भोपाल। 1 नवंबर 1956 को जब मध्य प्रदेश का गठन हुआ, तब राज्य की राजधानी भोपाल को बनाया गया. बदलते दौर में पुरानी भोपाल विधानसभा से लेकर वर्तमान विधानसभा के निर्माण की कहानी जानिए ईटीवी भारत के साथ..
भोपाल विधानसभा की तस्वीर
देश की आजादी के बाद भोपाल विधानसभा का कार्यकाल मार्च 1952 से अक्टूबर 1956 तक लगभग साढ़े 4 साल तक रहा. इसके मुख्यमंत्री रहे डॉ शंकर दयाल शर्मा एवं विधानसभा के अध्यक्ष सुल्तान मोहम्मद खान थे. उस समय विधानसभा भवन स्टेट बैंक चौराहा पर हुआ करती है, जहां वर्तमान में लोकायुक्त कार्यालय है, लेकिन राज्यों के पुनर्गठन के बाद तस्वीर बदल गई.
पुराने विधानसभा भवन (मिंटो हॉल) की पृष्ठभूमि
राज्यों के पुनर्गठन के बाद नए मध्यप्रदेश का उदय हुआ. जिसकी विधानसभा के लिए मिंटोहॉल का चयन किया गया. इसमें पहली बार अलग-अलग विधानसभा के एकीकृत होने के बाद सारे प्रतिनिधि बैठे.पहले इस भवन को अतिथि गृह के रूप में इस्तेमाल किया जाता था. जिसके बाद कभी इस भवन में सेना मुख्यालय, पुलिस मुख्यालय और अन्य विभाग भी थे. वहीं शाही परिवार के बच्चे यहां स्केटिंग भी सीखा करते थे. 1956 तक यहां हमीदिया कॉलेज लगता रहा. जिसके बाद 1 नवंबर 1956 से यह भवन विधानसभा के रूप में परिवर्तित हुआ.
मिंटो हॉल के निर्माण की कहानी
अंग्रेजी राज्य और नवाबी हुकूमत के दौर के बाद लोकतंत्र के शासन के साक्षी मिंटो हॉल की कहानी 12 नवंबर 1909 से शुरू हुई. जब तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड मिंटो अपनी पत्नी के साथ भोपाल आए. भोपाल के शासक नवाब सुल्तान की बेगम को मेहमानों के रुकने के लिए इमारत की कमी महसूस हुई, जिसके बाद नई इमारत बनाने का फैसला लिया गया. इसका शिलान्यास लॉर्ड मिंटो ने किया था. इमारत लगभग 24 साल में 3 लाख रुपए के खर्च से बनाई गई थी.
अब के विधानसभा की कहानी
मिंटो हॉल में कई सालों तक विधानसभा चलती रही, जिसके बाद 1980 में नए भवन की जरूरत को ध्यान में रखकर 14 मार्च 1981 में तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष बलराम जाखड़ ने अरेरा पहाड़ी पर नए विधानसभा भवन का शिलान्यास किया. इसकी कीमत 10 करोड़ रुपए अनुमानित थी, लेकिन 12 सालों में यह इमारत 54 करोड़ के खर्च से तैयार हुई. इसका उद्धाटन तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने 1996 में किया.