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किसकी सरकार: कौन बनेगा नेपानगर का नायक, इस सीट पर कोरकू समाज का रहा है दबदबा

नेपानगर विधानसभा सीट का ये इतिहास रहा है कि जो भी इस सीट से विधायक जीता है उसकी सरकार अधिकांश सत्ता में रही है. 1977 से लेकर 2003 तक इस सीट के सामान्य होने के कारण बाहरी उम्मीदवार विधायक बने, बल्कि इस दौरान उन्हें मंत्री बनने का भी अवसर मिला. पढ़िए क्या कहता है इस सीट का इतिहास, क्या नेपानगर सीट तय करेगी सरकार का भविष्य पढ़िए पूरी खबर...

nepanagar assembly seat
नेपानगर सीट पर संग्राम
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Published : Oct 25, 2020, 4:01 PM IST

बुरहानपुर। नेपानगर विधानसभा सीट इस बार उपचुनाव की उन खास सीटों में शामिल है. जिन पर सभी का ध्यान केन्द्रित है और इसकी वजह है इस सीट पर बन रहे समीकरण और मुद्दे. नेपानगर विधानसभा सीट पर विधायक सुमित्रा देवी कास्डेकर के इस्तीफा देने के बाद उपचुनाव होने हैं.

कौन बनेगा नेपानगर का नायक

इस बार भी सुमित्रा देवी कास्डेकर चुनावी मैदान में होंगी लेकिन अंतर होगा तो पार्टी का. 2018 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचने वाली सुमित्रा देवी कास्डेकर ने मध्यप्रदेश में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद कांग्रेस का हाथ छोड़कर बीते दिनों बीजेपी का दामन थाम लिया था और विधायक के पद से इस्तीफा दे दिया था. जिसके कारण अब नेपानगर में एक बार फिर उपचुनाव होंगे. उपचुनाव में सुमित्रा देवी बीजेपी के टिकट पर मैदान में है जबकि कांग्रेस ने रामकिशन पटेल को मैदान में उतारा.

इस सीट पर कोरकू समाज का रहा है दबदबा

नेपानगर सीट का सियासी मिजाज टटोले तो नेपानगर अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट है. ये सीट खंडवा लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है. दरअसल 1977 से लेकर 2003 तक इस सीट के सामान्य होने के कारण बाहरी उम्मीदवार विधायक बने, बल्कि इस दौरान उन्हें मंत्री बनने का भी अवसर मिला. 2008 में जैसे ही नेपानगर विधानसभा सीट एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हुई तो झंडा किसी भी पार्टी का रहा हो लेकिन डंडा स्थानीय आदिवासी कोरकू समाज का ही रहा है. यानी कांग्रेस बीजेपी दोनों ही लगातार कोरकू समाज के व्यक्ति को ही टिकट देते आ रहे हैं. 2003 से लेकर 2018 तक इस सीट पर बीजेपी का कब्जा रहा. इस बार भी दोनों दलों ने कोरकू उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारे हैं, कांग्रेस ने रामकिशन पटेल तो बीजेपी ने सुमित्रादेवी कास्डेकर पर दांव खेला है.

ये भी पढ़ें: नेपानगर में लगा 'भैया जी का अड्डा', दल-बदल के दलदल में खिलेगा कमल या पंजे की पकड़ होगी मजबूत

2008 से इस सीट पर ST वर्ग का कब्जा

नेपानगर विधानसभा सीट काफी रोचक है. 1977 में वजूद में आई यह सीट 2003 तक सामान्य वर्ग के लिए रही. आदिवासी बाहुल्य आबादी वाली सीट में तब तक सीट सामान्य रही तब तक बाहरी उम्मीदवारों ने विधायक बनकर यहां का प्रतिनिधित्व किया और उसकी किस्मत में मंत्री पद का सुख रहा, चाहे सरकार बीजेपी की हो या फिर कांग्रेस की. इस सीट से विधायक बने बीजेपी के बृज मोहन मिश्र वन मंत्री से लेकर विधानसभा अध्यक्ष रहे.

