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उमा भारती का सक्रिय राजनीति में वापसी का संकेत किस ओर ? - Madhya Pradesh politics

पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती मध्यप्रदेश उपचुनाव में सक्रिय नजर आईं. उमा भारती ने इस चुनाव में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ कई सभाएं और रोड शो किए. उनकी सक्रियता ने कई नेताओं की नींद उड़ा दी है.जानकारों की मानें तो उपचुनाव के परिणामों के बाद यदि बीजेपी सरकार बचाने में कामयाब रहती है, तो आने वाले समय में उमा भारती प्रदेश का नेतृत्व कर सकती हैं.

Uma Bharti
उमा भारती
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Published : Nov 6, 2020, 9:19 PM IST

भोपाल। मध्यप्रदेश की राजनीति में पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती की सक्रियता के चलते कई अटकलें लगाई जा रहीं हैं. सियासत के गलियारों में चर्चा है कि उमा भारती की प्रदेश की राजनीति में वापसी हो सकती है. ऐसा भी कहा जा रहा है कि उपचुनाव में जीत के बाद बीजेपी अगर शिवराज का विकल्प तलाशती है तो इस कतार में पहली दावेदारी उमा भारती की होगी और उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी भी सौंपी जा सकती है.

क्या होगी उमा भारती की वापसी

कांग्रेस का तंज

कांग्रेस ने उमा भारती की सक्रियता को लेकर बीजेपी नेताओं और सिंधिया पर तंज कसा है. कांग्रेस प्रवक्ता नरेंद्र सलूजा का कहना है कि उमा भारती की सत्ता में वापसी की घोषणा ने कई नेताओं की नीद उड़ा दी है. लिहाजा सूबे के बीजेपी नेताओं द्वारा एक बार फिर उन्हें दरकिनार करने की कोशिश की जाएगी.

इन वजहों से बड़ी सियासी सरगर्मी

प्रदेश की सियासत में उमा भारती की वापसी की अटकलें इसलिए लगाईं जा रही हैं क्योंकि हाल ही में जो सियासी घटनाएं घटी हैं, उसके पीछे की सूत्रधार उमा भारती ही मानी जा रहीं हैं. बड़ा मलहरा से कांग्रेस विधायक रहे प्रद्युम्न सिंह लोधी के इस्तीफे और बीजेपी में शामिल होने में उमा भारती की खास भूमिका रही है. इसके अलावा दमोह विधायक राहुल सिंह को बीजेपी में लाने में केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल की महत्वपूर्ण भूमिका है और प्रहलाद पटेल उमा भारती के सबसे करीबी नेताओं में से एक हैं. इसके अलावा उन्होंने उपचुनाव में करीब 39 रैलियां की हैं, अगर इन सीटों पर बीजेपी को सफलता मिलती है तो कहीं ना कहीं इसका श्रेय उमा भारती को मिलेगा.

उपचुनाव के नतीजे तय करेंगे उमा का भविष्य

उपचुनाव के नतीजे आने के बाद अगर ऐसे हालात बनते हैं कि बीजेपी बहुमत से कुछ सीटें दूर रह जाए तो उमा भारती जरूरी विधायकों की संख्या जुटा सकतीं हैं. बंडा विधायक तरवर सिंह लोधी और बीएसपी विधायक रामबाई सिंह के बीजेपी ज्वाइन करने के कयास लगाए जा रहे हैं, इसके पीछे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर कहीं ना कहीं उमा भारती का भूमिका है. ऐसी स्थितियां बनतीं हैं बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व उमा भारती को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप सकता है.

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बेबाक बयानों के लिए जानीं जातीं हैं उमा

हालांकि उमा भारती खुद प्रदेश की राजनीति में वापसी की बात को नकारतीं आई हैं. लेकिन जिस तरह से उन्होंने सुरखी विधानसभा में मंच से कहा था कि किसी माई के लाल में ताकत नहीं थी कि उन्हें पार्टी से निकाल सके, उन्होंने खुद ही तिरंगे की शान में पार्टी छोड़ी थी, इससे एक बात साफ है कि प्रदेश राजनीति में वापसी के लिए भी वे किसी की मोहताज नहीं हैं.

उमा भारती का राजनीतिक सफर

उमा भारती का राजनीतिक सफर राजमाता विजयाराजे सिंधिया के सान्निध्य में शुरू हुआ था. उन्होंने पहला लोकसभा चुनाव 1984 में लड़ा, लेकिन वे हार गई थीं. वहीं, 1989 में खजुराहो से उमा ने दोबारा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की थी. राम जन्मभूमि आंदोलन में उमा भारती ने एक फायर ब्रांड नेता के तौर भूमिका निभाई थी. 'रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे' उमा भारती ने ही दिया था.

कांग्रेस को सत्ता से किया था बाहर

साल 2003 में उमा भारती की लहर के चलते दिग्विजय सिंह सरकार को प्रदेश की सत्ता से बेदखल किया था. 8 दिसंबर 2003 को उमा भारती ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. हालांकि हुबली कांड के चलते 21 अगस्त 2004 को उमा भारती को इस्तीफा देना पड़ा था. इसके बाद बाबूलाल गौर को मुख्यमंत्री बनाया गया था. इसके अलावा उमा भारती ने केंद्र में भी अहम जिम्मेदारियां निभाईं हैं.

एक दशक बाद साथ आए उमा-शिवराज, आखिर क्या है इसके पीछे का सियासी राज ?

क्यों देना पड़ा था मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा

उमा भारती को 23 अगस्त, 2004 को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देना पड़ा था. इसके पीछे कारण यह था कि 15 अगस्त, 1994 को कर्नाटक के हुबली में उमा भारती ने तिरंगा झंडा फहराया था. दरअसल, कर्नाटक में हुबली की एक अदालत ने दंगा भड़काने समेत कुल 13 मामले दायर किये गए थे. इसमें से ही एक 10 साल पुराने मामले में उमा भारती के खिलाफ अदालत ने गैर जमानती वारंट जारी किया था.

