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मध्यप्रदेश को 'अफ्रीका' बनने से बचाना है तो इन सुझावों पर अमल करे सरकारः जल पुरूष - भोपाल

मध्यप्रदेश में जल संकट को देखते हुए जल पुरूष राजेंद्र सिंह ने मध्यप्रदेश सरकार को 10 सुझाव दिए हैं. इस सुझावों से उन्होंने सरकार को जल संरक्षण के उपाए और जलसंकट के दुष्परिणाम बताए हैं.

राजेंद्र सिंह ने दिए 10 सुझाव
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Published : Jun 24, 2019, 5:59 PM IST

भोपाल। पर्यावरणविद व जल पुरूष के नाम से मशहूर राजेंद्र सिंह ने मध्यप्रदेश सरकार को जल संरक्षण के लिए चेताया है. उन्होंने कहा कि अगर ग्राउंड वाटर के रिचार्ज और जल स्त्रोतों के संरक्षण पर गंभीरता से कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले 5 सालों में प्रदेश में पानी की वजह से पलायन शुरू हो जाएगा. प्रदेश में ये स्थिति अभी बुंदेलखंड में ही है. प्रदेश सरकार के राइट टू वॉटर एक्ट के लिए मिंटो हाल में आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला में जल पुरुष ने सरकार को 10 सुझाव दिए हैं.

पर्यावरणविद राजेंद्र सिंह ने दिए 10 सुझाव

दिए गए 10 सुझाव

  • इंजीनियर को कैलकुलेशन आता है, लेकिन उसको साइंस का कॉमन सेंस नहीं है. जल संरक्षण वैज्ञानिक को इंजीनियर के साथ जोड़े बिना नहीं हो सकता क्योंकि पानी कैसे रोका जाए, इंजीनियर ये तो जानता है, पर भूजल कैसे बढ़े, नदियां कैसे बहती रहें और पानी का वाष्पीकरण कैसे रोका जाए, ये बिना वैज्ञानिक के संभव नहीं है.
  • सरकार राइट टू वाटर एक्ट भले ही कितना अच्छा बना रही है, लेकिन ये एक्ट बिना वाटर लिटरेसी मूवमेंट के पूरा नहीं हो सकता. जल साक्षरता के बिना इस एक्ट का कोई मतलब नहीं रहेगा. जल साक्षरता के लिए स्कूल कॉलेज विश्वविद्यालय और समाज के हर वर्ग में जनचेतना लानी होगी. इसके लिए सरकार को बड़ा आंदोलन करना होगा.
  • मध्यप्रदेश के लोग भगवान के लाडले बेटे हैं. भगवान ने भरपूर पानी और काली मिट्टी दी है, लेकिन ये लाडले बेटे बिगड़ गए हैं. राजस्थान के लोग नहीं बिगड़े क्योंकि वो सौतेले बेटे हैं. जो भी चीज प्रकृति से मिलती है, उसे सहेज कर रखते हैं. सरकार अच्छा एक्ट बनाए. यदि खराब एक्ट बनाएगी तो सरकार की बदनामी ज्यादा होगी.
  • वर्षा चक्र के हिसाब से फसल चक्र प्रदेश में शुरू कराना होगा क्योंकि प्रदेश में 90 फीसदी ग्राउंड वाटर से खेती हो रही है. इस पर रोक सख्त एक्ट से नहीं लगेगी, बल्कि लोगों में जन जागरूकता लानी पड़ेगी.
  • जलवायु परिवर्तन के खतरे से किसानों को रूबरू कराना होगा. इसके लिए प्रदेश की एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी को काम सौंपा जाए. प्रदेश में 5 एग्रो क्लाइमेट जोन हैं. विश्वविद्यालय बताएं कि किस जोन में किस तरह की फसलें उगाई जा सकती हैं.
  • प्रदेश की सभी नदियों और तालाबों पर अतिक्रमण है. सरकार प्रदेश की वाटर बॉडी को चिह्नित कर उसका सीमांकन करे और मैप के साथ उनका नोटिफिकेशन किया जाए. सरकार को पता हो कि पंचायत जिला और राज्य की वाटर बॉडीज कौन-कौन सी है. अगर ये काम हो गया तो प्रदेश ऋणी रहेगा. इसके बाद अतिक्रमण अपने आप रुक जाएगा.
  • सरकार वाटर सेट जैसे कार्यक्रम फिर से चलाए. पानी बचाने की मुहिम में जनता को ज्यादा से ज्यादा जोड़े.
  • सरकारें पानी के सोर्स की चिंता नहीं कर रहीं, बल्कि नल में जल की बात कर रही हैं. केंद्र इसके लिए तीन लाख करोड़ का प्लान तैयार कर रही है, यदि पानी के स्रोत पर ध्यान नहीं दिया तो कुंदन में जल कैसे आएगा. प्रदेश सरकार को राजस्थान से सबक लेना होगा, जहां 9 नदियां पुनर्जीवित हुई हैं.
  • मध्यप्रदेश में बुंदेलखंड को छोड़ पानी की वजह से पलायन की स्थिति नहीं है. यदि सरकार अभी भी नहीं जागी तो अगले 5 सालों में यहां के हालात भी अफ्रीकी देशों जैसे होंगे. जहां बड़ी संख्या में लोग पानी की वजह से पलायन कर यूरोप जा रहे हैं.
  • मध्यप्रदेश सरकार द्वारा तैयार कराए जा रहे राइट टू वॉटर एक्ट की तारीफ करते हुए राजेंद्र सिंह ने कहा कि इस एक्ट पर सबके अधिकार का रास्ता खुलेगा. इससे साफ है कि भविष्य में निजी कंपनियां इस पर अपना एकाधिकार नहीं जमा पाएंगी.

