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MP: आदिवासी सीटों पर बदला-बदला सा है सियासी गणित, बीजेपी के विजय रथ पर विराम लगा पाएगी कांग्रेस?

जिन छह आदिवासी सीटों को जीतने के लिये बीजेपी-कांग्रेस ने खास रणनीति बनाई है, उनमें से एक कांग्रेस के पास है, जबकि बीजेपी का पांच सीटों पर कब्जा है. पांच सीटें बीजेपी के कब्जे में होने के बावजूद राजनीतिक जानकार मानते हैं कि इस बार माहौल उसके पक्ष में नहीं है.

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Published : Apr 1, 2019, 3:34 PM IST

कमलनाथ, राकेश सिंह, कांतिलाल भूरिया, फग्गन सिंह कुलस्ते

भोपाल। चुनावी सरगर्मी के बीच मध्यप्रदेश की कुछ सीटों पर स्सपेंस बरकरार है. भोपाल-इंदौर के अलावा रिजर्व सीटों पर भी राजनीतिक दल जीत के लिये खास रणनीति के तहत तैयारी में जुटे हैं. एमपी की छह ऐसी आदिवासी सीटें हैं, जिन पर इस बार रोचक मुकाबला होने वाला है.

जिन छह आदिवासी सीटों को जीतने के लिये बीजेपी-कांग्रेस ने खास रणनीति बनाई है, उनमें से एक कांग्रेस के पास है, जबकि बीजेपी का पांच सीटों पर कब्जा है. पांच सीटें बीजेपी के कब्जे में होने के बावजूद राजनीतिक जानकार मानते हैं कि इस बार माहौल उसके पक्ष में नहीं है. वहीं पंद्रह साल बाद प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुई कांग्रेस लोकसभा चुनाव में इन आदिवासी सीटों पर मजबूत मानी जा रही है.

रतलाम सांसद कांतिलाल भूरिया

माना जा रहा है कि 2018 के अंत में हुये विधानसभा चुनाव के बाद से इन सीटों के समीकरण बहुत बदल चुके हैं. इन सीटों में से कुछ पर प्रत्याशियों का ऐलान हो चुका है तो कुछ पर सस्पेंस है. शहडोल, मंडला, बैतूल, खरगोन, धार, रतलाम छहों आदिवासी बहुल सीटों पर लोकसभा चुनाव के मद्देनजर रोचक समीकरण हैं.

शहडोल लोकसभा सीट- शहडोल लोकसभा सीट फिलहाल बीजेपी के कब्जे में है. यहां से ज्ञान सिंह सांसद हैं, जिनका टिकट काट दिया गया है. उनकी जगह कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुईं हिमाद्री सिंह पर बीजेपी ने दांव खेला है. साल 2016 में हुये उपचुनाव में ज्ञान सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी हिमाद्री सिंह को हराया था. लेकिन, विधानसभा चुनाव के नतीजों पर नज़र डालें तो इस बार यहां रोचक मुकाबला हो सकता है. शहडोल लोकसभा सीट के तहत आने वाली आठ विधानसभा सीटों में से चार सीटें बीजेपी के खाते में हैं, जबकि चार पर कांग्रेस का कब्जा है. इसके साथ ही टिकट कटने से बागी हुए वर्तमान सांसद ज्ञान सिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान किया है जो कि तीन बार यहां से बीजेपी सांसद रह चुके हैं. हालांकि बीजेपी संगठन उन्हें मनाने की कोशिशों में लगा है. लेकिन, ज्ञान सिंह फैक्टर प्रभावी न हो तो बीजेपी प्रत्याशी हिमाद्री सिंह को कांग्रेस की अपेक्षा मजबूत माना जा रहा है.

मंडला लोकसभा सीट- पूर्व केंद्रीय मंत्री और आदिवासी नेता फग्गन सिंह कुलस्ते यहां से पांच बार सांसद चुने जा चुके हैं. इस बार भी पार्टी ने उनको मैदान में उतारा है, लेकिन इस बार उनकी राह आसान नजर नहीं आ रही है, क्योंकि विधानसभा चुनाव के परिणामों के लिहाज से मंडला लोकसभा सीट की 8 विधानसभा सीटों में से 6 पर कांग्रेस का कब्जा है, जबकि बीजेपी बमुश्किल दो सीटें ही जीत सकी थी. इसके साथ ही इलाके के लोगों में भी कुलस्ते के खिलाफ नाराजगी देखी जा रही है जो उनकी राह में रोड़ा बन सकती है.

