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लॉकडाउन से राहत मिलते ही रोजी- रोटी की तलाश में निकले बंजारा समुदाय के लोग - नहीं मिली सरकार से मदद

लॉकडाउन से आंशिक राहत मिलते ही बंजारा समुदाय के लोग भी रोजी- रोटी की तलाश में निकल पड़े हैं. जैसे ही लॉकडाउन लगा वे जहां थे वहीं रुक गए. जितना कुछ उनके पास बचा था लॉकडाउन के दौरान वो भी खर्च हो गया. हालात ये हैं कि, अब इनके खाने के लाले पड़े हैं.

Banjaras in search of livelihood
रोजी रोटी की तलाश में निकले बंजारे
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Published : Jun 11, 2020, 3:43 PM IST

छिंदवाड़ा। लॉकडाउन से आंशिक राहत मिलने के बाद हर कोई रोजी- रोटी की तलाश में लग गया है, बंजारा समुदाय के लोगों ने भी रोजगार की तलाश में पलायन शुरू कर दिया है. अपने बच्चों और अपने मवेशियों को लेकर रोजी-रोटी की तलाश में निकले बंजारों को महज महीने का ही काम मिला था, उसके बाद लॉकडाउन में इनकी जिंदगी थम गई, राहत मिलने के साथ अब वे फिर से रोजी-रोटी की तलाश में निकल पड़े हैं.

रोजी रोटी की तलाश में निकले बंजारे

लोहे के औजार बनाकर करते हैं गुजारा

अपना पेट भरने के लिए, अपने हुनर को ही अपने रोजगार का जरिया बनाने वाले बंजारे लोहे के औजार बनाते हैं. जिसमें कुल्हाड़ी, हंसिया और खेती और घरेलू उपयोग में आने वाले हथियार बनाकर गुजारा करते हैं. ग्रामीण इलाकों में अधिकतर इनका बसेरा होता है.

लॉकडाउन ने तोड़ी कमर

बंजारों ने बताया कि, घर से रोजी-रोटी की तलाश में निकले थे. कुछ दिन काम मिला, लेकिन जैसे ही लॉकडाउन लगा वे, जहां थे वहीं रुक गए. जितना कुछ उनके पास बचा था, लॉकडाउन के दौरान वो भी खर्च हो गया. हालात कुछ ऐसे बने कि, अब उनके पास खाने के लाले पड़े हैं.

ओबैदुल्लागंज से रोजी-रोटी की तलाश में करीब 15 परिवार एक साथ निकले हैं. इनके साथ छोटे-छोटे बच्चों के साथ ही काफी संख्या में मवेशी भी हैं. उनका कहना है कि, खुद के लिए खाने की व्यवस्था करना तो आसान हो जाता है, लेकिन पशुओं की घास और चारे का जुगाड़ बड़ा कठिन है. बंजारों ने बताया कि, बारिश के महीनों को छोड़कर वे पूरे साल घूम घूम कर ही अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं. इस संकट काल में भी वे घरों से बाहर थे, उन्हें सरकारी मदद के नाम पर कुछ भी नहीं मिला.

छिंदवाड़ा। लॉकडाउन से आंशिक राहत मिलने के बाद हर कोई रोजी- रोटी की तलाश में लग गया है, बंजारा समुदाय के लोगों ने भी रोजगार की तलाश में पलायन शुरू कर दिया है. अपने बच्चों और अपने मवेशियों को लेकर रोजी-रोटी की तलाश में निकले बंजारों को महज महीने का ही काम मिला था, उसके बाद लॉकडाउन में इनकी जिंदगी थम गई, राहत मिलने के साथ अब वे फिर से रोजी-रोटी की तलाश में निकल पड़े हैं.

रोजी रोटी की तलाश में निकले बंजारे

लोहे के औजार बनाकर करते हैं गुजारा

अपना पेट भरने के लिए, अपने हुनर को ही अपने रोजगार का जरिया बनाने वाले बंजारे लोहे के औजार बनाते हैं. जिसमें कुल्हाड़ी, हंसिया और खेती और घरेलू उपयोग में आने वाले हथियार बनाकर गुजारा करते हैं. ग्रामीण इलाकों में अधिकतर इनका बसेरा होता है.

लॉकडाउन ने तोड़ी कमर

बंजारों ने बताया कि, घर से रोजी-रोटी की तलाश में निकले थे. कुछ दिन काम मिला, लेकिन जैसे ही लॉकडाउन लगा वे, जहां थे वहीं रुक गए. जितना कुछ उनके पास बचा था, लॉकडाउन के दौरान वो भी खर्च हो गया. हालात कुछ ऐसे बने कि, अब उनके पास खाने के लाले पड़े हैं.

ओबैदुल्लागंज से रोजी-रोटी की तलाश में करीब 15 परिवार एक साथ निकले हैं. इनके साथ छोटे-छोटे बच्चों के साथ ही काफी संख्या में मवेशी भी हैं. उनका कहना है कि, खुद के लिए खाने की व्यवस्था करना तो आसान हो जाता है, लेकिन पशुओं की घास और चारे का जुगाड़ बड़ा कठिन है. बंजारों ने बताया कि, बारिश के महीनों को छोड़कर वे पूरे साल घूम घूम कर ही अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं. इस संकट काल में भी वे घरों से बाहर थे, उन्हें सरकारी मदद के नाम पर कुछ भी नहीं मिला.

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