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Sawan Ka Somwar 2021: 18 महापुराणों में चौथा है शिव पुराण, पढ़िए- दो कथाएं जिनमें है जीवन दर्शन

शिवजी को समर्पित है श्रावण मास. इस मास में महादेव से जुड़ी कथाएं सुनने, सुनाने और पढ़ने का विशेष महत्व होता है. शिव महापुराण 18 ग्रंथों में एक ऐसा ग्रंथ है जो शिवभक्तों को अनुशासनप्रियता का पाठ भी पढ़ाता है. इसे कल्याणकारी वस्तुओ में सबसे उत्कृष्ट एवं परम मंगलकारी माना जाता है. जानिए इस ग्रंथ से जु़ड़ी कुछ अनमोल बातें.

Sawan Ka Somwar 2021
शिवपुराण की कथा कुछ कहती है
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Published : Jul 27, 2021, 2:25 PM IST

Updated : Jul 28, 2021, 7:39 AM IST

भोपाल। शिव महापुराण केवल शिव-पार्वती की कथा ही नहीं कहता वरन, शिवभक्तों के लिए अनुशासन का एक ग्रंथ है. ये ग्रंथ हमें अनादि शिव की सम्पूर्ण कथा बताता है. सृष्टि के उद्भव से पहले से लेकर कलियुग के अंत के बाद तक की सभी कहानियां. दो युगों के छोर शिव से जुड़ते हैं यानी शून्य से शून्य तक. शिव महापुराण शिवलिंग के प्राकट्य का वर्णन करता है, ये पुराण ही हमें बताता है कि महाशिवरात्रि पर शिव पहली बार सृष्टि में ज्योतिर्लिंग रुप में अवतरित हुए थे.

Shiv puran
शिव के वो 19 अवतार

शिवपुराण का संक्षिप्त परिचय (Shiv Puran Stories)

शिव पुराण के रचयिता महर्षि वेद व्यास हैं. शिव पुराण 18 महापुराणों में से चौथे स्थान पर है. श्लोकों की बात करें तो ग्रन्थ 24000 (चौबीस हज़ार) श्लोकों से युक्त है. पहले इसमें 12 संहिताएं थीं, जिसमें संक्षिप्त रूप में 7 संहिताएं हैं. विद्येश्वर संहिता, रुद्र संहिता, शतरुद्र संहिता, कोटिरुद्र संहिता, उमा संहिता, कैलास संहिता और वायवीय संहिता. इसमें रुद्र संहिता के पांच और वायवीय संहिता के दो खंड हैं. मनुष्य को चाहिए कि वह भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से संपन्न हो बड़े आदर से इसका श्रवण एवं अध्ययन करे.

Shiv Mahapuran
शिव महापुराण

जानते हैं शिव के वो 19 अवतार (19 Avtars Of Shiv)

1. शरभ अवतार, 2. पिप्पलाद अवतार, 3. नंदी अवतार, 4. भैरव अवतार, 5. अश्वत्थामा, 6. वीरभद्र, अवतार, 7. गृहपति अवतार , 8. ऋषि दुर्वासा, 9. हनुमान. 10. वृषभ अवतार, 11. यतिनाथ अवतार, 12. कृष्णदर्शन अवतार, 13. अवधूत अवतार , 14. भिक्षुवर्य अवतार, 15. किरात अवतार, 16. सुनटनर्तक अवतार, 17. ब्रह्मचारी अवतार, 18. अर्धनारीश्वर अवतार, 19. सुरेश्वर अवतार.

पढ़िए शिव पुराण की दो कहानियां

कहानी संख्या-1 (देवराज को यमराज के दूतों से बचाया)

पूर्व की बात है किरातों के नगर में एक ब्राह्मण रहता था, जो ज्ञान में अत्यंत दुर्बल, दरिद्र, रस बेचने वाला तथा वैदिक धर्म से विमुख था. वह स्नान-संध्या आदि कर्मो से भ्रष्ट हो गया था और वैश्यवृति में तत्पर रहता था. उसका नाम देवराज था. वह अपने ऊपर विश्वास करने वाले लोगो को ठगा करता था. उसने ब्राह्मणो, क्षत्रियों, वैश्यों, शुद्रो, तथा दूसरों को भी अनेक बहाने से मारकर वह उनका धन हड़प लिया था परन्तु उस पापी का थोड़ा सा भी धन कभी धर्म के काम में नहीं लगा था. वह वेश्यागामी तथा सभी प्रकार के आचार-भ्रष्ट था.

एक दिन घूमता-घामता वह दैवयोग से प्रतिष्ठानपुर (झूंसी-प्रयाग) में जा पहुँचा. वहां उसने एक शिवालय देखा, जहाँ बहुत-से साधु-महात्मा एकत्र हुए थे. देवराज उस शिवालय में ठहर गया, किन्तु वहां उस ब्राह्मण को ज्वर आ गया. उस ज्वर से उसको बड़ी पीड़ा होने लगी. वहां एक ब्राह्मण देवता शिव पुराण की कथा सुना रहे थे. ज्वर में पड़ा हुआ देवराज ब्राह्मण के मुखार्विन्द से निकली हुई उस शिव कथा को निरंतर सुनता रहा. एक मास के बाद वह ज्वर से अत्यंत पीड़ित होकर चल बसा. यमराज के दूत आए और उसे बांधकर बलपूर्वक यमपुरी ले गए. इतने में ही शिवलोक से भगवान शिव के पार्षदगण आ गए. उनके गौर अंग (श्वेत अंग) कपूर के समान उज्जवल थे, हाथ त्रिशूल से सुशोभित हो रहे थे, उनके सम्पूर्ण अंग भस्म से उद्धासित थे और रुद्राक्ष की मालाएँ उनके शरीर की शोभा बढ़ा रही थी. वे सब-के-सब क्रोधपूर्वक यमपुरी में गए और यमराज के दूतों को मार पीटकर, बारम्बार धमका कर उन्होंने देवराज को उनके चंगुल से छुड़ा लिया और अत्यंत अद्भुत विमान पर बिठाकर जब वे शिवदूत कैलाश जाने को उद्यत हुए, उस समय यमपुरी में बड़ा कोलाहल मच गया. उस कोलाहल को सुनकर धर्मराज अपने भवन से बाहर आये. साक्षात् दूसरे रुद्रों के समान प्रतीत होनेवाले उन चारों दूतों को देखकर धर्मराज ने उनका विधिपूर्वक पूजन किया और ज्ञानदृष्टि से देखकर सारा वृतांत जान लिया. उन्होंने भय के कारण भगवान शिव के उन महात्मा दूतों से कोई बात नहीं पूछी, उलटे उन सबकी पूजा एवं प्रार्थना की. तत्पश्चात वे शिवदूत चले गए और वहां पहुंचकर उन्होंने उस ब्राह्मण को दयासागर साम्ब शिव के हाथों में सौंप दिया.