बैतूल लोकसभा सीट- यहां से दो बार से सांसद चुनीं जा रहीं ज्योति धुर्वे का पार्टी ने टिकट काट दिया है. उनकी जगह बीजेपी ने दुर्गादास उईके पर दांव खेला है. धुर्वे, फर्जी जाति प्रमाण पत्र के कारण मुश्किलों में फंसी हुई हैं. उनकी टिकट कटने की वजहों में से फर्जी जाति प्रमाण पत्र का मामला भी माना जा रहा है, जबकि कांग्रेस ने यहां से रामू तेकाम को मौदान में उतारा है. यहां भी बीजेपी-कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला माना जा रहा है. विधानसभा चुनाव के परिणाम के हिसाब से बैतूल लोकसभा सीट की 8 विधानसभा सीटों में कांग्रेस और बीजेपी 4-4 सीटें हासिल कर बराबरी की स्थिति में है.

खरगोन लोकसभा सीट- इस सीट पर बीजेपी का दबदबा है. पिछली बार यहां से बीजेपी के सुभाष पटेल लोकसभा पहुंचे थे. उन्होंने कांग्रेस के रमेश पटेल को शिकस्त दी थी, लेकिन इस बार बीजेपी की राह यहां आसान नहीं है. खरगोन संसदीय सीट के अंतर्गत विधानसभा की आठ सीटें आती हैं, जिनमें से बीजेपी के पास केवल एक और एक सीट निर्दलीय के खाते में है, जबकि छह सीटों पर कांग्रेस विधायक हैं. हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के ये आंकड़े कांग्रेस को बीजेपी के मुकाबले 21 ही साबित कर रहे हैं.

धार लोकसभा सीट- धार लोकसभा सीट पर बीजेपी का लंबे समय से कब्जा है. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सावित्री ठाकुर ने कांग्रेस के उमंग सिंघार को हराया था. लेकिन, विधानसभा चुनाव के नतीजे यहां के मतदाताओं के रुझान में बदलाव दिखाने वाले महसूस हो रहे हैं. विधानसभा चुनाव में यहां की आठ सीटों में से छह पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, जबकि बीजेपी दो ही सीटें जीत सकी थी. हालांकि इस सीट पर अब तक दोनों दलों ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन यहां रोचक मुकाबले का अनुमान लगाया जा रहा है.

रतलाम लोकसभा सीट- प्रदेश की आदिवासी सीटों में से रतलाम ही एक ऐसी सीट है जिस पर कांग्रेस का कब्जा है. यहां साल 2014 में हुये लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जीत दर्ज की थी, लेकिन सांसद दिलीप सिंह भूरिया के निधन के बाद हुए उपचुनाव में यह सीट कांग्रेस के खाते में चली गयी. यहां से कांग्रेस के दिग्गज नेता कांतिलाल भूरिया सांसद हैं. उपचुनाव में बीजेपी ने दिलीप सिंह भूरिया की पत्नी निर्मला भूरिया को मैदान में उतारा था, जिन्हें हार का सामना करना पड़ा. विधानसभा चुनाव के परिणाम के लिहाज से देखें तो रतलाम संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाली आठ विधानसभा सीटों में से पांच पर कांग्रेस का कब्जा है, जबकि तीन सीटें बीजेपी के पास हैं. ऐसे में यहां कांग्रेस मजबूत स्थिति में दिख रही है.

कांग्रेस के झूठ बनाम बीजेपी के झूठ की लड़ाई
इस बार प्रदेश की 29 सीटों पर चार चरणों में मतदान होना है. इसके लिये दोनों दलों ने अपनी-अपनी रणनीति तैयार की है. जहां एक ओर बीजेपी प्रदेश की सभी 29 सीटें जीतने का दावा करती है तो वहीं पिछले चुनाव में महज दो सीटें जीतने वाली कांग्रेस बीजेपी से ज्यादा सीटें लाने की बात कह रही है. बीजेपी का कहना है कि जनता पीएम मोदी के साथ है क्योंकि कांग्रेस ने झूठे वचन देकर प्रदेश में सरकार बनाई है. इसके जवाब में कांग्रेस के दिग्गज आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया दावा करते हैं कि पूरे देश में कांग्रेस के पक्ष में माहौल है, क्योंकि पीएम मोदी ने जनता से जो झूठ बोला है, उसे जनता समझ चुकी है और जनता इस बार कांग्रेस के साथ है.

