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छतरपुरः अस्पताल के पास बनी ये कैंटीन बनी चर्चा का विषय, 4 दिव्यांगों के सामने उनकी कमजोरी ने भी टेके घुटने

छतरपुर में चार दिव्यांगों ने मिलकर एक कैंटीन खोली, जहां ये दोस्त अपनी लगन और ईमानदारी से कैंटीन चला रहे हैं. खास बात यह है कि इस कैंटीन से होने वाली आमदनी से इन दिव्यांगों का घर खर्च चल रहा है.

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Published : Mar 28, 2019, 9:56 PM IST

दिव्यांगजन कैंटीन

छतरपुर। अस्पताल के पास बनी यह कैंटीन इन दिनों लोगों के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है. जो भी यहां से गुजरता है वह एक बार कैंटीन आता जरूर है. दरअसल हम बात कर रहे हैं छतरपुर के चार दिव्यांग दोस्तों की, जो मिलकर यह कैंटीन संचालित करते हैं. वहीं खास बात यह है कि इन लोगों ने इस कैंटीन का नाम दिव्यांगजन कैंटीन रखा है.


कहते है जब भगवान किसी से कुछ छीनता है तो उसे अगले ही पल कुछ न कुछ देता जरूर है. ऐसी ही कुछ कहानी है इन चार दिव्यांग दोस्तों की जो वैसे तो शारीरिक तौर पर कमजोर है. लेकिन इनके हौंसले इतने बुलंद हैं कि उनके आगे उनकी ये कमजोरी ने भी घुटने टेक दिए. यह चारों दिव्यांग दोस्त साथ में पढ़ते थे.

दिव्यांगजन कैंटीन


इन चारों ने अपने पैरों पर खड़े होना का सोचा, और एक छोटी सी गुमटी डाली. जो बाद में कैंटीन में तब्दील हो गई. इस कैंटीन को संचालित हुए दस साल हो गए हैं. दिव्यांगों का कहना है कि उनके परिवारों का खर्च इसी कैंटीन से चलता है. उनका कहना है कि आसपास के लोग भी हमारा सहयोग करते हैं.


उन्होंने कहा कि शुरुआत में कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था लेकिन अब सब कुछ सामान्य है. सब अलग-अलग जाति औक गांव के हैं. इसके बावजूद हम इस कैंटीन में परिवार की तरह रहते हैं. उन्होंने बताया कि कभी-कभी दोस्त भी हमारी मदद करने के लिए कैंटीन में आ जाते हैं. कैंटीन में आने वाले एक ग्राहम का कहना है कि कभी-कभी हम लोग इन लोगों की सामान उठाने व लाने में मदद कर देते हैं. सभी बहुत मेहनती और इमानदार हैं. यही कराण है कि इनकी दुकान तरक्की कर रही है.

छतरपुर। अस्पताल के पास बनी यह कैंटीन इन दिनों लोगों के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है. जो भी यहां से गुजरता है वह एक बार कैंटीन आता जरूर है. दरअसल हम बात कर रहे हैं छतरपुर के चार दिव्यांग दोस्तों की, जो मिलकर यह कैंटीन संचालित करते हैं. वहीं खास बात यह है कि इन लोगों ने इस कैंटीन का नाम दिव्यांगजन कैंटीन रखा है.


कहते है जब भगवान किसी से कुछ छीनता है तो उसे अगले ही पल कुछ न कुछ देता जरूर है. ऐसी ही कुछ कहानी है इन चार दिव्यांग दोस्तों की जो वैसे तो शारीरिक तौर पर कमजोर है. लेकिन इनके हौंसले इतने बुलंद हैं कि उनके आगे उनकी ये कमजोरी ने भी घुटने टेक दिए. यह चारों दिव्यांग दोस्त साथ में पढ़ते थे.

दिव्यांगजन कैंटीन


इन चारों ने अपने पैरों पर खड़े होना का सोचा, और एक छोटी सी गुमटी डाली. जो बाद में कैंटीन में तब्दील हो गई. इस कैंटीन को संचालित हुए दस साल हो गए हैं. दिव्यांगों का कहना है कि उनके परिवारों का खर्च इसी कैंटीन से चलता है. उनका कहना है कि आसपास के लोग भी हमारा सहयोग करते हैं.