शिव पुराण की कहानियाँ

कहानी संख्या- 2 (चंचला की कहानी)

समुन्द्र के निकटवर्ती प्रदेश में एक वाष्कल नामक ग्राम था, जहाँ वैदिक धर्म से विमुख महापापी द्विज निवास करते थे. वे सब-के-सब बड़े दुष्ट थे, उनका मन दूषित विषय भोगों में ही लगा रहता था. वे न देवताओं पर विश्वास करते थे न भाग्य पर; वे सभी कुटिल वृत्तिवाले थे. किसानी करते और भाँति-भाँति के घातक अस्त्र-शस्त्र रखते थें. वे व्यभिचारी और खल थे. ज्ञान, वैराग्य तथा सद्धर्म का सेवन ही मनुष्य के लिए पुरुषार्थ होता है -- इस बात को वे बिलकुल नहीं जानते थे. वे सभी पशुबुद्धिवाले थे. (जहाँ द्विज ऐसे हों, वहाँ के अन्य वर्णों के विषय में क्या कहा जाय.) अन्य वर्णों के लोग भी उन्हीं की भाँति कुत्सित विचार रखनेवाले, स्वधर्म विमुख एवं खल थे. वे विषयभोगों में ही डूबे रहते थे. वहां की सब स्त्रियाँ भी कुटिल स्वभाव की स्वेच्छाचारिणी, पापासक्त, कुत्सित विचारवाली और व्यभिचारिणी थीं. वे सद्व्यवहार तथा सदाचार से सर्वथा शून्य हैं. इस प्रकार वहां दुष्टों का ही निवास था.

उस वाष्कल नामक ग्राम में किसी समय एक बिंदुग नामधारी ब्राह्मण रहता था, वह बड़ा अधर्मी था. दुरात्मा और महापापी था. यद्यपि उसकी स्त्री बड़ी सुन्दर थी, तो भी वह कुमार्ग पर ही चलता था. उसकी पत्नी का नाम चंचला था; वह सदा उत्तम धर्म के पालन में लगी रहती थी, तो भी उसे छोड़कर वह दुष्ट ब्राह्मण वेश्यागामी हो गया था. इस तरह कुकर्म में लगे हुए उस बिन्दुग के बहुत वर्ष व्यतीत हो गए. उसकी स्त्री काम से पीड़ित होने पर भी स्वधर्मनाश के भय से क्लेश सहकर भी दीर्घकाल तक धर्म से भ्रष्ट नहीं हुई. परन्तु दुराचारी पति के आचरण से प्रभावित हो आगे चलकर वह स्त्री भी दुराचारिणी हो गयी.

इस तरह दुराचार में डूबे हुए उन गूढ़ चित्तवाले पति-पत्नी का बहुत-सा समय व्यर्थ बीत गया.तदन्तर दूषित बुद्धिवाला दुष्ट ब्राह्मण बिन्दुग समयानुसार मृत्यु को प्राप्त हो नरक में जा पड़ा. बहुत दिनों तक नरक के दुःख भोगकर वह वह गूढ़ बुद्धि पापी विंध्य पर्वत पर भयंकर पिशाच हुआ. इधर दुराचारी पति बिन्दुग के मर जाने पर वह मूढ़ हृदया चंचला बहुत समय तक पुत्रों के साथ अपने घर में ही रही.

एक दिन दैवयोग से किसी पुण्य पर्व के आने पर वह स्त्री भाई-बंधुओं के साथ गोकर्ण-क्षेत्र में गयी. तीर्थयात्रिओं के संग से उसने भी उस समय जाकर किसी तीर्थ के जल में स्नान किया. फिर वह साधारणतया (मेला देखने की दृष्टि से) बंधू जनों के साथ यत्र-तत्र घूमने लगी. घूमती-घामती किसी देवमंदिर में गयी और वहां उसने एक दैवज्ञ ब्राह्मण के मुख से भगवान् शंकर (शिव) की परम पवित्र एवं मंगलकारिणी उत्तम पौराणिक कथा सुनी. कथावाचक ब्राह्मण कह रहे थे की 'जो स्त्रियाँ पर पुरुषों के साथ व्यभिचार करती है, वे मरने के बाद जब यमलोक में जाती हैं. पौराणिक ब्राह्मण के मुख से यह वैराग्य बढ़ानेवाली कथा सुनकर चंचला भय से व्याकुल होकर वहां काँपने लगी. जब कथा समाप्त हुई और सुननेवाले सब लोग वहां से बाहर चले गए, तब वह भयभीत नारी एकांत में शिवपुराण की कथा वाचनेवाले उन ब्राह्मण देवता से बोली.

