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53 साल पहले का सिंधिया ने दोहराया इतिहास, नहीं चली थी राजमाता की सरकार, इस बार क्या होगा ? - विधानसभा उपचुनाव

पॉलिटिकल ड्रामे के बाद आखिरकार बीजेपी की सरकार भी बनी और सिंधिया समर्थकों को मंत्री पद भी मिल ही गया, लेकिन इतिहास में कैद एक वो कहानी भी याद आती है, जब 1967 में ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस के 36 विधायकों को जन संघ में शामिल होकर सरकार गिराई थी. लेकिन राजमाता सिंधिया की सरकार ज्यादा दिन नहीं चली और दोबारा फिर कांग्रेस की सरकार बनी.

Scindia repeated history
सिंधिया ने दोहराया इतिहास
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Published : Jul 3, 2020, 9:10 PM IST

Updated : Jul 3, 2020, 10:55 PM IST

भोपाल। मध्यप्रदेश में चले पॉलिटिकल ड्रामे के बाद आखिरकार बीजेपी की सरकार भी बनी और सिंधिया समर्थकों को मंत्री पद भी मिल ही गया. सिंधिया की अपनी ही पार्टी से नाराजगी ने कांग्रेस की सरकार गिराई, और मध्यप्रदेश में चौथी बार बीजेपी सत्ता पर काबिज हुई. लेकिन इस सियासी सफर में एक नजर डाले इतिहास में कैद एक वो कहानी भी याद आती है, जब 1967 में ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस के 36 विधायकों को जन संघ में शामिल किया था और प्रदेश में डीपी मिश्रा की सरकार गिराई थी. लेकिन राजमाता सिंधिया की सरकार ज्यादा दिन नहीं चल सकी और दोबारा फिर कांग्रेस की सरकार बनी.

सिंधिया ने दोहराया इतिहास

राजमाता विजयाराजे सिंधिया का सफर

दरअसल कांग्रेस पार्टी में तवज्जा नहीं मिलने से खफा होकर ग्वालियर राजघराने से ताल्लुक रखने वाली राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने 1967 में पार्टी छोड़ दी थीं, जिससे मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार गिर गई थी और अब 53 साल बाद उनके पौत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया भी इसी राह पर चल दिए हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी राजमाता विजयाराजे देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की कभी बहुत करीबी मानी जाती थीं.

1957 से शुरू हुआ था राजनीतिक करियर

विजयराजे ने अपना राजनीतिक जीवन साल 1957 में कांग्रेस से शुरू किया था और 10 साल कांग्रेस में रहने के बाद 1967 में इस पार्टी को अलविदा कह दिया था. साल 1967 में लोकसभा और मध्यप्रदेश विधानसभा के लिए एक साथ चुनाव हुए थे. राजमाता इस सिलसिले में तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्रा से मिलने गई थी. जहां मिश्रा ने उन्हें 2 घंटे प्रतीक्षा कराने के बाद उनसे मुलाकात की. जिसके चलचे नाराज होकर राजमाता ने पार्टी छोड़ दिया था.

प्रदेश की राजनीति के लिए दिया था इस्तीफा

हालांकि इसके बाद विजय राजे सिंधिया स्वतंत्र पार्टी के चुनाव चिन्ह पर लोकसभा चुनाव लड़ी और जीती भी थीं, लेकिन कुछ ही दिन बाद राज्य की राजनीति करने के लिए उन्होंने सांसद पद से इस्तीफा दे दिया, और भारतीय जन संघ में शामिल होकर मध्यप्रदेश के करेरा विधानसभा क्षेत्र से विधायक बनीं. इसके बाद उन्होंने उसी साल मिश्रा की सरकार गिराने में अहम भूमिका निभाई.

सिंधिया ने दोहराया इतिहास

अब ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल होने और सरकार गिराने को लेकर कांग्रेस नेताओं का कहना है कि 1967 की जो कहानी है वह सरकार भी राज हट के लिए गिराई गई थी. और साल 2020 में भी राजहठ के लिए ही सरकार गिराई गई है. कांग्रेस नेताओं का मानना है कि इसी तरह ये सरकार भी परास्त होगी और कमलनाथ फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे.

बीजेपी का कांग्रेस पर पलटवार
वहीं प्रदेश के मंत्री और सिंधिया समर्थक प्रद्युमन सिंह तोमर ने कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि कांग्रेस के पास अब कहने को कुछ नहीं है. कभी कहते हैं मंत्री ज्यादा बना दिए. कभी कहते हैं सरकार नहीं चलेगी. कांग्रेस कोई भाग्यविधाता नहीं है. बीजेपी सरकार चलेगी या नहीं यह केवल प्रदेश की जनता तय करेगी. इधर वरिष्ठ पत्रकार शिव अनुराग पटैरिया ने कहा कि स्थितियां और हालात बिल्कुल वैसे ही हैं जो साल 1967 में थे.