उन्होंने कहा कि शुरुआत में कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था लेकिन अब सब कुछ सामान्य है. सब अलग-अलग जाति औक गांव के हैं. इसके बावजूद हम इस कैंटीन में परिवार की तरह रहते हैं. उन्होंने बताया कि कभी-कभी दोस्त भी हमारी मदद करने के लिए कैंटीन में आ जाते हैं. कैंटीन में आने वाले एक ग्राहम का कहना है कि कभी-कभी हम लोग इन लोगों की सामान उठाने व लाने में मदद कर देते हैं. सभी बहुत मेहनती और इमानदार हैं. यही कराण है कि इनकी दुकान तरक्की कर रही है.

Intro:छतरपुर जिले के अस्पताल के एक कोने में बनी एक कैंटीन इन दिनों चर्चा में बनी हुई है| आसपास से गुजरने वाले लोग एक बार इस कैंटीन में जरूर आते है दरअसल इस कैंटीन को कि 4 दिव्यांग जन मिलकर चलाते है और इस कैंटीन का नाम भी उन्होंने दिव्यांगजन कैंटीन रखा है!


Body:कहते है जब भगवान किसी से कुछ छीनता है तो उसे अगले ही पल कुछ न कुछ दे देता हूं ऐसी ही कुछ कहानी है इन चार दिव्यांग दोस्तों की जो वैसे तो शारीरिक तौर पर कमजोर है लेकिन हौसले इतने बुलंद की इनके आगे इनकी कमजोरी ने भी घुटने टेक दिए |

राममिलन बताते है कि वे और उनके तीन दोस्त कैलाश,उधयभान, और जगदीश एक दिव्यांग संस्थान में पढ़ते थे हम सभी अलग अलग जाती और अलग अलग गांव के थे साथ रहते हमारी गहरी दोस्ती हो गई और हमने बाहर आकर किसी के सामने हाथ फैलाने की वजह मिलकर कुछ करने की सोच बना ली|

हम सभी ने मिलकर पहले एक छोटी सी गुमठी डाली थी लेकिन धीरे धीरे इसे एक कैंटीन में तबदील कर दिया आज लगभग 10 वर्ष हो गए हम चारों दोस्तों का परिवार इस दुकान के खर्चे से चल जाता है आसपास के लोग भी हमारा सहयोग करते हैं शुरुआत में कुछ दिनों कठिनाइयों का सामना करना पड़ा लेकिन अब सब कुछ सामान्य है| हम सब अलग-अलग जाति एवं अलग-अलग गांव के हैं बावजूद इसके हम इस कैंटीन में परिवार की तरह रहते हैं कभी-कभी हमारे दोस्त भी हमारी मदद करने के लिए कैंटीन में आ जाते हैं|

बाइट_राममिलन दिव्यांग

राममिलन का दोस्त मनोज रैकवार बताता है कि कभी-कभी हम लोग इन लोगों की सामान उठाने एवं लाने में मदद कर देते हैं यह सभी बहुत मेहनती हैं और इमानदार हैं इसी वजह से आज इनकी दुकान तरक्की कर रही है|

बाइट_मनोज_दिव्यांग जानो के दोस्त


दिव्यांगजन कैंटीन पर आने वाले प्रमोद महाजन बताते हैं कि लगभग हर रोज में इस कैंटीन पर चाय पीने आता हूं यह सभी दिव्यांग बेहद मेहनती और लगन सीन है बड़ी ही इमानदारी के साथ यह अपनी दुकानदारी करते हैं सभी ग्राहकों से शालीनता से पेश आते हैं और उन्हें हमेशा खुश करने की कोशिश करते हैं|

बाइट_प्रमोद महाजन ग्राहक



Conclusion:दिव्यांग होने के बावजूद भी यह चारों दोस्त ना सिर्फ एक दूसरे के सहारा बने बल्कि जो कैंटीन इन्होंने खोली थी आज उस कैंटीन से इन चारों के परिवारों का भरण पोषण आसानी से हो जाता है दिव्यांग राम मिलन का कहना है कि रोज लगभग 500 से 1000 रुपए की बिक्री हो जाती है जिससे हमारा खर्च आसानी से चल जाता है यह दिव्यांग ना सिर्फ अन्य दिव्यांगों के लिए बल्कि उन लोगों के लिए भी मिशाल कायम कर रहे हैं जो हालातों में हंसकर लोगों के सामने हाथ फैलाने लगते हैं!
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