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रविंद्र भवन में चल रहे नाट्य समारोह में 'रुदाली' नाटक का हुआ मंचन, लोग हुए भावविभोर - रुदाली

राजधानी के रविंद्र भवन में चल रहे इफ्तेखार स्मृति नाट्य एवं सम्मान समारोह में शुक्रवार को 'रूदाली' नाटक का मंचन किया गया. कलाकारों की प्रस्तुति देखकर लोग भावविभोर हो गए. इसमें रूदालियों की जिंदगी की परेशानियों को दिखाया गया.

'रुदाली' नाटक का हुआ मंचन
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Published : Apr 27, 2019, 10:57 AM IST

भोपाल| रविंद्र भवन में चल रहे इफ्तेखार स्मृति नाट्य एवं सम्मान समारोह में हर दिन कलाकारों के द्वारा एक नए नाट्क की प्रस्तुति दी जाती है. 29 सालों से भोपाल में आयोजित हो रहा इफ्तेखार स्मृति नाट्य एवं सम्मान समारोह कला प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. शुक्रवार को इस नाट्य समारोह में 'रुदाली' नाटक का मंचन किया गया.

'रुदाली' नाटक का हुआ मंचन

इस नाटक के माध्यम से बताया गया कि जो औरतें रुदाली का काम करती हैं, उनकी खुद की जिंदगी कितनी कष्टदायक और परेशानियों से भरी होती है. वे किस तरह अपनी मजबूरियों के चलते रुदाली बनने के लिए मजबूर हो जाती हैं. नाटक का केंद्रीय चरित्र 'शनिचरी' है, जिसे शनिवार के दिन पैदा होने के कारण यह नाम मिला है. समाज मानता है कि वह अपशगुनी है, इसीलिए उसके परिवार में कोई जिंदा नहीं बच पाया.

रुदाली नाटक को महाश्वेता देवी ने लिखा है. इस नाटक का नाट्य रूपांतरण ऊषा गांगुली ने किया है और इसका निर्देशन केजी त्रिवेदी ने किया है. इस नाट्य प्रस्तुति में 50 कलाकारों ने भागीदारी की.

भोपाल| रविंद्र भवन में चल रहे इफ्तेखार स्मृति नाट्य एवं सम्मान समारोह में हर दिन कलाकारों के द्वारा एक नए नाट्क की प्रस्तुति दी जाती है. 29 सालों से भोपाल में आयोजित हो रहा इफ्तेखार स्मृति नाट्य एवं सम्मान समारोह कला प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. शुक्रवार को इस नाट्य समारोह में 'रुदाली' नाटक का मंचन किया गया.

'रुदाली' नाटक का हुआ मंचन

इस नाटक के माध्यम से बताया गया कि जो औरतें रुदाली का काम करती हैं, उनकी खुद की जिंदगी कितनी कष्टदायक और परेशानियों से भरी होती है. वे किस तरह अपनी मजबूरियों के चलते रुदाली बनने के लिए मजबूर हो जाती हैं. नाटक का केंद्रीय चरित्र 'शनिचरी' है, जिसे शनिवार के दिन पैदा होने के कारण यह नाम मिला है. समाज मानता है कि वह अपशगुनी है, इसीलिए उसके परिवार में कोई जिंदा नहीं बच पाया.

रुदाली नाटक को महाश्वेता देवी ने लिखा है. इस नाटक का नाट्य रूपांतरण ऊषा गांगुली ने किया है और इसका निर्देशन केजी त्रिवेदी ने किया है. इस नाट्य प्रस्तुति में 50 कलाकारों ने भागीदारी की.

Intro:दूसरों के मरने पर रोने वाली रुदौली की कहानी देख दर्शक भी रो दिए



भोपाल | राजधानी के रविंद्र भवन में चल रहे इफ्तेखार स्मृति नाट्य एवं सम्मान समारोह मैं प्रत्येक दिन कलाकारों के द्वारा एक नए नाट्य प्रस्तुति से श्रोता गणों को अवगत कराया जा रहा है इस कार्यक्रम के माध्यम से देश भर से आए कलाकारों को एक बेहतर मंच भी प्रदान हुआ है करीब 29 वर्षों से राजधानी भोपाल में आयोजित हो रहा यह समारोह कला प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है शुक्रवार को इस नाट्य समारोह के तहत रुदाली नामक नाटक का मंचन किया गया करीब 2 घंटे की इस नाट्य प्रस्तुति में मंच पर अभिनय कर रहे कलाकारों ने अपनी अभिनय का लोहा भी मनवाया .