भोपाल। चुनावी सरगर्मी के बीच मध्यप्रदेश की कुछ सीटों पर स्सपेंस बरकरार है. भोपाल-इंदौर के अलावा रिजर्व सीटों पर भी राजनीतिक दल जीत के लिये खास रणनीति के तहत तैयारी में जुटे हैं. एमपी की छह ऐसी आदिवासी सीटें हैं, जिन पर इस बार रोचक मुकाबला होने वाला है.

जिन छह आदिवासी सीटों को जीतने के लिये बीजेपी-कांग्रेस ने खास रणनीति बनाई है, उनमें से एक कांग्रेस के पास है, जबकि बीजेपी का पांच सीटों पर कब्जा है. पांच सीटें बीजेपी के कब्जे में होने के बावजूद राजनीतिक जानकार मानते हैं कि इस बार माहौल उसके पक्ष में नहीं है. वहीं पंद्रह साल बाद प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुई कांग्रेस लोकसभा चुनाव में इन आदिवासी सीटों पर मजबूत मानी जा रही है.

रतलाम सांसद कांतिलाल भूरिया

माना जा रहा है कि 2018 के अंत में हुये विधानसभा चुनाव के बाद से इन सीटों के समीकरण बहुत बदल चुके हैं. इन सीटों में से कुछ पर प्रत्याशियों का ऐलान हो चुका है तो कुछ पर सस्पेंस है. शहडोल, मंडला, बैतूल, खरगोन, धार, रतलाम छहों आदिवासी बहुल सीटों पर लोकसभा चुनाव के मद्देनजर रोचक समीकरण हैं.

शहडोल लोकसभा सीट- शहडोल लोकसभा सीट फिलहाल बीजेपी के कब्जे में है. यहां से ज्ञान सिंह सांसद हैं, जिनका टिकट काट दिया गया है. उनकी जगह कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुईं हिमाद्री सिंह पर बीजेपी ने दांव खेला है. साल 2016 में हुये उपचुनाव में ज्ञान सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी हिमाद्री सिंह को हराया था. लेकिन, विधानसभा चुनाव के नतीजों पर नज़र डालें तो इस बार यहां रोचक मुकाबला हो सकता है. शहडोल लोकसभा सीट के तहत आने वाली आठ विधानसभा सीटों में से चार सीटें बीजेपी के खाते में हैं, जबकि चार पर कांग्रेस का कब्जा है. इसके साथ ही टिकट कटने से बागी हुए वर्तमान सांसद ज्ञान सिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान किया है जो कि तीन बार यहां से बीजेपी सांसद रह चुके हैं. हालांकि बीजेपी संगठन उन्हें मनाने की कोशिशों में लगा है. लेकिन, ज्ञान सिंह फैक्टर प्रभावी न हो तो बीजेपी प्रत्याशी हिमाद्री सिंह को कांग्रेस की अपेक्षा मजबूत माना जा रहा है.

मंडला लोकसभा सीट- पूर्व केंद्रीय मंत्री और आदिवासी नेता फग्गन सिंह कुलस्ते यहां से पांच बार सांसद चुने जा चुके हैं. इस बार भी पार्टी ने उनको मैदान में उतारा है, लेकिन इस बार उनकी राह आसान नजर नहीं आ रही है, क्योंकि विधानसभा चुनाव के परिणामों के लिहाज से मंडला लोकसभा सीट की 8 विधानसभा सीटों में से 6 पर कांग्रेस का कब्जा है, जबकि बीजेपी बमुश्किल दो सीटें ही जीत सकी थी. इसके साथ ही इलाके के लोगों में भी कुलस्ते के खिलाफ नाराजगी देखी जा रही है जो उनकी राह में रोड़ा बन सकती है.

