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Vocal for Local: 400 साल पुराने तरीके से बनाए जा रहे हैं इको फ्रेंडली मिट्टी के पटाखे

मिट्टी का उपयोग कर पटाखे बनाने की 400 साल पुरानी कला को गुजरात के वडोदरा में पुनर्जीवित किया जा रहा है. चार सदियों पुरानी इस कला को पुनर्जीवित करने में प्रमुख परिवार फाउंडेशन नाम के एक एनजीओ ने मदद की है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'वोकल फॉर लोकल' के संदेश ने एनजीओ को इस सदियों पुरानी कला को फिर से जीवंत करने के लिए प्रेरित किया.

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Published : Nov 2, 2021, 1:31 PM IST

400 year old method of making eco friendly firecrackers with clay
400 साल पुराने तरीके से बनाए जा रहे हैं इको फ्रेंडली मिट्टी के पटाखे

वडोदरा। मिट्टी का उपयोग कर पटाखे बनाने की 400 साल पुरानी कला को गुजरात के वडोदरा में पुनर्जीवित किया जा रहा है. चार सदियों पुरानी इस कला को पुनर्जीवित करने में प्रमुख परिवार फाउंडेशन नाम के एक एनजीओ ने मदद की है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'वोकल फॉर लोकल' के संदेश ने एनजीओ को इस सदियों पुरानी कला को फिर से जीवंत करने के लिए प्रेरित किया.

400 साल पुराने तरीके से बनाए जा रहे हैं इको फ्रेंडली मिट्टी के पटाखे

400 साल पुरानी कला

वडोदरा जिले के कुम्हारवाड़ा, फतेहपुर में कुछ शिल्पकार रहते हैं, जिन्हें मिट्टी का उपयोग करके पटाखे बनाने में महारत हासिल है. विभिन्न प्रकार के पटाखे जिन्हें कोठी के नाम से जाना जाता है, ये बनाने में माहिर हैं. लेकिन चीनी पटाखों से जब भारतीय बाजारों को भर दिया, तब इसका बाजार ठंडा पड़ गया. जिससे इन पटाखों का उत्पादन लगभग दो दशकों तक बंद रहा. अब चार सदियों पुरानी इस कला को पुनर्जीवित करने में प्रमुख परिवार फाउंडेशन नाम के एक एनजीओ ने मदद की है. 'वोकल फॉर लोकल' को बढ़ावा देने के उद्देश्य ने एनजीओ को इस सदियों पुरानी कला को फिर से जीवंत करने के लिए प्रेरित किया. यह न केवल इस कला रूप को नई पीढ़ी के सामने रखेगा, बल्कि जरूरतमंदों रोजगार भी प्रदान करेगा.

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100 फीसदी स्वदेशी

प्रमुख परिवार फाउंडेशन के अध्यक्ष निताल गांधी ने कहा, "ये पटाखे 100 प्रतिशत स्वदेशी हैं. कोठी मिट्टी से बनाई जाती है. कुम्हार मिट्टी का उपयोग कर इन्हें बनाते हैं. साथ ही चक्री, कागज और बांस से बना है. ये पूरी तरह से इको फ्रेंडली हैं. उपयोग के बाद घुल जाते हैं. साथ ही, ये बच्चों के लिए सुरक्षित हैं.कोई भी इन पटाखों का उपयोग कर सकता है. उन्होंने कहा कि हमारा उद्देश्य स्थानीय कलाकारों को अधिक से अधिक रोजगार प्रदान करना है. रमन प्रजापति नाम के शिल्पकार ने एनजीओ को कोठी बनाने का श्रेय देते हुए कहा कि ये पटाखे इस हद तक सुरक्षित हैं कि कोई उन्हें अपने हाथों में रखते हुए फोड़ सकता है. आगे उन्होंने कहा कि यह पटाखे बनाने का 400 साल पुराना तरीका है. बड़े लोग कोठी बनाते थे. 20 साल पहले इस कारोबार में फायदा नहीं होने के कारण काम बंद हो गया था. लेकिन एनजीओ के अध्यक्ष जब उनसे मिलने पहुंचे तो उन्होंने कुछ कोठियों के नमूने दिखाए. जिसके बाद 2 टैक्ट्रर मिट्टी की व्यवस्था की गयी. इससे हम 1-5 लाख तक कोठी बना सकते हैं. अब इस दीवाली इन शिल्पकारों को भी अच्छी कमाई हुई है.

