भोपाल। हिन्दू पंचाग अनुसार वर्ष के हर मास में दो अष्टमी तिथि आती है. लेकिन साल की कुछ अष्टमी तिथियों का अपना विशेष महत्व है. इनमें आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी का भी खास महत्व है जिसे शीतलाष्टमी (Sheetalashtami July 2021) कहा जाता है. वैसे देश के अलग-अलग भागों में शीतलाष्टमी मनाए जाने का समय भिन्न है. कहीं पर चैत्र तो कहीं वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ़ में शीतलाष्टमी मनाई जाती है. भारत के कुछ प्रांतों में इसे बसौड़ा भी कहा जाता है. बसौड़ा की उत्पति बासी शब्द से है. मान्यता है कि इस दिन गरम नहीं बल्कि शीतल यानी ठण्डे उत्पादों का सेवन करने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है. इस साल आषाढ़ मास की शीतलाष्टमी 2 जुलाई शुक्रवार को है, जिससे इसका महत्व और बढ़ गया है.
कौन हैं माता शीतला? (Sheetala ashtami July 2021)
मां की सवारी गर्दभ यानी गधा है. मां के हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते रहते हैं. जिन्हें स्वच्छता और रोग प्रतिरोधकता का प्रतीक माना जाता है. खासकर, कोरोना महामारी से त्राहिमाम मचा है तो मां शीतला की पूजा और प्रासंगिक हो जाती है.
- मां शीतला स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं.
- सभी शीतल वस्तुओं पर इनका आधिपत्य है.
- मां शीतला को पथवारी भी कहते हैं.
- देवी मां रास्ते में भक्तों को सुरक्षित रख पथभ्रष्ट होने से बचाती हैं.
- गलत मार्ग पर जाने से पहले अदृश्य रूप से चेतावनी देती हैं.
- मां शीतला को समर्पित बसौड़ा पर्व को शीतला सप्तमी कहा जाता है, मतातंर से कुछ लोग इसे अष्टमी के दिन बनाते हैं.
- रोगों को दूर करने वाली मां शीतला का वास वट वृक्ष में माना जाता है, अतः इस दिन वट पूजन भी किया जाता है.
- एक दिन पूर्व भोजन बनाकर रख दिया जाता है और अगले दिन शीतला पूजन के उपरांत सभी बासी भोजन ग्रहण करते हैं. यह ऐसा व्रत है जिसमें बासी भोजन चढ़ाया व ग्रहण किया जाता है.
- गुड़गांव में मां शीतला का मंदिर है. महाभारत काल में गुरु द्रोणाचार्य यहीं पर कौरव और पांडवों को अस्त्र-शस्त्र विद्या का ज्ञान दिया करते थे.
- मां शीतला यश देती हैं, गलत राह पर जाने से रोकती हैं.
- इस व्रत से संकटों से मुक्ति मिलती है, यश-कीर्ति-मान-सम्मान में वृद्धि होती है.
शीतला माता की व्रत कथा (Sheetala mata ki vrat katha)
शीतला माता की व्रत कथा के अनुसार, एक गांव में एक ब्राह्मण परिवार में बुजुर्ग दंपत्ति के दो बेटे और दो बहुएं थीं. दोनों बहुओं को एक –एक संतान थी. घर में सभी मिल कर प्रेम से रहते थे, तभी शीतलाष्टमी का पर्व आया. दोनों बहुओं ने व्रत के विधान के अनुसार, एक दिन पहले ही बासौड़ा मतलब बासी भोजन मां के भोग के लिए तैयार कर लिया. लेकिन दोनों की संतानें छोटी थीं, उनको लगा कि कहीं बासी खाना उनके बच्चों को नुकसान न कर जाए, इसलिए उन्होंने अपने बच्चों को ताजा खाना बना के खिला दिया. शीतला मां का पूजन करने बाद जब वो घर लौटीं, तो बच्चों को मरा हुआ देख रोने लगी. उनकी सास ने उन्हें शीतला मां को नाराज करने का फल बताया और कहा जाओ जब तक अपने बच्चे जीवित न कर लेना घर वापस नहीं आना.
दोनों बहुएं अपने मरे हुए बच्चों को लेकर भटकने लगीं ,तभी उन्हें खेजड़ी के पेड़ के नीचे ओरी और शीतला दो बहनें मिलीं. दोनों बहने गंदगी और जूं के कारण बहुत परेशान थीं. बहुओं से उन बहनों की परेशानी देखी नहीं गई, उन्होंने अपना दुख भूल कर दोनों बहनों के सिर से जूएं निकालें. जूएं निकालने के बाद शीतला और ओरी ने प्रसन्न हो कर दोनों बहुओं के पुत्रवती होने की कामना की. इस पर दोनों बहुएं अपना दुख बता कर रोने लगीं. शीतला माता अपने स्वरूप में प्रकट हुईं. दोनों बहुओं को शीतलाष्टमी के दिन ताजा खाना खाने की भूल का एहसास दिलाया और इसे सेहत के लिए हानिकारक बताया. शीतला मां ने दोनों बहुओं को अपनी गलती आगे से न दोहराने की चेतावनी देते हुए दोनों के बच्चों को जीवित कर दिया. शीतला मां के साक्षात दर्शन और अपने बच्चों को पुनः जीवित पाकर दोनों बहुएं बड़ी प्रसन्नता के साथ घर लौटी और आजीवन विधि-विधान से शीतला मां की पूजा और व्रत करने लगीं. शीतला माता की कृपा से हम सब भी अपने जीवन में सेहत और आरोग्य प्राप्त करें. बोलो शीतला माता की जय...
