छतरपुर। खजुराहो का सबसे प्राचीनतम मंदिर 64 योगिनी न जाने कितनी ही ऐतिहासिक कहानियों को अपने आप में समेटे हुए है. 9वीं शताब्दी के इस मंदिर में कहने को तो यह सिर्फ कुछ मड़ियां लेकिन इसके पीछे के इतिहास में कई कहानियां छुपी हुई हैं. इसमें से एक यह भी है कि अमावस्या की रात को 64 योगिनी आसमान से उतरकर यहां पर योग एवं तंत्र साधना करती हैं. यही वजह है कि इस जगह को चौसठ योगिनी मंदिर कहा जाता है. तंत्र साधना करने वाले लोगों के लिए यह स्थान बेहद प्रसिद्ध है. दूर दराज से लोग यहां पर दर्शन करने के लिए आते हैं. यह खजुराहो के प्रमुख मंदिरों में से एक माना जाता है.
लेकिन यह इस मंदिर का दुर्भाग्य कहें या प्रशासन की अनदेखी...आज यह मंदिर असतित्व के लिए संघर्ष कर रहा है. इस मंदिर पर बनी छोटी-छोटी मड़ियां ध्वस्त होती जा रही हैं. पहले इस मंदिर में चौसठ मड़ियां हुआ करती थी. आज के समय में केवल 42 मड़ियां ही बची हैं और ये भी विलुप्ती की कगार पर हैं. आलम ये है कि यह प्राचीन मंदिर आवारा पशुओं का डेरा बनता जा रहा है, लेकिन प्रशासन अपनी आंख में पट्टी बांधे बैठा हुआ है. चौसठ योगिनी में बने मंदिरों के गर्भ गृह में कुत्तों का बैठना दर्शाता है कि आखिर पुरातत्व विभाग इस प्राचीनतम मंदिर के प्रति कितना उदासीन है.
शोधकर्ता डॉ अर्चना श्रीवास्तव बताती हैं कि लगभग 10 साल पहले जब वह इस मंदिर में आई थीं तो इस मंदिर की स्थिति बेहतर थी और मंदिर में कुल 56 मड़ियां थी. आज के समय में यहां केवल 42 मड़ियां ही बची हुई हैं और उनकी भी हालत खराब हो चुकी है. आज खजुराहो का सबसे प्राचीनतम मंदिर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है.