भोपाल। पर्यावरणविद व जल पुरूष के नाम से मशहूर राजेंद्र सिंह ने मध्यप्रदेश सरकार को जल संरक्षण के लिए चेताया है. उन्होंने कहा कि अगर ग्राउंड वाटर के रिचार्ज और जल स्त्रोतों के संरक्षण पर गंभीरता से कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले 5 सालों में प्रदेश में पानी की वजह से पलायन शुरू हो जाएगा. प्रदेश में ये स्थिति अभी बुंदेलखंड में ही है. प्रदेश सरकार के राइट टू वॉटर एक्ट के लिए मिंटो हाल में आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला में जल पुरुष ने सरकार को 10 सुझाव दिए हैं.

पर्यावरणविद राजेंद्र सिंह ने दिए 10 सुझाव

दिए गए 10 सुझाव

  • इंजीनियर को कैलकुलेशन आता है, लेकिन उसको साइंस का कॉमन सेंस नहीं है. जल संरक्षण वैज्ञानिक को इंजीनियर के साथ जोड़े बिना नहीं हो सकता क्योंकि पानी कैसे रोका जाए, इंजीनियर ये तो जानता है, पर भूजल कैसे बढ़े, नदियां कैसे बहती रहें और पानी का वाष्पीकरण कैसे रोका जाए, ये बिना वैज्ञानिक के संभव नहीं है.
  • सरकार राइट टू वाटर एक्ट भले ही कितना अच्छा बना रही है, लेकिन ये एक्ट बिना वाटर लिटरेसी मूवमेंट के पूरा नहीं हो सकता. जल साक्षरता के बिना इस एक्ट का कोई मतलब नहीं रहेगा. जल साक्षरता के लिए स्कूल कॉलेज विश्वविद्यालय और समाज के हर वर्ग में जनचेतना लानी होगी. इसके लिए सरकार को बड़ा आंदोलन करना होगा.
  • मध्यप्रदेश के लोग भगवान के लाडले बेटे हैं. भगवान ने भरपूर पानी और काली मिट्टी दी है, लेकिन ये लाडले बेटे बिगड़ गए हैं. राजस्थान के लोग नहीं बिगड़े क्योंकि वो सौतेले बेटे हैं. जो भी चीज प्रकृति से मिलती है, उसे सहेज कर रखते हैं. सरकार अच्छा एक्ट बनाए. यदि खराब एक्ट बनाएगी तो सरकार की बदनामी ज्यादा होगी.
  • वर्षा चक्र के हिसाब से फसल चक्र प्रदेश में शुरू कराना होगा क्योंकि प्रदेश में 90 फीसदी ग्राउंड वाटर से खेती हो रही है. इस पर रोक सख्त एक्ट से नहीं लगेगी, बल्कि लोगों में जन जागरूकता लानी पड़ेगी.
  • जलवायु परिवर्तन के खतरे से किसानों को रूबरू कराना होगा. इसके लिए प्रदेश की एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी को काम सौंपा जाए. प्रदेश में 5 एग्रो क्लाइमेट जोन हैं. विश्वविद्यालय बताएं कि किस जोन में किस तरह की फसलें उगाई जा सकती हैं.
