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बुंदेलखंड का बसारी गांव, जहां कला में बसती है लोगों की जिंदगी

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Published : Aug 22, 2019, 2:51 PM IST

Updated : Aug 22, 2019, 3:45 PM IST

बसारी गांव में रहने वाले लोग फिल्मों के किरदार भी निभाते हैं. इस गांव में रहने वाले हर व्यक्ति ने कभी न कभी, फिल्म में किरदार जरूर निभाया है.

बुंदेली कला का अद्भुत संगम

छतरपुर। जिले से लगभग 20 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम बसारी में अब तक कई शॉर्ट फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है. यहां के हर घर का व्यक्ति कला के लिए समर्पित रहता है और साथ ही साथ यहां के लोग कला को खूबसूरती से सजाते भी हैं. बसारी गांव में रहने वाले लोग फिल्मों के किरदार भी निभाते हैं. इस गांव में रहने वाले हर व्यक्ति ने कभी न कभी, फिल्म में किरदार जरूर निभाया है. गांव का नाम लेते ही आंखों के सामने बेरोजगारी की तस्वीर तैरने लगती है, लेकिन इस गांव के लोगों की रगों में एक्टिंग दौड़ती है.

कलाकारों का गांव

यहां की कला-श्रृंखला निहारते ही बनती है. गांव के लोगों में बस दो ही चीजें बस्ती हैं कला और प्रेम. यहां के लोगों के लिए कला सांस की तरह है और प्रेम उनके लिए आत्मा. गांव के कलाकार, दादरा, फाग, सोहर, राई, लमटेरा, कहरवा, बन्ना, आल्हा, कजरी, बिरहा, दिवारी, नाटक और ऐसी कई शास्त्रीय विधाएं राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पेश कर चुके हैं.

वाद्य यंत्रों की बात की जाए तो सितार, सारंगी, बांसुरी, हारमोनियम, ढोलक, मंजीरा, नगरिया, लगभग सभी प्रकार के यंत्रों को बजाने में यहां के लोगों को महारत हासिल है. कलाकारों ने थोड़ा निराश होते हुए भी कहा कि मोबाइल इंटरनेट के दौर में इस कला के प्रति लोगों का आकर्षण अब न के बराबर रह गया है. शहर में तो ये कला प्रायः समाप्त हो गई है, लेकिन उन्हें गांव में अब भी कद्रदान मिल जाते हैं, लेकिन नई पीढ़ी तो इस पुश्तैनी कला से जुड़ना तक नहीं चाहती.

छतरपुर। जिले से लगभग 20 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम बसारी में अब तक कई शॉर्ट फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है. यहां के हर घर का व्यक्ति कला के लिए समर्पित रहता है और साथ ही साथ यहां के लोग कला को खूबसूरती से सजाते भी हैं. बसारी गांव में रहने वाले लोग फिल्मों के किरदार भी निभाते हैं. इस गांव में रहने वाले हर व्यक्ति ने कभी न कभी, फिल्म में किरदार जरूर निभाया है. गांव का नाम लेते ही आंखों के सामने बेरोजगारी की तस्वीर तैरने लगती है, लेकिन इस गांव के लोगों की रगों में एक्टिंग दौड़ती है.

कलाकारों का गांव

यहां की कला-श्रृंखला निहारते ही बनती है. गांव के लोगों में बस दो ही चीजें बस्ती हैं कला और प्रेम. यहां के लोगों के लिए कला सांस की तरह है और प्रेम उनके लिए आत्मा. गांव के कलाकार, दादरा, फाग, सोहर, राई, लमटेरा, कहरवा, बन्ना, आल्हा, कजरी, बिरहा, दिवारी, नाटक और ऐसी कई शास्त्रीय विधाएं राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पेश कर चुके हैं.

वाद्य यंत्रों की बात की जाए तो सितार, सारंगी, बांसुरी, हारमोनियम, ढोलक, मंजीरा, नगरिया, लगभग सभी प्रकार के यंत्रों को बजाने में यहां के लोगों को महारत हासिल है. कलाकारों ने थोड़ा निराश होते हुए भी कहा कि मोबाइल इंटरनेट के दौर में इस कला के प्रति लोगों का आकर्षण अब न के बराबर रह गया है. शहर में तो ये कला प्रायः समाप्त हो गई है, लेकिन उन्हें गांव में अब भी कद्रदान मिल जाते हैं, लेकिन नई पीढ़ी तो इस पुश्तैनी कला से जुड़ना तक नहीं चाहती.

