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जिला अदालतों में पॉक्सो मामले में बनी स्पेशल कोर्ट, होशंगाबाद में हुआ अच्छा प्रयोग

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Published : Mar 30, 2021, 9:59 AM IST

NCRB के आंकड़ों के मुताबिक बाल अपराधों में मध्य प्रदेश देश में दूसरे नंबर पर है. जब मामले ज्यादा हों तो जल्द न्याय दिलाने के लिए ज्यादा स्पेशल कोर्ट की जरूरत है.

Need more court for speedy justice
जल्द न्याय के लिए ज्यादा कोर्ट की जरूरत

भोपाल। अपराधों के शिकार हुए पीड़ित बच्चों के मामलों की सुनवाई के लिए प्रदेश के सभी जिला अदालतों में स्पेशल कोर्ट बना दी गई हैं. इसमें स्पेशल पॉक्सो कोर्ट ऐसे मामलों की सुनवाई कर रही है. ये कदम सुप्रीम कोर्ट के आदेश और फटकार के बाद उठाया गया है. हालांकि इस मामले में सबसे बेहतर कदम होशंगाबाद जिले में उठाया गया है. जहां कोर्ट परिसर में इसके लिए नया भवन बनाया गया है. इसमें सुनवाई के लिए आने वाले पीड़ित बच्चों के लिए बेहतर व्यवस्था की गई है.

Juvenile justice board is different from juvenile court
किशोर न्याय बोर्ड से अलग है बाल कोर्ट

मध्य प्रदेश में स्पेशल कोर्ट की ज्यादा जरूरत

मध्यप्रदेश में पॉक्सो के लिए स्पेशल कोर्ट की ज्यादा जरूरत थी. प्रदेश में देश के कई राज्यों के मुकाबले बाल अपराधों की संख्या ज्यादा है. NCRB के आंकड़ों के मुताबिक पॉक्सो एक्ट के मामलों में देश में 18.9 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. देश में 1 लाख 48 हजार 185 मामले बच्चों के खिलाफ दर्ज हुे. बच्चों के खिलाफ अपराध के मामले में उत्तर प्रदेश टॉप पर है. मध्यप्रदेश दूसरे नंबर पर आता है. NCRB की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार मध्यप्रदेश में बच्चियों के खिलाफ 6053 मामले रजिस्टर्ड हुए. यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट बनाने के निर्देश दिए हैं.

Children's Communication Home for improvement
सुधार के लिए बच्चों को भेजा जाता है बाल संप्रेषण गृह

किशोर न्याय बोर्ड से अलग है बाल कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बनाई गई बाल कोर्ट, किशोर न्याय बोर्ड से अलग है. चाइल्ड लाइन की डायरेक्टर अर्चना सहाय कहती हैं, कि किशोर न्याय बोर्ड में ऐसे नाबालिग बच्चों के मामलों की सुनवाई की जाती है जिन्होंने कानून का उल्लंघन किया है और वे किसी अपराध में लिप्त पाए जाते हैं. ऐसे बच्चों की किशोर कोर्ट में सुनवाई की जाती है. सुनवाई के बाद बच्चों को संप्रेक्षण सुधार गृह में रखा जाता है. जमानत मिलने के बाद उन्हें घर भेज दिया जाता है. ऐसे बच्चों को लेकर बोर्ड का नरम रुख रहता है, ताकि ऐसे बच्चों को सुधार की दिशा में लाया जा सके. बाल कोर्ट में ऐसे बच्चों के मामले पर सुनवाई होती है जो पॉक्सो एक्ट में पीड़ित होते हैं.

मध्य प्रदेश में स्पेशल कोर्ट की ज्यादा जरूरत

छिपायें नहीं बतायें: पॉक्सो कोर्ट के रास्ते में दम तोड़ती मासूमों की 'सिसकियां'!

बच्चों के लिए स्पेशल कोर्ट क्यों ?

नौ फरवरी 2018 को एक जनहित याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिए थे, कि बाल अधिकार संरक्षण आयोग, किशोर न्याय बोर्ड और बाल कल्याण समितियों में खाली पदों को भरा जाए. साथ ही हर जिले में बाल कोर्ट खोलने के भी आदेश दिए गए थे. मध्य प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य बृजेश चौहान के मुताबिक, बाल अदालतों को लेकर इसलिए निर्देश दिए गए ताकि पॉक्सो मामलों की सुनवाई के लिए आने वाले बच्चे बिना डर और झिझक के अपनी बात कह सकें. साथ ही उनके दिलों दिमाग पर अनावश्यक दबाव ना पड़े.

