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भूख का सफर: बच्चों का पेट भरने रोजाना शहर से गांव आता है ये पिता

साल 2020 ने मजदूरों के जीवन में एक गहरी छाप छोड़ी है. लॉकडाउन के कारण मजदूर इतने मजबूर हो गए हैं कि अपने परिवार का भरण पोषण भी नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे ही हालतों में छतरपुर शहर से सटे एक गांव का मजदूर रोजाना सफर तय अपने बच्चों का पेट पालने शहर आता है. पढ़ें भूख के सफर की कहानी.

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भूख का सफर
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Published : May 9, 2020, 10:11 AM IST

Updated : May 9, 2020, 5:30 PM IST

छतरपुर। महामारी से बचाव के लिए किए गए लॉकडाउन ने जहां गरीबों से रोजी-रोटी का जरिया छीन लिया है, वहीं अब उनके पास खाने के लिए अन्न नहीं बचा है. बेरोजगार गरीब अब दो वक्त के खाने के लिए दूसरों पर आश्रित हो गए हैं. उनके सामने अपने परिवार के भरण-पोषण की परेशानिया आ गई हैं. ऐसे समय में अपने बच्चों का पेट भरने छतरपुर का एक मजदूर, गांव से रोजाना सिर्फ इसलिए शहर आता है ताकि वो अपने बच्चों को दो वक्त की रोटी खिला सके.

भूख का सफर

शहर से सटा दुर्जनपुरा गांव से मजदूर देशराज रोजाना चिलचिलाती धूप में साइकिल पर अपने बच्चों को बैठाकर इसलिए लाता है, जिससे उसके बच्चे भूखे न रह जाएं.देशराज ने बताया कि वो लॉकडाउन के कारण पिछले कई दिनों से मजदूरी नहीं कर रहा है. जिस वजह से उसके घर में खाना नहीं है. उसे मालूम हुआ कि नगरपालिक में महज 5 रुपए में खाना मिलता है, इसलिए वो रोज ये सफर तय कर खाना खाने आता है.

ये भी पढ़ें- लॉकडाउन बना मजदूरों की परेशानी का सबब , बेबसी के अलावा हाथ में कुछ भी नहीं

बता दें, देशराज के पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वो 5 रुपए देकर खाना खरीद सके. ऐसे में उसे रास्ते में कभी कोई पैसे देता है, कभी कोई.

देशराज ने बताया कि वो एक मजदूर है और मकान बनाने का काम करता है लेकिन पिछले कई दिनों से उसका काम बंद है. परिवार में जो पैसे थे वो खर्च हो गए और अब हालात ये हैं कि लोगों से भीख मांगने की नौबत आ गई है.

ये भी पढ़ें- ETV भारत की खबर का असर, जल्द दूर होंगी दूरियां...

जिस समय देशराज अपनी आप बीती लोगों को सुना रहा था, पास ही खड़े ट्रैफिक पुलिस के एक सिपाही ने देशराज की सारी बात सुन ली और उसे खाने के लिए पैसे दिए, साथ ही उसे इस बात का आश्वासन भी दिया कि जब भी वो नगर पालिका खाना खाने के लिए जाएगा तो रोज उसे पैसे देगा.

ये भी पढ़ें- लॉकडाउन में पत्ता गोभी की फसल चौपट, किसानों को हुआ लाखों का नुकसान

लॉकडाउन के चलते कई मजदूर बेरोजगार हो गए हैं. बुंदेलखंड में ज्यादातर मजदूर काम करने के लिए दूसरे राज्यों में जाया करते हैं, लेकिन अब वहां से भी तमाम कामगार अपने अपने घर वापस आ गए हैं. आने वाले समय में सरकार के लिए ये एक बड़ी चुनौती होगी की इन मजदूरों को कैसे काम दिया जाए और कैसे इनके परिवार का भरण पोषण हो.

छतरपुर। महामारी से बचाव के लिए किए गए लॉकडाउन ने जहां गरीबों से रोजी-रोटी का जरिया छीन लिया है, वहीं अब उनके पास खाने के लिए अन्न नहीं बचा है. बेरोजगार गरीब अब दो वक्त के खाने के लिए दूसरों पर आश्रित हो गए हैं. उनके सामने अपने परिवार के भरण-पोषण की परेशानिया आ गई हैं. ऐसे समय में अपने बच्चों का पेट भरने छतरपुर का एक मजदूर, गांव से रोजाना सिर्फ इसलिए शहर आता है ताकि वो अपने बच्चों को दो वक्त की रोटी खिला सके.

भूख का सफर

शहर से सटा दुर्जनपुरा गांव से मजदूर देशराज रोजाना चिलचिलाती धूप में साइकिल पर अपने बच्चों को बैठाकर इसलिए लाता है, जिससे उसके बच्चे भूखे न रह जाएं.देशराज ने बताया कि वो लॉकडाउन के कारण पिछले कई दिनों से मजदूरी नहीं कर रहा है. जिस वजह से उसके घर में खाना नहीं है. उसे मालूम हुआ कि नगरपालिक में महज 5 रुपए में खाना मिलता है, इसलिए वो रोज ये सफर तय कर खाना खाने आता है.

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बता दें, देशराज के पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वो 5 रुपए देकर खाना खरीद सके. ऐसे में उसे रास्ते में कभी कोई पैसे देता है, कभी कोई.

देशराज ने बताया कि वो एक मजदूर है और मकान बनाने का काम करता है लेकिन पिछले कई दिनों से उसका काम बंद है. परिवार में जो पैसे थे वो खर्च हो गए और अब हालात ये हैं कि लोगों से भीख मांगने की नौबत आ गई है.

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जिस समय देशराज अपनी आप बीती लोगों को सुना रहा था, पास ही खड़े ट्रैफिक पुलिस के एक सिपाही ने देशराज की सारी बात सुन ली और उसे खाने के लिए पैसे दिए, साथ ही उसे इस बात का आश्वासन भी दिया कि जब भी वो नगर पालिका खाना खाने के लिए जाएगा तो रोज उसे पैसे देगा.

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लॉकडाउन के चलते कई मजदूर बेरोजगार हो गए हैं. बुंदेलखंड में ज्यादातर मजदूर काम करने के लिए दूसरे राज्यों में जाया करते हैं, लेकिन अब वहां से भी तमाम कामगार अपने अपने घर वापस आ गए हैं. आने वाले समय में सरकार के लिए ये एक बड़ी चुनौती होगी की इन मजदूरों को कैसे काम दिया जाए और कैसे इनके परिवार का भरण पोषण हो.

Last Updated : May 9, 2020, 5:30 PM IST
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