Intro:भारत एक कृषि प्रधान देश है भारत का विकास गांव पर निर्भर करता है लेकिन एक ऐसा गांव है जहां खेती-बाड़ी कम और फिल्मों की शूटिंग ज्यादा होती है गांव में रहने वाले लोग फिल्मों के किरदार भी निभाते हैं इस गांव में रहने वाले हर व्यक्ति ने कभी ना कभी किसी फिल्म में किरदार निभाया है गांव का नाम लेते ही आंखों के सामने बेरोजगारी की तस्वीर तैरने लगती है लेकिन इस गांव के लोगों के रगों में एक्टिंग दौड़ती है आज हम आपको एक ऐसे ही गांव के बारे में बताने जा रहे हैं Body:*बुंदेली कला का अद्भुत संगम*

भारत एक कृषि प्रधान देश है भारत का विकास गांव पर निर्भर करता है लेकिन एक ऐसा गांव है जहां खेती-बाड़ी कम और फिल्मों की शूटिंग ज्यादा होती है गांव में रहने वाले लोग फिल्मों के किरदार भी निभाते हैं इस गांव में रहने वाले हर व्यक्ति ने कभी ना कभी किसी फिल्म में किरदार निभाया है गांव का नाम लेते ही आंखों के सामने बेरोजगारी की तस्वीर तैरने लगती है लेकिन इस गांव के लोगों के रगों में एक्टिंग दौड़ती है आज हम आपको एक ऐसे ही गांव के बारे में बताने जा रहे हैं जहां अब तक कई शॉट फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है जी हां छतरपुर से लगभग 20 किलोमीटर दूरी पर स्थित ग्राम बसारी में
लगभग 5000 से ज्यादा लोग रहते हैं
यहाँ के हर घर का व्यक्ति कला के लिए समर्पित रहता हैं और साथ ही साथ यहां के लोग कला को खूबसूरती से सजाते भी है यहाँ की कला- श्रृंखला निहारते ही बनती हैं यहाँ के लोगों में बस दो ही चीजें बस्ती हैं कला और प्रेम यहां के लोगों के लिए कला सांस की तरह है और प्रेम उनके लिए आत्मा है यहां के कलाकार, दादरा, फाग, सोहर, राई ,लमटेरा ,कहरवा ,बन्ना, आल्हा, कजरी, बिरहा, दिवारी, नाटक और कई ऐसी शास्त्रीय विधाएं राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पेश कर चुके हैं
और साथ ही साथ लगभग सभी प्रकार के वाद्य यंत भी बजा लेते हैं जिसमें सितार ,सारंगी, बांसुरी, हारमोनियम, ढोलक ,मंजीरा ,नगरिया, लगभग सभी प्रकार के वाद्य यंत्र बजाने में यहां के लोगों को महारत हासिल है
कलाकारों ने थोड़ा निराश होते हुए भी कहा की मोबाइल इंटरनेट के दौर में इस कला के प्रति लोगों का आकर्षण अब ना के बराबर रहता हैं
शहर में तो यह कला प्रायः समाप्त हो गई है लेकिन उन्होंने कहा गांव में अब भी उनको कद्रदान मिल जाते हैं और साथ ही साथ कहा की नई पीढ़ी तो इस पुश्तैनी कला से जुड़ना तक नहीं चाहतीConclusion:कलाकारों ने थोड़ा निराश होते हुए भी कहा की मोबाइल इंटरनेट के दौर में इस कला के प्रति लोगों का आकर्षण अब ना के बराबर रहता हैं
शहर में तो यह कला प्रायः समाप्त हो गई है लेकिन उन्होंने कहा गांव में अब भी उनको कद्रदान मिल जाते हैं और साथ ही साथ कहा की नई पीढ़ी तो इस पुश्तैनी कला से जुड़ना तक नहीं चाहती
Last Updated : Aug 22, 2019, 3:45 PM IST
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