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जब कोई नहीं आया आगे तो बेटियों ने पिता की अर्थी को दिया कंधा - mp nes

छिन्दवाड़ा में एक बुजुर्ग की समान्य मौत हो गई. बुजुर्ग के बेटे नहीं थे, इसलिए कोई अर्थी को कांधा देने नहीं आया. मजबूरन बेटियों ने ही अर्थी को कंधा देकर श्मशान घाट तक ले गई और अंतिम संस्कार किया.

funural
अर्थी को कंधा
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Published : Apr 24, 2021, 2:14 PM IST

छिन्दवाड़ा। कोरोना का डर लोगों में इतना है, कि अब आस-पड़ोस में मौत हो जाने पर भी लोग कांधा देने नहीं पहुंच रहे हैं. ऐसी ही एक दर्दनाक तस्वीर छिंदवाड़ा से परासिया में सामने आई. जहां एक बुजुर्ग की मौत हो गई. बुजुर्ग के बेटे नहीं थे इसलिए कोई अर्थी को कांधा देने नहीं आया. मजबूरन बेटियों ने ही अर्थी को कंधा देकर शमशान तक ले गई और अंतिम संस्कार किया.

बुजुर्ग की घर में ही हो गई थी मौत

परासिया की चौकी मोहल्ले में रहने वाले बुजुर्ग सुंदर लाल सूर्यवंशी की उम्र ज्यादा होने के चलते सामान्य मौत घर पर ही हो गई. परिजनों ने रिश्तेदारों और मोहल्ले में इसकी सूचना दी, लेकिन कोरोना का कहर इतना है कि कांधा देना तो दूर की बात कोई देखने भी नहीं आया. आखिरकार बेटियों ने ही अर्थी को कंधा दिया और श्मशान ने अंतिम संस्कार भी किया.

बेटी ने दी पिता को मुखाग्नि, बेटे का फर्ज निभा बनी समाज की मिसाल

बुजुर्ग की बेटियों ने निभाई परंपरा

दरअसल, बुजुर्ग का कोई बेटा नहीं है उनकी तीन बेटियां हैं जब बुजुर्ग की मौत के बाद कोई रिश्तेदार या पड़ोसी अर्थी उठाने नहीं आया. बेटियों ने ही बेटों का फर्ज निभाते हुए न सिर्फ अर्थी को उठाया, बल्कि श्मशान घाट ले जाकर अंतिम संस्कार भी किया.

कोरोना ने अपनों को भी किया दूर

आमतौर पर देखा जाता था कि अगर किसी के घर कोई मौत हो जाए, तो सिर्फ रिश्तेदार ही नहीं, बल्कि पड़ोसी भी दौड़ कर दुख में सहभागी होते थे, लेकिन अब कोरोना का डर इतना है, कि अब लोग पड़ोसियों की बात तो दूर अपनों के ही अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो रहे हैं. कोरोना ने इतना खौफ पैदा कर दिया है कि लोग अब रिश्ते नाते भी भूलने लगे हैं.

छिन्दवाड़ा। कोरोना का डर लोगों में इतना है, कि अब आस-पड़ोस में मौत हो जाने पर भी लोग कांधा देने नहीं पहुंच रहे हैं. ऐसी ही एक दर्दनाक तस्वीर छिंदवाड़ा से परासिया में सामने आई. जहां एक बुजुर्ग की मौत हो गई. बुजुर्ग के बेटे नहीं थे इसलिए कोई अर्थी को कांधा देने नहीं आया. मजबूरन बेटियों ने ही अर्थी को कंधा देकर शमशान तक ले गई और अंतिम संस्कार किया.

बुजुर्ग की घर में ही हो गई थी मौत

परासिया की चौकी मोहल्ले में रहने वाले बुजुर्ग सुंदर लाल सूर्यवंशी की उम्र ज्यादा होने के चलते सामान्य मौत घर पर ही हो गई. परिजनों ने रिश्तेदारों और मोहल्ले में इसकी सूचना दी, लेकिन कोरोना का कहर इतना है कि कांधा देना तो दूर की बात कोई देखने भी नहीं आया. आखिरकार बेटियों ने ही अर्थी को कंधा दिया और श्मशान ने अंतिम संस्कार भी किया.

बेटी ने दी पिता को मुखाग्नि, बेटे का फर्ज निभा बनी समाज की मिसाल

बुजुर्ग की बेटियों ने निभाई परंपरा

दरअसल, बुजुर्ग का कोई बेटा नहीं है उनकी तीन बेटियां हैं जब बुजुर्ग की मौत के बाद कोई रिश्तेदार या पड़ोसी अर्थी उठाने नहीं आया. बेटियों ने ही बेटों का फर्ज निभाते हुए न सिर्फ अर्थी को उठाया, बल्कि श्मशान घाट ले जाकर अंतिम संस्कार भी किया.

कोरोना ने अपनों को भी किया दूर

आमतौर पर देखा जाता था कि अगर किसी के घर कोई मौत हो जाए, तो सिर्फ रिश्तेदार ही नहीं, बल्कि पड़ोसी भी दौड़ कर दुख में सहभागी होते थे, लेकिन अब कोरोना का डर इतना है, कि अब लोग पड़ोसियों की बात तो दूर अपनों के ही अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो रहे हैं. कोरोना ने इतना खौफ पैदा कर दिया है कि लोग अब रिश्ते नाते भी भूलने लगे हैं.

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