चंचला ने कहा -- ब्रह्मण! मैं अपने धर्म को नहीं जानती थी. इसलिए मेरे द्वारा बड़ा दुराचार हुआ है. स्वामिन्! मेरे ऊपर अनुपम कृपा करके आप मेरा उद्धार कीजिये. आज आपके वैराग्य-रस से ओतप्रोत इस प्रवचन को सुनकर मुझे बड़ा भय लग रहा है. मैं काँप उठी हूँ और मुझे इस संसार से वैराग्य हो गया है. मुझ मूढ़ चित्तवाली पापिनी को धिक्कार है. मैं सर्वथा निंदा के योग्य हूँ. कुत्सित विषयों में फँसी हुई हूँ और अपने धर्म से विमुख हो गयी हूँ. हाय! न जाने किस-किस घोर कष्टदायक दुर्गति में मुझे पड़ना पड़ेगा और वहां कौन बुद्धिमान पुरुष कुमार्ग में मन लगानेवाली मुझ पापिनी का साथ देगा. मृत्युकाल में उन भयंकर यमदूतों को मैं कैसे देखूंगी? जब वे बलपूर्वक मेरे गले में फंदे डालकर मुझे बांधेगे, तब मैं कैसे धीरज धारण कर सकूँगी. नरक में जब मेरे शरीर के टुकड़े-टुकड़े किये जायेंगे, उस समय विशेष दुःख देनेवाली उस महायातना को मैं वहां कैसे सहूँगी? हाय! मैं मारी गयी! क्योंकि मैं हर तरह के पाप में डूबी रही हूँ. ब्रह्मन ! आप ही मेरे गुरु, आप ही माता और आप ही पिता हैं. आपकी शरण में आयी हुई मुझ दीन अबला का आप ही उद्धार कीजिये, उद्धार कीजिये.

इस प्रकार खेद और वैराग्य से युक्त हुई चंचला ब्राह्मण देवता के दोनों चरणों में गिर पड़ी. तब उन बुद्धिमान ब्राह्मण ने कृपापूर्वक उसे उठाया और इस प्रकार कहा -

ब्राह्मण बोले- नारी! सौभाग्य की बात है कि भगवान् शंकर (शिव) की कृपा से शिव पुराण की इस वैराग्य युक्त कथा को सुनकर तुम्हें समय पर चेत हो गया है. ब्राह्मण पत्नी! तुम डरो मत. भगवान् शिव की शरण में जाओ. शिव की कृपा से सारा पाप तत्काल नष्ट हो जाता है. मैं तुमसे भगवान् शिव की कीर्ति कथा (कहानियाँ) से युक्त उस परम वस्तु का वर्णन करूँगा, जिससे तुम्हें सदा सुख देने वाली उत्तम गति प्राप्त होगी. शिव की उत्तम कथा (कहानियाँ) सुनने से ही तुम्हारी बुद्धि इस तरह पश्चाताप से युक्त एवं शुद्ध हो गयी है. साथ ही तुम्हारे मन में विषयों के प्रति वैराग्य हो गया है. पश्चाताप ही पाप करने वाले पापियों के लिए सबसे बड़ा प्रायश्चित है.

सत्पुरुषों ने सब के लिए पश्चाताप को ही समस्त पापों का शोधक बताया है, पश्चाताप से ही पापों की शुद्धि होती है. जो पश्चाताप करता है, वही वास्तव में पापों का प्रायश्चित करता है; क्योंकि सत्पुरुषों ने समस्त पापों की शुद्धि के लिए जैसे प्रायश्चित का उपदेश किया है, वह सब पश्चाताप से संपन्न हो जाता है. जो पुरुष विधिपूर्वक प्रायश्चित करके निर्भय हो जाता है, पर अपने कुकर्म के लिए पश्चाताप नहीं करता, उसे प्रायः उत्तम गति नहीं प्राप्त होती. परन्तु जिसे अपने कुकृत्य पर हार्दिक पश्चाताप होता है, वह अवश्य उत्तम गति का भागी होता है, इसमें संशय नहीं. इस शिव पुराण की कथा सुनने से जैसी चित्तशुद्धि होती है, वैसी दूसरे उपायों से नहीं होती.

जैसे दर्पण साफ करने पर निर्मल हो जाता है, उसी प्रकार इस शिव पुराण की कथा से चित अत्यंत शुद्ध हो जाता है-- इसमें संशय नहीं है. मनुष्यों के शुद्ध चित में जगदम्बा पार्वती-सहित भगवान् शिव विराजमान रहते हैं. इससे वह विशुद्धात्मा पुरुष श्रीसाम्ब सदाशिव के पद को प्राप्त होता है. इस उत्तम कथा का श्रवण समस्त मनुष्यों के लिए कल्याण का बीज है. अतः यथोचित (शास्त्रोक्त) मार्ग से इसकी आराधना अथवा सेवा करनी चाहिए. यह भव बंधन रूपी रोग का नाश करनेवाली है. भगवान् शिव की कथा (कहानियाँ) को सुनकर फिर अपने ह्रदय में उसका मनन एवं निदिध्यासन करना चाहिए. इससे पूर्णतया चित शुद्धि हो जाती है. चित शुद्धि होने से महेश्वर की भक्ति अपने दोनों पुत्रों (ज्ञान एवं वैराग्य) के साथ निश्चय ही प्रकट होती है.

तत्पश्चात महेश्वर के अनुग्रह से दिव्य मुक्ति प्राप्त होती है, इसमें संशय नहीं है. जो मुक्ति से वंचित है, उसे पशु समझना चाहिए; क्योंकि उसका चित माया के बंधन से आसक्त है. वह निश्चय ही संसार बंधन से मुक्त नहीं हो पाता.

ब्राह्मण-पत्नी! इसलिए तुम विषयों से मन को हटा लो और भक्ति भाव से भगवान् शंकर (शिव) की इस परम पावन कथा को सुनो. परमात्मा शंकर (शिव) की इस कथा को सुनने से तुम्हारे चित्त की शुद्धि होगी और इससे तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी. जो निर्मल चित्त से भगवान् शिव के चरणारविन्दों का चिंतन करता है, उसकी एक ही जन्म में मुक्ति हो जाती है-- यह मैं तुमसे सत्य-सत्य कहता हूँ.

