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इस वजह से मध्यप्रदेश में मात खा सकती है कांग्रेस, बीजेपी की बल्ले-बल्ले!

मध्यप्रदेश में 15 साल बाद सत्ता में वापसी करने वाली कांग्रेस लोकसभा चुनाव में रणनीतिक तौर पर फेल रही. पार्टी ने कमलनाथ को मुख्यमंत्री के अलावा प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी दे रखी है, जिससे वह पूरी तरह से समय नहीं दे पाये, जबकि कांग्रेसी क्षत्रप अपने ही गढ़ तक सीमित रह गये और पार्टी जमीनी तौर पर कमजोर होती गयी. जिसकी तस्दीक एग्जिट पोल के रुझान कर रहे हैं.

कांग्रेसी नेता (फाइल फोटो)
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Published : May 21, 2019, 5:55 PM IST

भोपाल। 17वीं लोकसभा के लिए 19 मई को सातवें चरण के मतदान के साथ ही लोकसभा चुनाव संपन्न हो गया, ज्यादातर एग्जिट पोल में बीजेपी नीत एनडीए की बल्ले-बल्ले है, लेकिन विधानसभा चुनाव में जमीन पर मजबूत पकड़ बनाने वाली कांग्रेस मात्र छह महीने के अंदर ही हवा हो गई. या कहें कि विधानसभा चुनाव के मुकाबले कांग्रेस लोकसभा चुनाव में रणनीतिक तौर पर फेल रही.

ज्यादातर एग्जिट पोल में मध्यप्रदेश में बीजेपी के 2014 का प्रदर्शन दोहराने की उम्मीद है, जबकि कांग्रेस को मामूली बढ़त मिलने का अनुमान लगाया जा रहा है. ऊपर से एग्जिट पोल के रुझान सामने आते ही बीजेपी कमलनाथ सरकार को अस्थिर करने में लग गयी है, नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने विशेष सत्र बुलाने की मांग की तो नरेंद्र सिंह तोमर ने कांग्रेसी विधायकों के बीजेपी के संपर्क में होने का दावा किया.

कांग्रेस कई मायनों में फेल रही, पहला तो ये कि दिग्विजय सिंह को भोपाल से चुनाव लड़ाकर उन्हें भोपाल तक ही सीमित कर दिया. वहीं गुना सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया व पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह अपने ही गढ़ में सीमित रह गये. हालांकि मुख्यमंत्री के साथ-साथ प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे कमलनाथ ज्यादातर प्रत्याशियों के पक्ष में जनसभाएं की, लेकिन अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता.

दूसरी बात ये कि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी किसी और को सौंपती तो उसके पास सिर्फ संगठन का काम ही रहता. कमलनाथ के पास सरकार की जिम्मेदारी के साथ-साथ प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपना कांग्रेस को भारी पड़ सकता है. इसके अलावा प्रदेश के प्रभारी दीपक बावरिया का स्वास्थ्य खराब होने के चलते वह लगभग लापता ही रहे.

इसके अलावा कांग्रेस सरकार अपनी नीतियों का प्रचार-प्रसार करने में भी चूक गयी. यानि ओर से छोर तक किसी भी योजना की जानकारी नहीं पहुंच पायी. इसकी वजह से भी कांग्रेस जमीन पर कमजोर होती गयी. हालांकि, लोकसभा चुनाव के नतीजे जब 29 मई को आयेंगे, तभी ये स्थिति स्पष्ट होगी कि किस पार्टी ने कहां चूक की और किस पार्टी की कौन सी रणनीति उसका सितारा बुलंद करने में मददगार साबित हुई.

भोपाल। 17वीं लोकसभा के लिए 19 मई को सातवें चरण के मतदान के साथ ही लोकसभा चुनाव संपन्न हो गया, ज्यादातर एग्जिट पोल में बीजेपी नीत एनडीए की बल्ले-बल्ले है, लेकिन विधानसभा चुनाव में जमीन पर मजबूत पकड़ बनाने वाली कांग्रेस मात्र छह महीने के अंदर ही हवा हो गई. या कहें कि विधानसभा चुनाव के मुकाबले कांग्रेस लोकसभा चुनाव में रणनीतिक तौर पर फेल रही.

