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घोषणापत्र पर चिंतन के लिए मतदाताओं को नहीं मिलता समय, क्या कहते हैं राजनीतिक दल

पिछले आम चुनाव 2014 में बीजेपी ने पहले चरण के मतदान के दिन ही अपना घोषणापत्र जारी किया था, जिस पर कांग्रेस ने चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज कराई थी, लेकिन कोई नियम-कायदा नहीं होने पर चुनाव आयोग ने कार्रवाई नहीं की थी. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद चुनाव आयोग ने मौजूदा आम चुनाव के पहले चरण के 48 घंटे पहले तक घोषणा पत्र जारी करने की बाध्यता तय की है.

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Published : Mar 26, 2019, 11:01 AM IST

भोपाल। देश में होने वाले लोकसभा चुनाव में सुधार की गुंजाइश बनी हुई है. पिछले कुछ सालों में सुधार तो किए गए, लेकिन अब भी कई ऐसे मामले हैं, जिनमें सुधार की गुंजाइश पर चर्चा शुरू हो चुकी है. ताजा मामला चुनाव में भाग लेने वाले राजनीतिक दलों द्वारा घोषणा पत्र पेश किए जाने का है.

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पिछले आम चुनाव 2014 में बीजेपी ने पहले चरण के मतदान के दिन ही अपना घोषणापत्र जारी किया था, जिस पर कांग्रेस ने चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज कराई थी, लेकिन कोई नियम-कायदा नहीं होने पर चुनाव आयोग ने कार्रवाई नहीं की थी. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद चुनाव आयोग ने मौजूदा आम चुनाव के पहले चरण के 48 घंटे पहले तक घोषणा पत्र जारी करने की बाध्यता तय की है.

घोषणा पत्र के लिए समय की बाध्यता तय किए जाने की मांग इस तर्क के आधार पर की जा रही है कि मतदाता को कम से कम इतना समय मिलना चाहिए कि वह राजनीतिक दलों के मेनिफेस्टो को पढ़ सके, उन पर विचार कर सके और जरूरत हो तो राजनीतिक दलों से सवाल कर सके.

जहां तक दुनिया के अन्य लोकतांत्रिक देशों की व्यवस्था की बात करें, तो अमेरिका में चुनाव के 2 महीने पहले घोषणापत्र जारी कर दिया जाता है और संबंधित राजनीतिक दल के नेता इस पर मतदाताओं के शंकाओं का समाधान भी करते हैं. भूटान जैसे देश जहां पर राजशाही व्यवस्था है, फिर भी कैबिनेट के चुनाव के लिए वहां भी 3 हफ्ते पहले घोषणा पत्र जारी करना होता है, लेकिन भारत में हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद पहली बार यह व्यवस्था की गई है कि राजनीतिक दल चुनाव के पहले चरण के 48 घंटे पहले तक घोषणा पत्र जारी कर सकते हैं.


कांग्रेस ने भी दी सहमति
हालांकि इस व्यवस्था में भी सुधार की गुंजाइश है, क्योंकि मतदाता के लिहाज से सिर्फ 2 दिन में घोषणा पत्र पर चिंतन-मनन करने का समय पर्याप्त नहीं है. इस व्यवस्था पर मध्यप्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष भूपेंद्र गुप्ता कहते हैं कि कांग्रेस पार्टी सैद्धांतिक रूप से इस बात को वचनबद्धता के रूप में स्वीकार करती है. राजनीतिक दल अगर सहमत हैं और वह चाहते हैं कि चुनाव सुधार की प्रक्रिया जारी रहे, तो चुनाव आयोग को स्वयं संज्ञान लेना चाहिए.


