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दिवाली के अगले दिन ही क्यों मनाई जाती है गोवर्धन पूजा, जानें क्या है महत्व

कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि यानी दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है. भगवान श्रीकृष्ण की लीला से जुड़ी है गोवर्धन पूजा की कहानी.

Why is Govardhan Puja celebrated on next day of Diwali
दिवाली के अगले दिन ही क्यों मनाई जाती है गोवर्धन पूजा
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Published : Oct 31, 2021, 2:30 PM IST

Updated : Nov 5, 2021, 6:21 AM IST

भोपाल। कार्तिक मास हिंदूओं में पर्व-त्योहार वाला महीना है. इस महीने में धनतेरस, दिवाली के साथ-साथ गोवर्धन पूजा करने का भी विधान है. मान्यता है कि गोवर्धन पूजा से दुखों का नाश होता है और दुश्‍मन अपने गलत इरादों में कामयाब नहीं हो पाते हैं. यह गोवर्धन पर्वत आज भी मथुरा के वृंदावन इलाके में स्थित है. हर साल कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि यानी दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है. यानी इस साल गोवर्धन पूजा 5 नवंबर, शुक्रवार के दिन मनाई जाएगी.

अन्नकूट पूजा के नाम से भी प्रचलित

गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पर्व भी कहा जाता है. इस दिन नई फसल के अनाज और सब्जियों को मिलाकर अन्न कूट का भोग बनाया जाता है, जिसे भगवान कृष्ण को अर्पित किया जाता है. इस दिन घरों में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत व गाय, बछड़े की आकृति बनाकर पूजा- अर्चना की जाती है. धार्मिक कथा के अनुसार भगवान कृष्ण ने इंद्रदेव का अंहकार दूर किया था, जिसके स्मरण में गोवर्धन का त्योहार मनाया जाता है.

क्या है महत्व ?

माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने सबसे पहले गोवर्धन पूजा करवायी थी. इस पूजा को लेकर एक पौराणिक कहानी प्रचलित है. जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने देवो के देव इंद्रराज का धमंड तोड़ा था, इसी के स्मरण में गोवर्धन पूजा मनायी जाती है. मान्यता है कि बृजवासी इंद्रदेव की पूजा की तैयारियों में जुटे थे. सभी पूजा में कोई भी कमी नहीं छोड़ना चाहते थे. ये सब देखकर भगवान श्रीकृष्ण ने मैय्या यशोदा से पूछा कि आप किसकी पूजा की तैयारियां कर रहे हैं, जिस पर माता यशोदा ने उत्तर दिया कि वो इंद्रदेव की पूजा करने की तैयारियों में जुटी हैं. यशोदा मईया ने बताया कि इंद्र वर्षा करते हैं और उसी से हमें अन्न और हमारी गायों के लिए घास-चारा मिलता है. यह सुनकर भगवान कृष्ण जी ने कहा हमारी गाय तो अन्न गोवर्धन पर्वत पर चरती है, तो हमारे लिए वही पूजनीय होनी चाहिए. देवराज इंद्र तो घमंडी हैं, वह कभी दर्शन भी नहीं देते हैं. कृष्ण की बात मानते हुए सभी ब्रजवासियों ने इन्द्रदेव के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा की. इससे क्रोधित होकर भगवान इंद्र ने मूसलाधार बारिश शुरू कर दी. जिसके बाद ब्रज के निवासी भगवान कृष्ण को कोसने लगें. तब भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचाने के लिए सात दिनों तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली पर उठाकर रखा था. ब्रज के गोप-गोपिकाएं और समस्त लोगों ने इस पर्वत की नीचे आकर खुद को बचा लिया था. सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा और हर साल गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी. तभी से यह पर्व गोवर्धन के नाम से मनाया जाने लगा.

कैसे करें गोवर्धन पूजा ?

गोवर्धन पूजा के लिए घर के आंगन में गोबर से भगवान गोवर्धन चित्र बनाएं. फिर रोली, चावल, खीर, बताशे, जल, दूध, पान, केसर, फूल और दीपक जलाकर भगवान की पूजा- अर्चना करें. इस दिन पूजा करने वाले को सुबह-सुबह तेल मलकर नहाना चाहिए. घर के मुख्य दरवाजे पर गोबर से गोवर्धन का चित्र बनाएं. गोबर गोवर्धन भी बनाएं. उनके बीच भगवान कृष्ण की मूर्ति रख दें. फिर भगवान श्रीकृष्ण और गोवर्धन की पूजा करें. पूजा की समाप्ति पर पकवान और पंचामृत का भोग लगाएं. फिर गोवर्धन पूजा की कथा सुनें और आखिर में प्रसाद बांटकर पूजा संपन्न करें.