  • प्रदेश की सभी नदियों और तालाबों पर अतिक्रमण है. सरकार प्रदेश की वाटर बॉडी को चिह्नित कर उसका सीमांकन करे और मैप के साथ उनका नोटिफिकेशन किया जाए. सरकार को पता हो कि पंचायत जिला और राज्य की वाटर बॉडीज कौन-कौन सी है. अगर ये काम हो गया तो प्रदेश ऋणी रहेगा. इसके बाद अतिक्रमण अपने आप रुक जाएगा.
  • सरकार वाटर सेट जैसे कार्यक्रम फिर से चलाए. पानी बचाने की मुहिम में जनता को ज्यादा से ज्यादा जोड़े.
  • सरकारें पानी के सोर्स की चिंता नहीं कर रहीं, बल्कि नल में जल की बात कर रही हैं. केंद्र इसके लिए तीन लाख करोड़ का प्लान तैयार कर रही है, यदि पानी के स्रोत पर ध्यान नहीं दिया तो कुंदन में जल कैसे आएगा. प्रदेश सरकार को राजस्थान से सबक लेना होगा, जहां 9 नदियां पुनर्जीवित हुई हैं.
  • मध्यप्रदेश में बुंदेलखंड को छोड़ पानी की वजह से पलायन की स्थिति नहीं है. यदि सरकार अभी भी नहीं जागी तो अगले 5 सालों में यहां के हालात भी अफ्रीकी देशों जैसे होंगे. जहां बड़ी संख्या में लोग पानी की वजह से पलायन कर यूरोप जा रहे हैं.
  • मध्यप्रदेश सरकार द्वारा तैयार कराए जा रहे राइट टू वॉटर एक्ट की तारीफ करते हुए राजेंद्र सिंह ने कहा कि इस एक्ट पर सबके अधिकार का रास्ता खुलेगा. इससे साफ है कि भविष्य में निजी कंपनियां इस पर अपना एकाधिकार नहीं जमा पाएंगी.
Intro:भोपाल। जानेमाने पर्यावरणविद और जल पुरूष के नाम से प्रसिद्ध राजेंद्र सिंह मध्य प्रदेश सरकार को चेताया है कि यदि ग्राउंड वाटर के रिचार्ज और जल स्रोतों के संरक्षण पर यदि गंभीरता से कदम नहीं उठाए गए तो अगले 5 सालों में मध्य प्रदेश मैं भी पानी की वजह से पलायन शुरू हो जाएगा फिलहाल यही स्थिति मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में ही है। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा तैयार कराए जा रहे राइट टू वॉटर एक्ट के लिए राजधानी के मिटों हाल में आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला को संबोधित करते हुए जल पुरुष राजेंद्र सिंह ने सरकार को 10 सुझाव दिए हैं।


