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लॉकडाउन के बाद बढ़े आत्महत्या के मामले, डिप्रेशन के शिकार लोगों को काउंसलिंग की सलाह - डिप्रेशन

राजधानी भोपाल में लॉकडाउन खत्म होते ही आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं. आत्महत्या के पीछे डिप्रेशन मुख्य वजह बताई जा रही है. खुदकुशी करने वालों में ज्यादातर 14 से 40 आयुवर्ग के लोग हैं.

Major suicide cases increased after lockdown
राजधानी में बढ़ रहे आत्महत्या के मामले
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Published : Jul 6, 2020, 7:21 AM IST

भोपाल। लॉकडाउन खत्म होते ही आत्महत्या के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. पिछले एक महीने के अंदर भोपाल के अलग-अलग थाना क्षेत्र से लगभग 50 मामले आत्महत्या के सामने आए हैं. जिसमें कुछ लोगों ने फांसी लगाई, तो कुछ लोगों ने तालाब में कूदकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली. खुदकुशी करने वालों में ज्यादातर 14 से 40 आयुवर्ग के लोग हैं. कुछ मामलों में तो माता-पिता की जरा सी डांट फटकार से भी युवाओं ने मौत को गले लगा लिया है.

राजधानी में बढ़ रहे आत्महत्या के मामले

इस मामले में डीआईजी इरशाद बनी का कहना है कि, आत्महत्या के ज्यादातर कारण डिप्रेशन होता है. या तो इंसान को कोई मानसिक तनाव होता है या फिर वो कमजोर परिस्थिति से हार मान के आत्महत्या का रास्ता चुन लेता है. आत्महत्या के ज्यादातर मामले युवाओं में देखने को मिलते हैं. ऐसे में सभी लोगों से अपील है कि, माता-पिता बच्चों की समय-समय पर काउंसलिंग करते रहें. अपने आसपास अगर कोई डिप्रेशन से ग्रस्त या कोई मानसिक बीमार लगे तो उन्हें काउंसलिंग की सलाह दें.

मनोचिकित्सक डॉक्टर रूमा भट्टाचार्य बताती हैं कि, आत्महत्या करने वाले किशोरावस्था से लेकर 40 साल की उम्र तक के बीच के लोग ज्यादा होते हैं. जो डिप्रेशन में आकर या अन्य मानसिक विकार के चलते आत्महत्या कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेते हैं. डॉक्टर रूमा का कहना है कि, फांसी लगाने से पहले लोगों के स्वभाव में परिवर्तन आता है, वो समाज से कटने लगता है और उसे भूख कम लगने लगती है. यहां तक की वो मन से मुरझाया सा दिखाई देने लगता है और उस पर मानसिक तनाव बढ़ जाता है. इस तरह के लक्षण किसी व्यक्ति में दिखे तो उसे तुरंत मनोचिकित्सक के पास ले जाकर उसका इलाज कराना चाहिए.

भोपाल। लॉकडाउन खत्म होते ही आत्महत्या के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. पिछले एक महीने के अंदर भोपाल के अलग-अलग थाना क्षेत्र से लगभग 50 मामले आत्महत्या के सामने आए हैं. जिसमें कुछ लोगों ने फांसी लगाई, तो कुछ लोगों ने तालाब में कूदकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली. खुदकुशी करने वालों में ज्यादातर 14 से 40 आयुवर्ग के लोग हैं. कुछ मामलों में तो माता-पिता की जरा सी डांट फटकार से भी युवाओं ने मौत को गले लगा लिया है.

राजधानी में बढ़ रहे आत्महत्या के मामले

इस मामले में डीआईजी इरशाद बनी का कहना है कि, आत्महत्या के ज्यादातर कारण डिप्रेशन होता है. या तो इंसान को कोई मानसिक तनाव होता है या फिर वो कमजोर परिस्थिति से हार मान के आत्महत्या का रास्ता चुन लेता है. आत्महत्या के ज्यादातर मामले युवाओं में देखने को मिलते हैं. ऐसे में सभी लोगों से अपील है कि, माता-पिता बच्चों की समय-समय पर काउंसलिंग करते रहें. अपने आसपास अगर कोई डिप्रेशन से ग्रस्त या कोई मानसिक बीमार लगे तो उन्हें काउंसलिंग की सलाह दें.

मनोचिकित्सक डॉक्टर रूमा भट्टाचार्य बताती हैं कि, आत्महत्या करने वाले किशोरावस्था से लेकर 40 साल की उम्र तक के बीच के लोग ज्यादा होते हैं. जो डिप्रेशन में आकर या अन्य मानसिक विकार के चलते आत्महत्या कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेते हैं. डॉक्टर रूमा का कहना है कि, फांसी लगाने से पहले लोगों के स्वभाव में परिवर्तन आता है, वो समाज से कटने लगता है और उसे भूख कम लगने लगती है. यहां तक की वो मन से मुरझाया सा दिखाई देने लगता है और उस पर मानसिक तनाव बढ़ जाता है. इस तरह के लक्षण किसी व्यक्ति में दिखे तो उसे तुरंत मनोचिकित्सक के पास ले जाकर उसका इलाज कराना चाहिए.

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