बीजेपी रखेगी अपना मत
मध्यप्रदेश भाजपा के प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल का कहना है कि चुनाव आयोग में सभी पंजीकृत और राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के साथ बैठकर अगर कोई प्रावधान बनता है, तो उसमें पार्टी अपने विचार रखेगी. उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि तमाम तरह के प्रावधान हैं, जो राजनीतिक दल से विचार-विमर्श करके ही बनते हैं और उसी के आधार पर तय होंगे. अमेरिका या यूरोप में क्या होता है, दोनों में बहुत अंतर है. भारत की जनता की सोच-समझ के आधार पर घोषणा पत्र तय किए जा सकते हैं और उनकी वैधानिकता चुनाव आयोग की दृष्टि से सुनिश्चित हो सकती है. चुनाव आयोग सभी दलों के साथ बैठकर कोई निर्णय करता है, तो बीजेपी उसमें अपना मत जरूर रखेगी.

भोपाल। देश में होने वाले लोकसभा चुनाव में सुधार की गुंजाइश बनी हुई है. पिछले कुछ सालों में सुधार तो किए गए, लेकिन अब भी कई ऐसे मामले हैं, जिनमें सुधार की गुंजाइश पर चर्चा शुरू हो चुकी है. ताजा मामला चुनाव में भाग लेने वाले राजनीतिक दलों द्वारा घोषणा पत्र पेश किए जाने का है.

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पिछले आम चुनाव 2014 में बीजेपी ने पहले चरण के मतदान के दिन ही अपना घोषणापत्र जारी किया था, जिस पर कांग्रेस ने चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज कराई थी, लेकिन कोई नियम-कायदा नहीं होने पर चुनाव आयोग ने कार्रवाई नहीं की थी. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद चुनाव आयोग ने मौजूदा आम चुनाव के पहले चरण के 48 घंटे पहले तक घोषणा पत्र जारी करने की बाध्यता तय की है.

घोषणा पत्र के लिए समय की बाध्यता तय किए जाने की मांग इस तर्क के आधार पर की जा रही है कि मतदाता को कम से कम इतना समय मिलना चाहिए कि वह राजनीतिक दलों के मेनिफेस्टो को पढ़ सके, उन पर विचार कर सके और जरूरत हो तो राजनीतिक दलों से सवाल कर सके.

जहां तक दुनिया के अन्य लोकतांत्रिक देशों की व्यवस्था की बात करें, तो अमेरिका में चुनाव के 2 महीने पहले घोषणापत्र जारी कर दिया जाता है और संबंधित राजनीतिक दल के नेता इस पर मतदाताओं के शंकाओं का समाधान भी करते हैं. भूटान जैसे देश जहां पर राजशाही व्यवस्था है, फिर भी कैबिनेट के चुनाव के लिए वहां भी 3 हफ्ते पहले घोषणा पत्र जारी करना होता है, लेकिन भारत में हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद पहली बार यह व्यवस्था की गई है कि राजनीतिक दल चुनाव के पहले चरण के 48 घंटे पहले तक घोषणा पत्र जारी कर सकते हैं.


कांग्रेस ने भी दी सहमति
हालांकि इस व्यवस्था में भी सुधार की गुंजाइश है, क्योंकि मतदाता के लिहाज से सिर्फ 2 दिन में घोषणा पत्र पर चिंतन-मनन करने का समय पर्याप्त नहीं है. इस व्यवस्था पर मध्यप्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष भूपेंद्र गुप्ता कहते हैं कि कांग्रेस पार्टी सैद्धांतिक रूप से इस बात को वचनबद्धता के रूप में स्वीकार करती है. राजनीतिक दल अगर सहमत हैं और वह चाहते हैं कि चुनाव सुधार की प्रक्रिया जारी रहे, तो चुनाव आयोग को स्वयं संज्ञान लेना चाहिए.


