ETV Bharat / state

देवगढ़ में मिली 16वीं सदी की कला, प्रशासन ने बावड़ियों को संरक्षित करने का उठाया जिम्मा

छिंदवाड़ा जिले के देवगढ़ को अब प्राचीन बावड़ियों के गांव के नाम से जाना जाएगा. छिंदवाड़ा जिला प्रशासन ने पुरानी बावड़ियों को खोज कर सहेजने का काम शुरू किया है.

chhindwara
देवगढ़ में मिलती हैं 16वी सदी की कला
author img

By

Published : Sep 27, 2020, 3:09 PM IST

Updated : Sep 27, 2020, 5:52 PM IST

छिंदवाड़ा। अब तक छिंदवाड़ा जिले में किले के रूप में पहचान रखने वाली देवगढ़ को अब प्राचीन बावड़ियों के गांव के नाम से भी जाना जाएगा. दरअसल जिला प्रशासन में यहां पुरानी बावड़ियों को खोज कर सहेजने का काम शुरू किया है. बताया जाता है कि 16वीं सदी में देवगढ़ गौंड राजाओं की राजधानी थी, उसी दौरान राजाओं ने यहां सैकड़ों कुएं और बावड़ियों का निर्माण कराया था, लेकिन धीरे-धीरे ये बावड़ियां खत्म हो रहीं थीं, अब जिला प्रशासन और ग्राम पंचायत ने इन्हें संरक्षित करने का जिम्मा उठाया है.

देवगढ़ में मिलती हैं 16वी सदी की कला

16वीं सदी की 900 बावड़ियां और 800 कुएं मिले

बताया जाता है कि देवगढ़ के किले और उसके आसपास 900 बावड़ियां और 800 कुएं हैं. जिन्हें तत्कालीन शासकों ने बनवाया था. अभी तक 48 बावड़ियां और 12 कुएं की खोज की जा चुकी है, जिनमें से 21 बावड़ियों के जीर्णोद्धार का काम शुरू किया गया है.

मनरेगा में 1 करोड़ से ज्यादा की लागत से कराया जा रहा काम

बावड़ियों और कुएं की जीर्णोद्धार का काम मनरेगा के तहत किया जा रहा है. जिसमें पहले चरण में 29.18 लाख रुपए की लागत से सात बावड़ियों का जीर्णोद्धार किया जा रहा है, वहीं दूसरे चरण में 79.35 की लागत से 14 बावड़ियों का काम किया जाएगा.

जल स्रोतों को मिलेगा जीवनदान, धरोहरों को मिलेगी पहचान

जिला प्रशासन के इस प्रयास से जहां जल स्रोतों को जीवनदान मिलेगा, जिससे जल संरक्षण होगा. वहीं जिले की धरोहरों को पहचान मिलेगी, जिससे जिले के पर्यटन में भी बढ़ावा होगा.

देवगढ़ का ऐतिहासिक महत्व

देवगढ़ की बावड़ी का ऐतिहासिक महत्व है. जिला मुख्यालय से 46 किलोमीटर दूर मोहखेड़ तहसील की एक पहाड़ी पर देवगढ़ का किला है. कहा जाता है कि इसका निर्माण 16वीं सदी में गौंड शासकों ने कराया था. इस किले की इमारत इस्लामिक शैली से बनी है, जिसमें स्थानीय गौंड कला का प्रभाव दिखता है.

छिंदवाड़ा। अब तक छिंदवाड़ा जिले में किले के रूप में पहचान रखने वाली देवगढ़ को अब प्राचीन बावड़ियों के गांव के नाम से भी जाना जाएगा. दरअसल जिला प्रशासन में यहां पुरानी बावड़ियों को खोज कर सहेजने का काम शुरू किया है. बताया जाता है कि 16वीं सदी में देवगढ़ गौंड राजाओं की राजधानी थी, उसी दौरान राजाओं ने यहां सैकड़ों कुएं और बावड़ियों का निर्माण कराया था, लेकिन धीरे-धीरे ये बावड़ियां खत्म हो रहीं थीं, अब जिला प्रशासन और ग्राम पंचायत ने इन्हें संरक्षित करने का जिम्मा उठाया है.

देवगढ़ में मिलती हैं 16वी सदी की कला

16वीं सदी की 900 बावड़ियां और 800 कुएं मिले

बताया जाता है कि देवगढ़ के किले और उसके आसपास 900 बावड़ियां और 800 कुएं हैं. जिन्हें तत्कालीन शासकों ने बनवाया था. अभी तक 48 बावड़ियां और 12 कुएं की खोज की जा चुकी है, जिनमें से 21 बावड़ियों के जीर्णोद्धार का काम शुरू किया गया है.

मनरेगा में 1 करोड़ से ज्यादा की लागत से कराया जा रहा काम

बावड़ियों और कुएं की जीर्णोद्धार का काम मनरेगा के तहत किया जा रहा है. जिसमें पहले चरण में 29.18 लाख रुपए की लागत से सात बावड़ियों का जीर्णोद्धार किया जा रहा है, वहीं दूसरे चरण में 79.35 की लागत से 14 बावड़ियों का काम किया जाएगा.

जल स्रोतों को मिलेगा जीवनदान, धरोहरों को मिलेगी पहचान

जिला प्रशासन के इस प्रयास से जहां जल स्रोतों को जीवनदान मिलेगा, जिससे जल संरक्षण होगा. वहीं जिले की धरोहरों को पहचान मिलेगी, जिससे जिले के पर्यटन में भी बढ़ावा होगा.

देवगढ़ का ऐतिहासिक महत्व

देवगढ़ की बावड़ी का ऐतिहासिक महत्व है. जिला मुख्यालय से 46 किलोमीटर दूर मोहखेड़ तहसील की एक पहाड़ी पर देवगढ़ का किला है. कहा जाता है कि इसका निर्माण 16वीं सदी में गौंड शासकों ने कराया था. इस किले की इमारत इस्लामिक शैली से बनी है, जिसमें स्थानीय गौंड कला का प्रभाव दिखता है.

Last Updated : Sep 27, 2020, 5:52 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.