छतरपुर। लॉकडाउन के बीच मजदूरों को राहत देने का काम भले ही इतने बड़े स्तर पर चल रहा है. लेकिन प्रवासी मजदूरों को वापस लाने प्रशासन के दावे झूठे साबित हो रहे हैं. सरकार लाखों मजदूरों में से कुछ सैकड़ा मजदूरों को लाकर वाहवाही लूट रही है, लेकिन लॉकडाउन के 43 दिन गुजर जाने के बाद भी मजदूर महानगरों से पैदल लौट रहे हैं.
नहीं मिली मजदूरों को राहत
कोविड-19 संक्रमण के चलते केंद्र सरकार ने पूरे देश में पहले 21 दिन का लॉकडाउन लगाया, फिर यह बढ़ता गया. लेकिन इसके बावजूद भी कोरोना का संकर्मण कंट्रोल नहीं हुआ तो गृह मंत्रालय ने 14 दिन के लिए लॉकडाउन आगे बड़ा दिया है.
सभी लॉकडाउन में एक विषय कॉमन रहा है तो वह मजदूरों का वापस अपने गांव लौटने का सिलसिला. पहले लॉकडाउन से लेकर तीसरे लॉकडाउन तक लगातार महानगरों में काम करने वाले दिहाड़ी मजदूर वापस अपने गाव लौट रहे हैं.
सरकार के प्रयास नाकाफी
प्रदेश सरकार योजना चालू करते हुए मजदूरों को वापस ला रही है. लेकिन महानगरों में फंसे लाखों में से कुछ सैकड़ा मजदूरों को सरकार ला पा रही है. ऐसे में सरकार के प्रयास ऊंट के मुंह में जीरा यानी फंसे मजदूरों की तुलना में नाकाफी है. जिसके चलते दयनीय स्थिति में फंसे मजदूर पैदल ही वापस अपने गंतव्य के लिए निकल पड़े हैं.
नहीं हो पा रही थर्मल स्कैनिंग
कई जगह पुलिस और प्रशासन की मदद से मजदूरों को बस, ट्रक, ट्रैक्टर, पिकअप सहित निजी वाहनों को हायर करके गाव तक भेजा जा रहा है. वापस लौट रहे मजदूरों को खाना और पानी की व्यवस्था समाजसेवी के माध्यम से की जा रही है, लेकिन एक बड़ी लापरवाही भी सामने आ रही है, कि कई बार वापस लौट रहे मजदूरों की स्वास्थ्य जांच और थर्मल स्कैनिंग नहीं की जा रही है, जिससे क्षेत्र में संक्रमण फैलने की आशंका बड़ गई है.
लॉकडाउन के चलते बस ट्रेन का परिवहन बंद है, जिसके चलते मजदूरों को अपने गांव वापस लौटने के लिए पैदलयात्रा करना पड़ रहा है.