वहीं कांग्रेस के तनवंत सिंह कीर भी कई बार चुनाव जीते और मंत्री बने रहे, यह क्रम बीजेपी से जीती अर्चना चिटनीस के साथ भी रहा. 2003 में यहां से विधायक बनी अर्चना चिटनिस को भी प्रदेश में पहली बार मंत्री बनने का मौका मिला. लेकिन 2008 में नेपानगर सीट एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हो गई, तब से इस सीट से कोई भी विधायक मंत्री तो नहीं बना लेकिन सबसे अधिक वोट वाले कोरकू समाज का व्यक्ति ही इस सीट से विधायक बना, यानी झंडा किसी भी पार्टी का हो डंडा कोरकू समाज का ही रहा और कांग्रेस बीजेपी दोनों ही कोरकू समाज के व्यक्ति को ही टिकट देते चले आ रहे हैं.

2018 में बीजेपी को इस सीट से मिली थी हार

इधर, बीजेपी कांग्रेस दोनों ही दल इस बात से साफ इंकार कर रहे हैं कि नेपानगर सीट में कोरकू समाज के लोगों के वोटों की संख्या अधिक होने के चलते उन्हीं समाज के व्यक्ति को उम्मीदवार बनाया जाता है. जब नेपानगर सीट एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हुई तब आदिवासी नेता राजेंद्र दादू काफी सक्रिय और क्षेत्र के लोगों की पसंद थे. जिसके बाद भी उन्हें दोबारा टिकट दिया गया, लेकिन उनकी आकस्मिक मृत्यु होने पर सहानुभूति के लिए उनकी पुत्री मंजू दादू को टिकट दिया जो विजयी हुई. 2018 के विधानसभा आम चुनाव में बीजेपी के वरिष्ठ भिलाला समाज के नेता गन सिंह पटेल के लगातार टिकट मांगने के बाद टिकट नहीं मिलने के चलते बागी होकर शिवसेना से चुनाव लड़ा और बीजेपी की हार का कारण बने, बीजेपी के मंजू दादू महज 1264 मतों से कांग्रेस से पराजित हो गई.


इस उपचुनाव में भी कांग्रेस बीजेपी दोनों ही दलों से प्रत्याशी आमने-सामने हैं. कांग्रेस ने अपने पुराने कोरकू चेहरे रामकिशन पटेल को उम्मीदवार बनाकर उन्हें चुनाव मैदान में उतारा है, और बीजेपी ने सुमित्रादेवी पर ही अपना दांव खेला है, लिहाजा यह साफ दावा किया जा सकता है, कि इस बार भी कांग्रेस बीजेपी में ही कड़ी टक्कर है. यानी नेपानगर सीट से झंडा किसी का भी हो लेकिन डंडा कोरकू समाज का ही होगा.

बुरहानपुर। नेपानगर विधानसभा सीट इस बार उपचुनाव की उन खास सीटों में शामिल है. जिन पर सभी का ध्यान केन्द्रित है और इसकी वजह है इस सीट पर बन रहे समीकरण और मुद्दे. नेपानगर विधानसभा सीट पर विधायक सुमित्रा देवी कास्डेकर के इस्तीफा देने के बाद उपचुनाव होने हैं.

कौन बनेगा नेपानगर का नायक

इस बार भी सुमित्रा देवी कास्डेकर चुनावी मैदान में होंगी लेकिन अंतर होगा तो पार्टी का. 2018 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचने वाली सुमित्रा देवी कास्डेकर ने मध्यप्रदेश में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद कांग्रेस का हाथ छोड़कर बीते दिनों बीजेपी का दामन थाम लिया था और विधायक के पद से इस्तीफा दे दिया था. जिसके कारण अब नेपानगर में एक बार फिर उपचुनाव होंगे. उपचुनाव में सुमित्रा देवी बीजेपी के टिकट पर मैदान में है जबकि कांग्रेस ने रामकिशन पटेल को मैदान में उतारा.