भोपाल। मध्यप्रदेश की राजनीति में पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती की सक्रियता के चलते कई अटकलें लगाई जा रहीं हैं. सियासत के गलियारों में चर्चा है कि उमा भारती की प्रदेश की राजनीति में वापसी हो सकती है. ऐसा भी कहा जा रहा है कि उपचुनाव में जीत के बाद बीजेपी अगर शिवराज का विकल्प तलाशती है तो इस कतार में पहली दावेदारी उमा भारती की होगी और उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी भी सौंपी जा सकती है.

क्या होगी उमा भारती की वापसी

कांग्रेस का तंज

कांग्रेस ने उमा भारती की सक्रियता को लेकर बीजेपी नेताओं और सिंधिया पर तंज कसा है. कांग्रेस प्रवक्ता नरेंद्र सलूजा का कहना है कि उमा भारती की सत्ता में वापसी की घोषणा ने कई नेताओं की नीद उड़ा दी है. लिहाजा सूबे के बीजेपी नेताओं द्वारा एक बार फिर उन्हें दरकिनार करने की कोशिश की जाएगी.

इन वजहों से बड़ी सियासी सरगर्मी

प्रदेश की सियासत में उमा भारती की वापसी की अटकलें इसलिए लगाईं जा रही हैं क्योंकि हाल ही में जो सियासी घटनाएं घटी हैं, उसके पीछे की सूत्रधार उमा भारती ही मानी जा रहीं हैं. बड़ा मलहरा से कांग्रेस विधायक रहे प्रद्युम्न सिंह लोधी के इस्तीफे और बीजेपी में शामिल होने में उमा भारती की खास भूमिका रही है. इसके अलावा दमोह विधायक राहुल सिंह को बीजेपी में लाने में केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल की महत्वपूर्ण भूमिका है और प्रहलाद पटेल उमा भारती के सबसे करीबी नेताओं में से एक हैं. इसके अलावा उन्होंने उपचुनाव में करीब 39 रैलियां की हैं, अगर इन सीटों पर बीजेपी को सफलता मिलती है तो कहीं ना कहीं इसका श्रेय उमा भारती को मिलेगा.

उपचुनाव के नतीजे तय करेंगे उमा का भविष्य

उपचुनाव के नतीजे आने के बाद अगर ऐसे हालात बनते हैं कि बीजेपी बहुमत से कुछ सीटें दूर रह जाए तो उमा भारती जरूरी विधायकों की संख्या जुटा सकतीं हैं. बंडा विधायक तरवर सिंह लोधी और बीएसपी विधायक रामबाई सिंह के बीजेपी ज्वाइन करने के कयास लगाए जा रहे हैं, इसके पीछे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर कहीं ना कहीं उमा भारती का भूमिका है. ऐसी स्थितियां बनतीं हैं बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व उमा भारती को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप सकता है.

राजनीति नहीं छोड़ी गंगा मैया की सेवा के लिए ब्रेक लिया, 2024 में लड़ूंगी चुनाव: उमा भारती

बेबाक बयानों के लिए जानीं जातीं हैं उमा

हालांकि उमा भारती खुद प्रदेश की राजनीति में वापसी की बात को नकारतीं आई हैं. लेकिन जिस तरह से उन्होंने सुरखी विधानसभा में मंच से कहा था कि किसी माई के लाल में ताकत नहीं थी कि उन्हें पार्टी से निकाल सके, उन्होंने खुद ही तिरंगे की शान में पार्टी छोड़ी थी, इससे एक बात साफ है कि प्रदेश राजनीति में वापसी के लिए भी वे किसी की मोहताज नहीं हैं.

उमा भारती का राजनीतिक सफर

उमा भारती का राजनीतिक सफर राजमाता विजयाराजे सिंधिया के सान्निध्य में शुरू हुआ था. उन्होंने पहला लोकसभा चुनाव 1984 में लड़ा, लेकिन वे हार गई थीं. वहीं, 1989 में खजुराहो से उमा ने दोबारा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की थी. राम जन्मभूमि आंदोलन में उमा भारती ने एक फायर ब्रांड नेता के तौर भूमिका निभाई थी. 'रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे' उमा भारती ने ही दिया था.

कांग्रेस को सत्ता से किया था बाहर

साल 2003 में उमा भारती की लहर के चलते दिग्विजय सिंह सरकार को प्रदेश की सत्ता से बेदखल किया था. 8 दिसंबर 2003 को उमा भारती ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. हालांकि हुबली कांड के चलते 21 अगस्त 2004 को उमा भारती को इस्तीफा देना पड़ा था. इसके बाद बाबूलाल गौर को मुख्यमंत्री बनाया गया था. इसके अलावा उमा भारती ने केंद्र में भी अहम जिम्मेदारियां निभाईं हैं.

एक दशक बाद साथ आए उमा-शिवराज, आखिर क्या है इसके पीछे का सियासी राज ?

क्यों देना पड़ा था मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा

उमा भारती को 23 अगस्त, 2004 को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देना पड़ा था. इसके पीछे कारण यह था कि 15 अगस्त, 1994 को कर्नाटक के हुबली में उमा भारती ने तिरंगा झंडा फहराया था. दरअसल, कर्नाटक में हुबली की एक अदालत ने दंगा भड़काने समेत कुल 13 मामले दायर किये गए थे. इसमें से ही एक 10 साल पुराने मामले में उमा भारती के खिलाफ अदालत ने गैर जमानती वारंट जारी किया था.

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