भोपाल। मध्यप्रदेश पहले ही महिला अपराधों से लेकर बाल अपराधों में पहले पायदान पर है.वहीं कुछ बड़े घोटालों ने भी मध्यप्रदेश का नाम पूरे देश में बदनाम कर दिया है, लेकिन प्रदेश की छवि को सुधारने के बजाय सरकार इन घोटालों को दबाने में जुटी हुई है. आलम यह है कि व्यापम और ई टेंडर जैसे लाखों करोड़ों के घोटालों की फाइलें जांच एजेंसियों की टेबलों पर धूल खा रही है.
व्यापम घोटाले कि जांच जस की तस
मध्य प्रदेश में साल 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस सत्ता में आई और मुख्यमंत्री कमलनाथ ने व्यापम घोटाले की जांच दोबारा करने के आदेश जारी किए. जिसके बाद एसटीएफ की टीम ने व्यापम घोटाले की फाइलों को दोबारा खोला और कुछ एफआईआर भी दर्ज की गई.हालांकि एसटीएफ की टीम केवल लंबित शिकायतों की जांच कर रही थी. जिन शिकायतों को सीबीआई को सौंपा नहीं गया था. इनमें कई शिकायतें हैं. जैसे पीएमटी, प्रीपीजी, पुलिस आरक्षक भर्ती और वन विभाग भर्ती. एसटीएफ ने इसे लेकर कुछ लोगों के बयान भी दर्ज किए थे. लेकिन 15 महीने में हुई कार्रवाई में एसटीएफ ने किसी की भी गिरफ्तारी नहीं की. इसके बाद अचानक मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार गिर गई और फिर से सत्ता में शिवराज सरकार आ गई.
ई टेंडर घोटाले की जांच पर भी लगा ब्रेक
मध्य प्रदेश में हुए तीन हजार करोड़ के ई-टेंडर घोटाले की जांच पर भी एकाएक ब्रेक लग गया है. इस घोटाले की जांच ईओडब्ल्यू (EOW) के पास है. लेकिन इस मामले को लेकर तब तक ही कार्रवाई चली, जब तक प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी. ईओडब्ल्यू ने ई टेंडर घोटाले में कुल 9 एफआईआर दर्ज की थी. शेष मामलों में प्राथमिक जांच दर्ज की गई थी. एफआईआर दर्ज होने के बाद शुरुआती जांच में ईओडब्ल्यू ने ऑस्मो आईटी सॉल्यूशन कंपनी के तीन डायरेक्टर्स को गिरफ्तार किया. इस कंपनी पर टेंडरों में गड़बड़ी करने के आरोप थे. इनकी निशानदेही पर कुछ और बिचौलियों को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया, लेकिन इस मामले में भी पुलिस किसी बड़ी मछली को गिरफ्तार नहीं कर सकी. जबकि ईटेंडर घोटाले में तत्कालीन मंत्रियों और रसूखदार ओं का नाम सामने आ रहा था. इसके अलावा कई टेंडरों की डिजिटल फाइल्स सर्ट इन दिल्ली जांच के लिए भेजी गई थी. जिसकी अब तक भी रिपोर्ट नहीं आ सकी है.
सिंहस्थ घोटाले को लेकर भी दर्ज की थी ईओडब्ल्यू ने प्राथमिकी
मध्य प्रदेश के उज्जैन में साल 2016 में सिंहस्थ के दौरान भी शिवराज सरकार पर जमकर घोटाले करने के आरोप लगे थे. इसे लेकर ईओडब्ल्यू के पास दर्जनों शिकायतें भी पहुंची थी. इनमें से 6 शिकायतों पर ईओडब्ल्यू ने प्राथमिक जांच दर्ज की थी. इन शिकायतों में सरकार पर आरोप लगे थे, कि सरकार और प्रशासन ने मिलीभगत कर पानी की टंकी, स्ट्रीट लाइट, शौचालय और सड़क निर्माण को लेकर निजी कंपनियों को लाभ पहुंचाया है. पानी की टंकियों और पाइप्स को एक निजी कंपनी से तीन गुना रेट में खरीदे गए थे. इन शिकायतों पर प्राथमिकी जांच दर्ज करने के बाद कुछ तत्कालीन अधिकारियों से ईओडब्ल्यू की टीम ने पूछताछ भी की थी. लेकिन अब तक भी सिंहस्थ घोटाले को लेकर ईओडब्ल्यू ने कोई भी बड़ी कार्रवाई नहीं की है.
एमसीयू और स्मार्ट सिटी में भी यही हाल
राजधानी के माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय को लेकर भी ईओडब्ल्यू की टीम ने आर्थिक अनियमितताओं के आरोप में तत्कालीन कुलपति बीके कुठियाला समेत 20 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी. इस मामले में तीन से चार बार बीके कुठियाला से ईओडब्ल्यू की टीम ने पूछताछ भी की. लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. कुठियाला के अलावा इस मामले में जिन लोगों को आरोपी बनाया गया था उनकी भी अब तक महज बयान भी दर्ज किए गए हैं. वही स्मार्ट सिटी में भी एक सीनियर आईएएस अफसर पर कुछ निजी कंपनियों को सीधा लाभ पहुंचाने के लिए प्रोजेक्ट देने के आरोप लगे थे. जबकि दूसरी कंपनियों ने इन प्रोजेक्ट के लिए कम रेट में टेंडर भरा था. लेकिन सीनियर आईएएस का नाम सामने आने के साथ ही स्मार्ट सिटी की जांच पर भी ब्रेक लग गया.
जांच करने वाले अधिकारियों के हो गए तबादले
मध्य प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद अचानक इन बड़े घोटालों की जांच लगभग बंद ही हो गई है. इतना ही नहीं कांग्रेस सरकार के दौरान इन जांच एजेंसियों में जो अफसर काम कर रहे थे उन अफसरों के भी यहां से वहां ट्रांसफर कर दिए गए हैं. जिसके चलते नहीं बड़े-बड़े घोटालों की फाइलें दूसरी फाइलों के वजन से नीचे दब चुकी है. जानकारों की मानें तो अगर इन बड़े घोटालों की निष्पक्ष तरीके से जांच हो जाए तो शायद कई व्हाइट कॉलर लोग सलाखों के पीछे होंगे.