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MP में सरकारी बीज नहीं मिलने से किसान 'स्वाहा', खतरे में सोयाबीन स्टेट का दर्जा

किसानों की आय दोगुनी करने वाले सियासी नारे अक्सर सुनाई पड़ जाते हैं, चुनावी मौसम में तो ऐसे नारों की बहार रहती है, जबकि इसकी वास्तविकता बिल्कुल इसके उलट है, किसान की आय बढ़ने की बजाय घटती जा रही है, कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है, जिसकी वजह से किसान मौत को भी गले लगा रहा है. मध्यप्रदेश सरकार न तो किसानों को प्रमाणित बीज मुहैया करा पा रही है, न ही खाद. जिसके चलते सोयाबीन किसान बोवनी नहीं कर पा रहे हैं, खुद कृषि मंत्री भी किसानों के घाटे व बीज के अभाव की बात मान रहे हैं.

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Published : Jun 23, 2021, 3:36 PM IST

भोपाल। देश में सबसे अधिक सोयाबीन उत्पादन करने वाले सोयाबीन राज्य (Soyabean State) के किसान आजकल बुरे दौर से गुजर रहे हैं. बाजारों में नकली बीज (Fake Seed) की भरमार और महंगाई से किसान परेशान हैं, पिछले पांच सालों से मौसम की मार झेल रहे किसान अब नए प्रमाणित बीज की किल्लत से जूझ रहे हैं, जिसके चलते उन्हें बाजार से नकली-महंगे बीज खरीदने पड़ रहे हैं, लिहाजा अब किसान सोयाबीन के बदले दूसरी फसलों को तवज्जों देने की तैयारी कर रहे हैं. खुद (Agriculture Minister) कृषि मंत्री कमल पटेल (Kamal Patel) भी ये मानते हैं कि सोयाबीन की खेती करने वाले किसान घाटे में हैं. मंत्री ने बताया कि एक एकड़ सोयाबीन की खेती में करीब 12 से 15 हजार रुपए लागत आती है, जबकि एक एकड़ में होने वाली फसल से सिर्फ 10 से 12 हजार रुपए की ही कमाई हो पाती है, ऐसे में किसानों को घाटे की खेती से बचना चाहिए.

कमल पटेल, कृषि मंत्री

बारिश से सोयाबीन, मक्का और कपास की फसल बर्बाद, अब तो किसान की पुकार सुनो सरकार!

सोयाबीन के विकल्प पर विचार करें किसान

प्रदेश में पिछले साल 5858 मिलियन हेक्टर भूमि पर सोयाबीन की खेती की गई थी, जबकि पिछले पांच सालों से खराब मौसम की वजह से फसल चौपट होती रही है, लिहाजा अब नए प्रमाणित बीज की आवश्यकता है, जोकि बाजार में उपलब्ध नहीं है, वहीं नकली बीज की उपलब्धता से किसान भी असमंजस में है, प्रदेश के कृषि मंत्री खुद भी इस बात को मान रहे हैं कि नए प्रमाणित बीज की कमी है, आधुनिक बीज के अभाव में किसानों को सोयाबीन के बदले दूसरी फसलों की खेती पर विचार करना चाहिए.

56 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में होती है खेती

प्रदेश में पिछले साल की तुलना में सोयाबीन का क्षेत्र 2020-21 में लगभग 12% बढ़ा था, जबकि 2019-20 में सोयाबीन का उत्पादन 40,107 लाख टन था. सूबे में करीब 56 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन की खेती (Soyabean Farming) होती है, इसके लिए करीब 45 लाख क्विंटल बीज की जरूरत पड़ती है, कृषि विभाग की निगरानी में मध्यप्रदेश बीज निगम, राष्ट्रीय बीज निगम, कृभको, नाफेड, बीज प्रमाणीकरण संस्था और बीज उत्पादक सहकारी संस्थाओं के जरिये बीज उपलब्ध कराया जाता है, जोकि इस बार उत्पादन नहीं कर पाये.

2000 क्विंटल कम हुआ बीज का उत्पादन

भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान इंदौर, जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर के अलावा राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान केंद्रों पर सोयाबीन का ब्रीडर सीड तैयार किया जाता है. खराब मौसम का असर इन केंद्रों के उत्पादन पर भी पड़ा है. ये केंद्र मिलकर हर साल करीब 6 हजार क्विंटल ब्रीडर सीड का उत्पादन करते थे, जोकि इस साल 4000 क्विंटल पर ही सिमट गया. ब्रीडर सीड (Breader Seeds) से सर्टिफाइड सीड तैयार कर किसानों को उपलब्ध कराया जाता है.

सोयाबीन स्टेट के स्टेटस पर खतरा!

