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कांग्रेस की कसौटी पर राजनीति का 'चाणक्य', बीजेपी का मजबूत गढ़ भेदने की है चुनौती - formerchiefminister

मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले दिग्विजय सिंह को इस बार कांग्रेस ने बीजेपी का मजबूत गढ़ भेदने की जिम्मेदारी सौंपी है. जहां उनके सियासी कौशल की असली परीक्षा होनी है क्योंकि उनके सामने हैं उनकी चिर प्रतिद्वंदी मालेगांव ब्लास्ट की आरोपी प्रज्ञा सिंह ठाकुर. यही वजह है कि ये सीट देश की हाई प्रोफाइल सीटों में शामिल हो गयी है.

दिग्विजय सिंह, कांग्रेस प्रत्याशी भोपाल
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Published : May 11, 2019, 12:47 AM IST

भोपाल। दस साल तक सियासी गलियारे में गुम रहने के बाद भी उसकी चमक कम नहीं हुई, सियासी हवा का रुख एक झटके में पलटने का माद्दा आज भी वैसे ही है, जैसे पहले हुआ करता था, नाम है दिग्विजय सिंह. मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भोपाल से बीजेपी की प्रज्ञा ठाकुर के खिलाफ मैदान में हैं. जहां मुकाबला एक मझे हुए नेता का एक नौसिखिया राजनीतिज्ञ से है.

दिग्विजय सिंह की प्रोफाइल

दिग्विजय सिंह को यूं ही कांग्रेस की राजनीति का चाणक्य नहीं कहा जाता. दस साल तक चुनाव नहीं लड़ने के बावजूद मध्यप्रदेश की राजनीति में उनके कद और रसूख में कोई कमी नहीं आयी, जबकि आज भी वे राजनीति को अपनी उंगलियों पर नचाने का माद्दा रखते हैं. दिग्विजय को उनके दौर के उन चुनिंदा नेताओं में गिना जाता है, जो केवल अपनी रणनीति के दम पर सियासी धारा बदल सकते हैं. यही वजह है कि मध्यप्रदेश की छोटी सी नगरपालिका राघौगढ़ के चेयरमैन पद से शुरूआत करने के बावजूद वे सूबे के सबसे बड़े आसन तक पहुंचे और दस साल तक उस पद पर बने भी रहे.

  • दिग्विजय सिंह 30 साल की उम्र में पहली बार विधानसभा में दस्तक दी
  • 33 साल की उम्र में अर्जुन सिंह की सरकार में सबसे युवा मंत्री बने
  • दस साल तक लोकसभा में राजगढ़ का प्रतिनिधित्व किया
  • 1993 से 2003 तक लगातार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे
  • इस बार प्रदेश की सबसे हाइप्रोफाइल सीट भोपाल से चुनाव मैदान में हैं.

2003 का चुनाव हारने के बाद अपनी बात पर अडिग रहते हुए दिग्विजय सिंह ने दस साल तक चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन प्रदेश और देश की राजनीति को प्रभावित करते रहे. 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले जब लोग सोच रहे थे कि दस साल तक चुनावी राजनीति से दूर रहने के बाद दिग्विजय सिंह ने सियासी ताकत खो दी होगी, तब उन्होंने कथित गैर-राजनीतिक नर्मदा यात्रा के जरिये राजनीति के अपने पुराने आयाम दोबारा साध लिए. सक्रिय राजनीति से अपने वनवास के बाद नर्मदा यात्रा के जरिये उन्होंने ऐसी वापसी की कि चुनावी साल में शांत बैठी कांग्रेस अचानक अटैकिंग मोड में आ गई और 15 साल बाद बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने में कामयाब भी हो गई.

अब दौर बदल चुका है, प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है और दिग्विजय सिंह को पार्टी ने बीजेपी का मजबूत गढ़ भेदने की जिम्मेदारी सौंपी है. दिग्विजय सिंह यदि कांग्रेस की कसौटी पर खरा उतरते हैं तो एक बार फिर उनके सियासी कौशल और राजनीतिक निपुणता की मिसाल दी जाएगी, नहीं तो उम्र के साथ-साथ उनकी सियासत भी बुढ़ापे की शिकार हो जाएगी.

भोपाल। दस साल तक सियासी गलियारे में गुम रहने के बाद भी उसकी चमक कम नहीं हुई, सियासी हवा का रुख एक झटके में पलटने का माद्दा आज भी वैसे ही है, जैसे पहले हुआ करता था, नाम है दिग्विजय सिंह. मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भोपाल से बीजेपी की प्रज्ञा ठाकुर के खिलाफ मैदान में हैं. जहां मुकाबला एक मझे हुए नेता का एक नौसिखिया राजनीतिज्ञ से है.