बैतूल लोकसभा सीट- यहां से दो बार से सांसद चुनीं जा रहीं ज्योति धुर्वे का पार्टी ने टिकट काट दिया है. उनकी जगह बीजेपी ने दुर्गादास उईके पर दांव खेला है. धुर्वे, फर्जी जाति प्रमाण पत्र के कारण मुश्किलों में फंसी हुई हैं. उनकी टिकट कटने की वजहों में से फर्जी जाति प्रमाण पत्र का मामला भी माना जा रहा है, जबकि कांग्रेस ने यहां से रामू तेकाम को मौदान में उतारा है. यहां भी बीजेपी-कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला माना जा रहा है. विधानसभा चुनाव के परिणाम के हिसाब से बैतूल लोकसभा सीट की 8 विधानसभा सीटों में कांग्रेस और बीजेपी 4-4 सीटें हासिल कर बराबरी की स्थिति में है.

खरगोन लोकसभा सीट- इस सीट पर बीजेपी का दबदबा है. पिछली बार यहां से बीजेपी के सुभाष पटेल लोकसभा पहुंचे थे. उन्होंने कांग्रेस के रमेश पटेल को शिकस्त दी थी, लेकिन इस बार बीजेपी की राह यहां आसान नहीं है. खरगोन संसदीय सीट के अंतर्गत विधानसभा की आठ सीटें आती हैं, जिनमें से बीजेपी के पास केवल एक और एक सीट निर्दलीय के खाते में है, जबकि छह सीटों पर कांग्रेस विधायक हैं. हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के ये आंकड़े कांग्रेस को बीजेपी के मुकाबले 21 ही साबित कर रहे हैं.

धार लोकसभा सीट- धार लोकसभा सीट पर बीजेपी का लंबे समय से कब्जा है. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सावित्री ठाकुर ने कांग्रेस के उमंग सिंघार को हराया था. लेकिन, विधानसभा चुनाव के नतीजे यहां के मतदाताओं के रुझान में बदलाव दिखाने वाले महसूस हो रहे हैं. विधानसभा चुनाव में यहां की आठ सीटों में से छह पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, जबकि बीजेपी दो ही सीटें जीत सकी थी. हालांकि इस सीट पर अब तक दोनों दलों ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन यहां रोचक मुकाबले का अनुमान लगाया जा रहा है.

रतलाम लोकसभा सीट- प्रदेश की आदिवासी सीटों में से रतलाम ही एक ऐसी सीट है जिस पर कांग्रेस का कब्जा है. यहां साल 2014 में हुये लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जीत दर्ज की थी, लेकिन सांसद दिलीप सिंह भूरिया के निधन के बाद हुए उपचुनाव में यह सीट कांग्रेस के खाते में चली गयी. यहां से कांग्रेस के दिग्गज नेता कांतिलाल भूरिया सांसद हैं. उपचुनाव में बीजेपी ने दिलीप सिंह भूरिया की पत्नी निर्मला भूरिया को मैदान में उतारा था, जिन्हें हार का सामना करना पड़ा. विधानसभा चुनाव के परिणाम के लिहाज से देखें तो रतलाम संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाली आठ विधानसभा सीटों में से पांच पर कांग्रेस का कब्जा है, जबकि तीन सीटें बीजेपी के पास हैं. ऐसे में यहां कांग्रेस मजबूत स्थिति में दिख रही है.

कांग्रेस के झूठ बनाम बीजेपी के झूठ की लड़ाई
इस बार प्रदेश की 29 सीटों पर चार चरणों में मतदान होना है. इसके लिये दोनों दलों ने अपनी-अपनी रणनीति तैयार की है. जहां एक ओर बीजेपी प्रदेश की सभी 29 सीटें जीतने का दावा करती है तो वहीं पिछले चुनाव में महज दो सीटें जीतने वाली कांग्रेस बीजेपी से ज्यादा सीटें लाने की बात कह रही है. बीजेपी का कहना है कि जनता पीएम मोदी के साथ है क्योंकि कांग्रेस ने झूठे वचन देकर प्रदेश में सरकार बनाई है. इसके जवाब में कांग्रेस के दिग्गज आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया दावा करते हैं कि पूरे देश में कांग्रेस के पक्ष में माहौल है, क्योंकि पीएम मोदी ने जनता से जो झूठ बोला है, उसे जनता समझ चुकी है और जनता इस बार कांग्रेस के साथ है.