भोपाल। अपराधों के शिकार हुए पीड़ित बच्चों के मामलों की सुनवाई के लिए प्रदेश के सभी जिला अदालतों में स्पेशल कोर्ट बना दी गई हैं. इसमें स्पेशल पॉक्सो कोर्ट ऐसे मामलों की सुनवाई कर रही है. ये कदम सुप्रीम कोर्ट के आदेश और फटकार के बाद उठाया गया है. हालांकि इस मामले में सबसे बेहतर कदम होशंगाबाद जिले में उठाया गया है. जहां कोर्ट परिसर में इसके लिए नया भवन बनाया गया है. इसमें सुनवाई के लिए आने वाले पीड़ित बच्चों के लिए बेहतर व्यवस्था की गई है.

Juvenile justice board is different from juvenile court
किशोर न्याय बोर्ड से अलग है बाल कोर्ट

मध्य प्रदेश में स्पेशल कोर्ट की ज्यादा जरूरत

मध्यप्रदेश में पॉक्सो के लिए स्पेशल कोर्ट की ज्यादा जरूरत थी. प्रदेश में देश के कई राज्यों के मुकाबले बाल अपराधों की संख्या ज्यादा है. NCRB के आंकड़ों के मुताबिक पॉक्सो एक्ट के मामलों में देश में 18.9 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. देश में 1 लाख 48 हजार 185 मामले बच्चों के खिलाफ दर्ज हुे. बच्चों के खिलाफ अपराध के मामले में उत्तर प्रदेश टॉप पर है. मध्यप्रदेश दूसरे नंबर पर आता है. NCRB की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार मध्यप्रदेश में बच्चियों के खिलाफ 6053 मामले रजिस्टर्ड हुए. यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट बनाने के निर्देश दिए हैं.

Children's Communication Home for improvement
सुधार के लिए बच्चों को भेजा जाता है बाल संप्रेषण गृह

किशोर न्याय बोर्ड से अलग है बाल कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बनाई गई बाल कोर्ट, किशोर न्याय बोर्ड से अलग है. चाइल्ड लाइन की डायरेक्टर अर्चना सहाय कहती हैं, कि किशोर न्याय बोर्ड में ऐसे नाबालिग बच्चों के मामलों की सुनवाई की जाती है जिन्होंने कानून का उल्लंघन किया है और वे किसी अपराध में लिप्त पाए जाते हैं. ऐसे बच्चों की किशोर कोर्ट में सुनवाई की जाती है. सुनवाई के बाद बच्चों को संप्रेक्षण सुधार गृह में रखा जाता है. जमानत मिलने के बाद उन्हें घर भेज दिया जाता है. ऐसे बच्चों को लेकर बोर्ड का नरम रुख रहता है, ताकि ऐसे बच्चों को सुधार की दिशा में लाया जा सके. बाल कोर्ट में ऐसे बच्चों के मामले पर सुनवाई होती है जो पॉक्सो एक्ट में पीड़ित होते हैं.

मध्य प्रदेश में स्पेशल कोर्ट की ज्यादा जरूरत

छिपायें नहीं बतायें: पॉक्सो कोर्ट के रास्ते में दम तोड़ती मासूमों की 'सिसकियां'!

बच्चों के लिए स्पेशल कोर्ट क्यों ?

नौ फरवरी 2018 को एक जनहित याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिए थे, कि बाल अधिकार संरक्षण आयोग, किशोर न्याय बोर्ड और बाल कल्याण समितियों में खाली पदों को भरा जाए. साथ ही हर जिले में बाल कोर्ट खोलने के भी आदेश दिए गए थे. मध्य प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य बृजेश चौहान के मुताबिक, बाल अदालतों को लेकर इसलिए निर्देश दिए गए ताकि पॉक्सो मामलों की सुनवाई के लिए आने वाले बच्चे बिना डर और झिझक के अपनी बात कह सकें. साथ ही उनके दिलों दिमाग पर अनावश्यक दबाव ना पड़े.

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