छिंदवाड़ा। जिले की चौरई विधानसभा के माचागोरा में पेंच नदी पर बने जिले के सबसे बड़े बांध की नींव 1988 में रखी गई थी और ये 2017 में बनकर तैयार हो गया था. जिसके बाद छिंदवाड़ा समेत सिवनी जिले के किसानों के लिए ये डैम किसी वरदान से कम नहीं है. लेकिन पिछले कुछ दिन लगातार हुई बारिश की वजह से ये लोगों के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं रहा. बारिश की वजह से ओवरफ्लो हुए डैम के सभी 8 गेट खोलने पड़े थे, जिसके बाद निचले इलाकों में बसे गांव बाढ़ की चपेट में आ गए हैं.
पहली बार एक साथ खोले गए सभी गेट-
लगातार हुई बारिश की वजह से पहली बार माचागोरा बांध के सभी 8 गेट खोले गए हैं. इसके पहले पानी भरने पर छह गेट एक साथ खोले जा चुके हैं, लेकिन लगातार तीन दिन की बारिश में 8 गेट खोलने पड़े और निचले इलाके के कई गांव बाढ़ की चपेट में आ गए.
अधिकारियों के हिसाब से फिलहाल 93.85 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी की आवक है, इसलिए सिर्फ 0.6 की ऊंचाई में एक गेट खोला गया है. बांध में अभी 340 से 350 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी का लेवल बना हुआ है. अधिकारियों ने बताया कि जरूरत पड़ने पर पानी की आवक के हिसाब से गेट खोले और बंद किए जाते हैं.
कई गांव प्रभावित-
परियोजना के डूब क्षेत्र के अंतर्गत छिंदवाड़ा तहसील के 17 गांव चौरई, तहसील के 10 गांव और अमरवाड़ा तहसील के 3 गांव की 5070 हेक्टेयर निजी भूमि का अधिग्रहण किया गया है और 882.65 हेक्टेयर सरकारी भूमि अधिकृत की गई है. वहीं भूतेरा बरहबरियारी, धनोरा, भूला मोहगांव कुल 4 गांव पूरी तरह से डूब प्रभावित हुए हैं.
छिंदवाड़ा जिले के 164 और सिवनी जिले के 152 गांव को मिल रहा लाभ-
जिले की पेंच व्यपवर्तन परियोजना से बने माचागोरा बांध से सिंचाई के लिए छिंदवाड़ा जिले के 164 गांव और सिवनी जिले के 152 गांवों में दो नहरों के माध्यम से पानी पहुंचाया जा रहा है.
कुछ इलाकों में माइक्रो इरिगेशन प्रणाली का भी उपयोग किया जा रहा है. जिससे ऊंचे भाग में पानी पहुंच सके. दोनों जिलों में पानी पहुंचाने के लिए 20.07 किलोमीटर लंबी मुख्य नहर एवं 30.20 किलोमीटर लंबी दाएं तट मुख्य नहर सहित 605.045 किलोमीटर की नहर प्रणाली बनाई जा रही है. जिससे कुल 114882 हेक्टेयर में सिंचाई होगी.
1986 में कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में प्रोजेक्ट तैयार हुआ था और 1988 में इसकी नींव रखी गई. जब कुल लागत 91.60 करोड़ थी और सिंचाई का रकबा 19 हजार हेक्टेयर था, जिसका निर्माण धीमी गति से चलता रहा, बीच में योजना बंद होने की कगार पर थी, लेकिन 2003 में भाजपा सरकार आने के बाद काम ने रफ्तार पकड़ी और 2017 में आते-आते तक इस परियोजना की लागत 2544.57 करोड़ हो गई और सिंचाई का रकबा भी बढ़कर 114882 हेक्टेयर हो गया.