ज्यादातर एग्जिट पोल में मध्यप्रदेश में बीजेपी के 2014 का प्रदर्शन दोहराने की उम्मीद है, जबकि कांग्रेस को मामूली बढ़त मिलने का अनुमान लगाया जा रहा है. ऊपर से एग्जिट पोल के रुझान सामने आते ही बीजेपी कमलनाथ सरकार को अस्थिर करने में लग गयी है, नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने विशेष सत्र बुलाने की मांग की तो नरेंद्र सिंह तोमर ने कांग्रेसी विधायकों के बीजेपी के संपर्क में होने का दावा किया.

कांग्रेस कई मायनों में फेल रही, पहला तो ये कि दिग्विजय सिंह को भोपाल से चुनाव लड़ाकर उन्हें भोपाल तक ही सीमित कर दिया. वहीं गुना सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया व पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह अपने ही गढ़ में सीमित रह गये. हालांकि मुख्यमंत्री के साथ-साथ प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे कमलनाथ ज्यादातर प्रत्याशियों के पक्ष में जनसभाएं की, लेकिन अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता.

दूसरी बात ये कि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी किसी और को सौंपती तो उसके पास सिर्फ संगठन का काम ही रहता. कमलनाथ के पास सरकार की जिम्मेदारी के साथ-साथ प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपना कांग्रेस को भारी पड़ सकता है. इसके अलावा प्रदेश के प्रभारी दीपक बावरिया का स्वास्थ्य खराब होने के चलते वह लगभग लापता ही रहे.

इसके अलावा कांग्रेस सरकार अपनी नीतियों का प्रचार-प्रसार करने में भी चूक गयी. यानि ओर से छोर तक किसी भी योजना की जानकारी नहीं पहुंच पायी. इसकी वजह से भी कांग्रेस जमीन पर कमजोर होती गयी. हालांकि, लोकसभा चुनाव के नतीजे जब 29 मई को आयेंगे, तभी ये स्थिति स्पष्ट होगी कि किस पार्टी ने कहां चूक की और किस पार्टी की कौन सी रणनीति उसका सितारा बुलंद करने में मददगार साबित हुई.

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भोपाल। 17वीं लोकसभा के लिए 19 मई को सातवें चरण के मतदान के साथ ही लोकसभा चुनाव संपन्न हो गया, ज्यादातर एग्जिट पोल में बीजेपी नीत एनडीए की बल्ले-बल्ले है, लेकिन विधानसभा चुनाव में जमीन पर मजबूत पकड़ बनाने वाली कांग्रेस मात्र छह महीने के अंदर ही हवा हो गई. या कहें कि विधानसभा चुनाव के मुकाबले कांग्रेस लोकसभा चुनाव में रणनीतिक तौर पर फेल रही.

ज्यादातर एग्जिट पोल में मध्यप्रदेश में बीजेपी के 2014 का प्रदर्शन दोहराने की उम्मीद है, जबकि कांग्रेस को मामूली बढ़त मिलने का अनुमान लगाया जा रहा है. ऊपर से एग्जिट पोल के रुझान सामने आते ही बीजेपी कमलनाथ सरकार को अस्थिर करने में लग गयी है, नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने विशेष सत्र बुलाने की मांग की तो नरेंद्र सिंह तोमर ने कांग्रेसी विधायकों के बीजेपी के संपर्क में होने का दावा किया.

कांग्रेस कई मायनों में फेल रही, पहला तो ये कि दिग्विजय सिंह को भोपाल से चुनाव लड़ाकर उन्हें भोपाल तक ही सीमित कर दिया. वहीं गुना सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया व पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह अपने ही गढ़ में सीमित रह गये. हालांकि मुख्यमंत्री के साथ-साथ प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे कमलनाथ ज्यादातर प्रत्याशियों के पक्ष में जनसभाएं की, लेकिन अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता.

दूसरी बात ये कि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी किसी और को सौंपती तो उसके पास सिर्फ संगठन का काम ही रहता. कमलनाथ के पास सरकार की जिम्मेदारी के साथ-साथ प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपना कांग्रेस को भारी पड़ सकता है. इसके अलावा प्रदेश के प्रभारी दीपक बावरिया का स्वास्थ्य खराब होने के चलते वह लगभग लापता ही रहे.

इसके अलावा कांग्रेस सरकार अपनी नीतियों का प्रचार-प्रसार करने में भी चूक गयी. यानि ओर से छोर तक किसी भी योजना की जानकारी नहीं पहुंच पायी. इसकी वजह से भी कांग्रेस जमीन पर कमजोर होती गयी.


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