भोपाल। इन दिनों एक वायरस पूरी दुनिया को अपनी उंगलियों पर नचा रहा है, जिसके तांडव के सामने वीटो पॉवर रखने वाले भी बेबस नजर आ रहे हैं, भले ही वीटो पॉवर रखने वाले देश दुनिया के लिए हीरो बन रहे थे, पर इस वायरस ने सबको जीरो बना दिया है. भारत भी इसके कहर से अछूता नहीं है, लेकिन एक छोटे से वायरस ने छोटे-बड़े, अमीर-गरीब, ऊंच-नीच सबको बेबस और लाचार कर दिया है. ऐसे में सबसे ज्यादा संकट उन लोगों के सामने है, जिनके पास न नौकरी है और न ही मुकम्मल रोजगार.
कोरोना की बढ़ती रफ्तार को लॉक करने के लिए पहले 21 दिन का लॉकडाउन किया गया, इसके बाद इसे फिर 19 दिन के लिए बढ़ा दिया गया. इसके बावजूद कोरोना की रफ्तार रुकने का नाम नहीं ले रही है. ऐसे में असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है क्योंकि इनका कोई निश्चित आंकड़ा नहीं है. हालांकि 2018 में राज्य सरकार ने एक रिपोर्ट में कहा था कि मध्यप्रदेश में असंगठित क्षेत्र में करीब 1.82 करोड़ मजदूर हैं, जो सरकारी सूची में शामिल हैं, इन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ गाहे-बगाहे मिल भी जाता है.
एक अनुमान के मुताबिक प्रदेश की कुल जनसंख्या की आधी आबादी असंगठित क्षेत्र में काम करती है और उसमें काम करने वाले गरीब मजदूर वर्ग के लिए ये लॉकडाउन कोरोना से बड़ा वायरस बन गया है, जो कोरोना से बच जाने के बाद भी इन्हें चैन से जीने नहीं देगा क्योंकि इनके सामने बेरोजगारी के चलते भूख की आग को शांत करना बेहद मुश्किल होगा और ऐसा नहीं हुआ तो इसी भूख की आग में जलकर ये सभी राख हो जाएंगे. हालांकि, सरकारें और समाजसेवी संस्थाएं ऐसे लोगों को भरपूर मदद करने की कोशिश कर रही हैं, फिर भी ये कोशिश नाकाफी साबित हो रही है.
प्रदेश में खेतों में मजदूरी करने, घरों में काम करने, सड़क पर गुमटी लगाने, मछली पकड़ने, पत्थर तोड़ने, ईट भट्ठे पर काम, परिवहन, हथकरघा, बिजली का काम, लकड़ी के मजदूर,बर्तन कारीगर जैसे तमाम असंगठित क्षेत्र हैं, जिसमें काम करने वाले मजदूरों की संख्या पर गौर करें तो सरकारी आंकड़े जो तस्वीर पेश करते हैं, उससे स्पष्ट है कि प्रदेश की करीब 50 फीसदी आबादी असंगठित क्षेत्र में काम करके अपना जीवनयापन कर रहे हैं.
कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन ने जहां इनके सामने बड़ा संकट खड़ा कर दिया है, वहीं सरकार के सामने भी इनकी भूख मिटाने की चुनौती है, नहीं तो दिल्ली-मुंबई और सूरत की तरह ही यहां के मजबूरों के सब्र का बांध टूटा तो सरकार के सारे प्रयासों पर नाउम्मीदी का पानी फिर जाएगा क्योंकि लॉकडाउन के चलते जहां कालाबाजारी और मुनाफाखोरी चरम पर है, वहीं सरकारी योजनाओं का लाभ भी जरूरतमंदों तक आसानी से नहीं पहुंच पा रहा है.