बुरहानपुर। मध्यप्रदेश के ऐतिहासिक शहरों में शुमार बुरहानपुर का अस्तित्व सदियों नहीं बल्कि युगों पुराना है. शहर के संत महात्माओं द्वारा किए जा रहे दावों और प्रचलित किवदंतियों की मानें तो बुरहानपुर का वजूद त्रेतायुग में भी था. बुरहानपुर उन पावन जगहों में भी शामिल है, जहां वनवास के दौरान राजाराम के पवित्र कदम पड़े.
मान्यता है कि प्रभुराम जब वनवास पर निकले, तो उन्होंने यहां काफी वक्त बिताया, जिस समय श्रीराम यहां आए थे, उस वक्त बुरहानपुर को ब्रह्मपुर नाम से जाना जाता था. श्रीराम ने यहां से निकलने वाली ताप्ती और उतावदी नदी के संगम स्थल पर अपने पिता दशरथ का श्राद्ध भी किया, जिसे अब रामघाट के नाम से जाना जाता है.
खर और दूषण नाम के राक्षसों का वध
श्रीराम ने ताप्ती नदी के पावन तट एक मंदिर भी बनाया, जिसकी पहचान राम झरोखा मंदिर से होती है. मंदिर के पुजारी के मुताबिक यह क्षेत्र तब दंडकारण्य वन का हिस्सा था, जहां खर और दूषण नाम के दो रक्षसों का आतंक था. श्रीराम जब चित्रकूट से होते हुए यहां पहुंचे, तो उन्होंने खर-दूषण का अंत कर ऋषि-मुनियों को उनके अत्याचार से मुक्ति भी दिलाई. इसके बाद प्रभुराम ताप्ती नदी को पार कर पंचवटी के लिए रवाना हुए. इसका जिक्र रामायण सहित दूसरे धर्म ग्रंथों में भी मिलता है.
सीता गुफा भी है मौजूद
भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण बुरहानपुर से करीब 15 किलोमीटर दूर बलड़ी गांव के पास भी ठहरे थे. यह जगह आज भी सीता गुफा के नाम से प्रसिद्ध है. यहां 12 माह अविरल झरना बहता है. इसी तरह नेपानगर के भीड़ गांव में भी भगवान राम के आने के प्रमाण मिलते हैं, जहां आज भी सीता नहानी मौजूद है. मान्यता है कि वनवास के दौरान मां सीता को स्नान के लिए सरोवर नहीं मिला, तो लक्ष्मणजी ने अपने बाण से यहां पर एक कुंड बना दिया. इस कुंड में अब सालभर अविरल धारा बहती रहती है.
स्थानों को लेकर लोगों में आस्था
रामायण और महाभारत काल के साक्षी रहे इस शहर में मौजूद श्रीराम के स्थानों को लेकर लोगों में आस्था है. राम झरोखा मंदिर में भगवान राम की मनमोहक मूर्ति भी मौजूद है. उनके साथ भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के अलावा भक्त हनुमान भी मौजूद हैं.