बीजेपी रखेगी अपना मत
मध्यप्रदेश भाजपा के प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल का कहना है कि चुनाव आयोग में सभी पंजीकृत और राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के साथ बैठकर अगर कोई प्रावधान बनता है, तो उसमें पार्टी अपने विचार रखेगी. उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि तमाम तरह के प्रावधान हैं, जो राजनीतिक दल से विचार-विमर्श करके ही बनते हैं और उसी के आधार पर तय होंगे. अमेरिका या यूरोप में क्या होता है, दोनों में बहुत अंतर है. भारत की जनता की सोच-समझ के आधार पर घोषणा पत्र तय किए जा सकते हैं और उनकी वैधानिकता चुनाव आयोग की दृष्टि से सुनिश्चित हो सकती है. चुनाव आयोग सभी दलों के साथ बैठकर कोई निर्णय करता है, तो बीजेपी उसमें अपना मत जरूर रखेगी.

Intro:भोपाल। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र कहे जाने वाले भारत में चुनाव सुधार की गुंजाइश लगातार बनी हुई है। हालांकि पिछले कुछ सालों में कई तरह के सुधार किए गए हैं, लेकिन लगातार ऐसे कई मामले देखने को मिलते हैं, जिनको लेकर चुनाव सुधार की गुंजाइश चर्चा शुरू हो जाती है। ताजा मामला चुनाव में भाग लेने वाले राजनीतिक दलों द्वारा घोषणा पत्र पेश किए जाने को लेकर है। दरअसल पिछले आम चुनाव 2014 भाजपा ने पहले चरण के मतदान के दिन ही अपना घोषणापत्र जारी किया था,इसको लेकर चुनाव आयोग मैं कांग्रेस ने शिकायत दर्ज कराई थी, लेकिन कोई नियम कायदा नहीं होने के कारण चुनाव आयोग ने कोई कार्यवाही नहीं की थी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद चुनाव आयोग ने मौजूदा आम चुनाव के पहले चरण के 48 घंटे पहले तक घोषणा पत्र जारी करने की बाध्यता तय की है।


Body:आम चुनाव के लिहाज से घोषणा पत्र जारी करने को लेकर अभी भी सुधार की गुंजाइश है। घोषणा पत्र के लिए समय बाध्यता किए जाने की मांग, इस तर्क के आधार पर मजबूत है कि चुनाव में जारी होने वाले घोषणा पत्र को लेकर मतदाता को कम से कम इतना समय मिलना चाहिए कि वह राजनीतिक दलों के घोषणापत्र को पढ़ सके और उन पर विचार कर सके और जरूरत हो तो राजनीतिक दलों से सवाल कर सके। जहां तक दुनिया के अन्य लोकतांत्रिक देशों की व्यवस्था की बात करें, तो अमेरिका में चुनाव की 2 महीने पहले घोषणा पत्र जारी कर दिया जाता है और संबंधित राजनीतिक दल के नेता घोषणा पत्र पर मतदाताओं के शंकाओं का समाधान भी करते हैं। भूटान जैसे देश जहां पर राजशाही व्यवस्था है, लेकिन कैबिनेट के चुनाव के लिए वहां भी 3 हफ्ते पहले घोषणा पत्र जारी करना होता है। लेकिन भारत में हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद पहली बार यह व्यवस्था की गई है कि राजनीतिक दल चुनाव के पहले चरण के 48 घंटे पहले तक घोषणा पत्र जारी कर सकते हैं। हालांकि इस व्यवस्था में भी सुधार की गुंजाइश है क्योंकि मतदाता के लिहाज से सिर्फ 2 दिन में घोषणा पत्र पर चिंतन मनन करने का समय पर्याप्त नहीं हैं।

