भोपाल। दस साल तक सियासी गलियारे में गुम रहने के बाद भी उसकी चमक कम नहीं हुई, सियासी हवा का रुख एक झटके में पलटने का माद्दा आज भी वैसे ही है, जैसे पहले हुआ करता था, नाम है दिग्विजय सिंह. मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भोपाल से बीजेपी की प्रज्ञा ठाकुर के खिलाफ मैदान में हैं. जहां मुकाबला एक मझे हुए नेता का एक नौसिखिया राजनीतिज्ञ से है.
दिग्विजय सिंह को यूं ही कांग्रेस की राजनीति का चाणक्य नहीं कहा जाता. दस साल तक चुनाव नहीं लड़ने के बावजूद मध्यप्रदेश की राजनीति में उनके कद और रसूख में कोई कमी नहीं आयी, जबकि आज भी वे राजनीति को अपनी उंगलियों पर नचाने का माद्दा रखते हैं. दिग्विजय को उनके दौर के उन चुनिंदा नेताओं में गिना जाता है, जो केवल अपनी रणनीति के दम पर सियासी धारा बदल सकते हैं. यही वजह है कि मध्यप्रदेश की छोटी सी नगरपालिका राघौगढ़ के चेयरमैन पद से शुरूआत करने के बावजूद वे सूबे के सबसे बड़े आसन तक पहुंचे और दस साल तक उस पद पर बने भी रहे.
- दिग्विजय सिंह 30 साल की उम्र में पहली बार विधानसभा में दस्तक दी
- 33 साल की उम्र में अर्जुन सिंह की सरकार में सबसे युवा मंत्री बने
- दस साल तक लोकसभा में राजगढ़ का प्रतिनिधित्व किया
- 1993 से 2003 तक लगातार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे
- इस बार प्रदेश की सबसे हाइप्रोफाइल सीट भोपाल से चुनाव मैदान में हैं.
2003 का चुनाव हारने के बाद अपनी बात पर अडिग रहते हुए दिग्विजय सिंह ने दस साल तक चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन प्रदेश और देश की राजनीति को प्रभावित करते रहे. 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले जब लोग सोच रहे थे कि दस साल तक चुनावी राजनीति से दूर रहने के बाद दिग्विजय सिंह ने सियासी ताकत खो दी होगी, तब उन्होंने कथित गैर-राजनीतिक नर्मदा यात्रा के जरिये राजनीति के अपने पुराने आयाम दोबारा साध लिए. सक्रिय राजनीति से अपने वनवास के बाद नर्मदा यात्रा के जरिये उन्होंने ऐसी वापसी की कि चुनावी साल में शांत बैठी कांग्रेस अचानक अटैकिंग मोड में आ गई और 15 साल बाद बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने में कामयाब भी हो गई.
अब दौर बदल चुका है, प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है और दिग्विजय सिंह को पार्टी ने बीजेपी का मजबूत गढ़ भेदने की जिम्मेदारी सौंपी है. दिग्विजय सिंह यदि कांग्रेस की कसौटी पर खरा उतरते हैं तो एक बार फिर उनके सियासी कौशल और राजनीतिक निपुणता की मिसाल दी जाएगी, नहीं तो उम्र के साथ-साथ उनकी सियासत भी बुढ़ापे की शिकार हो जाएगी.