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रहने के लिए नहीं घर, कैसे कटेगा जीवन का सफर, कौन सुने इनकी गुहार..?

खजुराहो से लगभग 30 किलोमीटर दूरी पर स्थित ग्राम कर्री में आदिवासियों को अब तक न ही रहने को घर मिल पाया है और न ही कोई कमाई का साधन.

ग्राम कर्री ,छतरपुर
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Published : Aug 11, 2019, 3:33 PM IST

छतरपुर। भारत को हम भले ही समृद्ध विकासशील देश की श्रेणी में शामिल कर लें, लेकिन आदिवासी अब भी समाज की मुख्य धारा से कटे नजर आते हैं. गरीबी उन्मूलन की बात वर्षों से की जा रही है, इसके बावजूद समाज में आर्थिक विषमता और बेरोजगारी ज्यों-की-त्यों बनी हुई हैं. इन आदिवासियों को अब तक न ही रहने को घर मिल पाया है और न ही कोई कमाई का साधन.

आदिवासियों को अब तक रहने के लिए घर नहीं मिले हैं


विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल खजुराहो से लगभग 30 किलोमीटर दूरी पर स्थित ग्राम कर्री का एक अहम हिस्सा मानिकपुर जहां पर अधिकांश आदिवासी रहते हैं इस गांव की जनसंख्या 600 के आसपास हैं. दौर बदलता गया सरकारें बदलती गई अगर कुछ नहीं बदला तो वो है यहां के हालात, यहां रहने वाले आदिवासी समुदाय के लोग आज भी महंगाई के कोड़े की मार झेल रहे हैं.

सरकार भले ही आदिवासियों को लाभ पहुंचाने के लिए उनकी संस्कृति और जीवन शैली को समझे बिना ही योजना बना लेती हैं. ऐसी योजनाओं का आदिवासियों को लाभ नहीं होता, अलबत्ता योजना बनाने वाले जरूर फायदे में रहते हैं। महंगाई के चलते आज आदिवासी दैनिक उपयोग की चीजें भी नहीं खरीद पा रहे हैं और कुपोषण के शिकार हो रहे हैं. आदिवासियों की अनदेखी कर तात्कालिक राजनीतिक लाभ देने वाली बातों को हवा देना एक परंपरा बन गई है.

छतरपुर। भारत को हम भले ही समृद्ध विकासशील देश की श्रेणी में शामिल कर लें, लेकिन आदिवासी अब भी समाज की मुख्य धारा से कटे नजर आते हैं. गरीबी उन्मूलन की बात वर्षों से की जा रही है, इसके बावजूद समाज में आर्थिक विषमता और बेरोजगारी ज्यों-की-त्यों बनी हुई हैं. इन आदिवासियों को अब तक न ही रहने को घर मिल पाया है और न ही कोई कमाई का साधन.

आदिवासियों को अब तक रहने के लिए घर नहीं मिले हैं


विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल खजुराहो से लगभग 30 किलोमीटर दूरी पर स्थित ग्राम कर्री का एक अहम हिस्सा मानिकपुर जहां पर अधिकांश आदिवासी रहते हैं इस गांव की जनसंख्या 600 के आसपास हैं. दौर बदलता गया सरकारें बदलती गई अगर कुछ नहीं बदला तो वो है यहां के हालात, यहां रहने वाले आदिवासी समुदाय के लोग आज भी महंगाई के कोड़े की मार झेल रहे हैं.

सरकार भले ही आदिवासियों को लाभ पहुंचाने के लिए उनकी संस्कृति और जीवन शैली को समझे बिना ही योजना बना लेती हैं. ऐसी योजनाओं का आदिवासियों को लाभ नहीं होता, अलबत्ता योजना बनाने वाले जरूर फायदे में रहते हैं। महंगाई के चलते आज आदिवासी दैनिक उपयोग की चीजें भी नहीं खरीद पा रहे हैं और कुपोषण के शिकार हो रहे हैं. आदिवासियों की अनदेखी कर तात्कालिक राजनीतिक लाभ देने वाली बातों को हवा देना एक परंपरा बन गई है.

Intro:भारत को हम भले ही समृद्ध विकासशील देश की श्रेणी में शामिल कर लें, लेकिन आदिवासी अब भी समाज की मुख्य धारा से कटे नजर आते हैं। 
आजादी के 72 साल बाद भी भारत के आदिवासी उपेक्षित, शोषित और पीड़ित नजर आते हैं गरीबी उन्मूलन की बात वर्षों से की जा रही है। इसके बावजूद समाज में आर्थिक विषमता ज्यों-की-त्यों बनी हुई है। बेरोजगारी की समस्या यथावत है।Body:भारत को हम भले ही समृद्ध विकासशील देश की श्रेणी में शामिल कर लें, लेकिन आदिवासी अब भी समाज की मुख्य धारा से कटे नजर आते हैं। 
आजादी के 72 साल बाद भी भारत के आदिवासी उपेक्षित, शोषित और पीड़ित नजर आते हैं गरीबी उन्मूलन की बात वर्षों से की जा रही है। इसके बावजूद समाज में आर्थिक विषमता ज्यों-की-त्यों बनी हुई है। बेरोजगारी की समस्या यथावत है।
* *विश्व पर्यटन नगरी खजुराहो से लगभग 30 किलोमीटर दूरी पर स्थित ग्राम कर्री का एक अहम हिस्सा मानिकपुर जहां पर अधिकांश आदिवासी रहते हैं इस गांव की जनसंख्या लगभग 6 सौ के आसपास हैं*
हकीकत कुछ बुंदेलखंड की
दौर बदलता गया सरकारें बदलती गई अगर कुछ नहीं बदला तो वो है यहां के हालात
सरकार भले ही आदिवासियों को लाभ पहुँचाने के लिए उनकी संस्कृति और जीवन शैली को समझे बिना ही योजना बना लेती हैं। ऐसी योजनाओं का आदिवासियों को लाभ नहीं होता, अलबत्ता योजना बनाने वाले जरूर फायदे में रहते हैं। महँगाई के चलते आज आदिवासी दैनिक उपयोग की वस्तुएँ भी नहीं खरीद पा रहे हैं। वे कुपोषण के शिकार हो रहे हैं।
देश में अभी भी आदिवासी दोयम दर्जे के नागरिक जैसा जीवन-यापन कर रहे हैं। वही आदिवासियों की अनदेखी कर तात्कालिक राजनीतिक लाभ देने वाली बातों को हवा देना एक परंपरा बन गई है।
यह तो नींव के बिना महल बनाने वाली बात हो गई। अगर सरकार सचमें में देश का विकास चाहती हैं और 'आखिरी व्यक्ति' तक लाभ पहुँचाने की मंशा रखती हैं तो आदिवासी हित और उनकी समस्याओं को हल करने की बात पहले करना होगी। 
वाइट-1. सियारानी आदिवासी
वाइट-2. प्रेमभाई आदिवासी
वाइट-3. दिला आदिवासीConclusion:सरकार भले ही आदिवासियों को लाभ पहुँचाने के लिए उनकी संस्कृति और जीवन शैली को समझे बिना ही योजना बना लेती हैं। ऐसी योजनाओं का आदिवासियों को लाभ नहीं होता, अलबत्ता योजना बनाने वाले जरूर फायदे में रहते हैं। महँगाई के चलते आज आदिवासी दैनिक उपयोग की वस्तुएँ भी नहीं खरीद पा रहे हैं। वे कुपोषण के शिकार हो रहे हैं।
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