इतना कहकर वे श्रेष्ठ शिव भक्त ब्राह्मण चुप हो गए. उनका ह्रदय करुणा से आर्द्र हो गया था. वे शुद्ध चित महात्मा भगवान् शिव के ध्यान में मग्न हो गए. तदंतर बिन्दुग की पत्नी चंचला मन-ही-मन प्रसन्न हो उठी. ब्राह्मण का उक्त उपदेश सुनकर उसके नेत्रों में आनंद के आंसू छलक आये थे. वह ब्राह्मण पत्नी चंचला हर्ष भरे हृदय से उन श्रेष्ठ ब्राह्मण के दोनों चरणों में गिर पड़ी और हाथ जोड़कर बोली- मैं कृतार्थ हो गयी. तत्पश्चात उठकर वैराग्य युक्त उत्तम बुद्धि वाली स्त्री, जो

चंचला ने कहा-ब्राह्मण! शिव भक्तों में श्रेष्ठ! स्वामिन! आप धन्य है, परमार्थदर्शी हैं और सदा परोपकार में लगे रहते हैं. इसलिए श्रेष्ठ साधु पुरुषों में प्रशंसा के योग्य हैं.साधो! मैं नरक के समुद्र में गिर रही हूँ.आप मेरा उद्धार कीजिए, उद्धार कीजिए. पुरानी अर्थतत्व से संपन्न, जिस सुंदर शिव पुराण की कथा (कहानियाँ) को सुनकर मेरे मन में संपूर्ण विषयों से वैराग्य उत्पन्न हो गया है, उसी इस शिव पुराण को सुनने के लिए इस समय मेरे मन में बड़ी श्रद्धा हो रही है.

ऐसा कह हाथ जोड़कर उनका अनुग्रह पाकर चंचला शिवपुराण की कथा (कहानियाँ) को सुनने की इच्छा मन में लिए उस ब्राह्मण देवता की सेवा में तत्पर हो वहां रहने लगी. तदनंतर शिव भक्तों में श्रेष्ठ शुद्ध बुद्धि वाले उस ब्राह्मण देव ने उसी स्थान पर उस स्त्री को शिव पुराण की उत्तम कथा (कहानियाँ) सुनायी. इस प्रकार गोकर्ण नामक उस महाक्षेत्र में उन्हीं श्रेष्ठ ब्राह्मण से उसने शिव पुराण की वह परम् पावन कथा (कहानियाँ) सुनी, जो भक्ति, ज्ञान एवं वैराग्य को बढ़ाने वाली एवं मुक्ति देने वाली है. इस उत्तम कथा को सुनकर वह ब्राह्मण पत्नी अत्यंत कृतार्थ हो गई. उसका चित शीघ्र ही शुद्ध हो गया.

फिर भगवान शिव के अनुग्रह से उसके हृदय में भगवान शिव के सगुण रूप का चिंतन होने लगा. इस प्रकार उसने भगवान शिव में लगी रहने वाली उत्तम बुद्धि पाकर शिव के सच्चिदानंद मय स्वरूप का बारंबार चिंतन आरंभ किया. तत्पश्चात समय के पूरे होने पर वह भक्ति, ज्ञान एवं वैराग्य से युक्त चंचला ने बिना किसी कष्ट के अपना शरीर त्याग दिया! इतने में ही भगवान् त्रिपुराज भगवान् शिव का भेजा हुआ द्रुत विमान वहां पहुंचा जो उनके अपने गणों से संयुक्त एवं भांति- भांति के शोभा साधनों से संपन्न था.

चंचला उस विमान पर आरूढ़ हुई और भगवान शिव के श्रेष्ठ पार्षदों ने उसे तत्काल शिवपुरी पहुंचा दिया. उसके सारे मल धुल गए थे. वह दिव्य रूप धारिणी दिव्यांगना हो गई थी. उसके दिव्य अवयव की शोभा बढ़ाते थे. मस्तक पर अर्धचंद्र का मुकुट धारण किए वह गौरांगी देवी शोभाशाली दिव्य आभूषणों से विभूषित थी. शिवपुरी पहुंचकर उसने सनातन देवता त्रिनेत्रधारी भगवान महादेवजी को देखा. सभी मुख्य मुख्य देवता उनकी सेवा में खड़े थे. भगवान गणेश, नंदीश्वर, भृंगी तथा वीर भद्रेश्वर आदि उनकी सेवा में उत्तम भक्ति भाव से उपस्थित थे. उनके अंगकांति करोड़ों सुर्यों के समान प्रकाशित हो रही थी.

कंठ में नील चिन्ह शोभा पाता था (भगवान शिव-शंकर को त्रिनेत्रधारी, नीलकंठ, महादेव, देवों के देव भी कहा जाता है). पांच मुख एवं प्रत्येक मुख में तीन-तीन नेत्र थें. मस्तक पर अर्धचंद्राकार मुकुट शोभा देता था. उन्होंने अपने बामांग भाग में मां गौरी को बिठा रखा था, जो विद्युत् मुख के समान प्रकाशित थीं. मां गौरा पति महादेवजी के कांति कपूर की भांति गौर थी. उनका सारा शरीर श्वेत भस्म से भाषित था. शरीर पर श्वेत वस्त्र शोभा पा रहे थे.इस प्रकार परम् उज्जवल भगवान शंकर (शिव) का दर्शन करके वह ब्राह्मण पत्नी चंचला अत्यंत प्रसन्न हुई.अत्यंत प्रीति युक्त बड़ी उतावली होकर वह भगवान शंकर (शिव) को बारंबार प्रणाम की. फिर हाथ जोड़कर बड़े प्रेम, आनंद एवं संतोष के साथ विनीतभाव से खड़ी हो गई.