भोपाल। कार्तिक मास हिंदूओं में पर्व-त्योहार वाला महीना है. इस महीने में धनतेरस, दिवाली के साथ-साथ गोवर्धन पूजा करने का भी विधान है. मान्यता है कि गोवर्धन पूजा से दुखों का नाश होता है और दुश्‍मन अपने गलत इरादों में कामयाब नहीं हो पाते हैं. यह गोवर्धन पर्वत आज भी मथुरा के वृंदावन इलाके में स्थित है. हर साल कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि यानी दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है. यानी इस साल गोवर्धन पूजा 5 नवंबर, शुक्रवार के दिन मनाई जाएगी.

अन्नकूट पूजा के नाम से भी प्रचलित

गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पर्व भी कहा जाता है. इस दिन नई फसल के अनाज और सब्जियों को मिलाकर अन्न कूट का भोग बनाया जाता है, जिसे भगवान कृष्ण को अर्पित किया जाता है. इस दिन घरों में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत व गाय, बछड़े की आकृति बनाकर पूजा- अर्चना की जाती है. धार्मिक कथा के अनुसार भगवान कृष्ण ने इंद्रदेव का अंहकार दूर किया था, जिसके स्मरण में गोवर्धन का त्योहार मनाया जाता है.

क्या है महत्व ?

माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने सबसे पहले गोवर्धन पूजा करवायी थी. इस पूजा को लेकर एक पौराणिक कहानी प्रचलित है. जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने देवो के देव इंद्रराज का धमंड तोड़ा था, इसी के स्मरण में गोवर्धन पूजा मनायी जाती है. मान्यता है कि बृजवासी इंद्रदेव की पूजा की तैयारियों में जुटे थे. सभी पूजा में कोई भी कमी नहीं छोड़ना चाहते थे. ये सब देखकर भगवान श्रीकृष्ण ने मैय्या यशोदा से पूछा कि आप किसकी पूजा की तैयारियां कर रहे हैं, जिस पर माता यशोदा ने उत्तर दिया कि वो इंद्रदेव की पूजा करने की तैयारियों में जुटी हैं. यशोदा मईया ने बताया कि इंद्र वर्षा करते हैं और उसी से हमें अन्न और हमारी गायों के लिए घास-चारा मिलता है. यह सुनकर भगवान कृष्ण जी ने कहा हमारी गाय तो अन्न गोवर्धन पर्वत पर चरती है, तो हमारे लिए वही पूजनीय होनी चाहिए. देवराज इंद्र तो घमंडी हैं, वह कभी दर्शन भी नहीं देते हैं. कृष्ण की बात मानते हुए सभी ब्रजवासियों ने इन्द्रदेव के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा की. इससे क्रोधित होकर भगवान इंद्र ने मूसलाधार बारिश शुरू कर दी. जिसके बाद ब्रज के निवासी भगवान कृष्ण को कोसने लगें. तब भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचाने के लिए सात दिनों तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली पर उठाकर रखा था. ब्रज के गोप-गोपिकाएं और समस्त लोगों ने इस पर्वत की नीचे आकर खुद को बचा लिया था. सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा और हर साल गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी. तभी से यह पर्व गोवर्धन के नाम से मनाया जाने लगा.

कैसे करें गोवर्धन पूजा ?

गोवर्धन पूजा के लिए घर के आंगन में गोबर से भगवान गोवर्धन चित्र बनाएं. फिर रोली, चावल, खीर, बताशे, जल, दूध, पान, केसर, फूल और दीपक जलाकर भगवान की पूजा- अर्चना करें. इस दिन पूजा करने वाले को सुबह-सुबह तेल मलकर नहाना चाहिए. घर के मुख्य दरवाजे पर गोबर से गोवर्धन का चित्र बनाएं. गोबर गोवर्धन भी बनाएं. उनके बीच भगवान कृष्ण की मूर्ति रख दें. फिर भगवान श्रीकृष्ण और गोवर्धन की पूजा करें. पूजा की समाप्ति पर पकवान और पंचामृत का भोग लगाएं. फिर गोवर्धन पूजा की कथा सुनें और आखिर में प्रसाद बांटकर पूजा संपन्न करें.

Last Updated : Nov 5, 2021, 6:21 AM IST
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