लिहाजा अब तो ये आने वाला वक्त ही तय करेगा लेकिन 15 महीने की सरकार को बीजेपी ने वापस वनवास का रास्ता दिखाया और 15 साल राज करने वाली पार्टी एक बार फिर सियासी मिजाज में लौट आई, अब देखना ये होगा कि बीजेपी में दूध शक्कर का मिश्रण बनता है या फिर दूध नींबू का मिलेगा.

भोपाल। मध्यप्रदेश में चले पॉलिटिकल ड्रामे के बाद आखिरकार बीजेपी की सरकार भी बनी और सिंधिया समर्थकों को मंत्री पद भी मिल ही गया. सिंधिया की अपनी ही पार्टी से नाराजगी ने कांग्रेस की सरकार गिराई, और मध्यप्रदेश में चौथी बार बीजेपी सत्ता पर काबिज हुई. लेकिन इस सियासी सफर में एक नजर डाले इतिहास में कैद एक वो कहानी भी याद आती है, जब 1967 में ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस के 36 विधायकों को जन संघ में शामिल किया था और प्रदेश में डीपी मिश्रा की सरकार गिराई थी. लेकिन राजमाता सिंधिया की सरकार ज्यादा दिन नहीं चल सकी और दोबारा फिर कांग्रेस की सरकार बनी.

सिंधिया ने दोहराया इतिहास

राजमाता विजयाराजे सिंधिया का सफर

दरअसल कांग्रेस पार्टी में तवज्जा नहीं मिलने से खफा होकर ग्वालियर राजघराने से ताल्लुक रखने वाली राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने 1967 में पार्टी छोड़ दी थीं, जिससे मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार गिर गई थी और अब 53 साल बाद उनके पौत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया भी इसी राह पर चल दिए हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी राजमाता विजयाराजे देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की कभी बहुत करीबी मानी जाती थीं.

1957 से शुरू हुआ था राजनीतिक करियर

विजयराजे ने अपना राजनीतिक जीवन साल 1957 में कांग्रेस से शुरू किया था और 10 साल कांग्रेस में रहने के बाद 1967 में इस पार्टी को अलविदा कह दिया था. साल 1967 में लोकसभा और मध्यप्रदेश विधानसभा के लिए एक साथ चुनाव हुए थे. राजमाता इस सिलसिले में तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्रा से मिलने गई थी. जहां मिश्रा ने उन्हें 2 घंटे प्रतीक्षा कराने के बाद उनसे मुलाकात की. जिसके चलचे नाराज होकर राजमाता ने पार्टी छोड़ दिया था.

प्रदेश की राजनीति के लिए दिया था इस्तीफा

हालांकि इसके बाद विजय राजे सिंधिया स्वतंत्र पार्टी के चुनाव चिन्ह पर लोकसभा चुनाव लड़ी और जीती भी थीं, लेकिन कुछ ही दिन बाद राज्य की राजनीति करने के लिए उन्होंने सांसद पद से इस्तीफा दे दिया, और भारतीय जन संघ में शामिल होकर मध्यप्रदेश के करेरा विधानसभा क्षेत्र से विधायक बनीं. इसके बाद उन्होंने उसी साल मिश्रा की सरकार गिराने में अहम भूमिका निभाई.

सिंधिया ने दोहराया इतिहास

अब ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल होने और सरकार गिराने को लेकर कांग्रेस नेताओं का कहना है कि 1967 की जो कहानी है वह सरकार भी राज हट के लिए गिराई गई थी. और साल 2020 में भी राजहठ के लिए ही सरकार गिराई गई है. कांग्रेस नेताओं का मानना है कि इसी तरह ये सरकार भी परास्त होगी और कमलनाथ फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे.

बीजेपी का कांग्रेस पर पलटवार
वहीं प्रदेश के मंत्री और सिंधिया समर्थक प्रद्युमन सिंह तोमर ने कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि कांग्रेस के पास अब कहने को कुछ नहीं है. कभी कहते हैं मंत्री ज्यादा बना दिए. कभी कहते हैं सरकार नहीं चलेगी. कांग्रेस कोई भाग्यविधाता नहीं है. बीजेपी सरकार चलेगी या नहीं यह केवल प्रदेश की जनता तय करेगी. इधर वरिष्ठ पत्रकार शिव अनुराग पटैरिया ने कहा कि स्थितियां और हालात बिल्कुल वैसे ही हैं जो साल 1967 में थे.

लिहाजा अब तो ये आने वाला वक्त ही तय करेगा लेकिन 15 महीने की सरकार को बीजेपी ने वापस वनवास का रास्ता दिखाया और 15 साल राज करने वाली पार्टी एक बार फिर सियासी मिजाज में लौट आई, अब देखना ये होगा कि बीजेपी में दूध शक्कर का मिश्रण बनता है या फिर दूध नींबू का मिलेगा.

Last Updated : Jul 3, 2020, 10:55 PM IST
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