उसके नेत्रों से आनंद अश्रुओं की अविरल धारा बहने लगी तथा संपूर्ण शरीर में रोमांच हो गया. उस समय मां भगवती पार्वती एवं भगवान शंकर ने उसे बड़ी करुणा के साथ अपने पास बुलाया और सौम्य दृष्टि से उसकी ओर देखा. मां पार्वती ने तो दिव्यरूप धारिणी बिंदुगप्रिया चंचला को प्रेमपूर्वक अपनी सखी बना लिया. वह उस परमानंदवन ज्योति स्वरूप सनातन धाम में अविचल निवास पाकर दिव्य

हर-हर महादेव!

भोपाल। शिव महापुराण केवल शिव-पार्वती की कथा ही नहीं कहता वरन, शिवभक्तों के लिए अनुशासन का एक ग्रंथ है. ये ग्रंथ हमें अनादि शिव की सम्पूर्ण कथा बताता है. सृष्टि के उद्भव से पहले से लेकर कलियुग के अंत के बाद तक की सभी कहानियां. दो युगों के छोर शिव से जुड़ते हैं यानी शून्य से शून्य तक. शिव महापुराण शिवलिंग के प्राकट्य का वर्णन करता है, ये पुराण ही हमें बताता है कि महाशिवरात्रि पर शिव पहली बार सृष्टि में ज्योतिर्लिंग रुप में अवतरित हुए थे.

Shiv puran
शिव के वो 19 अवतार

शिवपुराण का संक्षिप्त परिचय (Shiv Puran Stories)

शिव पुराण के रचयिता महर्षि वेद व्यास हैं. शिव पुराण 18 महापुराणों में से चौथे स्थान पर है. श्लोकों की बात करें तो ग्रन्थ 24000 (चौबीस हज़ार) श्लोकों से युक्त है. पहले इसमें 12 संहिताएं थीं, जिसमें संक्षिप्त रूप में 7 संहिताएं हैं. विद्येश्वर संहिता, रुद्र संहिता, शतरुद्र संहिता, कोटिरुद्र संहिता, उमा संहिता, कैलास संहिता और वायवीय संहिता. इसमें रुद्र संहिता के पांच और वायवीय संहिता के दो खंड हैं. मनुष्य को चाहिए कि वह भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से संपन्न हो बड़े आदर से इसका श्रवण एवं अध्ययन करे.

Shiv Mahapuran
शिव महापुराण

जानते हैं शिव के वो 19 अवतार (19 Avtars Of Shiv)

1. शरभ अवतार, 2. पिप्पलाद अवतार, 3. नंदी अवतार, 4. भैरव अवतार, 5. अश्वत्थामा, 6. वीरभद्र, अवतार, 7. गृहपति अवतार , 8. ऋषि दुर्वासा, 9. हनुमान. 10. वृषभ अवतार, 11. यतिनाथ अवतार, 12. कृष्णदर्शन अवतार, 13. अवधूत अवतार , 14. भिक्षुवर्य अवतार, 15. किरात अवतार, 16. सुनटनर्तक अवतार, 17. ब्रह्मचारी अवतार, 18. अर्धनारीश्वर अवतार, 19. सुरेश्वर अवतार.

पढ़िए शिव पुराण की दो कहानियां

कहानी संख्या-1 (देवराज को यमराज के दूतों से बचाया)

पूर्व की बात है किरातों के नगर में एक ब्राह्मण रहता था, जो ज्ञान में अत्यंत दुर्बल, दरिद्र, रस बेचने वाला तथा वैदिक धर्म से विमुख था. वह स्नान-संध्या आदि कर्मो से भ्रष्ट हो गया था और वैश्यवृति में तत्पर रहता था. उसका नाम देवराज था. वह अपने ऊपर विश्वास करने वाले लोगो को ठगा करता था. उसने ब्राह्मणो, क्षत्रियों, वैश्यों, शुद्रो, तथा दूसरों को भी अनेक बहाने से मारकर वह उनका धन हड़प लिया था परन्तु उस पापी का थोड़ा सा भी धन कभी धर्म के काम में नहीं लगा था. वह वेश्यागामी तथा सभी प्रकार के आचार-भ्रष्ट था.

एक दिन घूमता-घामता वह दैवयोग से प्रतिष्ठानपुर (झूंसी-प्रयाग) में जा पहुँचा. वहां उसने एक शिवालय देखा, जहाँ बहुत-से साधु-महात्मा एकत्र हुए थे. देवराज उस शिवालय में ठहर गया, किन्तु वहां उस ब्राह्मण को ज्वर आ गया. उस ज्वर से उसको बड़ी पीड़ा होने लगी. वहां एक ब्राह्मण देवता शिव पुराण की कथा सुना रहे थे. ज्वर में पड़ा हुआ देवराज ब्राह्मण के मुखार्विन्द से निकली हुई उस शिव कथा को निरंतर सुनता रहा. एक मास के बाद वह ज्वर से अत्यंत पीड़ित होकर चल बसा. यमराज के दूत आए और उसे बांधकर बलपूर्वक यमपुरी ले गए. इतने में ही शिवलोक से भगवान शिव के पार्षदगण आ गए. उनके गौर अंग (श्वेत अंग) कपूर के समान उज्जवल थे, हाथ त्रिशूल से सुशोभित हो रहे थे, उनके सम्पूर्ण अंग भस्म से उद्धासित थे और रुद्राक्ष की मालाएँ उनके शरीर की शोभा बढ़ा रही थी. वे सब-के-सब क्रोधपूर्वक यमपुरी में गए और यमराज के दूतों को मार पीटकर, बारम्बार धमका कर उन्होंने देवराज को उनके चंगुल से छुड़ा लिया और अत्यंत अद्भुत विमान पर बिठाकर जब वे शिवदूत कैलाश जाने को उद्यत हुए, उस समय यमपुरी में बड़ा कोलाहल मच गया. उस कोलाहल को सुनकर धर्मराज अपने भवन से बाहर आये. साक्षात् दूसरे रुद्रों के समान प्रतीत होनेवाले उन चारों दूतों को देखकर धर्मराज ने उनका विधिपूर्वक पूजन किया और ज्ञानदृष्टि से देखकर सारा वृतांत जान लिया. उन्होंने भय के कारण भगवान शिव के उन महात्मा दूतों से कोई बात नहीं पूछी, उलटे उन सबकी पूजा एवं प्रार्थना की. तत्पश्चात वे शिवदूत चले गए और वहां पहुंचकर उन्होंने उस ब्राह्मण को दयासागर साम्ब शिव के हाथों में सौंप दिया.