Intro:भोपाल। मध्यप्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में चार चरणों में चुनाव होना है। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए करारी हार का सामना करना पड़ा था। मध्य प्रदेश की कुल 29 सीटों में से आम चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ 2 सीटें हासिल हुई थी। बाद में रतलाम झाबुआ सीट पर हुए उपचुनाव में कांतिलाल भूरिया की जीत के बाद कांग्रेस की एक सीट और बढ़ गई थी।मध्यप्रदेश में अनुसूचित जनजाति के लिए 6 सीटें आरक्षित हैं। मौजूदा स्थिति में देखें तो इन 6 सीटों में सिर्फ एक सीट पर कांग्रेस का कब्जा है, बाकी 5 सीटों पर बीजेपी के सांसद हैं।लेकिन इस बार लोकसभा चुनाव में समीकरण बीजेपी के पक्ष में कमजोर नजर आ रहे हैं। मध्य प्रदेश में सरकार बना ले बनाने के बाद कांग्रेस ज्यादा से ज्यादा अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों पर जीत हासिल करने की कोशिश में जुटी हुई है।


Body:मध्यप्रदेश की आदिवासी लोकसभा सीटों पर नजर डालें, तो शहडोल संसदीय सीट से बीजेपी के ज्ञानसिंह सांसद हैं, लेकिन इस चुनाव में उनका टिकट काट दिया गया है। जबकि शहडोल सीट पर हुए लोकसभा उपचुनाव में पार्टी के दबाव में ज्ञान सिंह बेमन से चुनाव लड़े थे। मंडला से फग्गन सिंह कुलस्ते सांसद हैं, उन्हें इस बार भी टिकट मिला है, लेकिन कांग्रेस से उन्हें कड़ी चुनौती मिलने के आसार हैं। बैतूल से ज्योति धुर्वे सांसद हैं, लेकिन फर्जी जाति प्रमाण पत्र के मामले मामले में आरोपी पाए जाने के बाद उन्हें टिकट मिलना मुश्किल है. खरगोन से बीजेपी के सुभाष पटेल सांसद हैं और धार से सावित्री ठाकुर बीजेपी सांसद हैं। एकमात्र सीट रतलाम से कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया सांसद हैं। इस बार प्रदेश की 6 आदिवासी सीटों पर भाजपा का 2014 जैसा वर्चस्व मुश्किल नजर आ रहा है। इस बार समीकरण भाजपा के पक्ष में इतने मजबूत नजर नहीं आ रहे हैं। ना तो 2014 जैसा मोदी लहर का असर दिखाई दे रहा है। ना ही कांग्रेस के खिलाफ 2014 जैसा माहौल दिखाई दे रहा है और सबसे बड़ी बात यह है कि मध्यप्रदेश में 15 साल बाद कांग्रेस की सरकार बन गई है,जिससे बहुत कुछ चुनावी समीकरण कांग्रेस के पक्ष में नजर आ रहे हैं। प्रदेश की सभी 6 अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों पर मौजूदा समीकरण पर एक नजर डाले तो ये स्थिति नजर आती है।

शहडोल संसदीय सीट - शहडोल संसदीय सीट की बात करें, 2016 में उपचुनाव के हालात बने थे, अपनी सीट को बचाने के लिए बीजेपी ने शिवराज सरकार के मंत्री ज्ञान सिंह को मैदान में उतारा था। कांग्रेस की हिमाद्री सिंह से कड़ी टक्कर के बाद बीजेपी अपनी सीट बचाने में कामयाब तो रही थी। लेकिन मौजूदा चुनाव में बीजेपी ने जहां ज्ञान सिंह का टिकट काट लिया है, वहीं हिमाद्री सिंह अब बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़ रही हैं। नाराज ज्ञान सिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है।पिछले चुनाव में गोंगपा भी कांग्रेस की हार का कारण बनी थी। हाल ही में हुए विधानसभा उपचुनाव के परिणाम के आधार पर आकलन करें तो शहडोल संसदीय सीट की 8 विधानसभा सीटों में कांग्रेस और बीजेपी चार चार सीटों पर बराबरी पर है। लेकिन ज्ञान सिंह की नाराजगी और गोगपा की कमजोरी कांग्रेस के पक्ष में समीकरण बना रही है।

मंडला लोकसभा सीट - पूर्व केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते सीट से 5 बार सांसद चुने जा चुके हैं। लेकिन इस बार उनकी राह मुश्किल नजर आ रही है। पार्टी ने एक बार फिर उन पर भरोसा जताया है, लेकिन विधानसभा चुनाव के परिणामों के लिहाज से मंडला लोकसभा सीट की 8 विधानसभा सीटों में 6 पर कांग्रेस का कब्जा है और भाजपा मुश्किल से 2 सीटों पर जीत हासिल कर सकी है। वहीं इलाके में मौजूदा सांसद के खिलाफ नाराजगी भी नजर आ रही है।

