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कर्ज का मर्ज: प्रदेश सरकार फिर लेगी 1000 करोड़ कर्ज, 2 लाख करोड़ से अधिक हुआ बोझ

मध्यप्रदेश सरकार एक बार फिर कर्ज लेने जा रही है. अब चुनाव परिणामों के आने के बाद माना जा रहा है कि इस कर्ज का असर आम आदमी पर पड़ेगा.

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शिवराज सरकार लगातार ले रही कर्ज
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Published : Nov 5, 2020, 11:34 AM IST

Updated : Nov 5, 2020, 7:23 PM IST

भोपाल। मध्यप्रदेश की पिछले कई सालों से बिगड़ती आर्थिक हालत और राजस्व में लगातार कमी के कारण सरकार कर्ज लेती जा रही है. हालात ये हैं कि, कर्ज का मर्ज बढ़ता जा रहा है और प्रदेश का नागरिक कर्ज के बोझ तले दबता जा रहा है. प्रदेश सरकार लंबित परियोजनाओं और विकास कार्यों के लिए केंद्र सरकार, रिजर्व बैंक और दूसरे वित्तीय संस्थानों से लगातार कर्ज ले रही है. स्थिति ये है कि, कर्ज का ये आंकड़ा 2 लाख 2 हजार करोड़ के ऊपर जा चुका है.

लॉकडाउन से बिगड़े आर्थिक हालात

कोरोना लॉकडाउन से बिगड़े आर्थिक हालातों के कारण स्थिति और भी गंभीर होती जा रही है. स्थिति ये है कि, अक्टूबर माह में ही शिवराज सरकार को तीन बार कर्ज लेने की जरूरत पड़ी. पिछले कुछ महीनों से प्रदेश के कर्मचारियों का वेतन बांटने के लिए भी कर्ज लेना पड़ रहा है. आर्थिक जानकारों की मानें तो, प्रदेश की स्थिति कोरोना लॉकडाउन के पहले भी खराब थी और ये हालात प्रदेश सरकार के कोष प्रबंधन के कारण बने हैं. दूसरी तरफ सरकार ने प्रदेश की आय बढ़ाने के स्रोतों पर ध्यान नहीं दिया और हालात अब ये हैं कि, प्रदेश के नागरिकों को चुनाव के बाद भारी महंगाई का सामना करना पड़ सकता है. खासकर पेट्रोल-डीजल पर प्रदेश सरकार टैक्स लगा सकती है और इसका असर दूसरी चीजों की महंगाई पर दिखेगा और सीधा असर आम आदमी पर पड़ेगा.

2 लाख करोड़ से ज्यादा है कर्ज

मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने अक्टूबर माह में तीन बार में एक-एक हजार करोड़ का कर्ज लिया. इस प्रकार मध्य प्रदेश सरकार पर दो लाख 2989 करोड़ का कर्ज हो चुका है. एक अनुमान के मुताबिक प्रदेश के प्रत्येक नागरिक पर 28 हजार रुपए से ज्यादा का कर्ज हो चुका है. मौजूदा हालात ये है कि, सरकार को वेतन बांटने से लेकर पेंशन के लिए भी कर्ज लेना पड़ रहा है. कोरोना वायरस के बाद तो सरकार ने कर्मचारियों की वेतन वृद्धि, सातवें वेतनमान के एरियर और डीए पर भी रोक लगा दी है.

शिवराज सरकार लगातार ले रही कर्ज

पिछले 2 सालों में बढ़ा कर्ज का मर्ज

दिसंबर 2018 में जब कमलनाथ सरकार के हाथ में शिवराज सिंह ने सत्ता सौंपी थी, तब सरकार पर करीब 1 लाख 65 हजार करोड़ का विभिन्न संस्थाओं का कर्ज था. इसके बाद कमलनाथ सरकार ने 15 महीने में करीब 24 हजार करोड़ रुपए का कर्ज लिया. जब कमलनाथ सरकार गिरी और शिवराज सरकार अस्तित्व में आई, तो कर्ज का आंकड़ा करीब 1 लाख 89 हजार करोड़ तक पहुंच गया. इसके बाद शिवराज सरकार ने अप्रैल 2020 से अक्टूबर 2020 तक की अवधि में ही 10 हजार 5 सौ करोड़ का कर्ज लिया है. शिवराज सरकार का तर्क है कि, कोरोना के कारण राजस्व की बड़े पैमाने पर कमी आई है और ऐसी स्थिति में जरूरी परियोजना और विकास कार्यों के अलावा अधिकारी, कर्मचारियों के वेतन के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है.

