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पठारी और ठंडे इलाकों में भी किसान कर सकते हैं संतरे की खेती, कृषि अनुसंधान केंद्र ने किए सफल परीक्षण

छिंदवाड़ा कृषि अनुसंधान केंद्र ने समतल और ठंडे इलाकों में अच्छे उत्पादन वाले संतरों की नई पौध तैयार की गए है, जिसकी फसल लगाकर किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. ईटीवी भारत से खास बातचीत की कृषि अनुसंधान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक विजय पराड़कर ने, देखिए रिपोर्ट.

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Published : Oct 26, 2020, 11:33 AM IST

Orange cultivation in Chhindwara
छिंदवाड़ा में संतरे की खेती

छिंदवाड़ा। समतल भूमि और गर्म जलवायु में ही नहीं अब संतरा पठारी और ठंडे इलाकों में भी हो सकता है. छिंदवाड़ा कृषि अनुसंधान केंद्र ने सफल परीक्षण करते हुए किसानों की चिंता दूर करने का प्रयास किया है, ताकि किसान संतरे लगाकर अच्छा मुनाफा कमा सके. किस पद्धति से संतरे का उत्पादन किया जाता है इसको लेकर ईटीवी भारत से खास बातचीत की कृषि अनुसंधान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक विजय पराड़कर ने.

छिंदवाड़ा में संतरे की खेती

छिंदवाड़ा के सौंसर और पांढुर्णा में करीब 23 हजार हेक्टेयर जमीन में संतरे की खेती की जाती है, कहा जाता है की, समतल भूमि और गर्म इलाकों में ही अच्छे संतरे की पैदावार होती है, लेकिन छिंदवाड़ा के कृषि अनुसंधान केंद्र में समतल और ठंडे इलाकों में लगाने वाले संतरों के नई पौधे तैयार किए गए है.

रूट स्टॉक के लिए जंबूरी बेरी पौधों का होता है इस्तेमाल

कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि, अधिकतर किसान पौधे खरीद कर खेतों में लगा देते हैं, जो सफल नहीं हो पाते. इस पर अनुसन्धान केंद्र में जंबूरी पौधों को रूटस्टॉक के रूप में प्रयोग किया गया है और नागपुरी संतरे की कलम उसमें ब्रिडिंग की गई है, जिससे एक सफल पौधा तैयार होता है, जो करीब 30 साल तक फल दे सकता है.

विदर्भ में होता है संतरा, अब कहीं भी ले सकते हैं उपज

कृषि डॉ वैज्ञानिक विजय पराड़कर ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि, महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके से लगा सौंसर और पांढुर्णा में टेंपरेचर ज्यादा होने की वजह से और समतल भूमि के कारण नागपुरी संतरे का उत्पादन होता है. दूसरा इसपर किसान को भ्रांति थी कि, इधर संतरा उत्पादित नहीं होगा, लेकिन कृषि अनुसन्धान केंद्र में तैयार किए गए संतरे के पौधों से किसान छिंदवाड़ा जिले के किसी भी इलाके में संतरे की खेती कर सकता है.

पढे़-कोरोना काल में संतरे की डिमांड हुई कम, किसानों के साथ व्यापारियों को भी हो रहा नुकसान


भारत सरकार की योजना के चलते किया गया प्रैक्टिकल

दरअसल खेती को मुनाफे का जरिया बनाने के लिए किसान भी प्रयासरत रहते हैं, इसमें संतरे की खेती काफी अहम है, लेकिन ठंडा इलाका और समतल भूमि की जरूरत के चलते छिंदवाड़ा का किसान संतरे का उत्पादन नहीं कर पा रहा था. भारत सरकार की टीएमसी योजना के तहत कृषि अनुसंधान केंद्र में करीब 3 एकड़ में इसका सफल परीक्षण किया गया है, जिसमें संतरे की फसल भी खूब आ रही है और क्वालिटी भी दूसरों की तरह ही है.

बिचौलिए किसानों से करते हैं ठगी

ईटीवी भारत से कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि, अधिकतर लोग दलालों के माध्यम से पौधों की खरीदी करते हैं, जो कश्मीर के जंगलों में होने वाले किसी पौधे का रूटस्टॉक इस्तेमाल करते हैं, जिसे लगाने के बाद संतरे की फसल में बीमारी लग जाती है और अधिकतर 12 से 15 साल ही पौधों की उम्र रहती है.

