भोपाल। प्रदेश के कई जिले अभी भी कोरोना वायरस के संकट से जूझ रहे हैं तो वहीं हजारों की संख्या में लोगों का इलाज अस्पतालों में किया जा रहा है. संकट के दौर में भी सूबे का सियासी पारा गरम है. पिछले 20 दिनों से लगातार शिवराज मंत्रिमंडल के विस्तार को लेकर चर्चा का बाजार गर्म है. हालांकि इसे लेकर सीएम भी स्पष्ट कर चुके हैं कि जल्द ही मंत्रिमंडल का विस्तार किया जाएगा. लेकिन माना जा रहा है कि आम सहमति न बनने के कारण मंत्रिमंडल का विस्तार लगातार टल रहा है.
राज्यसभा चुनाव को लेकर भी राजनीतिक हलचल बढ़ गई है कांग्रेस और बीजेपी के सभी दिग्गज नेता विधायकों से लगातार संपर्क कर रहे हैं वहीं बीजेपी ने भी अपने सभी 107 विधायकों से संपर्क करना शुरू कर दिया है. सभी को चुनाव में वोटिंग और वरीयता क्रम अंकित करने की प्रक्रिया फिर से समझाई जाएगी. संगठन सभी विधायकों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए एक बैठक की तैयारी भी कर रहा है. सभी विधायकों को भोपाल बुलाकर यह बैठक आयोजित की जाएगी.
पार्टी विधान सभा उपचुनाव की तैयारियों में भी जुटी हुई है. मंगलवार को ही बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने प्रदेश कार्यालय पहुंचकर प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा और सुहास भगत से मुलाकात की है. इसके बाद उन्होंने सीएम से भी मुलाकात की थी. कैलाश विजयवर्गीय को मालवा की सीटों सांवेर, हाटपिपल्या, आगर और सुआसरा का जिम्मा सौंपा गया है.
मंत्रिमंडल को लेकर बीजेपी वरिष्ठ विधायक एवं पूर्व नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव पूर्व मंत्री विजय शाह एवं पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने सबसे पहले गोपाल भार्गव के बंगले पर पहुंचकर आपस में मंत्रणा की है हालांकि तीनों ने इसे सौजन्य भेंट बताया है. हालांकि इन तीनों ही नेताओं को मंत्री बनाए जाने का इंतजार है देर रात यह तीनों पूर्व मंत्री मुख्यमंत्री से मिलने के लिए उनके निवास पर पहुंचे. इन तीनों पूर्व मंत्रियों के साथ सीएम शिवराज सिंह चौहान ने करीब 1 घंटे तक चर्चा की है.
बताया जा रहा है कि मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर तीनों ही पूर्व मंत्रियों ने अपना पक्ष सीएम के सामने रखा है. साथ ही मंत्रिमंडल विस्तार जल्द किए जाने को लेकर भी सीएम से बातचीत की गई है. हालांकि यह निर्णय नहीं हो पाया है कि मंत्रिमंडल विस्तार अब किस तारीख को किया जाएगा. बताया जा रहा है कि जल्द ही सीएम शिवराज सिंह चौहान राज्यपाल से भेंट करेंगे इसके अलावा वे अपने केंद्रीय नेतृत्व से भी इसे लेकर चर्चा उपरांत ही कोई निर्णय लेंगे. क्योंकि इस समय सरकार के सामने सिंधिया समर्थक पूर्व विधायकों को भी मंत्री बनाने का दबाव है ऐसी स्थिति में पार्टी के अंदर सही समझ बैठाना सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है.