वडोदरा। मिट्टी का उपयोग कर पटाखे बनाने की 400 साल पुरानी कला को गुजरात के वडोदरा में पुनर्जीवित किया जा रहा है. चार सदियों पुरानी इस कला को पुनर्जीवित करने में प्रमुख परिवार फाउंडेशन नाम के एक एनजीओ ने मदद की है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'वोकल फॉर लोकल' के संदेश ने एनजीओ को इस सदियों पुरानी कला को फिर से जीवंत करने के लिए प्रेरित किया.

400 साल पुराने तरीके से बनाए जा रहे हैं इको फ्रेंडली मिट्टी के पटाखे

400 साल पुरानी कला

वडोदरा जिले के कुम्हारवाड़ा, फतेहपुर में कुछ शिल्पकार रहते हैं, जिन्हें मिट्टी का उपयोग करके पटाखे बनाने में महारत हासिल है. विभिन्न प्रकार के पटाखे जिन्हें कोठी के नाम से जाना जाता है, ये बनाने में माहिर हैं. लेकिन चीनी पटाखों से जब भारतीय बाजारों को भर दिया, तब इसका बाजार ठंडा पड़ गया. जिससे इन पटाखों का उत्पादन लगभग दो दशकों तक बंद रहा. अब चार सदियों पुरानी इस कला को पुनर्जीवित करने में प्रमुख परिवार फाउंडेशन नाम के एक एनजीओ ने मदद की है. 'वोकल फॉर लोकल' को बढ़ावा देने के उद्देश्य ने एनजीओ को इस सदियों पुरानी कला को फिर से जीवंत करने के लिए प्रेरित किया. यह न केवल इस कला रूप को नई पीढ़ी के सामने रखेगा, बल्कि जरूरतमंदों रोजगार भी प्रदान करेगा.

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100 फीसदी स्वदेशी

प्रमुख परिवार फाउंडेशन के अध्यक्ष निताल गांधी ने कहा, "ये पटाखे 100 प्रतिशत स्वदेशी हैं. कोठी मिट्टी से बनाई जाती है. कुम्हार मिट्टी का उपयोग कर इन्हें बनाते हैं. साथ ही चक्री, कागज और बांस से बना है. ये पूरी तरह से इको फ्रेंडली हैं. उपयोग के बाद घुल जाते हैं. साथ ही, ये बच्चों के लिए सुरक्षित हैं.कोई भी इन पटाखों का उपयोग कर सकता है. उन्होंने कहा कि हमारा उद्देश्य स्थानीय कलाकारों को अधिक से अधिक रोजगार प्रदान करना है. रमन प्रजापति नाम के शिल्पकार ने एनजीओ को कोठी बनाने का श्रेय देते हुए कहा कि ये पटाखे इस हद तक सुरक्षित हैं कि कोई उन्हें अपने हाथों में रखते हुए फोड़ सकता है. आगे उन्होंने कहा कि यह पटाखे बनाने का 400 साल पुराना तरीका है. बड़े लोग कोठी बनाते थे. 20 साल पहले इस कारोबार में फायदा नहीं होने के कारण काम बंद हो गया था. लेकिन एनजीओ के अध्यक्ष जब उनसे मिलने पहुंचे तो उन्होंने कुछ कोठियों के नमूने दिखाए. जिसके बाद 2 टैक्ट्रर मिट्टी की व्यवस्था की गयी. इससे हम 1-5 लाख तक कोठी बना सकते हैं. अब इस दीवाली इन शिल्पकारों को भी अच्छी कमाई हुई है.

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