शिवराज ने सात माह में लिया 10 हजार 500 करोड़ का कर्ज

  • 7 अप्रैल 2020- 500 करोड़ रुपए
  • 2 जून 2020- 500 करोड़ रुपए
  • 9 जून 2020- 500 करोड़ रुपए
  • 7 जुलाई 2020- 1000 करोड़ रुपए
  • 14 जुलाई 2020- 1000 करोड़ रुपए
  • 4 अगस्त 2020- 1000 करोड़ रुपए
  • 12 अगस्त 2020- 1000 करोड़ रुपए
  • 9 सितंबर 2020- 1000 करोड़ रुपए
  • 16 सितंबर 2020- 1000 करोड़ रुपए
  • 7 अक्टूबर 2020- 1000 करोड़ रुपए
  • 14 अक्टूबर 2020- 1000 करोड़ रुपए
  • 21 अक्टूबर 2020- 1000 करोड़ रुपए

कमलनाथ सरकार भी कर्ज लेने में नहीं रही पीछे

2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने प्रदेश की आर्थिक बदहाली को मुद्दा बनाते हुए शिवराज सरकार द्वारा लगातार कर्ज लेने पर सवाल खड़े किए थे, क्योंकि 2018 में जब विधानसभा चुनाव हुए, तब मध्य प्रदेश सरकार पर 1 लाख 65 हजार करोड़ का कर्ज हो चुका था. 2003 में जब शिवराज सरकार अस्तित्व में आई थी, तो मध्यप्रदेश पर 20 हजार 147 करोड़ का कर्ज था. शिवराज सरकार ने अपने 15 साल के कार्यकाल में करीब 1 लाख 45 हजार करोड़ कर्ज लिया. कमलनाथ सरकार जब अस्तित्व में आई तो किसान कर्ज माफी, किसानों को गेहूं का बोनस और खराब सड़कों को सुधारने के नाम पर उसने अपने कार्यकाल में करीब 24 हजार करोड़ का कर्ज लिया.

  • 11 जनवरी 2019- 1000 करोड़ का कर्ज
  • 1 फरवरी 2019- 1000 करोड़ का कर्ज
  • 8 फरवरी 2019- 1000 करोड़ का कर्ज
  • 22 फरवरी 2019- 1000 करोड़ का कर्ज
  • 28 फरवरी 2019- 1000 करोड़ का कर्ज
  • 8 मार्च 2019- 1000 करोड़ का कर्ज
  • 25 मार्च 2019- 600 करोड़ का कर्ज
  • 5 अप्रैल 2019- 500 करोड़ का कर्ज
  • 30 अप्रैल 2019- 500 करोड़ का कर्ज
  • 3 मई 2019- 1000 करोड़ का कर्ज
  • 30 मई 2019- 1000 करोड़ का कर्ज।
  • 7 जून 2019- 1000 करोड़ का कर्ज
  • 5 जुलाई 2019- 1000 करोड़ का कर्ज
  • 2 अगस्त 2019- 1000 करोड़ रुपए कर्ज
  • 6 अगस्त 2019- 1000 करोड़ का कर्ज
  • 4 सितंबर 2019- 2000 करोड़ का कर्ज
  • 7 नवंबर 2019- 1000 करोड़ का कर्ज
  • 5 दिसम्बर 2019- 1000 करोड़ का कर्ज
  • 22 दिसम्बर 2019- 1000 करोड़ का कर्ज
  • 4 जनवरी 2020- 2000 करोड़ का कर्ज
  • 16 जनवरी 2020- 2000 करोड़ का कर्ज
  • 11 फरवरी 2020- 1000 करोड़ का कर्ज
  • 20 फरवरी 2020- 500 करोड़ का कर्ज

फंड मिसमैनेजमेंट के कारण बने मध्य प्रदेश के हालात

प्रदेश कांग्रेस का कहना है कि, हमने जो भी कर्ज लिया, वो बीआर एफएम की लिमिट के अंदर लिया. फंड मिसमैनेजमेंट मध्यप्रदेश में जबरदस्त तरीके से हो रहा है. एप्रोपिएशन ऑफ फंड के जरिए जो बजट में व्यय को दूसरे मदों में दुरुपयोग किया जा रहा है. यह सारी चीजें सरकार के अंदर प्रक्रिया का हिस्सा हैं, लेकिन नैतिक दृष्टि से चीजें गलत हैं. लेकिन सरकार कह सकती है कि, उसे ऐसा करने का अधिकार है.

चुनाव के बाद महंगाई झेलने तैयार रहे प्रदेश की जनता

वित्तीय मामलों के जानकार कपिल होल्कर कहते हैं कि, सरकार की स्थिति कोरोना के बाद से नहीं, बल्कि पहले से ही खराब रही है. उसका एक ही कारण है कि, फंड का मिसमैनेजमेंट और दूसरी वजह है कि, अपने प्रदेश में उद्योग धंधों को बढ़ावा नहीं दिया गया, ना ही आपके यहां अच्छे उद्योग हैं और ना ही रोजगार के अवसर हैं. जहां तक आप कर्ज की बात कर रहे हैं, तो आप समझ लीजिए कि, सरकार का लिया हुआ कर्ज प्रदेश के नागरिकों को उसके ब्याज और कर्ज सहित चुकाना पड़ता है.