इस व्यवस्था को लेकर मध्य प्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष भूपेंद्र गुप्ता कहते हैं कि कांग्रेस पार्टी सैद्धांतिक रूप से इस बात को वचनबद्धता के रूप में स्वीकार करती है। इसलिए कांग्रेस पार्टी ने विधानसभा चुनाव में इस बार वचन पत्र जारी किया था। हमने घोषणा पत्र जारी नहीं किया था, हमने जनता के साथ जो वादे किए हैं, वह एक वचन के रूप में किए थे और उसी हिसाब से हम काम कर रहे हैं। राजनीतिक दल अगर सहमत हैं और वह चाहते हैं कि चुनाव सुधार की प्रक्रिया जारी रहे,तो चुनाव आयोग को स्वयं संज्ञान लेना चाहिए कि कम से कम आज मतदाता को घोषणा पत्र पढ़ने का अवसर तो मिले। आज जो नकली पार्टियां हैं, जो धोखा और जुमलेबाजी करना चाहती हैं। उन्होंने तो घोषणापत्र का नाम ही बदल दिया है, घोषणा पत्र को पहले संकल्प पत्र कहते थे, अब दृष्टि पत्र कहने लगे हैं कोई चीज दृष्टि में आई तो ठीक, नहीं आई तो भी ठीक। यह जो रूप बदलने वाले लोग हैं, इनको चुनाव सुधार प्रक्रिया में शामिल होना चाहिए और एक वचन पत्र के रूप में उन्हें अपने कमिटमेंट के रूप में जनता के सामने आना चाहिए। निश्चित रूप से चुनाव आयोग इस पर फैसला करें और यह चुनाव आयोग की जिम्मेवारी है कि कम से कम जो किसी पार्टी का घोषणा पत्र सामने आता है, तो जनता को पढ़ने लायक तो समय मिले। जब तक घोषणा पत्र बंट नहीं पाता है और चुनाव चालू हो जाता है। चुनाव आयोग को इस पर अपना अभिमत रखना चाहिए, हमारी पार्टी तो वचन पत्र के रूप में और एक कमेंटमेंट के रूप में सामने आ चुकी है चाहे इसको हम अपनी तरफ से सुधार की शुरुआत की है और आगे भी हम इस पहल को जारी रखेंगे।


Conclusion:वहीं इस मामले में मध्य प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल का कहना है कि चुनाव आयोग में जो सभी राजनीतिक दल पंजीकृत और राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त है, अगर उनके साथ बैठकर कोई प्रावधान बनाता है, तो भाजपा उसमें अपने विचार रखेगी। मुझे लगता है कि तमाम तरह के प्रावधान है,जो राजनीतिक दल से विचार-विमर्श करके ही बनते हैं और उसी के आधार पर तय होंगे। अमेरिका या यूरोप में क्या होता है, दोनों में बहुत अंतर है। भारत की जनता की सोच समझ के आधार पर घोषणा पत्र तय किए जा सकते हैं और उनकी वैधानिकता चुनाव आयोग की दृष्टि से सुनिश्चित हो सकती है। इस देश में ऐसे भी दल है, जिन्होंने आज तक अपना घोषणा पत्र पेश नहीं किया और कुछ राज्यों में सरकार भी बना चुके हैं। इसका मतलब क्या है? जिनकी कोई नीति नहीं, जिनकी किसी प्रकार की स्पष्टता कार्यक्रम या योजना नहीं, जो इस देश में टुकड़े-टुकड़े गैंग को भी अभिव्यक्ति आजादी कहते हो,उसके बारे में क्या कहा जा सकता है। ऐसे तमाम प्रश्न है जो लगातार चुनाव में खड़े करके वोट बैंक की राजनीति करते हैं। सवाल उठते हैं और सवालों के उत्तर जनता देती है। जनता जैसे जैसे लोकतंत्र के प्रति और जागरूक होगी, लोकतंत्र को मजबूती मिलेगी और लोकतंत्र सशक्त होगा। ऐसे ही तमाम छोटे-मोटे प्रावधान आगे मिलकर लोकतंत्र को मजबूत करने का काम करेंगे। लेकिन चुनाव आयोग सभी दलों के साथ बैठकर कोई निर्णय करता है, तो भाजपा उसमें अपना मत जरूर रखेगी।

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