प्रदेश के किसानों को सोयाबीन के प्रमाणित बीज नहीं मिल पाने से बोवनी में देरी हो रही है, जबकि किसान पिछले पांच सालों से सोयाबीन की खेती से घाटा उठा रहा है. ऐसी स्थिति में मध्यप्रदेश के सोयाबीन स्टेट (Soyabean State) वाले स्टेटस पर भी खतरा मंडराने लगा है, यही हाल रहा तो महाराष्ट्र एमपी को पटखनी देकर नंबर वन बन जाएगा. प्रदेश सरकार भी इस ओर ध्यान नहीं दे रही है, प्रमाणित-विश्वसनीय बीज की कमी के चलते बीज दोगुने से भी अधिक दाम पर मिल रहे हैं. सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SOPA) हर बार सोयाबीन की खेती से होने वाले फायदे नुकसान का आंकलन करता है.

12000 रुपए क्विंटल तक बिक रहा सोयाबीन
हर साल गांव में सस्ते दामों पर बीज निगम और सहकारी समितियां सोयाबीन उपलब्ध कराती थी, जिन्हें किसान बोवनी के लिए उपयोग करते थे, पिछले 5 सालों से खराब होती सोयाबीन के चलते वह गुणवत्ता मानकों पर खरा नहीं उतर रहा, इससे सोयाबीन की कमी होती गई, कृषि विभाग को अलग-अलग संभागों से सोयाबीन की मांग बढ़ती जा रही है, पर विभाग इसकी आवक नहीं कर पा रहा है, व्यापारी भी ग्रेडिंग कराकर खुले बाजार में सोयाबीन 11 से 12 हजार रुपए प्रति क्विंटल में बेच रहे हैं, जबकि सोयाबीन सामान्यत: 4 से ₹5000 क्विंटल में बिकता था, किसान अब दोगुने दाम पर सोयाबीन खरीदने को मजबूर हैं.

राष्ट्रीय बीज निगम से मंगाया जाएगा नया बीज

कृषि मंत्री कमल पटेल का कहना है कि पिछले साल एक हेक्टेयर में औसतन छह क्विंटल सोयाबीन की पैदावार हुई थी, जिसकी बाजार में कीमत 10 से 12 हजार रुपए है, जबकि औसतन लागत ₹14 हजार रुपए आती है, ऐसे में किसानों की आय नहीं बढ़ पा रही है, जिसके लिये सोयाबीन की जगह अन्य खरीफ फसलों को उगाने की सलाह दी जा रही है. केंद्रीय कृषि मंत्री (Union Agriculture Minister) नरेंद्र सिंह तोमर (Narendra Singh Tomar) से चर्चा कर कृषि विज्ञान केंद्रों पर इजात किए गए नए आधुनिक सोयाबीन बीज को राष्ट्रीय बीज निगम के माध्यम से मंगाया जा रहा है, नया बीज देने की बात कह रहे हैं, बोवनी का समय आ चुका है, फिलहाल मार्केट में नया बीज नहीं पहुंच सका है, ऐसे में कैसे किसानों की आय दोगुनी होगी, ये बड़ा सवाल है.

भोपाल। देश में सबसे अधिक सोयाबीन उत्पादन करने वाले सोयाबीन राज्य (Soyabean State) के किसान आजकल बुरे दौर से गुजर रहे हैं. बाजारों में नकली बीज (Fake Seed) की भरमार और महंगाई से किसान परेशान हैं, पिछले पांच सालों से मौसम की मार झेल रहे किसान अब नए प्रमाणित बीज की किल्लत से जूझ रहे हैं, जिसके चलते उन्हें बाजार से नकली-महंगे बीज खरीदने पड़ रहे हैं, लिहाजा अब किसान सोयाबीन के बदले दूसरी फसलों को तवज्जों देने की तैयारी कर रहे हैं. खुद (Agriculture Minister) कृषि मंत्री कमल पटेल (Kamal Patel) भी ये मानते हैं कि सोयाबीन की खेती करने वाले किसान घाटे में हैं. मंत्री ने बताया कि एक एकड़ सोयाबीन की खेती में करीब 12 से 15 हजार रुपए लागत आती है, जबकि एक एकड़ में होने वाली फसल से सिर्फ 10 से 12 हजार रुपए की ही कमाई हो पाती है, ऐसे में किसानों को घाटे की खेती से बचना चाहिए.

कमल पटेल, कृषि मंत्री

बारिश से सोयाबीन, मक्का और कपास की फसल बर्बाद, अब तो किसान की पुकार सुनो सरकार!

सोयाबीन के विकल्प पर विचार करें किसान

प्रदेश में पिछले साल 5858 मिलियन हेक्टर भूमि पर सोयाबीन की खेती की गई थी, जबकि पिछले पांच सालों से खराब मौसम की वजह से फसल चौपट होती रही है, लिहाजा अब नए प्रमाणित बीज की आवश्यकता है, जोकि बाजार में उपलब्ध नहीं है, वहीं नकली बीज की उपलब्धता से किसान भी असमंजस में है, प्रदेश के कृषि मंत्री खुद भी इस बात को मान रहे हैं कि नए प्रमाणित बीज की कमी है, आधुनिक बीज के अभाव में किसानों को सोयाबीन के बदले दूसरी फसलों की खेती पर विचार करना चाहिए.