भोपाल। मध्यप्रदेश की पिछले कई सालों से बिगड़ती आर्थिक हालत और राजस्व में लगातार कमी के कारण सरकार कर्ज लेती जा रही है. हालात ये हैं कि, कर्ज का मर्ज बढ़ता जा रहा है और प्रदेश का नागरिक कर्ज के बोझ तले दबता जा रहा है. प्रदेश सरकार लंबित परियोजनाओं और विकास कार्यों के लिए केंद्र सरकार, रिजर्व बैंक और दूसरे वित्तीय संस्थानों से लगातार कर्ज ले रही है. स्थिति ये है कि, कर्ज का ये आंकड़ा 2 लाख 2 हजार करोड़ के ऊपर जा चुका है.

लॉकडाउन से बिगड़े आर्थिक हालात

कोरोना लॉकडाउन से बिगड़े आर्थिक हालातों के कारण स्थिति और भी गंभीर होती जा रही है. स्थिति ये है कि, अक्टूबर माह में ही शिवराज सरकार को तीन बार कर्ज लेने की जरूरत पड़ी. पिछले कुछ महीनों से प्रदेश के कर्मचारियों का वेतन बांटने के लिए भी कर्ज लेना पड़ रहा है. आर्थिक जानकारों की मानें तो, प्रदेश की स्थिति कोरोना लॉकडाउन के पहले भी खराब थी और ये हालात प्रदेश सरकार के कोष प्रबंधन के कारण बने हैं. दूसरी तरफ सरकार ने प्रदेश की आय बढ़ाने के स्रोतों पर ध्यान नहीं दिया और हालात अब ये हैं कि, प्रदेश के नागरिकों को चुनाव के बाद भारी महंगाई का सामना करना पड़ सकता है. खासकर पेट्रोल-डीजल पर प्रदेश सरकार टैक्स लगा सकती है और इसका असर दूसरी चीजों की महंगाई पर दिखेगा और सीधा असर आम आदमी पर पड़ेगा.

2 लाख करोड़ से ज्यादा है कर्ज

मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने अक्टूबर माह में तीन बार में एक-एक हजार करोड़ का कर्ज लिया. इस प्रकार मध्य प्रदेश सरकार पर दो लाख 2989 करोड़ का कर्ज हो चुका है. एक अनुमान के मुताबिक प्रदेश के प्रत्येक नागरिक पर 28 हजार रुपए से ज्यादा का कर्ज हो चुका है. मौजूदा हालात ये है कि, सरकार को वेतन बांटने से लेकर पेंशन के लिए भी कर्ज लेना पड़ रहा है. कोरोना वायरस के बाद तो सरकार ने कर्मचारियों की वेतन वृद्धि, सातवें वेतनमान के एरियर और डीए पर भी रोक लगा दी है.

शिवराज सरकार लगातार ले रही कर्ज

पिछले 2 सालों में बढ़ा कर्ज का मर्ज

दिसंबर 2018 में जब कमलनाथ सरकार के हाथ में शिवराज सिंह ने सत्ता सौंपी थी, तब सरकार पर करीब 1 लाख 65 हजार करोड़ का विभिन्न संस्थाओं का कर्ज था. इसके बाद कमलनाथ सरकार ने 15 महीने में करीब 24 हजार करोड़ रुपए का कर्ज लिया. जब कमलनाथ सरकार गिरी और शिवराज सरकार अस्तित्व में आई, तो कर्ज का आंकड़ा करीब 1 लाख 89 हजार करोड़ तक पहुंच गया. इसके बाद शिवराज सरकार ने अप्रैल 2020 से अक्टूबर 2020 तक की अवधि में ही 10 हजार 5 सौ करोड़ का कर्ज लिया है. शिवराज सरकार का तर्क है कि, कोरोना के कारण राजस्व की बड़े पैमाने पर कमी आई है और ऐसी स्थिति में जरूरी परियोजना और विकास कार्यों के अलावा अधिकारी, कर्मचारियों के वेतन के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है.