Body:- राजेंद्र सिंह मध्य प्रदेश सरकार द्वारा तैयार कराए जा रहे राइट टू वॉटर एक्ट की तारीफ करते हुए कहा कि या एक्ट पानी पर सबकी अधिकार का रास्ता खुलेगा और इससे साफ है कि भविष्य में निजी कंपनियां इस पर अपना एकाधिकार नहीं जमा पाएंगे।
- उन्होंने कहा की इंजीनियर कैलकुलेशन बहुत जानता है लेकिन उसको साइंस की कॉमन सेंस नहीं है। लेकिन जल संरक्षण वैज्ञानिक को इंजीनियर के साथ जोड़ें बिना नहीं हो सकता क्योंकि पानी कैसे रोका जाए इंजीनियर यह तो जानता है लेकिन भूजल कैसे बड़े नदियां कैसे बहती रहे और पानी का वाष्पीकरण कैसे रोका जाए यह बिना वैज्ञानिक को जोड़ें संभव नहीं है।
- सरकार राइट टू वाटर एक्ट भले ही कितना ही अच्छा बना रहे हो लेकिन यह एक्ट बिना वाटर लिटरेसी मूवमेंट की पूरा नहीं हो सकता जल साक्षरता के बिना इस एक्ट का कोई मतलब नहीं रहेगा। जल साक्षरता के लिए स्कूल कॉलेज विश्वविद्यालय और समाज के हर वर्ग में जनचेतना लानी होगी इसके लिए सरकार को खुद यात्रा निकालनी पड़ी आंदोलन खड़ा करना पड़ेगा।
- मध्य प्रदेश के लोग भगवान के लाडले बेटे हैं भगवान ने भरपूर पानी और काली मिट्टी दी है लेकिन यह लाडले बेटे बिगड़ गए हैं। राजस्थान के लोग नहीं बिगड़े क्योंकि यह सौतेले बेटे हैं जो भी चीज प्रकृति से मिलती है उसे सहेज कर रखते हैं। सरकार अच्छा एक्ट बनाएं यदि बिगड़ा एक्ट बनाएगी तो सरकार की बदनामी ज्यादा होगी।
- वर्षा चक्र के हिसाब से फसल का चक्र प्रदेश में शुरू कराना होगा क्योंकि प्रदेश में 90 फ़ीसदी ग्राउंड वाटर से खेती हो रही है और इस पर रोक सख्त एक्ट से नहीं लगेगी बल्कि लोगों में जन जागरूकता लानी पड़ेगी।
- जलवायु परिवर्तन के खतरे से किसानों को रूबरू कराना होगा इसके लिए प्रदेश की एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी को काम सौंपा जाए। प्रदेश में 5 एग्रो क्लाइमेट जोन है विश्वविद्यालय बताएं कि किस जोन में किस तरह की फसलें उगाई जा सकती हैं।
- प्रदेश की सभी नदियों तालाबों पर अतिक्रमण है। गंदा पानी मिलने से प्रदूषित हो रही है। सरकार प्रदेश की वाटर बॉडी को चिन्हित करें, उनका सीमांकन करें और मैप के साथ उनका नोटिफिकेशन किया जाए। यह स्पष्ट सरकार को पता हो की पंचायत जिला और राज्य की वाटर बॉडीज कौन-कौन सी है अगर यह काम हो गया तो प्रदेश ऋणी रहेगा। इसके बाद अतिक्रमण अपने आप रुक जाएंगे।
- सरकार वाटर सेट जैसे कार्यक्रम फिर से चलाएं कॉन्ट्रैक्ट आधारित पानी सहेजने के काम कराने पैसा उसकी ही जेब में जाता है। पानी बचाने की मुहिम में जनता को ज्यादा से ज्यादा जोड़े।
- सरकारें पानी के सोर्स की चिंता नहीं कर रही बल्कि नल में जल की बात कर रही है। केंद्र इसके लिए तीन लाख करोड़ का प्लान तैयार कर रही है लेकिन यदि पानी के स्रोत पर ध्यान नहीं दिया कुंदन में जल कैसे आएगा। प्रदेश सरकार को राजस्थान से सबक लेना होगा जहां 9 नदियां पुनर्जीवित हुई है।
- मध्यप्रदेश में बुंदेलखंड को छोड़ पानी की वजह से पलायन की स्थिति नहीं है यदि सरकार अभी भी नहीं जागी तो अगले 5 सालों में यहां के हालात भी ठीक अफ्रीकी देशों जैसे होंगे। जहां बड़ी संख्या में लोग पानी की वजह से पलायन कर यूरोप जा रहे हैं।


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