इस सीट पर कोरकू समाज का रहा है दबदबा

नेपानगर सीट का सियासी मिजाज टटोले तो नेपानगर अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट है. ये सीट खंडवा लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है. दरअसल 1977 से लेकर 2003 तक इस सीट के सामान्य होने के कारण बाहरी उम्मीदवार विधायक बने, बल्कि इस दौरान उन्हें मंत्री बनने का भी अवसर मिला. 2008 में जैसे ही नेपानगर विधानसभा सीट एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हुई तो झंडा किसी भी पार्टी का रहा हो लेकिन डंडा स्थानीय आदिवासी कोरकू समाज का ही रहा है. यानी कांग्रेस बीजेपी दोनों ही लगातार कोरकू समाज के व्यक्ति को ही टिकट देते आ रहे हैं. 2003 से लेकर 2018 तक इस सीट पर बीजेपी का कब्जा रहा. इस बार भी दोनों दलों ने कोरकू उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारे हैं, कांग्रेस ने रामकिशन पटेल तो बीजेपी ने सुमित्रादेवी कास्डेकर पर दांव खेला है.

ये भी पढ़ें: नेपानगर में लगा 'भैया जी का अड्डा', दल-बदल के दलदल में खिलेगा कमल या पंजे की पकड़ होगी मजबूत

2008 से इस सीट पर ST वर्ग का कब्जा

नेपानगर विधानसभा सीट काफी रोचक है. 1977 में वजूद में आई यह सीट 2003 तक सामान्य वर्ग के लिए रही. आदिवासी बाहुल्य आबादी वाली सीट में तब तक सीट सामान्य रही तब तक बाहरी उम्मीदवारों ने विधायक बनकर यहां का प्रतिनिधित्व किया और उसकी किस्मत में मंत्री पद का सुख रहा, चाहे सरकार बीजेपी की हो या फिर कांग्रेस की. इस सीट से विधायक बने बीजेपी के बृज मोहन मिश्र वन मंत्री से लेकर विधानसभा अध्यक्ष रहे.

वहीं कांग्रेस के तनवंत सिंह कीर भी कई बार चुनाव जीते और मंत्री बने रहे, यह क्रम बीजेपी से जीती अर्चना चिटनीस के साथ भी रहा. 2003 में यहां से विधायक बनी अर्चना चिटनिस को भी प्रदेश में पहली बार मंत्री बनने का मौका मिला. लेकिन 2008 में नेपानगर सीट एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हो गई, तब से इस सीट से कोई भी विधायक मंत्री तो नहीं बना लेकिन सबसे अधिक वोट वाले कोरकू समाज का व्यक्ति ही इस सीट से विधायक बना, यानी झंडा किसी भी पार्टी का हो डंडा कोरकू समाज का ही रहा और कांग्रेस बीजेपी दोनों ही कोरकू समाज के व्यक्ति को ही टिकट देते चले आ रहे हैं.

2018 में बीजेपी को इस सीट से मिली थी हार

इधर, बीजेपी कांग्रेस दोनों ही दल इस बात से साफ इंकार कर रहे हैं कि नेपानगर सीट में कोरकू समाज के लोगों के वोटों की संख्या अधिक होने के चलते उन्हीं समाज के व्यक्ति को उम्मीदवार बनाया जाता है. जब नेपानगर सीट एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हुई तब आदिवासी नेता राजेंद्र दादू काफी सक्रिय और क्षेत्र के लोगों की पसंद थे. जिसके बाद भी उन्हें दोबारा टिकट दिया गया, लेकिन उनकी आकस्मिक मृत्यु होने पर सहानुभूति के लिए उनकी पुत्री मंजू दादू को टिकट दिया जो विजयी हुई. 2018 के विधानसभा आम चुनाव में बीजेपी के वरिष्ठ भिलाला समाज के नेता गन सिंह पटेल के लगातार टिकट मांगने के बाद टिकट नहीं मिलने के चलते बागी होकर शिवसेना से चुनाव लड़ा और बीजेपी की हार का कारण बने, बीजेपी के मंजू दादू महज 1264 मतों से कांग्रेस से पराजित हो गई.


इस उपचुनाव में भी कांग्रेस बीजेपी दोनों ही दलों से प्रत्याशी आमने-सामने हैं. कांग्रेस ने अपने पुराने कोरकू चेहरे रामकिशन पटेल को उम्मीदवार बनाकर उन्हें चुनाव मैदान में उतारा है, और बीजेपी ने सुमित्रादेवी पर ही अपना दांव खेला है, लिहाजा यह साफ दावा किया जा सकता है, कि इस बार भी कांग्रेस बीजेपी में ही कड़ी टक्कर है. यानी नेपानगर सीट से झंडा किसी का भी हो लेकिन डंडा कोरकू समाज का ही होगा.

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