शिवराज ने सात माह में लिया 10 हजार 500 करोड़ का कर्ज

  • 7 अप्रैल 2020- 500 करोड़ रुपए
  • 2 जून 2020- 500 करोड़ रुपए
  • 9 जून 2020- 500 करोड़ रुपए
  • 7 जुलाई 2020- 1000 करोड़ रुपए
  • 14 जुलाई 2020- 1000 करोड़ रुपए
  • 4 अगस्त 2020- 1000 करोड़ रुपए
  • 12 अगस्त 2020- 1000 करोड़ रुपए
  • 9 सितंबर 2020- 1000 करोड़ रुपए
  • 16 सितंबर 2020- 1000 करोड़ रुपए
  • 7 अक्टूबर 2020- 1000 करोड़ रुपए
  • 14 अक्टूबर 2020- 1000 करोड़ रुपए
  • 21 अक्टूबर 2020- 1000 करोड़ रुपए

कमलनाथ सरकार भी कर्ज लेने में नहीं रही पीछे

2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने प्रदेश की आर्थिक बदहाली को मुद्दा बनाते हुए शिवराज सरकार द्वारा लगातार कर्ज लेने पर सवाल खड़े किए थे, क्योंकि 2018 में जब विधानसभा चुनाव हुए, तब मध्य प्रदेश सरकार पर 1 लाख 65 हजार करोड़ का कर्ज हो चुका था. 2003 में जब शिवराज सरकार अस्तित्व में आई थी, तो मध्यप्रदेश पर 20 हजार 147 करोड़ का कर्ज था. शिवराज सरकार ने अपने 15 साल के कार्यकाल में करीब 1 लाख 45 हजार करोड़ कर्ज लिया. कमलनाथ सरकार जब अस्तित्व में आई तो किसान कर्ज माफी, किसानों को गेहूं का बोनस और खराब सड़कों को सुधारने के नाम पर उसने अपने कार्यकाल में करीब 24 हजार करोड़ का कर्ज लिया.

  • 11 जनवरी 2019- 1000 करोड़ का कर्ज
  • 1 फरवरी 2019- 1000 करोड़ का कर्ज
  • 8 फरवरी 2019- 1000 करोड़ का कर्ज
  • 22 फरवरी 2019- 1000 करोड़ का कर्ज
  • 28 फरवरी 2019- 1000 करोड़ का कर्ज
  • 8 मार्च 2019- 1000 करोड़ का कर्ज
  • 25 मार्च 2019- 600 करोड़ का कर्ज
  • 5 अप्रैल 2019- 500 करोड़ का कर्ज
  • 30 अप्रैल 2019- 500 करोड़ का कर्ज
  • 3 मई 2019- 1000 करोड़ का कर्ज
  • 30 मई 2019- 1000 करोड़ का कर्ज।
  • 7 जून 2019- 1000 करोड़ का कर्ज
  • 5 जुलाई 2019- 1000 करोड़ का कर्ज
  • 2 अगस्त 2019- 1000 करोड़ रुपए कर्ज
  • 6 अगस्त 2019- 1000 करोड़ का कर्ज
  • 4 सितंबर 2019- 2000 करोड़ का कर्ज
  • 7 नवंबर 2019- 1000 करोड़ का कर्ज
  • 5 दिसम्बर 2019- 1000 करोड़ का कर्ज
  • 22 दिसम्बर 2019- 1000 करोड़ का कर्ज
  • 4 जनवरी 2020- 2000 करोड़ का कर्ज
  • 16 जनवरी 2020- 2000 करोड़ का कर्ज
  • 11 फरवरी 2020- 1000 करोड़ का कर्ज
  • 20 फरवरी 2020- 500 करोड़ का कर्ज

फंड मिसमैनेजमेंट के कारण बने मध्य प्रदेश के हालात

प्रदेश कांग्रेस का कहना है कि, हमने जो भी कर्ज लिया, वो बीआर एफएम की लिमिट के अंदर लिया. फंड मिसमैनेजमेंट मध्यप्रदेश में जबरदस्त तरीके से हो रहा है. एप्रोपिएशन ऑफ फंड के जरिए जो बजट में व्यय को दूसरे मदों में दुरुपयोग किया जा रहा है. यह सारी चीजें सरकार के अंदर प्रक्रिया का हिस्सा हैं, लेकिन नैतिक दृष्टि से चीजें गलत हैं. लेकिन सरकार कह सकती है कि, उसे ऐसा करने का अधिकार है.

चुनाव के बाद महंगाई झेलने तैयार रहे प्रदेश की जनता

वित्तीय मामलों के जानकार कपिल होल्कर कहते हैं कि, सरकार की स्थिति कोरोना के बाद से नहीं, बल्कि पहले से ही खराब रही है. उसका एक ही कारण है कि, फंड का मिसमैनेजमेंट और दूसरी वजह है कि, अपने प्रदेश में उद्योग धंधों को बढ़ावा नहीं दिया गया, ना ही आपके यहां अच्छे उद्योग हैं और ना ही रोजगार के अवसर हैं. जहां तक आप कर्ज की बात कर रहे हैं, तो आप समझ लीजिए कि, सरकार का लिया हुआ कर्ज प्रदेश के नागरिकों को उसके ब्याज और कर्ज सहित चुकाना पड़ता है.

Last Updated : Nov 5, 2020, 7:23 PM IST
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