इस मंत्र के जाप से बरसेगी कृपा (Sheetala ashtami Mantra)
शीतला माता को भोग लगाने के बाद तुलसी की माला लेकर ‘वन्देऽहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बरराम्,मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालंकृतमस्तकाम्’ मंत्र का 5 माला जप करें. इसके बाद मन ही मन शीतला माता से प्रार्थना करें कि वह आपके ऊपर अपनी कृपा बरसाएं और आपको बीमारियों से राहत दिलाएं. मान्यता है कि ऐसा नियमित रूप से हर शीतला अष्टमी पर करने से शीतला माता की कृपा मिलती है और जातक सेहतमंद रहते हैं.
शीतला माता की चालीसा (Sheetala Mata Chalisa)
जय जय श्री शीतला भवानी। जय जग जननि सकल गुणधानी।।
गृह गृह शक्ति तुम्हारी राजती। पूरन शरन चंद्रसा साजती।।
विस्फोटक सी जलत शरीरा। शीतल करत हरत सब पीड़ा।।
मात शीतला तव शुभनामा। सबके काहे आवही कामा।।
शोक हरी शंकरी भवानी। बाल प्राण रक्षी सुखदानी।।
सूचि बार्जनी कलश कर राजै। मस्तक तेज सूर्य सम साजै।।
चौसट योगिन संग दे दावै। पीड़ा ताल मृदंग बजावै।।
नंदिनाथ भय रो चिकरावै। सहस शेष शिर पार ना पावै।।
धन्य धन्य भात्री महारानी। सुर नर मुनी सब सुयश बधानी।।
ज्वाला रूप महाबल कारी। दैत्य एक विश्फोटक भारी।।
हर हर प्रविशत कोई दान क्षत। रोग रूप धरी बालक भक्षक।।
हाहाकार मचो जग भारी। सत्यो ना जब कोई संकट कारी।।
तब मैंय्या धरि अद्भुत रूपा। कर गई रिपुसही आंधीनी सूपा।।
विस्फोटक हि पकड़ी करी लीन्हो। मुसल प्रमाण बहु बिधि कीन्हो।।
बहु प्रकार बल बीनती कीन्हा। मैय्या नहीं फल कछु मैं कीन्हा।।
अब नही मातु काहू गृह जै हो। जह अपवित्र वही घर रहि हो।।
पूजन पाठ मातु जब करी है। भय आनंद सकल दुःख हरी है।।
अब भगतन शीतल भय जै हे। विस्फोटक भय घोर न सै हे।।
श्री शीतल ही बचे कल्याना। बचन सत्य भाषे भगवाना।।
कलश शीतला का करवावै। वृजसे विधीवत पाठ करावै।।
विस्फोटक भय गृह गृह भाई। भजे तेरी सह यही उपाई।।
तुमही शीतला जगकी माता। तुमही पिता जग के सुखदाता।।
तुमही जगका अतिसुख सेवी। नमो नमामी शीतले देवी।।
नमो सूर्य करवी दुख हरणी। नमो नमो जग तारिणी धरणी।।
नमो नमो ग्रहोंके बंदिनी। दुख दारिद्रा निस निखंदिनी।।
श्री शीतला शेखला बहला। गुणकी गुणकी मातृ मंगला।।
मात शीतला तुम धनुधारी। शोभित पंचनाम असवारी।।
राघव खर बैसाख सुनंदन। कर भग दुरवा कंत निकंदन।।
सुनी रत संग शीतला माई। चाही सकल सुख दूर धुराई।।
कलका गन गंगा किछु होई। जाकर मंत्र ना औषधी कोई।।
हेत मातजी का आराधन। और नही है कोई साधन।।
निश्चय मातु शरण जो आवै। निर्भय ईप्सित सो फल पावै।।
कोढी निर्मल काया धारे। अंधा कृत नित दृष्टी विहारे।।
बंधा नारी पुत्रको पावे। जन्म दरिद्र धनी हो जावे।।
सुंदरदास नाम गुण गावत। लक्ष्य मूलको छंद बनावत।।
या दे कोई करे यदी शंका। जग दे मैंय्या काही डंका।।
कहत राम सुंदर प्रभुदासा। तट प्रयागसे पूरब पासा।।
ग्राम तिवारी पूर मम बासा। प्रगरा ग्राम निकट दुर वासा।।
अब विलंब भय मोही पुकारत। मातृ कृपाकी बाट निहारत।।
बड़ा द्वार सब आस लगाई। अब सुधि लेत शीतला माई।।
यह चालीसा शीतला पाठ करे जो कोय। सपनें दुख व्यापे नही नित सब मंगल होय।।
बुझे सहस्र विक्रमी शुक्ल भाल भल किंतू। जग जननी का ये चरित रचित भक्ति रस बिंतू।।