शिव पुराण की कहानियाँ

कहानी संख्या- 2 (चंचला की कहानी)

समुन्द्र के निकटवर्ती प्रदेश में एक वाष्कल नामक ग्राम था, जहाँ वैदिक धर्म से विमुख महापापी द्विज निवास करते थे. वे सब-के-सब बड़े दुष्ट थे, उनका मन दूषित विषय भोगों में ही लगा रहता था. वे न देवताओं पर विश्वास करते थे न भाग्य पर; वे सभी कुटिल वृत्तिवाले थे. किसानी करते और भाँति-भाँति के घातक अस्त्र-शस्त्र रखते थें. वे व्यभिचारी और खल थे. ज्ञान, वैराग्य तथा सद्धर्म का सेवन ही मनुष्य के लिए पुरुषार्थ होता है -- इस बात को वे बिलकुल नहीं जानते थे. वे सभी पशुबुद्धिवाले थे. (जहाँ द्विज ऐसे हों, वहाँ के अन्य वर्णों के विषय में क्या कहा जाय.) अन्य वर्णों के लोग भी उन्हीं की भाँति कुत्सित विचार रखनेवाले, स्वधर्म विमुख एवं खल थे. वे विषयभोगों में ही डूबे रहते थे. वहां की सब स्त्रियाँ भी कुटिल स्वभाव की स्वेच्छाचारिणी, पापासक्त, कुत्सित विचारवाली और व्यभिचारिणी थीं. वे सद्व्यवहार तथा सदाचार से सर्वथा शून्य हैं. इस प्रकार वहां दुष्टों का ही निवास था.

उस वाष्कल नामक ग्राम में किसी समय एक बिंदुग नामधारी ब्राह्मण रहता था, वह बड़ा अधर्मी था. दुरात्मा और महापापी था. यद्यपि उसकी स्त्री बड़ी सुन्दर थी, तो भी वह कुमार्ग पर ही चलता था. उसकी पत्नी का नाम चंचला था; वह सदा उत्तम धर्म के पालन में लगी रहती थी, तो भी उसे छोड़कर वह दुष्ट ब्राह्मण वेश्यागामी हो गया था. इस तरह कुकर्म में लगे हुए उस बिन्दुग के बहुत वर्ष व्यतीत हो गए. उसकी स्त्री काम से पीड़ित होने पर भी स्वधर्मनाश के भय से क्लेश सहकर भी दीर्घकाल तक धर्म से भ्रष्ट नहीं हुई. परन्तु दुराचारी पति के आचरण से प्रभावित हो आगे चलकर वह स्त्री भी दुराचारिणी हो गयी.

इस तरह दुराचार में डूबे हुए उन गूढ़ चित्तवाले पति-पत्नी का बहुत-सा समय व्यर्थ बीत गया.तदन्तर दूषित बुद्धिवाला दुष्ट ब्राह्मण बिन्दुग समयानुसार मृत्यु को प्राप्त हो नरक में जा पड़ा. बहुत दिनों तक नरक के दुःख भोगकर वह वह गूढ़ बुद्धि पापी विंध्य पर्वत पर भयंकर पिशाच हुआ. इधर दुराचारी पति बिन्दुग के मर जाने पर वह मूढ़ हृदया चंचला बहुत समय तक पुत्रों के साथ अपने घर में ही रही.

एक दिन दैवयोग से किसी पुण्य पर्व के आने पर वह स्त्री भाई-बंधुओं के साथ गोकर्ण-क्षेत्र में गयी. तीर्थयात्रिओं के संग से उसने भी उस समय जाकर किसी तीर्थ के जल में स्नान किया. फिर वह साधारणतया (मेला देखने की दृष्टि से) बंधू जनों के साथ यत्र-तत्र घूमने लगी. घूमती-घामती किसी देवमंदिर में गयी और वहां उसने एक दैवज्ञ ब्राह्मण के मुख से भगवान् शंकर (शिव) की परम पवित्र एवं मंगलकारिणी उत्तम पौराणिक कथा सुनी. कथावाचक ब्राह्मण कह रहे थे की 'जो स्त्रियाँ पर पुरुषों के साथ व्यभिचार करती है, वे मरने के बाद जब यमलोक में जाती हैं. पौराणिक ब्राह्मण के मुख से यह वैराग्य बढ़ानेवाली कथा सुनकर चंचला भय से व्याकुल होकर वहां काँपने लगी. जब कथा समाप्त हुई और सुननेवाले सब लोग वहां से बाहर चले गए, तब वह भयभीत नारी एकांत में शिवपुराण की कथा वाचनेवाले उन ब्राह्मण देवता से बोली.