56 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में होती है खेती

प्रदेश में पिछले साल की तुलना में सोयाबीन का क्षेत्र 2020-21 में लगभग 12% बढ़ा था, जबकि 2019-20 में सोयाबीन का उत्पादन 40,107 लाख टन था. सूबे में करीब 56 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन की खेती (Soyabean Farming) होती है, इसके लिए करीब 45 लाख क्विंटल बीज की जरूरत पड़ती है, कृषि विभाग की निगरानी में मध्यप्रदेश बीज निगम, राष्ट्रीय बीज निगम, कृभको, नाफेड, बीज प्रमाणीकरण संस्था और बीज उत्पादक सहकारी संस्थाओं के जरिये बीज उपलब्ध कराया जाता है, जोकि इस बार उत्पादन नहीं कर पाये.

2000 क्विंटल कम हुआ बीज का उत्पादन

भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान इंदौर, जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर के अलावा राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान केंद्रों पर सोयाबीन का ब्रीडर सीड तैयार किया जाता है. खराब मौसम का असर इन केंद्रों के उत्पादन पर भी पड़ा है. ये केंद्र मिलकर हर साल करीब 6 हजार क्विंटल ब्रीडर सीड का उत्पादन करते थे, जोकि इस साल 4000 क्विंटल पर ही सिमट गया. ब्रीडर सीड (Breader Seeds) से सर्टिफाइड सीड तैयार कर किसानों को उपलब्ध कराया जाता है.

सोयाबीन स्टेट के स्टेटस पर खतरा!

प्रदेश के किसानों को सोयाबीन के प्रमाणित बीज नहीं मिल पाने से बोवनी में देरी हो रही है, जबकि किसान पिछले पांच सालों से सोयाबीन की खेती से घाटा उठा रहा है. ऐसी स्थिति में मध्यप्रदेश के सोयाबीन स्टेट (Soyabean State) वाले स्टेटस पर भी खतरा मंडराने लगा है, यही हाल रहा तो महाराष्ट्र एमपी को पटखनी देकर नंबर वन बन जाएगा. प्रदेश सरकार भी इस ओर ध्यान नहीं दे रही है, प्रमाणित-विश्वसनीय बीज की कमी के चलते बीज दोगुने से भी अधिक दाम पर मिल रहे हैं. सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SOPA) हर बार सोयाबीन की खेती से होने वाले फायदे नुकसान का आंकलन करता है.

12000 रुपए क्विंटल तक बिक रहा सोयाबीन
हर साल गांव में सस्ते दामों पर बीज निगम और सहकारी समितियां सोयाबीन उपलब्ध कराती थी, जिन्हें किसान बोवनी के लिए उपयोग करते थे, पिछले 5 सालों से खराब होती सोयाबीन के चलते वह गुणवत्ता मानकों पर खरा नहीं उतर रहा, इससे सोयाबीन की कमी होती गई, कृषि विभाग को अलग-अलग संभागों से सोयाबीन की मांग बढ़ती जा रही है, पर विभाग इसकी आवक नहीं कर पा रहा है, व्यापारी भी ग्रेडिंग कराकर खुले बाजार में सोयाबीन 11 से 12 हजार रुपए प्रति क्विंटल में बेच रहे हैं, जबकि सोयाबीन सामान्यत: 4 से ₹5000 क्विंटल में बिकता था, किसान अब दोगुने दाम पर सोयाबीन खरीदने को मजबूर हैं.

राष्ट्रीय बीज निगम से मंगाया जाएगा नया बीज

कृषि मंत्री कमल पटेल का कहना है कि पिछले साल एक हेक्टेयर में औसतन छह क्विंटल सोयाबीन की पैदावार हुई थी, जिसकी बाजार में कीमत 10 से 12 हजार रुपए है, जबकि औसतन लागत ₹14 हजार रुपए आती है, ऐसे में किसानों की आय नहीं बढ़ पा रही है, जिसके लिये सोयाबीन की जगह अन्य खरीफ फसलों को उगाने की सलाह दी जा रही है. केंद्रीय कृषि मंत्री (Union Agriculture Minister) नरेंद्र सिंह तोमर (Narendra Singh Tomar) से चर्चा कर कृषि विज्ञान केंद्रों पर इजात किए गए नए आधुनिक सोयाबीन बीज को राष्ट्रीय बीज निगम के माध्यम से मंगाया जा रहा है, नया बीज देने की बात कह रहे हैं, बोवनी का समय आ चुका है, फिलहाल मार्केट में नया बीज नहीं पहुंच सका है, ऐसे में कैसे किसानों की आय दोगुनी होगी, ये बड़ा सवाल है.

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