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मुझे घोड़ी चढ़ना है साहब... आजादी के 76 साल बाद छतरपुर के गांव में पहली बार घोड़ी चढ़ा दलित दूल्हा

छतरपुर के गांव में आजादी के 76 साल बाद पहली बार दलित दूल्हा घोड़ी चढ़ा, पुलिस की देखरेख में बारात शांतिपूर्ण रूप से निकाली गई.

dalit groom climbs mare first time after independence
मुझे घोड़ी चढ़ने दी जाए साहब
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Dec 10, 2023, 7:37 PM IST

आजादी के 76 साल बाद छतरपुर के गांव में पहली बार घोड़ी चढ़ा दलित दूल्हा

छतरपुर। जिले के टटम गांव में रहने वाले एक दलित दूल्हे ने घोड़ी पर चढ़ने से पहले पुलिस से सुरक्षा की मांग की, जिसके लिए उसने पुलिस को आवेदन लिखा और उसमें इस बात का जिक्र किया की आज तक जिस गांव में वह रह रहा है, उस गांव से कोई दलित घोड़ी पर चढ़कर गांव नही घूमा. इसके बाद पुलिस ने युवक को सुरक्षा दी और दलित दूल्हा घोड़ी पर चढ़ा और गांव में घूमा(राछ बुंदली परंपरा), राहत की बात है कि इस बीच किसी भी तरह की कोई घटना भी नही घटी.

मुझे घोड़ी चढ़ने दी जाए साहब: पूरा मामला महाराजपुर थाना क्षेत्र के टटम गांव का है, जहां रहने वाले सूरज अहिरवार की शादी खजुराहो की रहने वाली नीलम अहिरवार से 9 दिसंबर को होनी थी. इसको लेकर सूरज ने 4 दिसंबर को थाना महाराजपुर में एक आवेदन देते हुए इस बात की शंका जाहिर की थी कि "गांव में रहने कुछ अपर कास्ट के लोग मुझे घोड़ी पर चढ़ने से रोक सकते है, क्योंकि आज तक आजादी के बाद से इस गांव में कोई भी दलित घोड़ी पर नही चढ़ा है." मामले की गंभीरता देखते हुए पुलिस ने 9 दिसंबर की रात सूरज को पुलिस सुरक्षा मुहैया कराई और पुलिस की देख रेख में गांव में बारात निकाली गई. सूरज का कहना है कि "देश में सभी को संविधान ने मौलिक अधिकार दिए है और हमें पूरा अधिकार है कि हम स्वतंत्र भारत में हक अधिकार की बात कर सकते हैं."

आखिरकार टूट गई परंपरा: गांव में ही रहने वाले रोहन चौधरी ने जानकारी देते हुए बताया कि वह टटम गांव का ही रहने वाले हैं और उनके गांव में आजादी से लेकर आज तक कोई भी दलित दूल्हा घोड़ी पर नहीं चढ़ा. सूरज की शादी थी और सूरज ने हिम्मत दिखाई और प्रशासन से मदद मांगी, इसके बाद सूरज घोड़ी पर चढ़ा और गांव में घुमा. पुलिस प्रशासन का अच्छा सहयोग रहा, आजादी की बाद से चली आ रही है परंपरा आखिरकार सूरज के हिम्मत दिखाने के बाद टूट गई.

Must Read:

शांतिपूर्ण रूप से निकली बारात: दलितों के लिए काम करने वाले युवा नेता सतीश सिंह ने बताया कि उन्हें इस बात की जानकारी लगी थी कि एक दलित युवक ने घोड़ी चढ़ने के लिए पुलिस प्रशासन से मदद मांगी है. यही वजह थी कि हम सब लोग इस शादी में उपस्थित हुए मेरे साथ मेरे कई अन्य साथी भी हैं, पुलिस प्रशासन का बहुत अच्छा योगदान रहा किसी भी तरह की कोई घटना नहीं हुई. मामले पर महाराजपुर थाना इंचार्ज विदु विश्वास ने बताया कि "टटम गांव से सुराज नाम के युवक ने शादी समारोह में घोड़ी चढ़ने को लेकर शंका जाहिर करते हुए सुरक्षा की मांग की थी, पुलिस ने मौके पर पहुंच कर घुड़चड़ी की रस्म कराई. इस दौरान कहीं भी कोई विरोध नहीं हुआ."

आजादी के 76 साल बाद छतरपुर के गांव में पहली बार घोड़ी चढ़ा दलित दूल्हा

छतरपुर। जिले के टटम गांव में रहने वाले एक दलित दूल्हे ने घोड़ी पर चढ़ने से पहले पुलिस से सुरक्षा की मांग की, जिसके लिए उसने पुलिस को आवेदन लिखा और उसमें इस बात का जिक्र किया की आज तक जिस गांव में वह रह रहा है, उस गांव से कोई दलित घोड़ी पर चढ़कर गांव नही घूमा. इसके बाद पुलिस ने युवक को सुरक्षा दी और दलित दूल्हा घोड़ी पर चढ़ा और गांव में घूमा(राछ बुंदली परंपरा), राहत की बात है कि इस बीच किसी भी तरह की कोई घटना भी नही घटी.

मुझे घोड़ी चढ़ने दी जाए साहब: पूरा मामला महाराजपुर थाना क्षेत्र के टटम गांव का है, जहां रहने वाले सूरज अहिरवार की शादी खजुराहो की रहने वाली नीलम अहिरवार से 9 दिसंबर को होनी थी. इसको लेकर सूरज ने 4 दिसंबर को थाना महाराजपुर में एक आवेदन देते हुए इस बात की शंका जाहिर की थी कि "गांव में रहने कुछ अपर कास्ट के लोग मुझे घोड़ी पर चढ़ने से रोक सकते है, क्योंकि आज तक आजादी के बाद से इस गांव में कोई भी दलित घोड़ी पर नही चढ़ा है." मामले की गंभीरता देखते हुए पुलिस ने 9 दिसंबर की रात सूरज को पुलिस सुरक्षा मुहैया कराई और पुलिस की देख रेख में गांव में बारात निकाली गई. सूरज का कहना है कि "देश में सभी को संविधान ने मौलिक अधिकार दिए है और हमें पूरा अधिकार है कि हम स्वतंत्र भारत में हक अधिकार की बात कर सकते हैं."

आखिरकार टूट गई परंपरा: गांव में ही रहने वाले रोहन चौधरी ने जानकारी देते हुए बताया कि वह टटम गांव का ही रहने वाले हैं और उनके गांव में आजादी से लेकर आज तक कोई भी दलित दूल्हा घोड़ी पर नहीं चढ़ा. सूरज की शादी थी और सूरज ने हिम्मत दिखाई और प्रशासन से मदद मांगी, इसके बाद सूरज घोड़ी पर चढ़ा और गांव में घुमा. पुलिस प्रशासन का अच्छा सहयोग रहा, आजादी की बाद से चली आ रही है परंपरा आखिरकार सूरज के हिम्मत दिखाने के बाद टूट गई.

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