दिग्विजय सिंह की प्रोफाइल

दिग्विजय सिंह को यूं ही कांग्रेस की राजनीति का चाणक्य नहीं कहा जाता. दस साल तक चुनाव नहीं लड़ने के बावजूद मध्यप्रदेश की राजनीति में उनके कद और रसूख में कोई कमी नहीं आयी, जबकि आज भी वे राजनीति को अपनी उंगलियों पर नचाने का माद्दा रखते हैं. दिग्विजय को उनके दौर के उन चुनिंदा नेताओं में गिना जाता है, जो केवल अपनी रणनीति के दम पर सियासी धारा बदल सकते हैं. यही वजह है कि मध्यप्रदेश की छोटी सी नगरपालिका राघौगढ़ के चेयरमैन पद से शुरूआत करने के बावजूद वे सूबे के सबसे बड़े आसन तक पहुंचे और दस साल तक उस पद पर बने भी रहे.

  • दिग्विजय सिंह 30 साल की उम्र में पहली बार विधानसभा में दस्तक दी
  • 33 साल की उम्र में अर्जुन सिंह की सरकार में सबसे युवा मंत्री बने
  • दस साल तक लोकसभा में राजगढ़ का प्रतिनिधित्व किया
  • 1993 से 2003 तक लगातार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे
  • इस बार प्रदेश की सबसे हाइप्रोफाइल सीट भोपाल से चुनाव मैदान में हैं.

2003 का चुनाव हारने के बाद अपनी बात पर अडिग रहते हुए दिग्विजय सिंह ने दस साल तक चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन प्रदेश और देश की राजनीति को प्रभावित करते रहे. 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले जब लोग सोच रहे थे कि दस साल तक चुनावी राजनीति से दूर रहने के बाद दिग्विजय सिंह ने सियासी ताकत खो दी होगी, तब उन्होंने कथित गैर-राजनीतिक नर्मदा यात्रा के जरिये राजनीति के अपने पुराने आयाम दोबारा साध लिए. सक्रिय राजनीति से अपने वनवास के बाद नर्मदा यात्रा के जरिये उन्होंने ऐसी वापसी की कि चुनावी साल में शांत बैठी कांग्रेस अचानक अटैकिंग मोड में आ गई और 15 साल बाद बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने में कामयाब भी हो गई.

अब दौर बदल चुका है, प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है और दिग्विजय सिंह को पार्टी ने बीजेपी का मजबूत गढ़ भेदने की जिम्मेदारी सौंपी है. दिग्विजय सिंह यदि कांग्रेस की कसौटी पर खरा उतरते हैं तो एक बार फिर उनके सियासी कौशल और राजनीतिक निपुणता की मिसाल दी जाएगी, नहीं तो उम्र के साथ-साथ उनकी सियासत भी बुढ़ापे की शिकार हो जाएगी.

Intro:भोपाल- मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भोपाल लोकसभा सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं दिग्विजय सिंह 10 साल मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं दिग्विजय सिंह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के महासचिव रहे हैं दिग्विजय सिंह अपने बयानों से हमेशा सुर्खियों में रहते हैं पिछले कुछ सालों में दिग्विजय सिंह को कई विवादों में देखा गया है।


Body:दिग्विजय सिंह का जन्म भारत की आजादी के पहले का है दिग्विजय सिंह का जन्म ब्रिटिश भारत के होलकर स्टेट के इंदौर शहर में हुआ था जिसे वर्तमान में मध्य प्रदेश कहा जाता है दिग्विजय सिंह की मां एक ग्रहणी महिला थी जबकि इनके पिता बाल भद्र सिंह ग्वालियर राज्य के तहत आने वाले राघोगढ़ के राजा थे इसे वर्तमान में मध्य प्रदेश के गुना जिले के नाम से जाना जाता है दिग्विजय सिंह के पिता राघोगढ़ निर्वाचन क्षेत्र के पूर्व जनसंघ पार्टी के सांसद भी थे लिहाज़ा दिग्विजय सिंह बचपन से ही राजनीति से जुड़े परिवार से संबंध रखते हैं।

दिग्विजय सिंह की प्रारंभिक शिक्षा इंदौर से डेली कॉलेज से पूरी हुई इसके बाद दिग्विजय सिंह ने अपने ग्रेजुएशन के लिये इंदौर के ही श्री गोविंदराम सेक्सरिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी एंड साइंस कॉलेज में प्रवेश लिया जहां से उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की पढ़ाई पूरी की इसके चलते दिग्विजय सिंह पेशे से एक इंजीनियर भी हैं।

दिग्विजय सिंह के व्यक्तिगत के जीवन की बात करें तो दिग्विजय सिंह ने दो शादियां की है इनकी पहली पत्नी आशा कुमारी की जिनके साथ दिग्विजय ने साल 1969 में शादी की थी लेकिन साल 2013 में आशा कुमारी की कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के चलते मृत्यु हो गई इसके बाद दिग्विजय सिंह अगस्त 2015 में अमृता राय के साथ विवाह किया जो एक टीवी एंकर है।

