छिंदवाड़ा। मध्य प्रदेश सरकार दिव्यागों को हर संभव मदद देने की बात कहती है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही नजर आ रहा है, जिले का एक दिव्यांग आत्मनिर्भर होने के योजना के तहत ट्राई साइकिल की मांग पिछले 2 सालों से कर रहा है, लेकिन उसकी सुनवाई आज तक नहीं हुई, पैसों के तंगी आगे वह इतना मजबूर है कि उसे समझ नहीं आ रहा कि अब वह किससे मदद की गुहार लगाए.
ट्राई साइकिल के लिए 2 सालों से दफ्तरों के चक्कर काट रहा दिव्यांग
दिव्यांगों के लिए चलाई जा रही सरकारी योजनाओं का लाभ दिव्यांगों तक नहीं पहुंच पा रहा है, इसका ही एक उदाहरण परासिया तहसील के वार्ड नंबर 06 का है, दिव्यांग रविंद्र मर्सकोले ने बताया कि वह 85% दिव्यांग है, रोजमर्रा और दिनचर्या के काम करने में उसे काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, उनके दो छोटे बच्चे भी हैं, वैसे ही कोरोना काल के समय कोई काम नहीं मिल रहा है, जैसे तैसे वो दो वक्त के खाने का इंतजाम करते हैं, लेकिन ट्राई साइकिल नहीं होने उन्हें काफी परेशानी होती है.
मध्य प्रदेश दिव्यांग और ट्रांसजेंडर को पहचान पत्र देने में देश में अव्वल
दिव्यांग की नहीं सुनते अधिकारी
रविंद्र ने बताया कि उसे बहुत पहले ट्राई साइकिल दी गई थी, जो टूट चुकी है, वहीं नए ट्राई साइकिल के लिए वह लगभग 2 सालों से अधिकारियों के चक्कर काट रहा है, लेकिन अधिकारी ट्राई साइकिल नहीं होने की बात कहकर उसे वापस लौटा देते है, दिव्यांग ने बताया कि वह मदद मांगने कलेक्ट्रेट भी पहुंचे, लेकिन वहां से भी कोई मदद उन्हें नहीं मिली.