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ये तो कमाल है- एमपी में पराली बना आमदनी का नया जरिया. जलाने की बजाए किसान पराली से उगा रहे दूसरी फसल

खेतों में पराली जलाने से पर्यावरण को काफी नुकसान होता है. एमपी में इसका तोड़ निकाल लिया गया है. अब पराली की मदद से किसान दूसरी फसल उगा सकते हैं. इसके साथ ही पराली को जलाने की बजाए कृषि उपकरणों की सहायता से खेतों में ही नष्ट कर सकते हैं, जो ग्रीन खाद बनकर खेतों को उपजाऊ बनाएगी. पढ़िए कमाल के इस प्रयोग पर पूरी खबर...

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पराली की मदद से किसान उगा रहा दूसरी फसल
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Published : Dec 17, 2020, 5:03 PM IST

छिंदवाड़ा। खेतों में जलने वाली पराली से पूरा देश प्रभावित हो रहा है. इसे रोकने के लिए सरकारें कई कदम उठा रही हैं, फिर भी ज्यादा कुछ हासिल नहीं हुआ है. अब पराली से होने वाले प्रदूषण की रोकथाम के लिए एमपी के एक किसान ने नायाब तरीका निकाला है, जिससे पराली जलाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी बल्कि इसी पराली की मदद से दूसरी फसल का उत्पादन किया जा सकेगा.

पराली की मदद से किसान उगा रहे दूसरी फसल
सेम की खेती, जीरो मेंटेनेंसकुंडालीकंला गांव के रहने वाले किसान मोहन सिंह रघुवंशी करीब 12 सालों से मक्के की फसल के साथ-साथ सेम की भी फसल लगाते आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि, सेम की फसल बेलदार होती है, जिसे उगाने के लिए लकड़ी और तार का सहारा देना पड़ता है. वह इसे मक्के की फसल के साथ ही लगा देते हैं. इससे प्रति एकड़ पर 20 हजार रुपये का खर्च बच जाता है. मल्टी क्रॉपिंग से कीटनाशक, खाद की बचतएक ही जमीन पर एक साथ दो फसलें लगाने से किसानों को दोगुना फायदा होता है. जमीन का रोटेशन होने के अलावा एक फसल को दिए जाने वाले खाद और कीटनाशक दूसरी फसल को भी मिल जाते हैं, जिससे पोषण और खाद दोनों को बराबर मिलता हैं. इससे किसानों को आर्थिक मोर्चे पर बचत होती है.पराली से प्रदूषण नहीं, बनाते हैं खादआम तौर पर किसान खेतों में पराली को जला देते हैं, जिससे प्रदूषण होता है, लेकिन नई तकनीक की मदद से किसान मक्के और सेम की पराली को जलाने के बजाए कृषि उपकरणों की सहायता से खेतों में ही नष्ट कर देते हैं, जो ग्रीन खाद बनकर फिर से खेतों को उपजाऊ बनाती है.खेतों में सुरक्षित फसल, भंडारण की नहीं चिंता

किसान मोहन सिंह रघुवंशी ने बताया कि, फसल पकने के बाद कई बार भाव ठीक तरीके से नहीं मिलते हैं, जिसके चलते मजबूरन किसान को घर में ही भंडारण करना पड़ता है. इसकी वजह से कई बार फसल खराब हो जाती है, लेकिन खेतों में ही जब तक फसल खड़ी रहती है, तब तक फसलें सुरक्षित रहती है. इस प्रकार की पद्धति से भंडारण का भी झंझट नहीं रहता.

दूसरी फसलों के साथ भी किसान कर सकते हैं प्रयोग

छिंदवाड़ा एग्रीकल्चर कॉलेज के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक अशोक राय बताते हैं कि कम खर्च में अच्छी उपज लेकर देश हित में भी किसान इस पद्धति को अपना सकता है. जिससे प्रदूषण भी कम होता है और किसान कमाई भी कर सकता है. सिर्फ इतना ही नहीं मक्के की फसल के साथ मूंग, उड़द जैसे दलहन भी उगा सकते हैं, जिसके बाद खेतों में ही पराली को नष्ट करके हरी खाद बनाई जा सकती है.

छिंदवाड़ा। खेतों में जलने वाली पराली से पूरा देश प्रभावित हो रहा है. इसे रोकने के लिए सरकारें कई कदम उठा रही हैं, फिर भी ज्यादा कुछ हासिल नहीं हुआ है. अब पराली से होने वाले प्रदूषण की रोकथाम के लिए एमपी के एक किसान ने नायाब तरीका निकाला है, जिससे पराली जलाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी बल्कि इसी पराली की मदद से दूसरी फसल का उत्पादन किया जा सकेगा.

पराली की मदद से किसान उगा रहे दूसरी फसल
सेम की खेती, जीरो मेंटेनेंसकुंडालीकंला गांव के रहने वाले किसान मोहन सिंह रघुवंशी करीब 12 सालों से मक्के की फसल के साथ-साथ सेम की भी फसल लगाते आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि, सेम की फसल बेलदार होती है, जिसे उगाने के लिए लकड़ी और तार का सहारा देना पड़ता है. वह इसे मक्के की फसल के साथ ही लगा देते हैं. इससे प्रति एकड़ पर 20 हजार रुपये का खर्च बच जाता है. मल्टी क्रॉपिंग से कीटनाशक, खाद की बचतएक ही जमीन पर एक साथ दो फसलें लगाने से किसानों को दोगुना फायदा होता है. जमीन का रोटेशन होने के अलावा एक फसल को दिए जाने वाले खाद और कीटनाशक दूसरी फसल को भी मिल जाते हैं, जिससे पोषण और खाद दोनों को बराबर मिलता हैं. इससे किसानों को आर्थिक मोर्चे पर बचत होती है.पराली से प्रदूषण नहीं, बनाते हैं खादआम तौर पर किसान खेतों में पराली को जला देते हैं, जिससे प्रदूषण होता है, लेकिन नई तकनीक की मदद से किसान मक्के और सेम की पराली को जलाने के बजाए कृषि उपकरणों की सहायता से खेतों में ही नष्ट कर देते हैं, जो ग्रीन खाद बनकर फिर से खेतों को उपजाऊ बनाती है.खेतों में सुरक्षित फसल, भंडारण की नहीं चिंता

किसान मोहन सिंह रघुवंशी ने बताया कि, फसल पकने के बाद कई बार भाव ठीक तरीके से नहीं मिलते हैं, जिसके चलते मजबूरन किसान को घर में ही भंडारण करना पड़ता है. इसकी वजह से कई बार फसल खराब हो जाती है, लेकिन खेतों में ही जब तक फसल खड़ी रहती है, तब तक फसलें सुरक्षित रहती है. इस प्रकार की पद्धति से भंडारण का भी झंझट नहीं रहता.

दूसरी फसलों के साथ भी किसान कर सकते हैं प्रयोग

छिंदवाड़ा एग्रीकल्चर कॉलेज के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक अशोक राय बताते हैं कि कम खर्च में अच्छी उपज लेकर देश हित में भी किसान इस पद्धति को अपना सकता है. जिससे प्रदूषण भी कम होता है और किसान कमाई भी कर सकता है. सिर्फ इतना ही नहीं मक्के की फसल के साथ मूंग, उड़द जैसे दलहन भी उगा सकते हैं, जिसके बाद खेतों में ही पराली को नष्ट करके हरी खाद बनाई जा सकती है.

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