दिग्विजय सिंह के राजनीतिक कैरियर की बात करें तो साल 1969 में ही दिग्विजय की शादी भी हुई थी और इसी साल दिग्विजय ने राजनीति में कदम रखा था दिग्विजय राघोगढ़ नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष बने और इस पद पर सन 1971 तक बने रहे इस बीच साल 1970 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी में एक सदस्य के रूप में शामिल हुए हालांकि दिग्विजय सिंह के पिता भारतीय जनसंघ पार्टी से संबंध रखते थे लेकिन दिग्विजय ने जनसेना जोड़ते हुए कांग्रेस पार्टी से जुड़ने का फैसला किया इसके बाद साल 1977 में मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव में खड़े हुए और इस चुनाव में उनकी जीत हुई और दिग्विजय गुना जिले में राघोगढ़ से विधायक चुने गए इस कार्यकाल के बाद साल 1980 में मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में उसी क्षेत्र के विधायक के रूप में उन्हें फिर से निर्वाचित किया गया इस दौरान उन्होंने कैबिनेट मंत्री के रूप में कृषि पशुपालन मत्स्य पालन क्षेत्र के विकास के लिए कार्य किया।

साल 1984 में हुए लोकसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह राजगढ़ निर्वाचन क्षेत्र के सांसद के रूप में चुने गए राजगढ़ और गुनाह जैसे क्षेत्रों में सांसद बनने के बाद उन्हें पूरे मध्य प्रदेश की कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनने का मौका मिला और साल 1985 से 1988 तक उन्होंने इस पद को संभाला साल 1989 मैं होने वाले चुनाव में दुर्भाग्यवश उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र को खो दिया लेकिन साल 1991 में उन्हें फिर से सत्ता के लिए चुन लिया गया था।

साल 1993 में दिग्विजय सिंह फिर से विधानसभा चुनाव के लिए निर्वाचित हुए और उन्हें इस बार जीत हासिल कर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभालने का मौका मिला मुख्यमंत्री के पद पर आने के बाद उन्होंने सांसद के पद से इस्तीफा दे दिया और फिर उन्हें उपचुनाव में छ्चोड़ा निर्वाचन क्षेत्र से विधायक चुना गया इसके बाद साल 1998 में हुए विधानसभा चुनाव में फिर से दिग्विजय सिंह को जीत हासिल हुई और उन्हें दोबारा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभालने का मौका मिला मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए साल 2003 तक दिग्विजय सिंह ने काम किया लेकिन अगले चुनाव में हार के बाद 10 वर्षों तक किसी भी चुनाव में नहीं खड़े हुए।

साल 2013 में दिग्विजय सिंह को ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के महासचिव चुना गया महासचिव के रूप में उन्होंने ओडीशा बिहार उत्तर प्रदेश असम कर्नाटक आंध्र प्रदेश तेलंगाना और गोवा राज्यों के लिए पार्टी का काम संभाला उन्हें महाराष्ट्र कर्नाटक गुजरात और राजस्थान के विधानसभा चुनाव में भी अभियानों को मैनेज करने की जिम्मेदारी दी गई थी इसी साल दिग्विजय 6 सदस्य समिति का हिस्सा बने जिन्हें साल 2014 में होने वाले चुनाव की तैयारी में ऑर्डिनेट करने के लिए राहुल गांधी की अध्यक्षता में नियुक्त किया गया था वह कांग्रेस पार्टी के अधिकांश समितियों पर भी कार्य करते रहे हैं।


Conclusion:दिग्विजय सिंह से जुड़े कई विवाद भी रहे हैं साल 1998 में मुलताई किसान नरसंहार के लिए भी दिग्विजय सिंह को दोषी ठहराया गया था इसके अलावा आतंकी ओसामा बिन लादेन के के शरीर को दफन करने पर आलोचना की थी जिसके चलते हैं दिग्विजय को विवादों में आना पड़ा था इसके अलावा साल 2013 में बौद्ध गया बमबारी के बाद दिग्विजय सिंह ने ट्वीट किया था स्पीड में उन्होंने भाजपा को इस बमबारी के साथ जोड़ते हुए आलोचना की थी इस विवादित बयान के चलते उन्हें कई विवादों का सामना करना पड़ा था इसके अलावा जब बीजेपी सरकार के वित्त मंत्री राघव जी को यौन शोषण के आरोप में गिरफ्तार किया गया था उस समय भी ट्वीट कर दिग्विजय सिंह विवादों से घिर गए थे बटला हाउस मुठभेड़ में भी बयानबाजी कर दिग्विजय सिंह विवादों में आए थे इसके अलावा महिला सांसद के बारे में टिप्पणी और मुस्लिम युवाओं को कट्टर मखनी बनाने का विवाद भी दिग्विजय सिंह झेल चुके हैं।
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