बैतूल संसदीय सीट - यहां की मौजूदा बीजेपी सांसद ज्योति धुर्वे फर्जी जाति प्रमाण पत्र के कारण मुश्किलों में फंसी हुई हैं ऐसे में पार्टी नए चेहरे की तलाश में है विधानसभा चुनाव के परिणाम के हिसाब से बैतूल लोकसभा सीट की 8 विधानसभा सीटों में कांग्रेस और बीजेपी 44 सीटें हासिल कर बराबरी की स्थिति में है कांग्रेस ने यहां बीजेपी पर आदिवासी सीट पर गैर आदिवासी को टिकट देकर दो बार आदिवासियों का हक मारने का मुद्दा बना रही है।

खरगोन संसदीय सीट- खरगोन सीट पर बीजेपी के लिए काफी मुश्किलें नजर आ रही हैं। विधानसभा चुनाव परिणाम के हिसाब से देखें, तो इस लोकसभा सीट के 8 विधानसभा सीट में एक पर बीजेपी, एक पर निर्दलीय और 6 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है। पिछली बार सुभाष पटेल यहां से चुनाव जीते थे,लेकिन इस बार बीजेपी के लिए काफी कठिन मुकाबला हो सकता है।

धार संसदीय सीट- वैसे तो इस सीट पर बीजेपी का लंबे समय से कब्जा है। लेकिन विधानसभा चुनाव के लिहाज से देखें, तो इस संसदीय सीट की 8 विधानसभा सीटों मैं से 6 सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा कर लिया है। धार संसदीय सीट पर बीजेपी के लिए गुटबाजी भी परेशानी का सबब बन सकती है।

रतलाम संसदीय सीट- रतलाम संसदीय सीट पर 2014 में बीजेपी ने जीत हासिल की थी। लेकिन सांसद दिलीप सिंह भूरिया के निधन के बाद यह सीट कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया उपचुनाव में जीत गए थे।उपचुनाव में बीजेपी ने दिलीप सिंह भूरिया की पत्नी निर्मला भूरिया को मैदान में उतारा था। लेकिन उन्हें सहानुभूति लहर हासिल नहीं हुई थी। विधानसभा चुनाव के परिणाम के लिहाज से देखें, तो रतलाम संसदीय सीट के 8 विधानसभा में से 5 विधानसभा में कांग्रेस और 3 विधानसभा पर बीजेपी का कब्जा है।



Conclusion:मध्यप्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष आदिवासी नेता सांसद कांतिलाल भूरिया कहते हैं कि कांग्रेस के पक्ष में अब तो पूरे देश में माहौल है और प्रदेश में आपने देखा ही है कि 15 साल से यहां पर भ्रष्टाचार लूट खसोट और आतंक का माहौल था और यहां के मतदाताओं ने उसे समाप्त कर कमलनाथ की सरकार बनाई है। उसी तरह पूरे देश में नरेंद्र मोदी ने झूठ पर झूठ बोलते हुए कि अच्छे दिन लाएंगे, लेकिन नोटबंदी का अलग तरीका लेकर आए, जीएसटी लगा दी और कई तरह की परेशानियां खड़ी की। पूरा देश परिवर्तन चाहता है। निश्चित है कि बड़े स्तर पर परिवर्तन होगा और केंद्र में कांग्रेस की सरकार स्थापित होगी और राहुल गांधी के नेतृत्व में सरकार बनेगी।

वहीं हिमाद्री सिंह जैसे आदिवासी नेताओं के कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में जाने के सवाल पर कांतिलाल भूरिया का कहना है कि कांग्रेस बहुत बड़ी पार्टी है, समुद्र से एक बाल्टी पानी निकालने पर असर नहीं पड़ता है, वह कांग्रेस पार्टी है। नेता तो आते जाते रहते हैं, जो स्थाई नेता है, वह पार्टी का स्थायित्व है। उनकी दम पर ही चुनाव लड़ा जाता है। मतदाता कांग्रेस पार्टी के साथ है और हमें जीत का पूरा विश्वास है।
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