चंचला ने कहा -- ब्रह्मण! मैं अपने धर्म को नहीं जानती थी. इसलिए मेरे द्वारा बड़ा दुराचार हुआ है. स्वामिन्! मेरे ऊपर अनुपम कृपा करके आप मेरा उद्धार कीजिये. आज आपके वैराग्य-रस से ओतप्रोत इस प्रवचन को सुनकर मुझे बड़ा भय लग रहा है. मैं काँप उठी हूँ और मुझे इस संसार से वैराग्य हो गया है. मुझ मूढ़ चित्तवाली पापिनी को धिक्कार है. मैं सर्वथा निंदा के योग्य हूँ. कुत्सित विषयों में फँसी हुई हूँ और अपने धर्म से विमुख हो गयी हूँ. हाय! न जाने किस-किस घोर कष्टदायक दुर्गति में मुझे पड़ना पड़ेगा और वहां कौन बुद्धिमान पुरुष कुमार्ग में मन लगानेवाली मुझ पापिनी का साथ देगा. मृत्युकाल में उन भयंकर यमदूतों को मैं कैसे देखूंगी? जब वे बलपूर्वक मेरे गले में फंदे डालकर मुझे बांधेगे, तब मैं कैसे धीरज धारण कर सकूँगी. नरक में जब मेरे शरीर के टुकड़े-टुकड़े किये जायेंगे, उस समय विशेष दुःख देनेवाली उस महायातना को मैं वहां कैसे सहूँगी? हाय! मैं मारी गयी! क्योंकि मैं हर तरह के पाप में डूबी रही हूँ. ब्रह्मन ! आप ही मेरे गुरु, आप ही माता और आप ही पिता हैं. आपकी शरण में आयी हुई मुझ दीन अबला का आप ही उद्धार कीजिये, उद्धार कीजिये.

इस प्रकार खेद और वैराग्य से युक्त हुई चंचला ब्राह्मण देवता के दोनों चरणों में गिर पड़ी. तब उन बुद्धिमान ब्राह्मण ने कृपापूर्वक उसे उठाया और इस प्रकार कहा -

ब्राह्मण बोले- नारी! सौभाग्य की बात है कि भगवान् शंकर (शिव) की कृपा से शिव पुराण की इस वैराग्य युक्त कथा को सुनकर तुम्हें समय पर चेत हो गया है. ब्राह्मण पत्नी! तुम डरो मत. भगवान् शिव की शरण में जाओ. शिव की कृपा से सारा पाप तत्काल नष्ट हो जाता है. मैं तुमसे भगवान् शिव की कीर्ति कथा (कहानियाँ) से युक्त उस परम वस्तु का वर्णन करूँगा, जिससे तुम्हें सदा सुख देने वाली उत्तम गति प्राप्त होगी. शिव की उत्तम कथा (कहानियाँ) सुनने से ही तुम्हारी बुद्धि इस तरह पश्चाताप से युक्त एवं शुद्ध हो गयी है. साथ ही तुम्हारे मन में विषयों के प्रति वैराग्य हो गया है. पश्चाताप ही पाप करने वाले पापियों के लिए सबसे बड़ा प्रायश्चित है.

सत्पुरुषों ने सब के लिए पश्चाताप को ही समस्त पापों का शोधक बताया है, पश्चाताप से ही पापों की शुद्धि होती है. जो पश्चाताप करता है, वही वास्तव में पापों का प्रायश्चित करता है; क्योंकि सत्पुरुषों ने समस्त पापों की शुद्धि के लिए जैसे प्रायश्चित का उपदेश किया है, वह सब पश्चाताप से संपन्न हो जाता है. जो पुरुष विधिपूर्वक प्रायश्चित करके निर्भय हो जाता है, पर अपने कुकर्म के लिए पश्चाताप नहीं करता, उसे प्रायः उत्तम गति नहीं प्राप्त होती. परन्तु जिसे अपने कुकृत्य पर हार्दिक पश्चाताप होता है, वह अवश्य उत्तम गति का भागी होता है, इसमें संशय नहीं. इस शिव पुराण की कथा सुनने से जैसी चित्तशुद्धि होती है, वैसी दूसरे उपायों से नहीं होती.

जैसे दर्पण साफ करने पर निर्मल हो जाता है, उसी प्रकार इस शिव पुराण की कथा से चित अत्यंत शुद्ध हो जाता है-- इसमें संशय नहीं है. मनुष्यों के शुद्ध चित में जगदम्बा पार्वती-सहित भगवान् शिव विराजमान रहते हैं. इससे वह विशुद्धात्मा पुरुष श्रीसाम्ब सदाशिव के पद को प्राप्त होता है. इस उत्तम कथा का श्रवण समस्त मनुष्यों के लिए कल्याण का बीज है. अतः यथोचित (शास्त्रोक्त) मार्ग से इसकी आराधना अथवा सेवा करनी चाहिए. यह भव बंधन रूपी रोग का नाश करनेवाली है. भगवान् शिव की कथा (कहानियाँ) को सुनकर फिर अपने ह्रदय में उसका मनन एवं निदिध्यासन करना चाहिए. इससे पूर्णतया चित शुद्धि हो जाती है. चित शुद्धि होने से महेश्वर की भक्ति अपने दोनों पुत्रों (ज्ञान एवं वैराग्य) के साथ निश्चय ही प्रकट होती है.

तत्पश्चात महेश्वर के अनुग्रह से दिव्य मुक्ति प्राप्त होती है, इसमें संशय नहीं है. जो मुक्ति से वंचित है, उसे पशु समझना चाहिए; क्योंकि उसका चित माया के बंधन से आसक्त है. वह निश्चय ही संसार बंधन से मुक्त नहीं हो पाता.

ब्राह्मण-पत्नी! इसलिए तुम विषयों से मन को हटा लो और भक्ति भाव से भगवान् शंकर (शिव) की इस परम पावन कथा को सुनो. परमात्मा शंकर (शिव) की इस कथा को सुनने से तुम्हारे चित्त की शुद्धि होगी और इससे तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी. जो निर्मल चित्त से भगवान् शिव के चरणारविन्दों का चिंतन करता है, उसकी एक ही जन्म में मुक्ति हो जाती है-- यह मैं तुमसे सत्य-सत्य कहता हूँ.

