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दो दिवसीय राष्ट्रीय उर्दू सम्मेलन का आयोजन, देशभर के मशहूर शायरों ने लिया हिस्सा - राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद नई दिल्ली

बुरहानपुर जिले के एक निजी कॉलेज में उर्दू-फ़ारसी विभाग ने राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद नई दिल्ली के तत्वावधान में दो दिवसीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी, 'उर्दू का हिस्सा' विषय पर संगोष्ठी आयोजित की.

National Urdu Conference held for two days
दो दिवसीय राष्ट्रीय उर्दू सम्मेलन का आयोजन
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Published : Feb 10, 2020, 9:38 PM IST

Updated : Feb 10, 2020, 11:11 PM IST

बुरहानपुर। जिले के एक निजी कॉलेज में उर्दू-फारसी विभाग ने राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद नई दिल्ली के तत्वाधान में दो दिवसीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी, उर्दू शेर-ओ-अदक की तरक्की में गैर मुस्लिम आशिकाने उर्दू का हिस्सा विषय पर संगोष्ठी आयोजित की. जिसमें 8 राज्यों से 35 शोधकर्ता शामिल हुए.

दो दिवसीय राष्ट्रीय उर्दू सम्मेलन का आयोजन

संगोष्ठी में युवाओं ने कहा कि उर्दू किसी धर्म विशेष की नहीं बल्कि पूरे हिंदुस्तान की जुबान है, कुछ लोगों को इस बात का भ्रम है कि ये धर्म विशेष की भाषा है, ऐसे लोगों को हकीकत से रूबरू कराने के लिए ही आज ऐसे आयोजनों की जरूरत है. उल्लेखनीय है कि उर्दू के समर्थन में गैर मुस्लिमों का योगदान विषय को लेकर आयोजित इस कार्यशाला में देश के 8 राज्यों के करीब 35 शायर विद्वान शामिल हुए, जिन्होंने अपने विचार रखे.

शायरों का कहना है कि बीते 400 सालों का इतिहास गवाह है कि उर्दू भाषा के समर्थन में गैर मुस्लिम शायरों, साहित्यकारों का योगदान मुस्लिम साहित्यकारों से कम नहीं रहा, मुगल काल में उर्दू की पहली गजल भी एक हिंदू शायर ने लिखी थी.

बुरहानपुर। जिले के एक निजी कॉलेज में उर्दू-फारसी विभाग ने राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद नई दिल्ली के तत्वाधान में दो दिवसीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी, उर्दू शेर-ओ-अदक की तरक्की में गैर मुस्लिम आशिकाने उर्दू का हिस्सा विषय पर संगोष्ठी आयोजित की. जिसमें 8 राज्यों से 35 शोधकर्ता शामिल हुए.

दो दिवसीय राष्ट्रीय उर्दू सम्मेलन का आयोजन

संगोष्ठी में युवाओं ने कहा कि उर्दू किसी धर्म विशेष की नहीं बल्कि पूरे हिंदुस्तान की जुबान है, कुछ लोगों को इस बात का भ्रम है कि ये धर्म विशेष की भाषा है, ऐसे लोगों को हकीकत से रूबरू कराने के लिए ही आज ऐसे आयोजनों की जरूरत है. उल्लेखनीय है कि उर्दू के समर्थन में गैर मुस्लिमों का योगदान विषय को लेकर आयोजित इस कार्यशाला में देश के 8 राज्यों के करीब 35 शायर विद्वान शामिल हुए, जिन्होंने अपने विचार रखे.

शायरों का कहना है कि बीते 400 सालों का इतिहास गवाह है कि उर्दू भाषा के समर्थन में गैर मुस्लिम शायरों, साहित्यकारों का योगदान मुस्लिम साहित्यकारों से कम नहीं रहा, मुगल काल में उर्दू की पहली गजल भी एक हिंदू शायर ने लिखी थी.

Intro:बुरहानपुर। जिलें के एक निजी कॉलेज में उर्दू-फ़ारसी विभाग द्वारा राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद नई दिल्ली के तत्वावधान में दो दिवसीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी, उर्दू शेर-ओ-अदक की तरक्की में गैर मुस्लिम आशिकाने उर्दू का हिस्सा विषय पर आयोजित की गई, जिसमें 8 राज्यों से 35 शोधकर्ता शामिल हुए, जिन्होंने कहा कि उर्दू जुबान की पैदाइश भी हिंदोस्तान में हुई है और यह पली-बढ़ी और आज खड़ी भी यही है, बीते 400 सालों का इतिहास गवाह है कि उर्दू भाषा के समर्थन में गैर मुस्लिम शायरों, साहित्यकारों का योगदान मुस्लिम साहित्यकारों से कमतर नहीं रहा, मुगल काल में उर्दू की पहली ग़ज़ल भी एक हिंदू शायर ने लिखी थी।


Body:लिहाजा उर्दू किसी धर्म विशेष की नहीं बल्कि पूरे हिंदोस्तान की जुबान है, कुछ लोगों को इस बात का भ्रम है कि यह धर्म विशेष की भाषा है, ऐसे लोगों को हकीकत से रूबरू कराने के लिए ही आज ऐसे आयोजनों की जरूरत पेश आ रही है, उल्लेखनीय है कि उर्दू के समर्थन में गैर मुस्लिमों का योगदान विषय को लेकर आयोजित इस कार्यशाला में देश के 8 राज्यों के करीब 35 शायर विद्वान आदि शामिल हुए, जिन्होंने अपने विचार रखे।


Conclusion:बाईट 01:- एस एच शकिल, प्रोफेसर।
बाईट 02:- उर्दू साहित्यकार।

सोनू सोहले, ईटीवी भारत, बुरहानपुर....
Last Updated : Feb 10, 2020, 11:11 PM IST
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