भादो मास की कृष्ण अमावस्या को इसे मनाया जाता है ,इसे महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ में विशेष रूप से मनाया जाता है महाराष्ट्र की सीमा से लगा होने के कारण छिंदवाड़ा के गांव-गांव में भी इस त्यौहार को लोग बड़े धूमधाम से मनाते हैं त्यौहार मनाने के पीछे कहावत है कि अगस्त माह में खेती किसानी के सारे काम खत्म हो जाते हैं और इसी दिन से धरती माता गर्भ धारण करती है इसलिए इसके बाद खेतों में हल चलाना वर्जित होता है। इसके चलते किसान अपने हल और बैलों की पूजा कर उन्हें आराम कराते हैं।
मिट्टी के बैलों की होती है पूजा।
जिन घरों में बैल नहीं होते उन घरों में लोग मिट्टी के बैलों की पूजा करते हैं जिसके लिए बाजार में मिट्टी के बैलों से सज गए हैं। इस दिन लोग घरों में गुजिया और ठठेरा पकवान के रूप में बनाकर बैलों को खिलाते हैं साथ ही पलाश के पेड़ की स्थापना अपने आंगन में करते हैं किसी प्रकार की बुरी शक्तियां घर में प्रवेश ना करें।
Conclusion:पोला त्यौहार के दूसरे दिन छोटे-छोटे बच्चे मिट्टी और लकड़ी के बैल लेकर एक दूसरे के घर जाते हैं जहां पर उन्हें शगुन के रूप में गुजिया और ठेठरा दिए जाते हैं।