पढे़े-11 साल बाद पांढुर्णा से रेलवे ने शुरू किया संतरे का परिवहन, भाड़े में दी 50 प्रतिशत की छूट


कृषि अनुसंधान केंद्र में पौधों के साथ ही उद्यानिकी विभाग से मिलती है अनुदान राशि

संतरे की खेती करने वाले किसानों के लिए कृषि अनुसंधान केंद्र में शासकीय दर पर संतरे के पौधे उपलब्ध हैं. इसके लिए उद्यानिकी विभाग अलग-अलग योजनाओं में किसानों को सब्सिडी भी देता है, जिससे कि, किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकें.

छिंदवाड़ा। समतल भूमि और गर्म जलवायु में ही नहीं अब संतरा पठारी और ठंडे इलाकों में भी हो सकता है. छिंदवाड़ा कृषि अनुसंधान केंद्र ने सफल परीक्षण करते हुए किसानों की चिंता दूर करने का प्रयास किया है, ताकि किसान संतरे लगाकर अच्छा मुनाफा कमा सके. किस पद्धति से संतरे का उत्पादन किया जाता है इसको लेकर ईटीवी भारत से खास बातचीत की कृषि अनुसंधान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक विजय पराड़कर ने.

छिंदवाड़ा में संतरे की खेती

छिंदवाड़ा के सौंसर और पांढुर्णा में करीब 23 हजार हेक्टेयर जमीन में संतरे की खेती की जाती है, कहा जाता है की, समतल भूमि और गर्म इलाकों में ही अच्छे संतरे की पैदावार होती है, लेकिन छिंदवाड़ा के कृषि अनुसंधान केंद्र में समतल और ठंडे इलाकों में लगाने वाले संतरों के नई पौधे तैयार किए गए है.

रूट स्टॉक के लिए जंबूरी बेरी पौधों का होता है इस्तेमाल

कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि, अधिकतर किसान पौधे खरीद कर खेतों में लगा देते हैं, जो सफल नहीं हो पाते. इस पर अनुसन्धान केंद्र में जंबूरी पौधों को रूटस्टॉक के रूप में प्रयोग किया गया है और नागपुरी संतरे की कलम उसमें ब्रिडिंग की गई है, जिससे एक सफल पौधा तैयार होता है, जो करीब 30 साल तक फल दे सकता है.

विदर्भ में होता है संतरा, अब कहीं भी ले सकते हैं उपज

कृषि डॉ वैज्ञानिक विजय पराड़कर ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि, महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके से लगा सौंसर और पांढुर्णा में टेंपरेचर ज्यादा होने की वजह से और समतल भूमि के कारण नागपुरी संतरे का उत्पादन होता है. दूसरा इसपर किसान को भ्रांति थी कि, इधर संतरा उत्पादित नहीं होगा, लेकिन कृषि अनुसन्धान केंद्र में तैयार किए गए संतरे के पौधों से किसान छिंदवाड़ा जिले के किसी भी इलाके में संतरे की खेती कर सकता है.

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भारत सरकार की योजना के चलते किया गया प्रैक्टिकल

दरअसल खेती को मुनाफे का जरिया बनाने के लिए किसान भी प्रयासरत रहते हैं, इसमें संतरे की खेती काफी अहम है, लेकिन ठंडा इलाका और समतल भूमि की जरूरत के चलते छिंदवाड़ा का किसान संतरे का उत्पादन नहीं कर पा रहा था. भारत सरकार की टीएमसी योजना के तहत कृषि अनुसंधान केंद्र में करीब 3 एकड़ में इसका सफल परीक्षण किया गया है, जिसमें संतरे की फसल भी खूब आ रही है और क्वालिटी भी दूसरों की तरह ही है.

बिचौलिए किसानों से करते हैं ठगी

ईटीवी भारत से कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि, अधिकतर लोग दलालों के माध्यम से पौधों की खरीदी करते हैं, जो कश्मीर के जंगलों में होने वाले किसी पौधे का रूटस्टॉक इस्तेमाल करते हैं, जिसे लगाने के बाद संतरे की फसल में बीमारी लग जाती है और अधिकतर 12 से 15 साल ही पौधों की उम्र रहती है.

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कृषि अनुसंधान केंद्र में पौधों के साथ ही उद्यानिकी विभाग से मिलती है अनुदान राशि

संतरे की खेती करने वाले किसानों के लिए कृषि अनुसंधान केंद्र में शासकीय दर पर संतरे के पौधे उपलब्ध हैं. इसके लिए उद्यानिकी विभाग अलग-अलग योजनाओं में किसानों को सब्सिडी भी देता है, जिससे कि, किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकें.

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