Body:इस नाटक के माध्यम से बताया गया कि जो औरतें रूदाली का काम करती हैं उनकी खुद की जिंदगी कितनी कष्टदायक और परेशानियों से भरी होती है वे किस तरह अपनी मजबूरियों के चलते रुदाली बनने के लिए मजबूर हो जाती हैं .


नाटक का केंद्रीय चरित्र शनिचरी है जिसे शनिवार के दिन पैदा होने के कारण यह नाम मिला है समाज मानता है कि वह असुगनी नहीं है और इसीलिए उसके परिवार में कोई जिंदा नहीं बच पाया है उसके परिवार में सास ससुर जेड बेटा एक एक करके सभी की मौत हो जाती है लेकिन शनिचरी उसकी आंखें कभी नाम नहीं हुई वह इतना कष्ट झेले के बाद भी जिंदगी को जीने के लिए दृढ़ संकल्पित है गरीबी की परेशानियों को झेलते हुए भी वह कभी आंसू नहीं निकालती है उसका एक मात्र लगाओ अपने पोते से है लेकिन समय के इस चित्र में वह भी उसे अकेला छोड़ कर भाग जाता है .


Conclusion:इस नाट्य मंचन में दिखाया गया है कि वह अपने पोते को खोजने के क्रम में निकल पड़ती है और इस दौरान एक मेले में पहुंच जाती है जहां उसे अपने बचपन की सहेली बिखनी से मुलाकात होती है बिखनी का जीवन भी कुछ उसकी सहेली शनिचरी के जीवन से मेल खाता है वह भी अपने जीवन में लाख परेशानियां झेल रही है और उसे उसके ही बाल बच्चों के द्वारा दुत्कार दिया जाता है अब वह परिवार से अलग होकर अकेले जीवन यापन कर रही है जैसे तैसे अपने जीवन की जरूरतों को पूरा करने के लिए छोटा-मोटा काम कर जीवन को एक संगीत की तरह जिए जा रही है .



दोनों सहेलियों की मुलाकात के बाद दोनों ही अपना दर्द एक दूसरे को बयान करती हैं इस मुलाकात के बाद शनिचरी अपनी सहेली को अपने साथ ही रहने के लिए राजी कर लेती है शनिचरी कम उम्र में ही बहू बन गई थी लेकिन कम उम्र में ही शादी होने के बाद सास के तानों और गालियों को सहती एक दुख भरा जीवन जीती रही लेकिन अब उसे अपनी सहेली से मिलने के बाद प्रसन्नता हो रही थी उसके चेहरे पर एका एक मुस्कुराहट दिखाई दे रही थी जो वर्षों से कभी दिखाई नहीं दी थी अब मैं अपनी सहेली के साथ घर में रह रही थी और उसे खुशी के साथ जीने का एक मकसद मिल गया था क्योंकि अब वह अकेली नहीं थी उसके अंदर अब अकेलेपन का डर नहीं था लेकिन पैसों की जुगत में अंततः उसे रूदाली का काम करना पड़ता है रुदाली यानी वह स्त्री जो भाड़े पर रोती है मेहनताना लेकर मातम करती है विडंबना ही है कि अपनों के मरने पर ना रोने वाली शनिचरी पेट के खातिर औरों के मरे पे रोने का काम करने लगती है अब वह अपनी सहेली बिखनी के साथ इस काम को करने लगती है लेकिन 1 दिन उसकी सहेली की भी मृत्यु हो जाती है और शनिचरी के जीवन में केवल रुदाली ही रह जाती है .

रुदाली नाटक को महाश्वेता देवी ने लिखा है इस नाटक का नाट्य रूपांतरण उषा गांगुली ने तैयार किया है और इसका निर्देशन के जी त्रिवेदी के द्वारा किया गया है इस नाट्य प्रस्तुति में 50 कलाकारों ने भागीदारी निभाई है .

जिस समय यह नाटक समाप्त हुआ तो नाटक देखने आए श्रोता गणों के भी आंखों में आंसू थे कलाकारों का कहना था कि इस नाटक की सफलता ही यही है कि जब हम सच्चे मन से अभिनय करें तो उसका असर श्रोताओं पर दिखाई देना चाहिए यही सबसे बड़ा इनाम एक कलाकार के लिए होता है .
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