छिंदवाड़ा। जिला जेल में दो ऐसी मासूम सजा काट रही हैं, जिनका ना तो कोई दोष है और ना ही कोई अपराध. इन्हें तो दुनिया की समझ भी नहीं है, फिर भी दोनों मासूम जेल की सलाखों के पीछे है. जेल में बंद पहली बच्ची की मां कुछ दिन पहले आत्महत्या कर ली थी. महिला की 3 महीने की बच्ची है. आत्महत्या जैसे कदम उठाने के लिए मजबूर करने पर मासूम की दादी को जेल में बंद किया गया है. मासूम की परवरिश करने वाला कोई नहीं था. इसलिए मासूम भी अपनी दादी के साथ जेल की सलाखों के पीछे है. जेल में बंद दूसरी बच्ची 1 माह की है. जिसकी मां पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं और उसे 4 साल की सजा सुनाई गई है.
भ्रष्टाचार के आरोप में 4 साल की सजा: ग्राम पंचायत के पूर्व ग्राम रोजगार सहायक को लोकायुक्त की टीम ने रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा था. मामला न्यायालय में चल रहा था. इस मामले में न्यायालय ने भ्रष्टाचारी ग्राम रोजगार सहायक को 4 साल का सश्रम कारावास एवं ₹6000 की जुर्माना की सजा सुनाई है. इस आरोपी महिला की 1 महीने की बच्ची है. इसलिए इसे भी अपनी मां के साथ जिला जेल में बंद होना पड़ा है.
बंदियों के साथ रहने की अनुमति: छिंदवाड़ा जिला जेल के अधीक्षक यजुवेंद्र बाघमारे ने ईटीवी भारत को बताया कि, न्यायालय के आदेश अनुसार 5 साल से कम उम्र के बच्चों को जेल में सजा काट रही उनकी मां के साथ रखने का प्रावधान है. इसके लिए बकायदा जेल प्रबंधन समय-समय पर उनके टीकाकरण से लेकर स्वास्थ्य और भोजन का पूरा ख्याल रखता है. 5 साल से ऊपर के बच्चे शिशु ग्रह में रहते हैं. अगर 3 से 5 साल के बीच बच्चों को शिक्षा की भी जरूरत होती है तो जेल प्रबंधन के द्वारा उनकी पढ़ाई भी शुरू कराई जाती है.
माता के गुनाह की सजा: गुनाह करने के बाद अगर कोई सजा हो तो जायज है, लेकिन यह मासूम ऐसी हैं जिन्हें ना तो दुनिया की समझ ना परिवार की जानकारी लेकिन फिर भी अपनी माताओं के गुनाहों की सजा भुगतने को मजबूर हैं. भले ही जेल में कितनी ही सुख सुविधाएं और व्यवस्थाओं का दावा किया जाए लेकिन जेल तो जेल होता है. आखिर बच्चियां भी सोचती होंगी कि उनका क्या कसूर जो वे जेल की सलाखों के पीछे हैं.