भोपाल। मध्य प्रदेश में खराब वनों को अब प्रदेश के आदिवासी और गरीब किसान संवारेंगे. मध्य प्रदेश बांस मिशन मनरेगा के तहत स्व-सहायता समूह के माध्यम से किसानों से अनुबंध कर उनसे वन क्षेत्र में एक-एक हेक्टेयर भूमि पर बांस लगवाएगा, साथ ही अगले 60 सालों तक के लिए बांस कटाई का अधिकार भी उन्हें देगा. इस योजना के तहत एक साल में प्रदेश के 3164 आदिवासियों से अनुबंध किया गया है. इससे जहां प्रदेश में वनों की स्थिति सुधरेगी, वहीं गरीब किसानों को 4 साल बाद हर साल करीब डेढ़ लाख रुपए का आय बांस को बेचकर होगी.
एक साल में 3164 हेक्टेयर जंगल में लगाया गया बांस
मध्य प्रदेश बांस मिशन प्रदेश के बांस वनों के लिए नेशनल ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा गठित आदिवासी और ग्रामीणों के समूह को जोड़ रहा है. इन समूह के सदस्यों को वन क्षेत्र की एक-एक हेक्टेयर भूमि दी जाएगी. इन क्षेत्र में बांस रोपण कराने के लिए बैम्बु मिशन इन्हें बांस के पौधे देगा और अगले चार सालों तक मनरेगा के तहत इनकी देखभाल का जिम्मा सौंपा जाएगा.
60 सालों के लिए किया जाएगा अनुबंध
बैंबू मिशन के डाॅ. यूके सुबुद्धि के मुताबिक इन समूहों से अनुबंध किया जाएगा, इससे आदिवासी इन बांस को काट कर बेच भी सकेंगे. चौथे साल से बांस के भिर्रे से बांस निकलना शुरू हो जाते हैं. एक हेक्टेयर भूमि से एक साल में करीब एक से डेढ़ लाख रुपए की आय होती है. बांस की औसतन लाइफ 60 साल होती है, इस तरह अगले 60 सालों तक इन किसानों को आय होगी. प्रदेश में पिछले एक साल के दौरान 3164 किसानों को 3164 हेक्टेयर भूमि दी गई है, जिस पर बांस लगाया गया है. यह बांस बालाघाट, देवास, सतना, सिंगरौली, गुना, शिवपुरी, अलीराजपुर, दमोह, पन्ना, नरसिंहपुर, हरदा में लगाया गया है.
प्रदेश के 37,420 लाख हेक्टेयर क्षेत्र के वनों में सुधार की जरूरत
मध्य प्रदेश में कुल 94 हजार 689 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र है, इसमें से 37 हजार 420 लाख हेक्टेयर क्षेत्र का वन क्षेत्र बिगड़ा हुआ माना जाता है. इस वन क्षेत्र को सुधारने के लिए पिछले सालों में करोड़ों रुपए खर्च किए गए. साल 1990 में बिगड़े वनों को सुधारने के लिए राज्य सरकार वृक्ष सहकारिता योजना लाई थी. यह योजना करीब एक दशक तक चली, लेकिन वन विभाग इस योजना में करीब 100 करोड़ रुपए के घाटे में चली गई.
बिगड़े वन क्षेत्रों को सुधारन के लिए किए जाते हैं ये काम
मध्य प्रदेश सरकार ने पिछले साल भी इसको लेकर बड़ा कदम उठाने की तैयारी की थी. बिगड़े वनों को सुधारने के लिए निजी हाथों में काम सौंपने की तैयारी की गई, लेकिन इसको लेकर हुए भारी विरोध के चलते इसे टाल दिया गया था. रिटायर्ड आईएफएस अधिकारी कहते हैं कि बिगड़े वनों को सुधारने के लिए मुख्य रूप से तीन काम किए जाते हैं. पहला, आड़े तिरछे पेड़ों को काटा जाता है. इन्हें ठूंठ बना दिया जाता है. दूसरा, जिन वनों में गैप होता है, वहां पौधारोपण किया जाता है और तीसरा वाॅटर एंड स्वाइल कंजर्वेशन किया जाता है. पिछले सालों में इसको लेकर करोड़ों रुपए खर्च किए गए. पिछले करीब चार सालों से कैंपा फंड से इसको लेकर काम किया जा रहा है. क्षति पूरक वनीकरण कोष प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण यानी कैंपा के तहत प्रदेश सरकार को 5791.70 करोड़ रुपए मिले हैं. इस फंड का उपयोग वनीकरण के लिए किया जाता है.
अति सघन वन क्षेत्र बढ़ा, लेकिन घट गया हरियाली का स्तर
वन विभाग के ताजा आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में अति सघन वन क्षेत्र में 2 लाख 43 हजार 700 हेक्टेयर यानी करीब 2437 वर्ग किलोमीटर की बढोत्तरी हुई है. भारतीय वन सर्वेक्षण 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय वन सर्वेक्षण के अनुसार साल 2005 में प्रदेश में अति सघन वन क्षेत्र 4239 वर्ग किलोमीटर था, जो साल 2019 में बढ़कर 6676 वर्ग किलोमीर यानी 6 लाख 67 हजार 600 हेक्टेयर हो गया है. हालांकि प्रदेश में हरियाली का स्तर घटा है. यह स्थिति तब है जब प्रदेश में पिछले पांच सालों में जमकर पौधारोपण के दावे किए गए. आंकड़ों के हिसाब से देखा जाए तो पिछले पांच सालों में प्रदेश में 38.26 करोड़ पौधे लगाए गए. इस पर करीब ढाई हजार करोड़ रुपए खर्च किया गया. इसके बाद भी प्रदेश में हरियाली का स्तर 100 वर्ग किलोमीटर घटा है.