भोपाल। मध्यप्रदेश में हर साल 1000 बच्चों में से 55 बच्चे अपना पहला जन्मदिन भी नहीं मना पाते. इनमें से 15 फ़ीसदी बच्चों की मौत निमोनिया से होती है. स्वास्थ्य विभाग ने निमोनिया से बच्चों की मौतों के आंकड़ों में कमी लाने के लिए सांस अभियान की शुरुआत की है. अभियान के तहत एएनएम, कम्युनिटी हेल्थ वर्कर, आशा कार्यकर्ताओं से लेकर डॉक्टर्स तक को निमोनिया से ग्रसित बच्चों के इलाज की ट्रेनिंग दी जाएगी.
निमोनिया की अनदेखी बच्चों के लिए होती है घातक
मध्यप्रदेश में हर साल 1000 बच्चों में से 55 की मौत हो जाती है. स्वास्थ विभाग के आंकड़ों को देखा जाए तो इनमें से 15 फ़ीसदी बच्चों की मौत निमोनिया से होती है. आंकड़ों के हिसाब से मध्यप्रदेश में हर साल करीब 23 लाख बच्चे निमोनिया से ग्रसित होते हैं. प्रारंभिक स्तर पर निमोनिया की पहचान न होने से कई बार यह बच्चों के लिए घातक साबित होता है. निमोनिया से होने वाली बच्चों की मौत में कमी लाने के लिए 'सांस' अभियान शुरुआत की है. अभियान का शुभारंभ करते हुए स्वास्थ्य मंत्री प्रभु राम चौधरी ने कहा कि हमें ग्रामीण स्तर पर लोगों को जागरूक करना होगा. जिससे निमोनिया के लक्षणों में किस तरह की सावधानियां बरतना जरूरी है, उन्हें पता चल सके.
कई बार परिजनों द्वारा लापरवाही बरतने और हॉस्पिटल देर से पहुंचने की वजह से यह बच्चों के लिए घातक साबित होता है. इसलिए परिजनों को जागरूक करना होगा कि बच्चों में निमोनिया के लक्षण क्या होते हैं. इस तरह के लक्षण दिखाई देने पर उन्हें क्या क्या कदम उठाने चाहिए.
'सांस' अभियान के तहत यह उठाए जाएंगे कदम
'सांस' अभियान के तहत समुदाय स्तर पर एएनएम कम्युनिटी हेल्थ ऑफिसर आशा सहयोगिनी को निमोनिया के लक्षण की पहचान, प्रारंभिक इलाज और सही समय पर रेफरल के संबंध में ट्रेनिंग दी जाएगी. संस्थागत स्तर पर काम करने वाले डाक्टर और स्टॉफ नर्स को भी निमोनिया के गंभीर रोगों के उपचार के लिए विशेष ट्रेनिंग दी जाएगी. स्वास्थ विभाग के अधिकारियों के मुताबिक निमोनिया पर कंट्रोल के लिए समुदाय की सक्रिय भागीदारी जरूरी है. इसके लिए व्यापक स्तर पर लोगों को निमोनिया के प्रारंभिक लक्षणों की पहचान बचाव और रोकथाम के संबंध में जागरूक किया जाएगा.