इतना कहकर वे श्रेष्ठ शिव भक्त ब्राह्मण चुप हो गए. उनका ह्रदय करुणा से आर्द्र हो गया था. वे शुद्ध चित महात्मा भगवान् शिव के ध्यान में मग्न हो गए. तदंतर बिन्दुग की पत्नी चंचला मन-ही-मन प्रसन्न हो उठी. ब्राह्मण का उक्त उपदेश सुनकर उसके नेत्रों में आनंद के आंसू छलक आये थे. वह ब्राह्मण पत्नी चंचला हर्ष भरे हृदय से उन श्रेष्ठ ब्राह्मण के दोनों चरणों में गिर पड़ी और हाथ जोड़कर बोली- मैं कृतार्थ हो गयी. तत्पश्चात उठकर वैराग्य युक्त उत्तम बुद्धि वाली स्त्री, जो

चंचला ने कहा-ब्राह्मण! शिव भक्तों में श्रेष्ठ! स्वामिन! आप धन्य है, परमार्थदर्शी हैं और सदा परोपकार में लगे रहते हैं. इसलिए श्रेष्ठ साधु पुरुषों में प्रशंसा के योग्य हैं.साधो! मैं नरक के समुद्र में गिर रही हूँ.आप मेरा उद्धार कीजिए, उद्धार कीजिए. पुरानी अर्थतत्व से संपन्न, जिस सुंदर शिव पुराण की कथा (कहानियाँ) को सुनकर मेरे मन में संपूर्ण विषयों से वैराग्य उत्पन्न हो गया है, उसी इस शिव पुराण को सुनने के लिए इस समय मेरे मन में बड़ी श्रद्धा हो रही है.

ऐसा कह हाथ जोड़कर उनका अनुग्रह पाकर चंचला शिवपुराण की कथा (कहानियाँ) को सुनने की इच्छा मन में लिए उस ब्राह्मण देवता की सेवा में तत्पर हो वहां रहने लगी. तदनंतर शिव भक्तों में श्रेष्ठ शुद्ध बुद्धि वाले उस ब्राह्मण देव ने उसी स्थान पर उस स्त्री को शिव पुराण की उत्तम कथा (कहानियाँ) सुनायी. इस प्रकार गोकर्ण नामक उस महाक्षेत्र में उन्हीं श्रेष्ठ ब्राह्मण से उसने शिव पुराण की वह परम् पावन कथा (कहानियाँ) सुनी, जो भक्ति, ज्ञान एवं वैराग्य को बढ़ाने वाली एवं मुक्ति देने वाली है. इस उत्तम कथा को सुनकर वह ब्राह्मण पत्नी अत्यंत कृतार्थ हो गई. उसका चित शीघ्र ही शुद्ध हो गया.

फिर भगवान शिव के अनुग्रह से उसके हृदय में भगवान शिव के सगुण रूप का चिंतन होने लगा. इस प्रकार उसने भगवान शिव में लगी रहने वाली उत्तम बुद्धि पाकर शिव के सच्चिदानंद मय स्वरूप का बारंबार चिंतन आरंभ किया. तत्पश्चात समय के पूरे होने पर वह भक्ति, ज्ञान एवं वैराग्य से युक्त चंचला ने बिना किसी कष्ट के अपना शरीर त्याग दिया! इतने में ही भगवान् त्रिपुराज भगवान् शिव का भेजा हुआ द्रुत विमान वहां पहुंचा जो उनके अपने गणों से संयुक्त एवं भांति- भांति के शोभा साधनों से संपन्न था.

चंचला उस विमान पर आरूढ़ हुई और भगवान शिव के श्रेष्ठ पार्षदों ने उसे तत्काल शिवपुरी पहुंचा दिया. उसके सारे मल धुल गए थे. वह दिव्य रूप धारिणी दिव्यांगना हो गई थी. उसके दिव्य अवयव की शोभा बढ़ाते थे. मस्तक पर अर्धचंद्र का मुकुट धारण किए वह गौरांगी देवी शोभाशाली दिव्य आभूषणों से विभूषित थी. शिवपुरी पहुंचकर उसने सनातन देवता त्रिनेत्रधारी भगवान महादेवजी को देखा. सभी मुख्य मुख्य देवता उनकी सेवा में खड़े थे. भगवान गणेश, नंदीश्वर, भृंगी तथा वीर भद्रेश्वर आदि उनकी सेवा में उत्तम भक्ति भाव से उपस्थित थे. उनके अंगकांति करोड़ों सुर्यों के समान प्रकाशित हो रही थी.

कंठ में नील चिन्ह शोभा पाता था (भगवान शिव-शंकर को त्रिनेत्रधारी, नीलकंठ, महादेव, देवों के देव भी कहा जाता है). पांच मुख एवं प्रत्येक मुख में तीन-तीन नेत्र थें. मस्तक पर अर्धचंद्राकार मुकुट शोभा देता था. उन्होंने अपने बामांग भाग में मां गौरी को बिठा रखा था, जो विद्युत् मुख के समान प्रकाशित थीं. मां गौरा पति महादेवजी के कांति कपूर की भांति गौर थी. उनका सारा शरीर श्वेत भस्म से भाषित था. शरीर पर श्वेत वस्त्र शोभा पा रहे थे.इस प्रकार परम् उज्जवल भगवान शंकर (शिव) का दर्शन करके वह ब्राह्मण पत्नी चंचला अत्यंत प्रसन्न हुई.अत्यंत प्रीति युक्त बड़ी उतावली होकर वह भगवान शंकर (शिव) को बारंबार प्रणाम की. फिर हाथ जोड़कर बड़े प्रेम, आनंद एवं संतोष के साथ विनीतभाव से खड़ी हो गई.

उसके नेत्रों से आनंद अश्रुओं की अविरल धारा बहने लगी तथा संपूर्ण शरीर में रोमांच हो गया. उस समय मां भगवती पार्वती एवं भगवान शंकर ने उसे बड़ी करुणा के साथ अपने पास बुलाया और सौम्य दृष्टि से उसकी ओर देखा. मां पार्वती ने तो दिव्यरूप धारिणी बिंदुगप्रिया चंचला को प्रेमपूर्वक अपनी सखी बना लिया. वह उस परमानंदवन ज्योति स्वरूप सनातन धाम में अविचल निवास पाकर दिव्य

हर-हर महादेव!

Last Updated : Jul 28, 2021, 7:39 AM IST
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